08-01-2020, 04:34 PM
छः मर्दों ने ऋतु मौसी को घुटनों पे बिठा कर उनके पुनः को बारी-बारी अपने विकराल लंड से चोदना शुरू कर दिया था। ऋतु
मौसी घूम कर घूम कर सबके लंड की बराबर आवभगत कर रहीं थीं। उनके गोरे मुलायम छोटे छोटे नाज़ुक हाथ मर्दों के बालों से
भरे भरी चूतड़ों को सहला रहे थे। जब संजू की बारी आते थी तो ऋतु मौसी उसके चिकने मखमली चूतड़ों को औए भी प्यार से
मसल देंतीं।
छहों अपने लंड को बेदारी से ऋतू मौसी के मुंह में धकेलने लगे। ऋतु मौसी की उबकाई की जैसी 'गों गों' की निसहाय गला घोंटू
आवाज़ें हॉल में गूंज उठीं। उनकी भूरी आँखें आंसुओं से भर उठीं।
उनकी लार उनकी थोड़ी से होती हुई उनके फड़कते नाचते उरोज़ों को नहलाने लगी। जितनी ज़ोर से ऋतु मौसी की 'गों गों' होती
जातीं उतनी ज़ोर से ही हर लंड उनका मुँह चोदने लगता। ऋतू मौसी का मनमोहक सीना उनके अपने थूक से सराबोर हो गया।
ऋतु मौसी जो लंड भी उनके मुँह को बेदर्दी से चोद रहा होता उसके चूतड़ों को कस कर दबा कर और भी उसके लंड को अपने
हलक में घोंटने की कोशिश करतीं।
लगातार गला घोंटू चुदाई की वजह से ऋतु मौसी की आँखे बरसने लगीं। उनके आँसूं उनकी सुंदर नासिका में बह चले।
बारी बारी से मुँह चोदने के प्रकिर्या से हर लंड झड़ने से मीलों दूर था।
जितना अधिक ऋतु मौसी सिसकती हुई गों गों करती उतनी और निर्ममता से हर एक लंड उनका गला चोदता।
उनका सुंदर चेहरा उनके आंसुओ, थूक और बहती नाक से मलीन हो गया। मुझे विश्वास था कि हर पुरुष उनके दैव्य सौंदर्य को
मलिन कर और भी सुंदर बना रहा था।
ऋतू मौसी बेदर्दी से होती अपने लिंग चूषण से इतनी उत्तेजित हो गयी कि हर दस मिनट पर वो झड़ने लगीं।
जब उनका रति-स्खलन होता तो उनका सारा शरीर उठता जैसे कि उन्हें तीव्र ज्वर ने जकड़ लिया हो।
उनके आखिरी चरम-आनंद ने उन्हें बहुत शिथिल कर दिया और वो फर्श पर ढलक गयीं।
**********************************************
नम्रता चाची ने मुझे अपने नकली लंड पर ऊपर नीचे होने में मदद कर पूरे घंटे से चोद रहीं थीं। मैं अनगिनत बार झड़ चुकी थी।
मेरी चूत बड़े मामा की बेदर्द और चाची की बेदर्द चुदाई से रिरयाने लगी। उनके छूट में फांसे लंड ने उन्हें भी मेरी तरह बार बार
झाड़ दिया था।
नम्रता चाची ने मेरे दोनों उरोज़ों का लतमर्दन कर उन्हें लाल कर दिया था। मेरे चूचुक तो उनके मसलने और खींचने से सूज गए
थे।
उनके पर्वत से विशाल भारी स्तन मेरे पीठ को रगड़ कर मेरे वासना के उन्माद को हर क्षण बढ़ावा दे रहे थे।
उधर जमुना दीदी ने थकी मांदी मीनू को घोड़ी बना कर उसे पीछे से मर्द की तरह लम्बे ज़ोरदार धक्कों से उसकी गांड की हालत
ख़राब कर रहीं थीं। मीनू ज़ोरों से सिसक रही थी। उसके हिलते शरीर के कम्पन से साफ़ प्रत्यक्ष था कि उसके रति-निष्पत्ति अब एक
लगातार लहर में हो रही थी।
मौसी घूम कर घूम कर सबके लंड की बराबर आवभगत कर रहीं थीं। उनके गोरे मुलायम छोटे छोटे नाज़ुक हाथ मर्दों के बालों से
भरे भरी चूतड़ों को सहला रहे थे। जब संजू की बारी आते थी तो ऋतु मौसी उसके चिकने मखमली चूतड़ों को औए भी प्यार से
मसल देंतीं।
छहों अपने लंड को बेदारी से ऋतू मौसी के मुंह में धकेलने लगे। ऋतु मौसी की उबकाई की जैसी 'गों गों' की निसहाय गला घोंटू
आवाज़ें हॉल में गूंज उठीं। उनकी भूरी आँखें आंसुओं से भर उठीं।
उनकी लार उनकी थोड़ी से होती हुई उनके फड़कते नाचते उरोज़ों को नहलाने लगी। जितनी ज़ोर से ऋतु मौसी की 'गों गों' होती
जातीं उतनी ज़ोर से ही हर लंड उनका मुँह चोदने लगता। ऋतू मौसी का मनमोहक सीना उनके अपने थूक से सराबोर हो गया।
ऋतु मौसी जो लंड भी उनके मुँह को बेदर्दी से चोद रहा होता उसके चूतड़ों को कस कर दबा कर और भी उसके लंड को अपने
हलक में घोंटने की कोशिश करतीं।
लगातार गला घोंटू चुदाई की वजह से ऋतु मौसी की आँखे बरसने लगीं। उनके आँसूं उनकी सुंदर नासिका में बह चले।
बारी बारी से मुँह चोदने के प्रकिर्या से हर लंड झड़ने से मीलों दूर था।
जितना अधिक ऋतु मौसी सिसकती हुई गों गों करती उतनी और निर्ममता से हर एक लंड उनका गला चोदता।
उनका सुंदर चेहरा उनके आंसुओ, थूक और बहती नाक से मलीन हो गया। मुझे विश्वास था कि हर पुरुष उनके दैव्य सौंदर्य को
मलिन कर और भी सुंदर बना रहा था।
ऋतू मौसी बेदर्दी से होती अपने लिंग चूषण से इतनी उत्तेजित हो गयी कि हर दस मिनट पर वो झड़ने लगीं।
जब उनका रति-स्खलन होता तो उनका सारा शरीर उठता जैसे कि उन्हें तीव्र ज्वर ने जकड़ लिया हो।
उनके आखिरी चरम-आनंद ने उन्हें बहुत शिथिल कर दिया और वो फर्श पर ढलक गयीं।
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नम्रता चाची ने मुझे अपने नकली लंड पर ऊपर नीचे होने में मदद कर पूरे घंटे से चोद रहीं थीं। मैं अनगिनत बार झड़ चुकी थी।
मेरी चूत बड़े मामा की बेदर्द और चाची की बेदर्द चुदाई से रिरयाने लगी। उनके छूट में फांसे लंड ने उन्हें भी मेरी तरह बार बार
झाड़ दिया था।
नम्रता चाची ने मेरे दोनों उरोज़ों का लतमर्दन कर उन्हें लाल कर दिया था। मेरे चूचुक तो उनके मसलने और खींचने से सूज गए
थे।
उनके पर्वत से विशाल भारी स्तन मेरे पीठ को रगड़ कर मेरे वासना के उन्माद को हर क्षण बढ़ावा दे रहे थे।
उधर जमुना दीदी ने थकी मांदी मीनू को घोड़ी बना कर उसे पीछे से मर्द की तरह लम्बे ज़ोरदार धक्कों से उसकी गांड की हालत
ख़राब कर रहीं थीं। मीनू ज़ोरों से सिसक रही थी। उसके हिलते शरीर के कम्पन से साफ़ प्रत्यक्ष था कि उसके रति-निष्पत्ति अब एक
लगातार लहर में हो रही थी।


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