09-01-2020, 08:56 PM
(This post was last modified: 19-03-2021, 09:06 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
कॉक रिंग्स
तब तक मंजू बाई की निगाह पलंग पर पड़े खेल खिलौने पर गयीं , और काक रिंग को उठा के उन्होंने पूछा ये क्या है ,
मम्मी ने मुझे इशारा किया की मैं समझा दूँ ,
और मैं मानती थी समझाने का बेस्ट तरीका है इस्तेमाल करने का , डिमांस्ट्रेशन और एक कॉक रिंग मैंने उन्हें पहना दी।
डंडे के बेस पर जाकर एकदम टाइट फिट , एकदम बेसिक वाली थी और मंजू बाई को बोला चढ़ जाएँ वो मीठी शूली पर ,
" चल अगर तूने मुझे अबकी फिर झाड़ दिया न तो मैंने समझूँगी की तू एकदम पक्का मादरचोद बनेगा , फाइनल इम्तहान ,
और लन्ड मंजू बाई के भोंसडे में सरकता ,
अबकी शुरू से ही मंजू बाई फोर्थ गियर में , कुछ भी उनके ऊपर नहीं छोड़ा था , लगातार धक्के लगा लगा के उन्हें चोद रही थीं ,
उनके सीने पे अपनी बड़ी बड़ी चूंची रगड़ रही थी ,एक ऊँगली उनके गांड के छेद पर भी ,
साथ में मेरी सास को लेकर एक से एक गन्दी गालियां ,
कोई वैसे सुने तो कान बंद कर ले , और दे ही नहीं रही थीं
उनसे दिलवा भी रही थीं।
मम्मी भी खूब मजे ले रही थीं।
खूब उकसा रही थीं ,उन्हें भी मंजू बाई को भी।
और अबकी दोनों पहलवान बराबर के धक्के लगा रहे थे।
एक तो वैसे कुछ मेरी मम्मी और मंजू बाई की ट्रेनिंग से उनका टाइम बढ़ गया था , फिर शायद गीता के पहिलौटी के दूध का असर था ,
और सबसे बढ़कर ,
कॉक रिंग का जादू
लन्ड ,मलखम्ब हो गया था।
अब उनका साथ और कोई दे न दे , मैं तो देती ही , आखिर जनम जनम का साथ था ,बल्कि सात जनम का।
मैंने मंजू बाई से इशारा किया की वो एक पल के उठ जाए और मैं ज़रा दूसरा काक रिंग भी ट्राई कर लूँ।
थक तो वो भी गयी थी , 'विपरीत रति ' में , ऊपर से धक्का लगाने में।
कोई और औरत होती तो मरद के ऊपर बस ८-१० मिनट में ही चूं बोल देती
,ये तो मंजू बाई ऐसी खेली खायी बचपन की छिनार की ताकत थी की पिछले २०-२५ मिंनट से उनके ७ इंच के मोटे लन्ड पे चढ़ी धक्कमधुक्का खेल रही थी
उसे भी कुछ पल मिल गया आराम करने को और मुझे अपनी शैतानी करने को।
मैंने और सोफी ने मिल के उनके लिए तरह तरह की कॉक रिंग्स खरीदी थीं और जो सबसे स्पेशल थी ,डबल धमाके वाली , 'हिज' से ज्यादा 'हर' को मजे देने वाली।
असल में सच पूछिये तो कॉक रिंग लड़कों से ज्यादा लड़कियों को मजा देता है , अरे अगर कोई लौंडा ५- ६ मिनट में बिना लड़की को झाड़े झड़ जाए तो सबसे ज्यादा झल्लाहट लड़की को ही होगी न ,
और कॉक रिंग्स से ये ख़तरा एकदम दूर होजाता है ,
खूब देर तक सख्त कड़े लन्ड का मजा ,और कोई लड़की दुनिया में क्या चाहेगी।
लेकिन इस वाली में दो स्पेशल चीजें और लगी थीं , जी प्वाइंट स्टिम्युलेटर और क्लीट वाइब्रेटर।
कोई कोई बहुत एक्सपीरियंस्ड मर्द ही होते हैं जिन्हें जी प्वाइंट का अंदाजा होता है ,
लेकिन वहां ऊँगली से ही छू सकते है और छिनार से छिनार भी दो चार मिनट में जी प्वाइंट जे रगड़ने पर खलास हो जाती है
लेकिन चुदते समय , लन्ड सीधे अंदर हो जाता है तो जी प्वाइंट या जी स्पॉट चूत में दो -तीन इंच ही अंदर होता है ,
चूत के सामने वाले हिस्से में। इसलिए चोदते समय इसका एक्स्ट्रा स्टिमुलेशन मुश्किल है।
दूसरी जादू की बटन होती है कन्या के देह में क्लीट या भगनासा ,
और 'ये ' उसके पूरे एक्सपर्ट थे ,ऊँगली से ,जीभ से यहाँ तक की चोदते समय भी लन्ड के बेस से रगड़ रगड़ ,घिस्सा मार मार के ,....
पर विपरीत रति में जब स्त्री ऊपर हो और खास तौर पर लड़के के हाथ बंधे हो तो सब कंट्रोल तो औरत के हाथ में होंगे न
और अगर बाजी न झड़ने की हो तो , वो क्यों अपने क्लीट पर जान बूझ कर ,...
लेकिन इस कॉक रिंग में एक क्लीट वाइब्रेटर भी लगा था ,बटरफ्लाई की तरह ,
और सबसे बड़ी बात ये जी प्वाइंट औ.र क्लीट स्टिम्युलेटर रिमोट कंट्रोल से थे और रिमोट मेरे पास था।
मंजू बाई के दुबारा चढने पर पहले तो मैंने दोनों को स्टार्ट नहीं किया।
वो भी अब पूरे जोश में थे ,नीचे से चूतड़ उठा उठा के धक्का लगा रहे थे और मंजू बाई भी अब थोड़ा सुस्ताने के बाद पूरी तेजी से ,
कुछ ही देर में तूफानी चुदाई फिर चालु हो गयी.
और अब मैंने भी अब अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया ,
पहले तो स्लो , फिर मीडियम , जी प्वाइंट स्टिमुलेटर
मंजू बाई के माथे पर पसीना आ गया ,वो कांपने झूमने लगी ,मैं समझ गयी उसकी हालात और क्लीट वाइब्रेटर भी आन कर दिया ,
लेकिन वो भी पक्की छिनार ,एक बार उसने चाल चली ,
धक्कों की स्पीड कम की , लेकिन अब मेरे वो भी खेले खाये हो गए थे ,सास की ट्रेनिंग का असर ,
पूरी ताकत से उन्होंने नीचे से चूतर उछाल के चौवे छक्के मारने शुरू कर दिए ,
और मैंने जी प्वाइंट और क्लीट दोनों के वाइब्रेटर फुल स्पीड पर कर दिए , नतीजा वही जो होना था।
दो चार मिनट में मंजू बाई झड़ने के कगार पर पहुँच गयी और
पांच मिनट के अंदर आज तक शायद पहले कभी वो ऐसे नहीं झड़ी होगी ,
ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आहहहह उईईई उह्ह्ह्ह्ह्ह
एक बार , फिर बार बार , वो भी बिना रुके , खचाखच ,
नहीं नहीं ,ओह्ह अह्ह्ह आआअहा उईईईईई उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह म।
मंजू बाई सिसक रही थी , तड़प रही थी झड़ रही।
और जब उतरी तो कटे पेड़ की तरह उनके बगल में जैसे गिर के बेहोश सी हो जाय , एकदम लथपथ , पस्त।
पांच मिनट के बाद उसने आँखे खोली।
लेकिन वो वैसे ही अनझडे.
मम्मी दोनों को देख मुस्करा रही थीं , लेकिन उनकी ललचायी नजर बार बार उस कुतुबमीनार पर पड़ रही थी ,एकदम खड़ा कड़क।
तब तक मंजू बाई की निगाह पलंग पर पड़े खेल खिलौने पर गयीं , और काक रिंग को उठा के उन्होंने पूछा ये क्या है ,
मम्मी ने मुझे इशारा किया की मैं समझा दूँ ,
और मैं मानती थी समझाने का बेस्ट तरीका है इस्तेमाल करने का , डिमांस्ट्रेशन और एक कॉक रिंग मैंने उन्हें पहना दी।
डंडे के बेस पर जाकर एकदम टाइट फिट , एकदम बेसिक वाली थी और मंजू बाई को बोला चढ़ जाएँ वो मीठी शूली पर ,
" चल अगर तूने मुझे अबकी फिर झाड़ दिया न तो मैंने समझूँगी की तू एकदम पक्का मादरचोद बनेगा , फाइनल इम्तहान ,
और लन्ड मंजू बाई के भोंसडे में सरकता ,
अबकी शुरू से ही मंजू बाई फोर्थ गियर में , कुछ भी उनके ऊपर नहीं छोड़ा था , लगातार धक्के लगा लगा के उन्हें चोद रही थीं ,
उनके सीने पे अपनी बड़ी बड़ी चूंची रगड़ रही थी ,एक ऊँगली उनके गांड के छेद पर भी ,
साथ में मेरी सास को लेकर एक से एक गन्दी गालियां ,
कोई वैसे सुने तो कान बंद कर ले , और दे ही नहीं रही थीं
उनसे दिलवा भी रही थीं।
मम्मी भी खूब मजे ले रही थीं।
खूब उकसा रही थीं ,उन्हें भी मंजू बाई को भी।
और अबकी दोनों पहलवान बराबर के धक्के लगा रहे थे।
एक तो वैसे कुछ मेरी मम्मी और मंजू बाई की ट्रेनिंग से उनका टाइम बढ़ गया था , फिर शायद गीता के पहिलौटी के दूध का असर था ,
और सबसे बढ़कर ,
कॉक रिंग का जादू
लन्ड ,मलखम्ब हो गया था।
अब उनका साथ और कोई दे न दे , मैं तो देती ही , आखिर जनम जनम का साथ था ,बल्कि सात जनम का।
मैंने मंजू बाई से इशारा किया की वो एक पल के उठ जाए और मैं ज़रा दूसरा काक रिंग भी ट्राई कर लूँ।
थक तो वो भी गयी थी , 'विपरीत रति ' में , ऊपर से धक्का लगाने में।
कोई और औरत होती तो मरद के ऊपर बस ८-१० मिनट में ही चूं बोल देती
,ये तो मंजू बाई ऐसी खेली खायी बचपन की छिनार की ताकत थी की पिछले २०-२५ मिंनट से उनके ७ इंच के मोटे लन्ड पे चढ़ी धक्कमधुक्का खेल रही थी
उसे भी कुछ पल मिल गया आराम करने को और मुझे अपनी शैतानी करने को।
मैंने और सोफी ने मिल के उनके लिए तरह तरह की कॉक रिंग्स खरीदी थीं और जो सबसे स्पेशल थी ,डबल धमाके वाली , 'हिज' से ज्यादा 'हर' को मजे देने वाली।
असल में सच पूछिये तो कॉक रिंग लड़कों से ज्यादा लड़कियों को मजा देता है , अरे अगर कोई लौंडा ५- ६ मिनट में बिना लड़की को झाड़े झड़ जाए तो सबसे ज्यादा झल्लाहट लड़की को ही होगी न ,
और कॉक रिंग्स से ये ख़तरा एकदम दूर होजाता है ,
खूब देर तक सख्त कड़े लन्ड का मजा ,और कोई लड़की दुनिया में क्या चाहेगी।
लेकिन इस वाली में दो स्पेशल चीजें और लगी थीं , जी प्वाइंट स्टिम्युलेटर और क्लीट वाइब्रेटर।
कोई कोई बहुत एक्सपीरियंस्ड मर्द ही होते हैं जिन्हें जी प्वाइंट का अंदाजा होता है ,
लेकिन वहां ऊँगली से ही छू सकते है और छिनार से छिनार भी दो चार मिनट में जी प्वाइंट जे रगड़ने पर खलास हो जाती है
लेकिन चुदते समय , लन्ड सीधे अंदर हो जाता है तो जी प्वाइंट या जी स्पॉट चूत में दो -तीन इंच ही अंदर होता है ,
चूत के सामने वाले हिस्से में। इसलिए चोदते समय इसका एक्स्ट्रा स्टिमुलेशन मुश्किल है।
दूसरी जादू की बटन होती है कन्या के देह में क्लीट या भगनासा ,
और 'ये ' उसके पूरे एक्सपर्ट थे ,ऊँगली से ,जीभ से यहाँ तक की चोदते समय भी लन्ड के बेस से रगड़ रगड़ ,घिस्सा मार मार के ,....
पर विपरीत रति में जब स्त्री ऊपर हो और खास तौर पर लड़के के हाथ बंधे हो तो सब कंट्रोल तो औरत के हाथ में होंगे न
और अगर बाजी न झड़ने की हो तो , वो क्यों अपने क्लीट पर जान बूझ कर ,...
लेकिन इस कॉक रिंग में एक क्लीट वाइब्रेटर भी लगा था ,बटरफ्लाई की तरह ,
और सबसे बड़ी बात ये जी प्वाइंट औ.र क्लीट स्टिम्युलेटर रिमोट कंट्रोल से थे और रिमोट मेरे पास था।
मंजू बाई के दुबारा चढने पर पहले तो मैंने दोनों को स्टार्ट नहीं किया।
वो भी अब पूरे जोश में थे ,नीचे से चूतड़ उठा उठा के धक्का लगा रहे थे और मंजू बाई भी अब थोड़ा सुस्ताने के बाद पूरी तेजी से ,
कुछ ही देर में तूफानी चुदाई फिर चालु हो गयी.
और अब मैंने भी अब अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया ,
पहले तो स्लो , फिर मीडियम , जी प्वाइंट स्टिमुलेटर
मंजू बाई के माथे पर पसीना आ गया ,वो कांपने झूमने लगी ,मैं समझ गयी उसकी हालात और क्लीट वाइब्रेटर भी आन कर दिया ,
लेकिन वो भी पक्की छिनार ,एक बार उसने चाल चली ,
धक्कों की स्पीड कम की , लेकिन अब मेरे वो भी खेले खाये हो गए थे ,सास की ट्रेनिंग का असर ,
पूरी ताकत से उन्होंने नीचे से चूतर उछाल के चौवे छक्के मारने शुरू कर दिए ,
और मैंने जी प्वाइंट और क्लीट दोनों के वाइब्रेटर फुल स्पीड पर कर दिए , नतीजा वही जो होना था।
दो चार मिनट में मंजू बाई झड़ने के कगार पर पहुँच गयी और
पांच मिनट के अंदर आज तक शायद पहले कभी वो ऐसे नहीं झड़ी होगी ,
ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आहहहह उईईई उह्ह्ह्ह्ह्ह
एक बार , फिर बार बार , वो भी बिना रुके , खचाखच ,
नहीं नहीं ,ओह्ह अह्ह्ह आआअहा उईईईईई उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह म।
मंजू बाई सिसक रही थी , तड़प रही थी झड़ रही।
और जब उतरी तो कटे पेड़ की तरह उनके बगल में जैसे गिर के बेहोश सी हो जाय , एकदम लथपथ , पस्त।
पांच मिनट के बाद उसने आँखे खोली।
लेकिन वो वैसे ही अनझडे.
मम्मी दोनों को देख मुस्करा रही थीं , लेकिन उनकी ललचायी नजर बार बार उस कुतुबमीनार पर पड़ रही थी ,एकदम खड़ा कड़क।