10-01-2020, 10:08 AM
इधर रितिका अंदर ही अंदर हमारे घर की बुनियाद में सेंध लगा चुकी थी| सारे घर के लोगों के दिलों में रितिका ने अपनी जगह फिर से बना ली थी, सब की बातें वो सर झुका कर मानने लगी थी और नेहा तो पहले से ही सब का प्यार पा रही थी| रितिका के मन में मेरे लिए जो गुस्सा था वो अब धधक कर आग का रूप ले चूका था| उसका बदला, उसकी नफरत अब सारी हदें पार कर चूके थे! बाहर-बाहर से तो वो ऐसे दिखाती थी की वो बहुत खुश है पर अंदर ही अंदर कुढ़ती जा रही थी| मुझसे बदला लेने के लिए उसे सब से पहले अनु को ठिकाने लगाना था, ताकि मैं उसे खोने के बाद टूट जाऊँ और तिल- तिल कर तड़पूँ और फिर वो अपने हाथों से मेरा खून करे! पर कुछ भी करने के लिए उसे चाहिए था पैसा जो उसके पास था नहीं, पर मंत्री की जायदाद तो उसकी थी! रितिका ने चोरी छुपे उस इंस्पेक्टर को कॉल किया और उससे उसने वकील का नंबर लिया| "वकील साहब मैं रितिका बोल रही हूँ!" रितिका का नाम सुनते ही वकील को याद आ गया| "वकील साहब उस दिन आप घर आये थे ना? और आपने कहा था की मंत्री यानी मेरे ससुर जी की जायदाद की एकलौती वारिस मैं हूँ?! तो आप मुझे बता सकते हैं की मैं उसे कैसे claim करूँ?" ये सुनते ही वकील खुश हो गया और उसने रितिका को कानूनी दांव-पेंच समझाना शुरू कर दिया जो उसके पल्ले नहीं पड़ा| "देखिये वकील साहब, मुझे अपनी बेटी के भविष्य की चिंता है| आपके ये दांव-पेच मेरी समझ के परे हैं, मुझे आप बस इतना बताइये की क्या आप मुझे उस जायदाद का वारिस बना सकते हैं?" रितिका ने नेहा के नाम से झूठ बोला, उसे नेहा के भविष्य की रत्ती भर चिंता नहीं थी उसे तो केवल मुझसे बदला लेना था! "आप उस जायदाद की जायज वारिस हैं और मैं आपको आपका हक़ दिलवा सकता हूँ!" वकील बोला| इससे पहले वो अपनी फीस की बात करता रितिका ने उसे पहले ही बता दिया; "देखिये वकील साहब, मेरे पास आपको देने के लिए पैसे नहीं हैं! मेरे घरवाले इस केस को ले कर मुझे रोक रहे हैं पर मैं चाहती हूँ की आप मेरी तरफ से केस फाइल कर दीजिये| जैसे ही मुझे जायदाद मिलेगी मैं उसका 10% आपको फीस के रूप में दे दूँगी| आप को यदि मुझ पर भरोसा ना हो तो आप कागज बना कर ले आइये मैं साइन कर देती हूँ!" रितिका ने अपनी चाल चली, वैसे तो वकील बिना फीस के कोई काम नहीं करता पर रितिका के 10% के लालच में पड़ कर वो मान गया| ये सारा काम चोरी-छुपे होना था इसलिए रितिका ये सोच कर बहुत खुश थी की क्या होगा जब वो केस जीत जाएगी! सारा का सारा परिवार उसके कदमों में गिर पड़ेगा यही सोच कर रितिका के मन का कमीनापन बाहर आ गया|
कुछ दिन बाद वकील अनु से मिलने आया और कागज-पत्तर ले कर आया जो उसे साइन करने थे| रितिका छुपते-छुपाते हुए उससे मिलने कुछ दूरी पर गाँव के कॉलेज पहुँची, आज चूँकि छुट्टी थी और पूरा कॉलेज खाली था तो वो आराम से सारे कागज पढ़ सकती थी| उसे ये जान कर हैरानी हुई की मंत्री की जायदाद पूरे 50 करोड़ की थी और वकील को ये जान कर ख़ुशी हुई की उसे इस केस के 50 लाख मिलने वाले हैं| "देखिये रितिका जी, केस तो मैं कल फाइल कर दूँगा और आपको चिंता करने की भी जर्रूरत नहीं क्योंकि मेरी बहुत अच्छी जान पहचान है जिससे आपको ज्यादा तारीखें नहीं मिलेंगी, बस उसका खर्चा थोड़ा-बहुत होगा! मंत्री साहब की पार्टी ने claim किया था जायदाद पर मैंने फिलहाल उस पर स्टे ले रखा है| आपको एक दिन कोर्ट में पेश होना होगा, पर आपको कुछ कहना नहीं है|" वकील की बात सुन कर रितिका आश्वस्त हो गई और ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आई| रात को सोते समय नेहा ने सोचना शुरू किया, उस ने हर एक बात, हर एक शब्द सोच लिया था जो उसे कहना है| अब बात आई टाइमिंग की, तो वो भी उस ने सोच लिया की कौनसा समय सबसे बेस्ट होगा जिससे पूरे परिवार को एक साथ धक्का लगे! जून का महीना आते ही रितिका की जलन उस पर हावी होना शुरू हो चुकी थी, उसे जल्द से जल्द अपना बदला चाहिए था| उसने छुप के वकील को फ़ोन किया; "वकील साहब और कितना टाइम लगेगा?" रितिका ने पुछा|
"रितिका जी, अभी तो बस दो ही महीने हुए हैं!" वकील मुस्कुराता हुआ बोला|
"वो सब मुझे नहीं पता, मुझे ये प्रॉपर्टी किसी भी हालत में 10 अगस्त से पहले अपने नाम पर चाहिए!" रितिका ने अपना फरमान सुनाते हुए कहा|
"इतनी जल्दी? देखिये कोर्ट-कचेहरी में थोड़ा टाइम तो लगता है!" वकील हैरान होते हुए बोला|
"आप कह रहे थे न की कुछ खर्चा होगा? कितना लगेगा?" रितिका ने अपनी बेसब्री दिखाते हुए कहा|
"जी...वो...यही कुछ 5 लाख!" वकील हकलाते हुए बोला|
"मैं 10 लाख दूँगी! पर काम मेरे मुताबिक करवाओ!" रितिका की बात सुन वकील हैरान हो गया और उसने अपने जुगाड़ लगाने शुरू कर दिए| विपक्ष के वकील को उसने लाख रुपये पकड़ाए और 5 लाख में उसने जज को सेट किया जिसने विपक्ष का क्लेम ख़ारिज कर दिया| जुलाई के महीने में ही कोर्ट ने फैसला रितिका के पक्ष में दे दिया वो भी बिना रितिका के कोर्ट जाए| जैसे ही ये खबर वकील ने रितिका को दी वो फूली न समाई! प्रॉपर्टी ट्रांसफर के कुछ कागजों पर साइन करने के लिए वकील ने रितिका को कॉलेज बुलाया| उन कागजों में वकील ने मंत्री की जमीन का एक टुकड़ा जिसकी कीमत करीब 20 लाख थी वो रितिका से अपनी फीस के रूप में माँगी| रितिका ने मिनट नहीं लगाया उसकी बात मानने में और सारे पेपर पढ़ कर आईं कर दिए| "29 जुलाई तक सारी प्रॉपर्टी आपके नाम हो जाएगी|" वकील ने पेन का ढक्कन बंद करते हुए मुस्कुरा कर कहा|
"थैंक यू वकील साहब! आप वो हवेली खुलवा दीजिये और उसकी साफ़-सफाई करवा दीजिये! वहां एक काँटा नाम की औरत काम करती थी उसे मेरा नाम बोल दीजियेगा वो सब काम संभाल लेगी और उसके पति को कहियेगा की 19 अगस्त को मुझे लेने यहाँ आये वो भी Mercedes ले कर!" रितिका ने कमीनी हँसी हँसते हुए कहा| वकील समझ गया की रितिका 19 को ही घर लौटेगी इसलिए उसने रितिका के कहे अनुसार साफ़-सफाई करवा दी और काँटा और उसके पति को नौकरी पर रख लिया| इधर घर लौटते ही रितिका की ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी, पर उसकी ख़ुशी को ग्रहण लगने वाला था| रात को ताऊ जी ने बताया की रितिका की दूसरी शादी के लिए एक रिश्ता आया है| ये सुनते ही रितिका को बहुत गुस्सा आया, उसका मन तो किया की वो अभी ताऊ जी का खून कर दे पर उसने खुद को काबू किया और रोनी सी सूरत बना कर बोली; "दादाजी....प्लीज...ऐसा मत कीजिये!.... मैं इस परिवार को छोड़ कर नहीं जाऊँगी! मुझे इस घर से अलग मत कीजिये! आप सब ही मेरे लिए सब कुछ हो!" रितिका रोते हुए बोली, ताई जी ने माँ बन कर उसे सम्भाला और उसे पुचकारने लगीं ताकि वो चुप हो जाए| "बेटी तेरी उम्र अभी बहुत कम है! इतनी बड़ी उम्र तो कैसे काटेगी?" ताऊ जी ने प्यार से रितिका को समझाना चाहा पर वो नहीं मानी और अपना तुरुख का इक्का फेंक दिया; "आप मेरी चिंता मत कीजिये, नेहा जो है मेरे पास? मैं उसी के सहारे जिंदगी काट लूँगी, फिर आप सब भी तो हैं!" ताऊ जी शांत हो गए और रितिका की बात फिलहाल के लिए मान गए| इधर रितिका की खुशियों पर लगा ग्रहण छट गया और उसकी वही कमीनी हँसी लौट आई| "बहुत जल्दी तेरी गर्दन मेरे हाथ में होगी!" रितिका रात को सोते समय बुदबुदाई! उसका मतलब मेरी गर्दन से था! बदले का प्लान सेट था और अब बस उसे मेरे आने का इंतजार था| वो जानती थी की मैं नेहा के जन्मदिन पर जर्रूर आऊँगा और ठीक इसी समय वो अपना वार मुझ पर करेगी|
इधर इन सब बातों से बेखबर मैं और अनु अपनी नई जिंदगी अच्छे से जी रहे थे| दिन, हफ्ते, महीने गुजरे और अगस्त आ गया, अनु ने अपनी टीम यानी अक्कू, पंडित जी और अपनी दोस्त के कान खींचने शुरू कर दिए| "अगर इस बार तुम में से किसी ने भी हमारे जाने के बाद मज़े किये और काम नहीं किया तो तुम सब की खैर नहीं! मुझे डेली अपडेट चाहिए की तुम लोगों ने कितना काम किया है? कोई भी काम अगर पेंडिंग हुआ तो तुम सबकी प्रमोशन खतरे में पद जायेगी!" अनु ने सब को चेतावनी देते हुए कहा| प्रमोशन के लालच में तीनों काम करने के लिए तैयार हो गए| इधर मेरी टीम में ज्वाइन हुए दोनों मेरी उम्र के थे और मुझे उन्हें ज्यादा कुछ नहीं कहना पड़ा क्योंकि वो काम की seriousness समझते थे| हमारा प्रोजेक्ट step by step था इसलिए मेरा उनके काम पर नजर रखना बहुत आसान था| स्टाफ को अच्छे से काम समझा कर हम अगले दिन फ्लाइट से लखनऊ पहुँचे, एक दिन मम्मी-डैडी के पास रुके और फिर गाँव पहुँचे| हमने अपने आने की तारीख किसी को नहीं बताई थी, इसलिए ये सरप्राइज पा कर सब खुश हो ने वाले थे| घर आते ही सबसे पहले मैं अपनी माँ से मिला और फिर अपनी लाड़ली को ढूंढते हुए रितिका के कमरे में जा पहुँचा जहाँ भाभी और रितिका नेहा को तैयार कर रहे थे| मुझे वहां देखते ही भाभी खुश हो गईं, नेहा ने मुझे देख अपने हाथ-पाँव मारने शुरू कर दिए| मैंने उसे फ़ौरन उठा का र अपने सीने से लगा लिया और आँखें बंद किये उस पल को जीने लगा| इतने महीनों से जल रही एक बाप के सीने की आग आज शांत हुई! “I missed you so much my lil angel!!!!” मैंने नेहा को अपने सेने से लगाए हुए कहा, आँसू की कुछ बूँदें छलक कर नेहा के कपड़ों पर गिरीं तो भाभी ने मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे नहीं रोने को कहा| उधर रितिका के चेहरे पर आज अलग ही मुस्कान थी, ऐसा लगा मानो उसे इस बाप-बेटी के मिलन से बहुत ख़ुशी हुई हो! पर मैं नहीं जानता था की ये वो मुस्कान थी जो किसी शिकारी के चेहरे पर तब आती है जब वो अपने शिकार को जाल में फँसते हुए देखता है| इधर पीछे से अनु भी भागती हुई ऊपर आ गई| पहले उसने भाभी को गले लगाया और फिर आस भरी नजरों से मुझे देखने लगी ताकि मैं उसे नेहा को दे दूँ| मैंने नेहा को उसे दिया तो उसने फ़ौरन उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके माथे पर पप्पियों की झड़ी लगा दी| रितिका को ये दृश्य जरा भी नहीं भाया और वो नीचे चली गई|
ताऊ जी, पिता जी, चन्दर भैया और ताई जी बाहर गए थे इसलिए उनके आने तक हम सब नीचे ही बैठे रहे| माँ ने मुझे अपने पास बिठा लिया और मुझसे बहुत से सवाल पूछती रहीं, इधर अनु नेहा को अपनी छाती से लगाए हुए उसे दुलार करने लगी| उसने नेहा से बातें करना शुरू कर दिया था और उसकी ख़ुशी से निकली आवाजों का अपने मन-मुताबिक अर्थ निकालना शुरू कर दिया था| मैं ये देख कर बहुत खुश था और उन बातों में शामिल होना चाहता था पर मेरी माँ को भी उनके बेटे का प्यार चाहिए था| इसलिए मैं माँ की गोद में सर रख कर लेट गया और माँ ने मेरे बालों को सहलाते हुए बातें शुरू कर दी| "बहु (भाभी) आज मानु की पसंद का खाना बनाना|" माँ ने कहा तो भाभी रसोई जाने को उठीं, अनु ने एक दम से उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोक लिया| "आप बैठो यहाँ, आज से खाना मैं बनाऊँगी!" ये कहते हुए अनु उठी| "अरे तू अभी आई है, थोड़ा आराम कर ले कल से तू रसोई संभाल लिओ!" भाभी बोलीं पर मैं उठ कर बैठा और अपनी पत्नी की तरफदारी करते हुए बोला; "आज खाना मैं और अनु बनाएंगे और माँ आप चलो मैं आपको चॉपर दिखाता हूँ!" ये कहते हुए हम सारे रसोई में पहुँच गए| मैंने भाभी और माँ को चॉपर दिखाया और वो कैसे काम करता है ये बताया तो वो ये देख कर बहुत खुश हुए| मैं और अनु हाथ-मुँह धोकर खाना बनाने घुस गए| नेहा के लिए मैं एक baby carry bag लाया था जिसे मैंने पहन लिया और नेहा को उसमें आराम से बिठा दिया| अब मैं एक कंगारू जैसा लग रहा था जिसके baby pouch में बच्चा बैठा हो! मैं और अनु खाना बना रहे थे और नेहा के साथ खेल भी रहे थे| गैस के आगे खड़े होने का काम अनु करती, और चोप्पिंग का काम मैं करता| सब्जियों को देख नेहा उन्हें पकड़ने की कोशिश करती और मैं जानबूझ कर दूर हो जाता ताकि वो उन्हें पकड़ न पाए| हमें इस तरह से खाना बनाते हुए देख माँ और भाभी हँस रही थीं| खाना बनने के 15 मिनट बाद ही सब आ गए और हम दोनों को देख कर बहुत खुश हुए| "बेटा तूने बताया क्यों नहीं की तुम दोनों आ रहे हो? हम लेने आ आ जाते!" ताऊ जी बोले तो अनु मेरी तरफ देखने लगी; "ताऊ जी आप सब को सरप्राइज देना चाहते थे!" मैंने कहा और फिर हमने सबके पाँव छुए और आशीर्वाद लिया| मेरी गोद में नेहा को देखते ही पिताजी बोले; "आते ही अपनी लाड़ली के साथ खलने लग गया?!"
"पिताजी मिली प्याली-प्याली बेटी को मैंने बहुत याद किया!" मैंने तुतलाते हुए नेहा की तरफ देखते हुए बोला, नेहा ये सुनते ही हँसने लगी| बीते कुछ महीनों में सबसे ज्यादा वीडियो कॉल अनु ने नेहा को देखने के लिए की थी, मैं चूँकि बिजी होता था तो 15 दिन में कहीं मुझे मौका मिल पाता था वीडियो कॉल में नेहा को देखने का| "सच्ची पिताजी हम दोनों ने नेहा को बहुत याद किया, मैं तो फिर भी काम में लगा रहता था पर अनु तो हर दूसरे-तीसरे दिन भाभी को वीडियो कॉल किया करती थी|" मैंने कहा तो माँ बोली; "अब बहु भी खुशखबरी सुना दे तो उसका भी अकेलापन दूर हो जाए!" माँ की बात सुन हम दोनों शर्म से लाल हो गए थे| भाभी ने जैसे तैसे बात संभाली और बोलीं; "पिताजी खाना तैयार है!" सब खाने के लिए बैठ गए और जब मैंने और अनु ने सब को खाना परोसा तो सब हैरान हो गए| "पिताजी खाना आज दोनों मियाँ-बीवी ने मिल कर बनाया है!" भाभी हँसते हुए बोली| ये सुनकर सब खुश हुए और सब ने बड़े चाव से खाना खाया| खाने के बाद हमारे लाये हुए तौह्फे हमने सब को दिए| सब के लिए कुछ न कुछ था, यहाँ तक की हम दोनों रितिका के लिए भी एक साडी लाये थे जिसे उसने सब के सामने नकली हँसी हँसते हुए ले लिया| पर सबसे ज्यादा तौह्फे नेहा के लिए थे, 10 ड्रेसेस के सेट जिसमें से एक ख़ास कर उसके जन्मदिन के लिए था| उसके खलेने के लिए खिलोने, फीडिंग बोतल, छोटी-छोटी bangles और भी बहुत सी चीजें| मैं नेहा को गोद में ले कर उसे उसके गिफ्ट्स दिखा रहा था और नेहा बस हँसती जा रही थी!
रात को सोने के समय मैं नेहा को अपने साथ ऊपर कमरे में ले आया| रसोई के सारे काम निपटा कर अनु भी ऊपर आ गई| मैं नेहा को गोद में ले कर उससे बात करने में लगा हुआ था, अनु कुछ देर चौखट पर खड़ी बाप-बेटी का प्यार देखती रही और फिर बोली; "I'm really sorry! मैंने आपको बहुत गलत समझा! मुझे लगा था की ऑफिस के काम में आप नेहा को भूल गए!" अनु ने सर झुकाये हुए कहा| "बेबी (अनु) भूल नहीं गया था...बस अपने प्यार को दबा कर रख रहा था| घरवायलों से तुमने वादा किया था न की तुम मेरा ख्याल रखोगी? फिर तुम्हें गलत कैसे साबित होने देता?!" मैंने अनु को उस दिन की बात याद दिलाई जब उसने अमेरिका जाते समय माँ से वादा किया था| "आपको अपनी feelings इस तरह दबानी नहीं चाहिए! It could hurt you mentally!" अनु चिंता जताते हुए बोली|
"बेबी आप जो थे मेरे पास मेरा ख्याल रखने के लिए!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा, बात को खत्म करने के लिए अनु को अपने पास बुलाया| अनु दरवाजा बंद कर के आई और हम तीनों आज महीनों बाद एक साथ गले लगे| फिर अनु ने नेहा को मेरी गोद से ले लिया और उसे चूमते हुए लेट गई| वो पूरी रात हमने जागते हुए नेहा को प्यार करके गुजारी, इतने महीनों का सारा प्यार नेहा पर उड़ेल दिया गया| नेहा को सोता हुआ देख कर हम दोनों ठंडी आहें भर रहे थे!
इस तरह से दिन कब निकले और नेहा का जन्मदिन कब आया पता ही नहीं चला| 18 अगस्त की सुबह को सब तय हुआ की कल हम केक काटेंगे और नेहा का जन्मदिन धूम-धाम से मनाएंगे| ताऊ जी ने चन्दर भैया और मेरी ड्यूटी लगाई की हम दोनों सारे इंतजाम करें और इधर उन्होंने सारे गाँव में दावत का ऐलान कर दिया| मुझे और चन्दर भैया को कुछ करना ही नहीं पड़ा क्योंकि संकेत को एक कॉल किया और उसने सारा इंतजाम करवा दिया| टेंट वाला आया और पंडाल बाँधने लगा, हलवाई बर्तन वगेरा सब घर छोड़ गए और कल शाम को आने की बात कह गए| संकेत ने बड़े-बड़े स्पीकर लगवा दिए और गानों की playlist मेरे पास थी! केक का आर्डर देने मैं, संकेत और चन्दर भैया निकले और शाम तक सब तैयारियाँ हो गईं थी| रात को खाने के बाद मैं, अनु और नेहा अपने कमरे थे और बेसब्री से 12 बजने का इंतजार कर रहे थे| हम दोनों ही नेहा को जगाये हुए थे और उसके साथ खेल रहे थे, कभी दोनों उससे बात करने लगते तो कभी उसे गुद-गुदी करते| टिक...टिक...टिक.. कर घडी ने आखिर 12 बजा ही दिए| 12 बजते ही अनु ने नेहा को गोद में ले लिया और बोली; मेरी राजकुमारी!! आपको जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो! आप को मेरी भी उम्र लगे, जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ और बोलना शुरू करो! मुझे आपके मुँह से पहले पापा सुनना है और फिर मेरे लिए मम्मी!" अनु ने नेहा के दोनों गाल चूमे और फिर उसे मेरी गोद में दिया; "मेला बेटा बड़ा हो गया!....बड़ा हो गया!.....awww ले...ले... 1 साल का होगया मेरा बच्चा! हैप्पी बर्थडे मेले बच्चे...आपको दुनियाभर की खुशियाँ मिले....और आप जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ! I love you my lil angel! God Bless You!!!" मैंने नेहा को चूमते हुए कहा और वो भी मेरे इस तरह तुतला कर बोलने से हँस पड़ी| उस रात को नेहा के सोने तक अनु और मैं उसके साथ खेलते रहे और अनगिनत photo खींचते रहे, कभी उसे चूमते हुए तो कभी उसके सामने मुँह बनाते हुए!
कुछ दिन बाद वकील अनु से मिलने आया और कागज-पत्तर ले कर आया जो उसे साइन करने थे| रितिका छुपते-छुपाते हुए उससे मिलने कुछ दूरी पर गाँव के कॉलेज पहुँची, आज चूँकि छुट्टी थी और पूरा कॉलेज खाली था तो वो आराम से सारे कागज पढ़ सकती थी| उसे ये जान कर हैरानी हुई की मंत्री की जायदाद पूरे 50 करोड़ की थी और वकील को ये जान कर ख़ुशी हुई की उसे इस केस के 50 लाख मिलने वाले हैं| "देखिये रितिका जी, केस तो मैं कल फाइल कर दूँगा और आपको चिंता करने की भी जर्रूरत नहीं क्योंकि मेरी बहुत अच्छी जान पहचान है जिससे आपको ज्यादा तारीखें नहीं मिलेंगी, बस उसका खर्चा थोड़ा-बहुत होगा! मंत्री साहब की पार्टी ने claim किया था जायदाद पर मैंने फिलहाल उस पर स्टे ले रखा है| आपको एक दिन कोर्ट में पेश होना होगा, पर आपको कुछ कहना नहीं है|" वकील की बात सुन कर रितिका आश्वस्त हो गई और ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आई| रात को सोते समय नेहा ने सोचना शुरू किया, उस ने हर एक बात, हर एक शब्द सोच लिया था जो उसे कहना है| अब बात आई टाइमिंग की, तो वो भी उस ने सोच लिया की कौनसा समय सबसे बेस्ट होगा जिससे पूरे परिवार को एक साथ धक्का लगे! जून का महीना आते ही रितिका की जलन उस पर हावी होना शुरू हो चुकी थी, उसे जल्द से जल्द अपना बदला चाहिए था| उसने छुप के वकील को फ़ोन किया; "वकील साहब और कितना टाइम लगेगा?" रितिका ने पुछा|
"रितिका जी, अभी तो बस दो ही महीने हुए हैं!" वकील मुस्कुराता हुआ बोला|
"वो सब मुझे नहीं पता, मुझे ये प्रॉपर्टी किसी भी हालत में 10 अगस्त से पहले अपने नाम पर चाहिए!" रितिका ने अपना फरमान सुनाते हुए कहा|
"इतनी जल्दी? देखिये कोर्ट-कचेहरी में थोड़ा टाइम तो लगता है!" वकील हैरान होते हुए बोला|
"आप कह रहे थे न की कुछ खर्चा होगा? कितना लगेगा?" रितिका ने अपनी बेसब्री दिखाते हुए कहा|
"जी...वो...यही कुछ 5 लाख!" वकील हकलाते हुए बोला|
"मैं 10 लाख दूँगी! पर काम मेरे मुताबिक करवाओ!" रितिका की बात सुन वकील हैरान हो गया और उसने अपने जुगाड़ लगाने शुरू कर दिए| विपक्ष के वकील को उसने लाख रुपये पकड़ाए और 5 लाख में उसने जज को सेट किया जिसने विपक्ष का क्लेम ख़ारिज कर दिया| जुलाई के महीने में ही कोर्ट ने फैसला रितिका के पक्ष में दे दिया वो भी बिना रितिका के कोर्ट जाए| जैसे ही ये खबर वकील ने रितिका को दी वो फूली न समाई! प्रॉपर्टी ट्रांसफर के कुछ कागजों पर साइन करने के लिए वकील ने रितिका को कॉलेज बुलाया| उन कागजों में वकील ने मंत्री की जमीन का एक टुकड़ा जिसकी कीमत करीब 20 लाख थी वो रितिका से अपनी फीस के रूप में माँगी| रितिका ने मिनट नहीं लगाया उसकी बात मानने में और सारे पेपर पढ़ कर आईं कर दिए| "29 जुलाई तक सारी प्रॉपर्टी आपके नाम हो जाएगी|" वकील ने पेन का ढक्कन बंद करते हुए मुस्कुरा कर कहा|
"थैंक यू वकील साहब! आप वो हवेली खुलवा दीजिये और उसकी साफ़-सफाई करवा दीजिये! वहां एक काँटा नाम की औरत काम करती थी उसे मेरा नाम बोल दीजियेगा वो सब काम संभाल लेगी और उसके पति को कहियेगा की 19 अगस्त को मुझे लेने यहाँ आये वो भी Mercedes ले कर!" रितिका ने कमीनी हँसी हँसते हुए कहा| वकील समझ गया की रितिका 19 को ही घर लौटेगी इसलिए उसने रितिका के कहे अनुसार साफ़-सफाई करवा दी और काँटा और उसके पति को नौकरी पर रख लिया| इधर घर लौटते ही रितिका की ख़ुशी छुपाये नहीं छुप रही थी, पर उसकी ख़ुशी को ग्रहण लगने वाला था| रात को ताऊ जी ने बताया की रितिका की दूसरी शादी के लिए एक रिश्ता आया है| ये सुनते ही रितिका को बहुत गुस्सा आया, उसका मन तो किया की वो अभी ताऊ जी का खून कर दे पर उसने खुद को काबू किया और रोनी सी सूरत बना कर बोली; "दादाजी....प्लीज...ऐसा मत कीजिये!.... मैं इस परिवार को छोड़ कर नहीं जाऊँगी! मुझे इस घर से अलग मत कीजिये! आप सब ही मेरे लिए सब कुछ हो!" रितिका रोते हुए बोली, ताई जी ने माँ बन कर उसे सम्भाला और उसे पुचकारने लगीं ताकि वो चुप हो जाए| "बेटी तेरी उम्र अभी बहुत कम है! इतनी बड़ी उम्र तो कैसे काटेगी?" ताऊ जी ने प्यार से रितिका को समझाना चाहा पर वो नहीं मानी और अपना तुरुख का इक्का फेंक दिया; "आप मेरी चिंता मत कीजिये, नेहा जो है मेरे पास? मैं उसी के सहारे जिंदगी काट लूँगी, फिर आप सब भी तो हैं!" ताऊ जी शांत हो गए और रितिका की बात फिलहाल के लिए मान गए| इधर रितिका की खुशियों पर लगा ग्रहण छट गया और उसकी वही कमीनी हँसी लौट आई| "बहुत जल्दी तेरी गर्दन मेरे हाथ में होगी!" रितिका रात को सोते समय बुदबुदाई! उसका मतलब मेरी गर्दन से था! बदले का प्लान सेट था और अब बस उसे मेरे आने का इंतजार था| वो जानती थी की मैं नेहा के जन्मदिन पर जर्रूर आऊँगा और ठीक इसी समय वो अपना वार मुझ पर करेगी|
इधर इन सब बातों से बेखबर मैं और अनु अपनी नई जिंदगी अच्छे से जी रहे थे| दिन, हफ्ते, महीने गुजरे और अगस्त आ गया, अनु ने अपनी टीम यानी अक्कू, पंडित जी और अपनी दोस्त के कान खींचने शुरू कर दिए| "अगर इस बार तुम में से किसी ने भी हमारे जाने के बाद मज़े किये और काम नहीं किया तो तुम सब की खैर नहीं! मुझे डेली अपडेट चाहिए की तुम लोगों ने कितना काम किया है? कोई भी काम अगर पेंडिंग हुआ तो तुम सबकी प्रमोशन खतरे में पद जायेगी!" अनु ने सब को चेतावनी देते हुए कहा| प्रमोशन के लालच में तीनों काम करने के लिए तैयार हो गए| इधर मेरी टीम में ज्वाइन हुए दोनों मेरी उम्र के थे और मुझे उन्हें ज्यादा कुछ नहीं कहना पड़ा क्योंकि वो काम की seriousness समझते थे| हमारा प्रोजेक्ट step by step था इसलिए मेरा उनके काम पर नजर रखना बहुत आसान था| स्टाफ को अच्छे से काम समझा कर हम अगले दिन फ्लाइट से लखनऊ पहुँचे, एक दिन मम्मी-डैडी के पास रुके और फिर गाँव पहुँचे| हमने अपने आने की तारीख किसी को नहीं बताई थी, इसलिए ये सरप्राइज पा कर सब खुश हो ने वाले थे| घर आते ही सबसे पहले मैं अपनी माँ से मिला और फिर अपनी लाड़ली को ढूंढते हुए रितिका के कमरे में जा पहुँचा जहाँ भाभी और रितिका नेहा को तैयार कर रहे थे| मुझे वहां देखते ही भाभी खुश हो गईं, नेहा ने मुझे देख अपने हाथ-पाँव मारने शुरू कर दिए| मैंने उसे फ़ौरन उठा का र अपने सीने से लगा लिया और आँखें बंद किये उस पल को जीने लगा| इतने महीनों से जल रही एक बाप के सीने की आग आज शांत हुई! “I missed you so much my lil angel!!!!” मैंने नेहा को अपने सेने से लगाए हुए कहा, आँसू की कुछ बूँदें छलक कर नेहा के कपड़ों पर गिरीं तो भाभी ने मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे नहीं रोने को कहा| उधर रितिका के चेहरे पर आज अलग ही मुस्कान थी, ऐसा लगा मानो उसे इस बाप-बेटी के मिलन से बहुत ख़ुशी हुई हो! पर मैं नहीं जानता था की ये वो मुस्कान थी जो किसी शिकारी के चेहरे पर तब आती है जब वो अपने शिकार को जाल में फँसते हुए देखता है| इधर पीछे से अनु भी भागती हुई ऊपर आ गई| पहले उसने भाभी को गले लगाया और फिर आस भरी नजरों से मुझे देखने लगी ताकि मैं उसे नेहा को दे दूँ| मैंने नेहा को उसे दिया तो उसने फ़ौरन उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके माथे पर पप्पियों की झड़ी लगा दी| रितिका को ये दृश्य जरा भी नहीं भाया और वो नीचे चली गई|
ताऊ जी, पिता जी, चन्दर भैया और ताई जी बाहर गए थे इसलिए उनके आने तक हम सब नीचे ही बैठे रहे| माँ ने मुझे अपने पास बिठा लिया और मुझसे बहुत से सवाल पूछती रहीं, इधर अनु नेहा को अपनी छाती से लगाए हुए उसे दुलार करने लगी| उसने नेहा से बातें करना शुरू कर दिया था और उसकी ख़ुशी से निकली आवाजों का अपने मन-मुताबिक अर्थ निकालना शुरू कर दिया था| मैं ये देख कर बहुत खुश था और उन बातों में शामिल होना चाहता था पर मेरी माँ को भी उनके बेटे का प्यार चाहिए था| इसलिए मैं माँ की गोद में सर रख कर लेट गया और माँ ने मेरे बालों को सहलाते हुए बातें शुरू कर दी| "बहु (भाभी) आज मानु की पसंद का खाना बनाना|" माँ ने कहा तो भाभी रसोई जाने को उठीं, अनु ने एक दम से उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोक लिया| "आप बैठो यहाँ, आज से खाना मैं बनाऊँगी!" ये कहते हुए अनु उठी| "अरे तू अभी आई है, थोड़ा आराम कर ले कल से तू रसोई संभाल लिओ!" भाभी बोलीं पर मैं उठ कर बैठा और अपनी पत्नी की तरफदारी करते हुए बोला; "आज खाना मैं और अनु बनाएंगे और माँ आप चलो मैं आपको चॉपर दिखाता हूँ!" ये कहते हुए हम सारे रसोई में पहुँच गए| मैंने भाभी और माँ को चॉपर दिखाया और वो कैसे काम करता है ये बताया तो वो ये देख कर बहुत खुश हुए| मैं और अनु हाथ-मुँह धोकर खाना बनाने घुस गए| नेहा के लिए मैं एक baby carry bag लाया था जिसे मैंने पहन लिया और नेहा को उसमें आराम से बिठा दिया| अब मैं एक कंगारू जैसा लग रहा था जिसके baby pouch में बच्चा बैठा हो! मैं और अनु खाना बना रहे थे और नेहा के साथ खेल भी रहे थे| गैस के आगे खड़े होने का काम अनु करती, और चोप्पिंग का काम मैं करता| सब्जियों को देख नेहा उन्हें पकड़ने की कोशिश करती और मैं जानबूझ कर दूर हो जाता ताकि वो उन्हें पकड़ न पाए| हमें इस तरह से खाना बनाते हुए देख माँ और भाभी हँस रही थीं| खाना बनने के 15 मिनट बाद ही सब आ गए और हम दोनों को देख कर बहुत खुश हुए| "बेटा तूने बताया क्यों नहीं की तुम दोनों आ रहे हो? हम लेने आ आ जाते!" ताऊ जी बोले तो अनु मेरी तरफ देखने लगी; "ताऊ जी आप सब को सरप्राइज देना चाहते थे!" मैंने कहा और फिर हमने सबके पाँव छुए और आशीर्वाद लिया| मेरी गोद में नेहा को देखते ही पिताजी बोले; "आते ही अपनी लाड़ली के साथ खलने लग गया?!"
"पिताजी मिली प्याली-प्याली बेटी को मैंने बहुत याद किया!" मैंने तुतलाते हुए नेहा की तरफ देखते हुए बोला, नेहा ये सुनते ही हँसने लगी| बीते कुछ महीनों में सबसे ज्यादा वीडियो कॉल अनु ने नेहा को देखने के लिए की थी, मैं चूँकि बिजी होता था तो 15 दिन में कहीं मुझे मौका मिल पाता था वीडियो कॉल में नेहा को देखने का| "सच्ची पिताजी हम दोनों ने नेहा को बहुत याद किया, मैं तो फिर भी काम में लगा रहता था पर अनु तो हर दूसरे-तीसरे दिन भाभी को वीडियो कॉल किया करती थी|" मैंने कहा तो माँ बोली; "अब बहु भी खुशखबरी सुना दे तो उसका भी अकेलापन दूर हो जाए!" माँ की बात सुन हम दोनों शर्म से लाल हो गए थे| भाभी ने जैसे तैसे बात संभाली और बोलीं; "पिताजी खाना तैयार है!" सब खाने के लिए बैठ गए और जब मैंने और अनु ने सब को खाना परोसा तो सब हैरान हो गए| "पिताजी खाना आज दोनों मियाँ-बीवी ने मिल कर बनाया है!" भाभी हँसते हुए बोली| ये सुनकर सब खुश हुए और सब ने बड़े चाव से खाना खाया| खाने के बाद हमारे लाये हुए तौह्फे हमने सब को दिए| सब के लिए कुछ न कुछ था, यहाँ तक की हम दोनों रितिका के लिए भी एक साडी लाये थे जिसे उसने सब के सामने नकली हँसी हँसते हुए ले लिया| पर सबसे ज्यादा तौह्फे नेहा के लिए थे, 10 ड्रेसेस के सेट जिसमें से एक ख़ास कर उसके जन्मदिन के लिए था| उसके खलेने के लिए खिलोने, फीडिंग बोतल, छोटी-छोटी bangles और भी बहुत सी चीजें| मैं नेहा को गोद में ले कर उसे उसके गिफ्ट्स दिखा रहा था और नेहा बस हँसती जा रही थी!
रात को सोने के समय मैं नेहा को अपने साथ ऊपर कमरे में ले आया| रसोई के सारे काम निपटा कर अनु भी ऊपर आ गई| मैं नेहा को गोद में ले कर उससे बात करने में लगा हुआ था, अनु कुछ देर चौखट पर खड़ी बाप-बेटी का प्यार देखती रही और फिर बोली; "I'm really sorry! मैंने आपको बहुत गलत समझा! मुझे लगा था की ऑफिस के काम में आप नेहा को भूल गए!" अनु ने सर झुकाये हुए कहा| "बेबी (अनु) भूल नहीं गया था...बस अपने प्यार को दबा कर रख रहा था| घरवायलों से तुमने वादा किया था न की तुम मेरा ख्याल रखोगी? फिर तुम्हें गलत कैसे साबित होने देता?!" मैंने अनु को उस दिन की बात याद दिलाई जब उसने अमेरिका जाते समय माँ से वादा किया था| "आपको अपनी feelings इस तरह दबानी नहीं चाहिए! It could hurt you mentally!" अनु चिंता जताते हुए बोली|
"बेबी आप जो थे मेरे पास मेरा ख्याल रखने के लिए!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा, बात को खत्म करने के लिए अनु को अपने पास बुलाया| अनु दरवाजा बंद कर के आई और हम तीनों आज महीनों बाद एक साथ गले लगे| फिर अनु ने नेहा को मेरी गोद से ले लिया और उसे चूमते हुए लेट गई| वो पूरी रात हमने जागते हुए नेहा को प्यार करके गुजारी, इतने महीनों का सारा प्यार नेहा पर उड़ेल दिया गया| नेहा को सोता हुआ देख कर हम दोनों ठंडी आहें भर रहे थे!
इस तरह से दिन कब निकले और नेहा का जन्मदिन कब आया पता ही नहीं चला| 18 अगस्त की सुबह को सब तय हुआ की कल हम केक काटेंगे और नेहा का जन्मदिन धूम-धाम से मनाएंगे| ताऊ जी ने चन्दर भैया और मेरी ड्यूटी लगाई की हम दोनों सारे इंतजाम करें और इधर उन्होंने सारे गाँव में दावत का ऐलान कर दिया| मुझे और चन्दर भैया को कुछ करना ही नहीं पड़ा क्योंकि संकेत को एक कॉल किया और उसने सारा इंतजाम करवा दिया| टेंट वाला आया और पंडाल बाँधने लगा, हलवाई बर्तन वगेरा सब घर छोड़ गए और कल शाम को आने की बात कह गए| संकेत ने बड़े-बड़े स्पीकर लगवा दिए और गानों की playlist मेरे पास थी! केक का आर्डर देने मैं, संकेत और चन्दर भैया निकले और शाम तक सब तैयारियाँ हो गईं थी| रात को खाने के बाद मैं, अनु और नेहा अपने कमरे थे और बेसब्री से 12 बजने का इंतजार कर रहे थे| हम दोनों ही नेहा को जगाये हुए थे और उसके साथ खेल रहे थे, कभी दोनों उससे बात करने लगते तो कभी उसे गुद-गुदी करते| टिक...टिक...टिक.. कर घडी ने आखिर 12 बजा ही दिए| 12 बजते ही अनु ने नेहा को गोद में ले लिया और बोली; मेरी राजकुमारी!! आपको जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो! आप को मेरी भी उम्र लगे, जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ और बोलना शुरू करो! मुझे आपके मुँह से पहले पापा सुनना है और फिर मेरे लिए मम्मी!" अनु ने नेहा के दोनों गाल चूमे और फिर उसे मेरी गोद में दिया; "मेला बेटा बड़ा हो गया!....बड़ा हो गया!.....awww ले...ले... 1 साल का होगया मेरा बच्चा! हैप्पी बर्थडे मेले बच्चे...आपको दुनियाभर की खुशियाँ मिले....और आप जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ! I love you my lil angel! God Bless You!!!" मैंने नेहा को चूमते हुए कहा और वो भी मेरे इस तरह तुतला कर बोलने से हँस पड़ी| उस रात को नेहा के सोने तक अनु और मैं उसके साथ खेलते रहे और अनगिनत photo खींचते रहे, कभी उसे चूमते हुए तो कभी उसके सामने मुँह बनाते हुए!