09-01-2020, 09:18 PM
(This post was last modified: 19-03-2021, 09:57 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
उनकी सास
मम्मी दोनों को देख मुस्करा रही थीं ,
लेकिन उनकी ललचायी नजर बार बार उस कुतुबमीनार पर पड़ रही थी ,एकदम खड़ा कड़क।
मैंने आँखों ही आँखों में उन्हें इशारा किया , चढ़ जाइये न आपके दामाद ने इतना मस्त खड़ा किया है।
और बस वो चढ़ गयीं।
……..
धीरे धीरे कर कुतुबमीनार गुलाबी घाटी में गायब हो गया ,
कुछ देर तक वो घुड़सवारी का मजा लेती रहीं ,लेकिन उसके बाद खुद उन्होंने ही अपने दामाद के बंधे हाथ खोल दिए।
बस इतना इशारा काफी था , उनके लिए ,और एक बार गाडी और नाव का रिश्ता बदल गया।
वो फिर से ऊपर ,
और सिर्फ गाडी और नाव का ही रिश्ता नहीं ,मॉम तो रोल प्ले में माहिर थीं
और आज कल उनकी पूरी कोशिश भी ,...
बस कुछ ही देर में उनका रिश्ता भी बदल गया ,
अब बजाय उनकी सास बनने के वो मेरी सास बन गयीं ,
वही आवाज ,वही अंदाज और जिस तरह उन्हें वो उकसा रही थीं , चैलेंज कर रही थी।
कुछ देर में पंजाब मेल फेल हो गयी उनके धक्कों की स्पीड के आगे ,
और अब हाथ खाली हो गए थे तो गदराये ३६ डी डी जोबन की मसलाई रगड़ाई चालू हो गयी.
सिसकारियां , गालियां , चूमने चाटने की आवाजें ,
घचक घचाक ,सटासट सटासट , गपागप गपागप।
और वो भी अब मेरी सास बनी , अपनी सास को हचक हचक के ,...
धक्को का जवाब धक्के से ,चुम्बन का चुम्बन से ,
मंजू बाई भी अब मेरे साथ बैठ के सास दामाद का दंगल देख रही थी ,
मुकाबला शायद बराबरी पर छूटता , ( और कोई पहली बार ये कुश्ती तो हो नहीं रही थी ,दोनों को दूसरे के हर दांव पेंच मालुम थे )
लेकिन कॉक रिंग ने शायद उनका पलड़ा भारी कर दिया।
वो भी बस कगार पर ही थे की , मेरी सास बनी उनकी सास ने हथियार डाल दिए।
एक बार ,बार बार ,... लगातार
गहरी साँसे ,
ऊपर नीचे होते नितम्ब ,
और फिर सब कुछ जैसे ठहर जाय , वो भी मंजू बाई के बगल में उसी तरह थकी हारी ,लस्त पस्त।
थक तो वो भी गए थे ,देह उनकी चूर चूर हो रही थी। अंग अंग टूट गए थे।
लेकिन बस झड़े नहीं थे।
और मैं झुकी टकटकी लगा के उन्हें मुस्करा के देख रही थी , उनके बालों में ऊँगली घुमा रही थी।
उनकी बंद थकी आँखों को मैंने हलके से चूम लिया ,
आखिर उनकी जीत मेरी भी तो जीत थी ,
और असली बात ये थी की उनकी जीत सच में उनकी हार थी , वो हार जो मैं कब से चाहती थी ,
और मंजू बाई ने अपने अंदाज में वो बात खुल के बोल भी ,
" चलो मान गए तेरी ताकत , बिना झड़े हम दोनों को ,और वो भी मुझे दो बार ,चल इनाम में सच में तुझे मादरचोद , .... "
उसकी बात काट के उनकी सास बोलीं ,
" अरे मंजू बाई अब तो मेरी समधन मान भी गयी है , बस पंद्रह बीस के दिन अंदर वो खुद यहीं आ रही है , ... "
और एक बार फिर मेरी मॉम और मंजू बाई मिल के मेरी सास की ऐसी की तैसी करने में जुट गयीं।
मंजू बाई दो बार ,मॉम भी एक बार ,...
इसलिए चुदाई का मूड तो दोनों में से किसी का नहीं था इतनी जल्दी ,लेकिन जो मुझे डर था वही हुआ ,
दोनों उनकी चिकनी कुँवारी कोरी कसी गांड के पीछे पड़ गयीं।
मम्मी दोनों को देख मुस्करा रही थीं ,
लेकिन उनकी ललचायी नजर बार बार उस कुतुबमीनार पर पड़ रही थी ,एकदम खड़ा कड़क।
मैंने आँखों ही आँखों में उन्हें इशारा किया , चढ़ जाइये न आपके दामाद ने इतना मस्त खड़ा किया है।
और बस वो चढ़ गयीं।
……..
धीरे धीरे कर कुतुबमीनार गुलाबी घाटी में गायब हो गया ,
कुछ देर तक वो घुड़सवारी का मजा लेती रहीं ,लेकिन उसके बाद खुद उन्होंने ही अपने दामाद के बंधे हाथ खोल दिए।
बस इतना इशारा काफी था , उनके लिए ,और एक बार गाडी और नाव का रिश्ता बदल गया।
वो फिर से ऊपर ,
और सिर्फ गाडी और नाव का ही रिश्ता नहीं ,मॉम तो रोल प्ले में माहिर थीं
और आज कल उनकी पूरी कोशिश भी ,...
बस कुछ ही देर में उनका रिश्ता भी बदल गया ,
अब बजाय उनकी सास बनने के वो मेरी सास बन गयीं ,
वही आवाज ,वही अंदाज और जिस तरह उन्हें वो उकसा रही थीं , चैलेंज कर रही थी।
कुछ देर में पंजाब मेल फेल हो गयी उनके धक्कों की स्पीड के आगे ,
और अब हाथ खाली हो गए थे तो गदराये ३६ डी डी जोबन की मसलाई रगड़ाई चालू हो गयी.
सिसकारियां , गालियां , चूमने चाटने की आवाजें ,
घचक घचाक ,सटासट सटासट , गपागप गपागप।
और वो भी अब मेरी सास बनी , अपनी सास को हचक हचक के ,...
धक्को का जवाब धक्के से ,चुम्बन का चुम्बन से ,
मंजू बाई भी अब मेरे साथ बैठ के सास दामाद का दंगल देख रही थी ,
मुकाबला शायद बराबरी पर छूटता , ( और कोई पहली बार ये कुश्ती तो हो नहीं रही थी ,दोनों को दूसरे के हर दांव पेंच मालुम थे )
लेकिन कॉक रिंग ने शायद उनका पलड़ा भारी कर दिया।
वो भी बस कगार पर ही थे की , मेरी सास बनी उनकी सास ने हथियार डाल दिए।
एक बार ,बार बार ,... लगातार
गहरी साँसे ,
ऊपर नीचे होते नितम्ब ,
और फिर सब कुछ जैसे ठहर जाय , वो भी मंजू बाई के बगल में उसी तरह थकी हारी ,लस्त पस्त।
थक तो वो भी गए थे ,देह उनकी चूर चूर हो रही थी। अंग अंग टूट गए थे।
लेकिन बस झड़े नहीं थे।
और मैं झुकी टकटकी लगा के उन्हें मुस्करा के देख रही थी , उनके बालों में ऊँगली घुमा रही थी।
उनकी बंद थकी आँखों को मैंने हलके से चूम लिया ,
आखिर उनकी जीत मेरी भी तो जीत थी ,
और असली बात ये थी की उनकी जीत सच में उनकी हार थी , वो हार जो मैं कब से चाहती थी ,
और मंजू बाई ने अपने अंदाज में वो बात खुल के बोल भी ,
" चलो मान गए तेरी ताकत , बिना झड़े हम दोनों को ,और वो भी मुझे दो बार ,चल इनाम में सच में तुझे मादरचोद , .... "
उसकी बात काट के उनकी सास बोलीं ,
" अरे मंजू बाई अब तो मेरी समधन मान भी गयी है , बस पंद्रह बीस के दिन अंदर वो खुद यहीं आ रही है , ... "
और एक बार फिर मेरी मॉम और मंजू बाई मिल के मेरी सास की ऐसी की तैसी करने में जुट गयीं।
मंजू बाई दो बार ,मॉम भी एक बार ,...
इसलिए चुदाई का मूड तो दोनों में से किसी का नहीं था इतनी जल्दी ,लेकिन जो मुझे डर था वही हुआ ,
दोनों उनकी चिकनी कुँवारी कोरी कसी गांड के पीछे पड़ गयीं।