02-02-2019, 09:30 AM
अपडेट - 12
चंचल अपनी सोच में कुछ इस तरह से उलझ गयी कि उसे पता तक नही चला कि वो कब आफिस पहुंच गई। करीब दो मिनेट तक चंचल का ड्राइव चंचल के उतरने का वैट करता रहा लेकिन जब चंचल गाड़ी से नहीं उतरी तो मजबूरन उसे चंचल को पुकार कर उसके ख्यालों से बाहर लाना पड़ा। चंचल जैसे ही ख्यालों से बाहर आती है तुरंत खुद को मानसिक तौर पर आफिस के काम काज के लिए तैयार करती है और आफिस में चल देती है। आफिस में करीब 2-3 मीटिंग पुराने टेंडेरेर और एम्प्लोयी के साथ थी जिन्हें पूरा करने के बाद चंचल कुछ सोचने लगती है।
चंचल कुछ देर सोच कर मुस्कुराकर के सुरेश के पास कॉल लगाती है। करीब 2 बार पूरा फ़ोन करने के बाद भी सुरेश की तरफ से कोई जवाब नही मिलता जिस से चंचल और झुंझला जाती है। चंचल का सर दुखने लगता है। चंचल तुरन्त अपने पर्स से सर दर्द की दवा ढूंढने लगती है। लेकिन दवा की जगह चंचल के हाथ मे समीर का विजिटिंग कार्ड आ जाता है।
अब आगे.....
समीर के दिये हुए विजिटिंग कार्ड को चंचल तकरीबन पांच मिनट तक देखती रहती है। चंचल ये निर्णय नहीं ले पा रही थी कि आखिर वो क्या करे? समीर से बात करे कि नहीं? चंचल को समीर से बात करके अच्छा लगा था लेकिन समीर का बात करने का अंदाज़ बहुत एडवांस और फ्लिर्टी था। जिस कारण से चंचल फिलहाल इस अवस्था मे बात नहीं करना चाहती थी जहां उसकी मनोदशा केवल ओर केवल अपने पति सुरेश के संपर्क को चाहती है।
चंचल एक बार फिर से सुरेश को कॉल लगाती है लेकिन फ़ोन लगने के साथ ही सुरेश चंचल का फ़ोन काट देता है। अब चंचल के लिए ये सब बर्दाश्त के बाहर था। चंचल कुछ देर सोचती है। और समीर के कार्ड को अपने होंठों पर फिराते हुए विचार करने लगती है। कुछ ही क्षणों में चंचल मानसिक तौर पर समीर से बात करने को तैयार हो जाती है और समीर को कॉल लगा देती है।
वहीं दूसरी और समीर अपने कमरे में बैठा हुआ रेड वाइन पी रहा होता है।
समीर जिस कमरे में रह रहा था वो किसी फाइव स्टार होटल से कम नही था। ये समीर का फार्म हाउस था। जैसे ही चंचल का कॉल समीर के फ़ोन पर आता है समीर कुछ देर तक फ़ोन को देखता रहता है। फिर उस फ़ोन को अपने सामने पड़ी टेबल पर से उठा कर कॉल अटेंड करने ही वाला होता है कि समीर कुछ सोच कर मुस्कुरा देता है और फ़ोन को वापस टेबल पर रख देता है। करीब 4 से 5 मिस्ड कॉल लगातार वो भी चंचल की और समीर उस कॉल को देख कर मुस्कुराता रहता है।
समीर अब काफी देर बाद एक गिलास में रेड वाइन डाल कर फिर से पीने ही वाला प है कि फिर से चंचल की कॉल आती है लेकिन समीर इस बार भी अटेंड ना करके मुस्कुराता हुआ रेड वाइन पिने लगता है। तभी जोर से समीर के कमरे का दरवाजा खुलता है।
समीर पीछे की तरफ घूम कर देखता है तो मुस्कुरा पड़ता है।
समीर: अरे आईये आईये मैडम चंचल... आप? यहां? यूँ अचानक? सब खैरियत तो है ना? (मुस्कुराते हुए)
चंचलमील जुले भावों से) तुमने कॉल क्यों नही अटेंड किया।
समीर: वो क्या है ना मेरा दिल नही कर रहा था किसी से भी बात करने का तो...
समीर के इस तरह के जवाब से चंचल की आंखों से आंसू छलक आये लेकिन फिर भी कैसे जैसे चंचल उन आंसुओं को छिपाने में सफल हो जाती है। समीर को भी इस बात की भनक पड़ गयी थी लेकिन समीर बिना चंचल की तरफ देखे उसे अपने सामने वाले सोफे पर बैठने का आग्रह करता है।
लेकिन चंचल के पैर तो अब हिल भी नहीं रहे थे। चंचल एक बार फिर से ख्यालों में गुम थी। चंचल को ये समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो समीर के पास क्यों आयी है? और यहां एक अनजान शख्स के पास आकर इस तरह इमोशनल होने का क्या मतलब निकला? मैं कैसे उसे अपना कॉल अटेंड करने के लिए फ़ोर्स कर सकती हूं?
चंचल अभी ख्यालों में गुम थी कि समीर अपनी सीट से उठ कर चंचल की तरफ बढ़ता है। समीर हौले से चंचल के पास जाकर फुसफुसाता हुआ चंचल के कान में बोलता है।
समीर: तो आपको हमारी दोस्ती मंज़ूर नही थी। फिर आप यहां क्यूँ आयी।
(चंचल अब समीर की फ्लर्टी बात पर मुस्कुरा पड़ती है)
चंचल: वो क्या है ना अब वो अनजान शक़्स हमे दोस्त नज़र आता है।
समीर: नो वे, अब मुझे उसकी दोस्ती मंज़ूर नहीं।
चंचल: (चोंकते हुए) व्हाट? पर क्यों? मैंने क्या गलत किया?
समीर: यु हर्ट माय इगो। इसलिए अब मुझे आपकी दोस्ती मंज़ूर नहीं।
चंचल मुस्कुराते हुए) तो अब हमारा दोस्त हमसे क्या चाहता है।
समीर: मेडम चंचल मैंने कहा ना मुझे किसी से दोस्ती नही करनी। और जो मैं चाहता हूं वो आप नही कर सकती सो लीव इट। चलिए ये बताईये चाय लेंगी आप या कॉफी , ठंडा वगैरा।
चंचल: अपने दोस्त को मनाने के लिए जो करना पड़ा वो करूँगी।
समीर: क्यों ज़िद कर रही हो तुम चंचल ये तुम्हारे बस की बात नहीं है। एक तो तुम अमीर परिवार से हो, ऊपर से बिज़नेस वुमन हो।
चंचल: मैं अपनी दोस्ती के लिए कुछ भी कर सकती हूं।
समीर: सोच लो फिर मुकर मत जाना।
चंचल: सोच लिया जब इतनी दूर आयी हूँ तो दोस्ती तो लेकर ही जाउंगी।
समीर: एक बार और सोचलो।
चंचल: अरे बाबा सोच बोलो क्या करना है।
समीर: तुम्हे मेरी ग़ुलाम बनना है। आई वांट यू एज़ माय स्लेव।
चंचल समीर की मुह से निकली बात को सुनकर चोंक जाती है और वही की वही खड़ी रह जाती है। चंचल के मोह से बोल नही फुट रहे थे।
समीर: क्या हुआ? अब नही करनी दोस्ती। अब जाओ अपना बिज़नेस संभालो।
समीर वापस अपने सोफे की तरफ जाने लगता है तभी पीछे से चंचल बोलती है।
चंचल: मुझे मंज़ूर है।
समीर: आर यू स्योर?
चंचल: यस
समीर: देखलो एक बार मेरी स्लेव बनने के बाद तुम्हारे लिए सबसे ज़रूरी सिर्फ में रहूंगा कोई और नहीं।
चंचल: (कुछ देर सोचते हुए) मुझे मंज़ूर है।
समीर सोफे के पास पड़े एक डिब्बे से हाथ पर बांधने वाला बेंड निकालता है और उसे चंचल के हाथ पर पहना देता है।
समीर: ये तुम्हारा मेरी स्लेव होने का प्रूफ है । वादा करो तुम इसे कभी नहीं उतारोगी।
चंचल: ठीक है नहीं उतारूंगी, लेकिन ये मेरे लिए बहुत चीप नही है।
समीर: वो तो वक़्त बताएगा। अभी तुम आफिस जाओ। जब तुम्हारे मालिक को तुम्हारी ज़रूरत होगी तुम्हे कॉल कर दूंगा। और हां आज के बाद तुम्हे हर काम के लिए मुझसे परमिशन लेनी होगी। खाना खाना हो या नहाना धोना हो, कपड़े बदलने से लेकर क्या पहनना है यहां तक भी।
चंचल: व्हाट?
समीर: चंचल का हाथ पकड़ कर उसे दरवाजे के बाहर धकेल देता है । अब जाओ और आज पहली गलती थी इसलिए माफ किया। अगली बार पनिशमेंट दूंगा। और सुनो अगर मेरे कहे अनुसार नही किया तो तुम मेरी स्लाव नहीं मैं तेरा मालिक नहीं। उस दिन के बाद से तुम मुझसे कोई बात नहीं करोगी।
चंचल कुछ बोलना चाहती लेकिन समीर ने उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया। चंचल काफी कोशिश करती है समीर से बात करने की लेकिन समीर चंचल से कोई बात नही करता। चंचल बन्द दरवाजे से अपने ऑफिस की और चली जाती है।
करीब 2 से ढाई घंटे तक चंचल ये विचार करती रहती है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। क्या समीर की स्लेव बनना?? मैंने ऐसा कैसे कर दिया? और क्यों? ओह शिट अब क्या करूँ। चंचल का एक मन तो समीर के प्रपोजल को स्वीकार कर चुका था लेकिन एक मन उसे अभी भी रोक रहा था। चंचल थक हार कर अपने घर की और निकलने लगती है कि तभी चंचल के पास एक पार्सल लेकर कोई लड़की आती है और चंचल को देकर वापस चली जाए है पार्सल पर समीर का नाम लिखा हुआ था और साथ ही एक चिट्ठी भी थी।
चंचल जल्दी से पार्सल को हाथ मे लेकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है और घर निकल जाती है। रात का खाना सबके साथ खा कर चंचल अपने कमरे में जाति है। बार बार चंचल की नज़र उस पार्सल पर जाती है जो कि समीर ने चंचल के लिए भेजा था। चंचल डरे हुए मन से उस पार्सल को उठती है और उसपर लगी चिट्टी को पढ़ने लगती है।
चिट्ठी:-
चंचल तुमने मेरी स्लेव होने का जो निर्णय किया है , में देखना चाहता हूं कि तुम उसके लायक भी हो या नहीं। इसलिए तुम्हे ये पार्सल भेज रहा हूँ । अगर काल तुम ऑफिस में ये कपड़े पहन कर आओगी तो में समझूँगा तुम पूरी तरह से मेरी स्लेव बनने के लायक हो और अगर नहीं पहना तो इस बात को यहीं खत्म कर दूंगा। ना में तुम्हे जानता हूँ और ना ही तुम मुझे।
चंचल चिट्ठी को पढ़ कर पार्सल को खोलती है तो चोंक जाती है। पार्सल में मॉडर्न कपड़े थे। जो कि अभी तक चंचल पहन कर आफिस में नहीं गयी थी। न ही उसके घर मे ये सब जायज थे। चंचल विचार करती है कि वो ये सब नहीं करेगी। अपने मन को पक्का कर के मन ही मन कहती है वो सिर्फ सुरेश की ग़ुलाम है और किसी की नही।
चंचल सुरेश को कॉल करती है करीब 3 कॉल काटने के बाद सुरेश चंचल की कॉल रात को 1 बजे अटेंड करता है।
सुरेश: क्या यार चंचल कितना परेशान करने लगी हो तुम। जब एक बार कॉल काट दिया तो समझ नही आ रहा कि मैं बिजी हूँ।
चंचल: प्लीज सुरेश ऐसे मत बात करो। तुम जानते हो न मैं तुम्हे कितना प्यार करती हूं। तुम्हे बहुत याद करती हूँ।
सुरेश: तो क्या करूँ काम धाम छोड़ कर चढ़ जाऊं तुम पर। अगर इतनी ही आग है तू किसी और को चढ़ा लो। मुझे काम के वक़्त परेशान करना भगवान के लिए बंद करो।
चंचल: सुरेश बकवास बैंड करो। मैं तुम्हारी बीवी हूँ। और तुम किस बात का गुस्सा मुझ पर उतार रहे हो। क्या एक बीवी अपने पति को कॉल भी नही कर सकती।
सुरेश: ( अपनी गलती का एहसास करते हुए) देखो चंचल...
चंचल: बस बहुत हुआ मिस्टर सुरेश, में आपकी पत्नी हूँ कोई ग़ुलाम नहीं।
सुरेश: चंचल... सुनो तो।
चंचल गुस्से में फ़ोन काट देती है और बिस्तर पर उल्टी लेट कर रोने लगती है। सुरेश के एक एक शब्द चंचल के सीने को छल्ली कर रहे थे। रोते रोते कब सुबह हो गयी चंचल को भी पता नहीं चला। चंचल ने जब अपना मोबाइल देखा तो उसमें सुरेश की तकरीबन 10 से 12 मिस्ड कॉल थी। चंचल गुस्से में फ़ोन को बिस्तर पर पटक कर बाथरूम में नहाने चली जाती है।
चंचल अपनी सोच में कुछ इस तरह से उलझ गयी कि उसे पता तक नही चला कि वो कब आफिस पहुंच गई। करीब दो मिनेट तक चंचल का ड्राइव चंचल के उतरने का वैट करता रहा लेकिन जब चंचल गाड़ी से नहीं उतरी तो मजबूरन उसे चंचल को पुकार कर उसके ख्यालों से बाहर लाना पड़ा। चंचल जैसे ही ख्यालों से बाहर आती है तुरंत खुद को मानसिक तौर पर आफिस के काम काज के लिए तैयार करती है और आफिस में चल देती है। आफिस में करीब 2-3 मीटिंग पुराने टेंडेरेर और एम्प्लोयी के साथ थी जिन्हें पूरा करने के बाद चंचल कुछ सोचने लगती है।
चंचल कुछ देर सोच कर मुस्कुराकर के सुरेश के पास कॉल लगाती है। करीब 2 बार पूरा फ़ोन करने के बाद भी सुरेश की तरफ से कोई जवाब नही मिलता जिस से चंचल और झुंझला जाती है। चंचल का सर दुखने लगता है। चंचल तुरन्त अपने पर्स से सर दर्द की दवा ढूंढने लगती है। लेकिन दवा की जगह चंचल के हाथ मे समीर का विजिटिंग कार्ड आ जाता है।
अब आगे.....
समीर के दिये हुए विजिटिंग कार्ड को चंचल तकरीबन पांच मिनट तक देखती रहती है। चंचल ये निर्णय नहीं ले पा रही थी कि आखिर वो क्या करे? समीर से बात करे कि नहीं? चंचल को समीर से बात करके अच्छा लगा था लेकिन समीर का बात करने का अंदाज़ बहुत एडवांस और फ्लिर्टी था। जिस कारण से चंचल फिलहाल इस अवस्था मे बात नहीं करना चाहती थी जहां उसकी मनोदशा केवल ओर केवल अपने पति सुरेश के संपर्क को चाहती है।
चंचल एक बार फिर से सुरेश को कॉल लगाती है लेकिन फ़ोन लगने के साथ ही सुरेश चंचल का फ़ोन काट देता है। अब चंचल के लिए ये सब बर्दाश्त के बाहर था। चंचल कुछ देर सोचती है। और समीर के कार्ड को अपने होंठों पर फिराते हुए विचार करने लगती है। कुछ ही क्षणों में चंचल मानसिक तौर पर समीर से बात करने को तैयार हो जाती है और समीर को कॉल लगा देती है।
वहीं दूसरी और समीर अपने कमरे में बैठा हुआ रेड वाइन पी रहा होता है।
समीर जिस कमरे में रह रहा था वो किसी फाइव स्टार होटल से कम नही था। ये समीर का फार्म हाउस था। जैसे ही चंचल का कॉल समीर के फ़ोन पर आता है समीर कुछ देर तक फ़ोन को देखता रहता है। फिर उस फ़ोन को अपने सामने पड़ी टेबल पर से उठा कर कॉल अटेंड करने ही वाला होता है कि समीर कुछ सोच कर मुस्कुरा देता है और फ़ोन को वापस टेबल पर रख देता है। करीब 4 से 5 मिस्ड कॉल लगातार वो भी चंचल की और समीर उस कॉल को देख कर मुस्कुराता रहता है।
समीर अब काफी देर बाद एक गिलास में रेड वाइन डाल कर फिर से पीने ही वाला प है कि फिर से चंचल की कॉल आती है लेकिन समीर इस बार भी अटेंड ना करके मुस्कुराता हुआ रेड वाइन पिने लगता है। तभी जोर से समीर के कमरे का दरवाजा खुलता है।
समीर पीछे की तरफ घूम कर देखता है तो मुस्कुरा पड़ता है।
समीर: अरे आईये आईये मैडम चंचल... आप? यहां? यूँ अचानक? सब खैरियत तो है ना? (मुस्कुराते हुए)
चंचलमील जुले भावों से) तुमने कॉल क्यों नही अटेंड किया।
समीर: वो क्या है ना मेरा दिल नही कर रहा था किसी से भी बात करने का तो...
समीर के इस तरह के जवाब से चंचल की आंखों से आंसू छलक आये लेकिन फिर भी कैसे जैसे चंचल उन आंसुओं को छिपाने में सफल हो जाती है। समीर को भी इस बात की भनक पड़ गयी थी लेकिन समीर बिना चंचल की तरफ देखे उसे अपने सामने वाले सोफे पर बैठने का आग्रह करता है।
लेकिन चंचल के पैर तो अब हिल भी नहीं रहे थे। चंचल एक बार फिर से ख्यालों में गुम थी। चंचल को ये समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो समीर के पास क्यों आयी है? और यहां एक अनजान शख्स के पास आकर इस तरह इमोशनल होने का क्या मतलब निकला? मैं कैसे उसे अपना कॉल अटेंड करने के लिए फ़ोर्स कर सकती हूं?
चंचल अभी ख्यालों में गुम थी कि समीर अपनी सीट से उठ कर चंचल की तरफ बढ़ता है। समीर हौले से चंचल के पास जाकर फुसफुसाता हुआ चंचल के कान में बोलता है।
समीर: तो आपको हमारी दोस्ती मंज़ूर नही थी। फिर आप यहां क्यूँ आयी।
(चंचल अब समीर की फ्लर्टी बात पर मुस्कुरा पड़ती है)
चंचल: वो क्या है ना अब वो अनजान शक़्स हमे दोस्त नज़र आता है।
समीर: नो वे, अब मुझे उसकी दोस्ती मंज़ूर नहीं।
चंचल: (चोंकते हुए) व्हाट? पर क्यों? मैंने क्या गलत किया?
समीर: यु हर्ट माय इगो। इसलिए अब मुझे आपकी दोस्ती मंज़ूर नहीं।
चंचल मुस्कुराते हुए) तो अब हमारा दोस्त हमसे क्या चाहता है।
समीर: मेडम चंचल मैंने कहा ना मुझे किसी से दोस्ती नही करनी। और जो मैं चाहता हूं वो आप नही कर सकती सो लीव इट। चलिए ये बताईये चाय लेंगी आप या कॉफी , ठंडा वगैरा।
चंचल: अपने दोस्त को मनाने के लिए जो करना पड़ा वो करूँगी।
समीर: क्यों ज़िद कर रही हो तुम चंचल ये तुम्हारे बस की बात नहीं है। एक तो तुम अमीर परिवार से हो, ऊपर से बिज़नेस वुमन हो।
चंचल: मैं अपनी दोस्ती के लिए कुछ भी कर सकती हूं।
समीर: सोच लो फिर मुकर मत जाना।
चंचल: सोच लिया जब इतनी दूर आयी हूँ तो दोस्ती तो लेकर ही जाउंगी।
समीर: एक बार और सोचलो।
चंचल: अरे बाबा सोच बोलो क्या करना है।
समीर: तुम्हे मेरी ग़ुलाम बनना है। आई वांट यू एज़ माय स्लेव।
चंचल समीर की मुह से निकली बात को सुनकर चोंक जाती है और वही की वही खड़ी रह जाती है। चंचल के मोह से बोल नही फुट रहे थे।
समीर: क्या हुआ? अब नही करनी दोस्ती। अब जाओ अपना बिज़नेस संभालो।
समीर वापस अपने सोफे की तरफ जाने लगता है तभी पीछे से चंचल बोलती है।
चंचल: मुझे मंज़ूर है।
समीर: आर यू स्योर?
चंचल: यस
समीर: देखलो एक बार मेरी स्लेव बनने के बाद तुम्हारे लिए सबसे ज़रूरी सिर्फ में रहूंगा कोई और नहीं।
चंचल: (कुछ देर सोचते हुए) मुझे मंज़ूर है।
समीर सोफे के पास पड़े एक डिब्बे से हाथ पर बांधने वाला बेंड निकालता है और उसे चंचल के हाथ पर पहना देता है।
समीर: ये तुम्हारा मेरी स्लेव होने का प्रूफ है । वादा करो तुम इसे कभी नहीं उतारोगी।
चंचल: ठीक है नहीं उतारूंगी, लेकिन ये मेरे लिए बहुत चीप नही है।
समीर: वो तो वक़्त बताएगा। अभी तुम आफिस जाओ। जब तुम्हारे मालिक को तुम्हारी ज़रूरत होगी तुम्हे कॉल कर दूंगा। और हां आज के बाद तुम्हे हर काम के लिए मुझसे परमिशन लेनी होगी। खाना खाना हो या नहाना धोना हो, कपड़े बदलने से लेकर क्या पहनना है यहां तक भी।
चंचल: व्हाट?
समीर: चंचल का हाथ पकड़ कर उसे दरवाजे के बाहर धकेल देता है । अब जाओ और आज पहली गलती थी इसलिए माफ किया। अगली बार पनिशमेंट दूंगा। और सुनो अगर मेरे कहे अनुसार नही किया तो तुम मेरी स्लाव नहीं मैं तेरा मालिक नहीं। उस दिन के बाद से तुम मुझसे कोई बात नहीं करोगी।
चंचल कुछ बोलना चाहती लेकिन समीर ने उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया। चंचल काफी कोशिश करती है समीर से बात करने की लेकिन समीर चंचल से कोई बात नही करता। चंचल बन्द दरवाजे से अपने ऑफिस की और चली जाती है।
करीब 2 से ढाई घंटे तक चंचल ये विचार करती रहती है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। क्या समीर की स्लेव बनना?? मैंने ऐसा कैसे कर दिया? और क्यों? ओह शिट अब क्या करूँ। चंचल का एक मन तो समीर के प्रपोजल को स्वीकार कर चुका था लेकिन एक मन उसे अभी भी रोक रहा था। चंचल थक हार कर अपने घर की और निकलने लगती है कि तभी चंचल के पास एक पार्सल लेकर कोई लड़की आती है और चंचल को देकर वापस चली जाए है पार्सल पर समीर का नाम लिखा हुआ था और साथ ही एक चिट्ठी भी थी।
चंचल जल्दी से पार्सल को हाथ मे लेकर अपनी गाड़ी में बैठ जाती है और घर निकल जाती है। रात का खाना सबके साथ खा कर चंचल अपने कमरे में जाति है। बार बार चंचल की नज़र उस पार्सल पर जाती है जो कि समीर ने चंचल के लिए भेजा था। चंचल डरे हुए मन से उस पार्सल को उठती है और उसपर लगी चिट्टी को पढ़ने लगती है।
चिट्ठी:-
चंचल तुमने मेरी स्लेव होने का जो निर्णय किया है , में देखना चाहता हूं कि तुम उसके लायक भी हो या नहीं। इसलिए तुम्हे ये पार्सल भेज रहा हूँ । अगर काल तुम ऑफिस में ये कपड़े पहन कर आओगी तो में समझूँगा तुम पूरी तरह से मेरी स्लेव बनने के लायक हो और अगर नहीं पहना तो इस बात को यहीं खत्म कर दूंगा। ना में तुम्हे जानता हूँ और ना ही तुम मुझे।
चंचल चिट्ठी को पढ़ कर पार्सल को खोलती है तो चोंक जाती है। पार्सल में मॉडर्न कपड़े थे। जो कि अभी तक चंचल पहन कर आफिस में नहीं गयी थी। न ही उसके घर मे ये सब जायज थे। चंचल विचार करती है कि वो ये सब नहीं करेगी। अपने मन को पक्का कर के मन ही मन कहती है वो सिर्फ सुरेश की ग़ुलाम है और किसी की नही।
चंचल सुरेश को कॉल करती है करीब 3 कॉल काटने के बाद सुरेश चंचल की कॉल रात को 1 बजे अटेंड करता है।
सुरेश: क्या यार चंचल कितना परेशान करने लगी हो तुम। जब एक बार कॉल काट दिया तो समझ नही आ रहा कि मैं बिजी हूँ।
चंचल: प्लीज सुरेश ऐसे मत बात करो। तुम जानते हो न मैं तुम्हे कितना प्यार करती हूं। तुम्हे बहुत याद करती हूँ।
सुरेश: तो क्या करूँ काम धाम छोड़ कर चढ़ जाऊं तुम पर। अगर इतनी ही आग है तू किसी और को चढ़ा लो। मुझे काम के वक़्त परेशान करना भगवान के लिए बंद करो।
चंचल: सुरेश बकवास बैंड करो। मैं तुम्हारी बीवी हूँ। और तुम किस बात का गुस्सा मुझ पर उतार रहे हो। क्या एक बीवी अपने पति को कॉल भी नही कर सकती।
सुरेश: ( अपनी गलती का एहसास करते हुए) देखो चंचल...
चंचल: बस बहुत हुआ मिस्टर सुरेश, में आपकी पत्नी हूँ कोई ग़ुलाम नहीं।
सुरेश: चंचल... सुनो तो।
चंचल गुस्से में फ़ोन काट देती है और बिस्तर पर उल्टी लेट कर रोने लगती है। सुरेश के एक एक शब्द चंचल के सीने को छल्ली कर रहे थे। रोते रोते कब सुबह हो गयी चंचल को भी पता नहीं चला। चंचल ने जब अपना मोबाइल देखा तो उसमें सुरेश की तकरीबन 10 से 12 मिस्ड कॉल थी। चंचल गुस्से में फ़ोन को बिस्तर पर पटक कर बाथरूम में नहाने चली जाती है।
बर्बादी को निमंत्रण
https://xossipy.com/thread-1515.html
[b]द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A Tale of Tilism}[/b]
https://xossipy.com/thread-2651.html
Hawas ka ghulam
https://xossipy.com/thread-33284-post-27...pid2738750
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[b]द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A Tale of Tilism}[/b]
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Hawas ka ghulam
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