08-01-2020, 03:46 PM
मीनू ने शर्मा कर चाची के कहे शादी की शपथ को दुहराया। फिर मेरी बारी थी मैं भी शर्मा उठी ,"मैं अपनी चूत पूरे दिल से बड़े मामा के लंड को
समर्पित करती हूँ। बड़े मामा जब और जैसे चाहें मेरी चूत मार सकते हैं। "
नम्रता चाची ने इसके बाद हम चरों से पहला फेरा लगवाया। हम दोनों ने अपने दूल्हों का लंड पकड़ केर फेरा पूरा किया।
नम्रता चाची ने फिर से रंगमंच जैसी आवाज़ में कहा, " देखो इस लैंड से जब तक सातों फेरे न हो जाएँ हाथ नहीं हिलना चाहिये। " हम दोनों ने अपने
छोटे छोटे हाथों की पकड़ मूसल लंडों पैर और भी मजबूत कर ली।
नम्रता चाची ने दूसरी शपथ कही, " मेरी गांड, मुंह और दोनों चूचियाँ मेरे दुल्हे के आनंद के लिये हमेशा के लिए समर्पित हैं ।"
हमारे शपथ दोहराने के दूसरा फेरा पूर हुआ। बड़े मामा और सुरेश चाचा के लंड अब पूरे फनफना उठे थे।
ऋतू मौसी के हाथों में भी गंगा बाबा और संजू के लोहे जैसे सख्त लंड कुलबुला रहे थे। जमुना दीदी भी राज मौसा और नानू के भीमकाय लंडों को
काबू में करने का निर्थक प्रयास कर रहीं थीं।
चाची ने शपथ दी, " मैं अपने दुल्हे को अपने शरीर से उपजे हर द्रव्य, पदार्थ और कुछ और जो वो चाहे उसे समर्पित करूंगीं। "
हम ली और पूरा हो गया।
अब 'दूल्हों' की बारी थी।
"मैं अपनी दुल्हन के कुंवारेपन को अपने महाकाय लंड से ध्वस्त कर दूंगा। और उसके कौमार्यभंग चीखें निकलें और मेरे लंड पे उसके कौमार्य का
खून न लगे तो मैं मर्द नहीं हूँ। नम्रता चाची की मन घड़न्त शपथें को सुन कर हंसी आने लगी थी। पर सुरेश चाचा और बड़े मामा ने गम्भीरता से
शपथ ली और पूरा हो गया।
"मैं अपनी दुल्हन अपने शरीर से उपजे हर द्रव्य, पदार्थ और और कुछ जो वो चाहे उसे समर्पित करता हूँ। " नम्रता चाची ने दोनों नारी और पुरुषों को
बराबरी का उत्तरदायित्व दे दिया। इस शपथ के बाद पांचवां फेरा भी पूरा हो गया।
नम्रता चाची के चेहरे से साफ़ पता चल वो सातवीं शपथ के लिए अपना मस्तिष्क कुरेद रहीं थीं।
अचानक उन्हें कुछ विचार आया, "और जब मेरी दुल्हन चाहे और जितने भी वो चाहे मैं उसे उतने बच्चों से उसका गर्भ भर दूंगा। "
इस अनापशनाप शपथ के बाद सातवां फेरा भी पूरा हो गया। नम्रता चाची ने दुल्हनों से अपने स्वामियों के पैर छुबवाये।
"अब आप दोनों अपनी दुल्हनो के कौमार्य का विध्वंस कर दीजिये। यदि कुंवारे वधु की पहली चुदाई में चीखें न निकलें और वर के मोटे लंड पे उसके
कौमार्यभंग का लाल लहू न दिखे तो दुल्हे के लंड की ताकत पर हम सबका जायेगा। " नम्रता चाची अब पूरे प्रवाह में थीं।
हॉल में कई मोटे नरम गद्दे थे. दो पर गुलाब की पंखुड़ियाँ फ़ैली हुई थीं। यह हमारी 'सुहागरात' के गद्दे थे।
बड़े मामा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और मेरे गरम जलते हुए होंठों को कस कर लगे। सुरेश चाचा ने भी अपनी नव-वधु को अपनी बलशाली
बाँहों में उठा कर सुहागरात के गद्दे की और चल पड़े। सब दर्शकों को दोनों गद्दों पर होने वाले कार्यकलाप का अबाधित दृष्टिकोण था। नम्रता चाची ने
सारा रंगमंच सोचसमझ कर व्यस्थित किया था।
सुरेश चाचा ने अपनी अपरिपक्व 'दुल्हन' को गद्दे पर लिटा कर उसके होंठों के रसपान करने लगे। उँगलियाँ मीनू के जलते यौवन से खेलेने लगीं।
मीनू के भगोष्ठ वासना के अतिरेक से सूज से गए थे। मेरी चूत बड़े मामा के दानवीय विकराल लंड की प्यासी हो चली थी।
हम दोनों की चूतें हमारे रति रस से सराबोर थीं।
नम्रता चाची ने पुकार लगायी , "अरे दुल्हे राजाओं यह दुल्हने तो पूरी तैयार हैं। इन्हे और गरम करने की ज़रुरत नहीं है। आप तो यह सोचो कि चीखें
निकलवाओगे और कैसे इनकी छूट फाड़ कर अपने लंड पर विजय का प्रतीक लाल रंग दिखाओगे। "
मीनू और की तरफ देखा। वो बेचारी भी लंड लेने के लिए उत्सुक थी।
नम्रता चाची ने दोनों दूल्हों को हमारी फ़ैली टांगों के बीच में स्थापित करने के बाद उनके तनतनाते हुए लंडों को चूस कर और भी खूंटे जैसे सख्त कर
दिया।
समर्पित करती हूँ। बड़े मामा जब और जैसे चाहें मेरी चूत मार सकते हैं। "
नम्रता चाची ने इसके बाद हम चरों से पहला फेरा लगवाया। हम दोनों ने अपने दूल्हों का लंड पकड़ केर फेरा पूरा किया।
नम्रता चाची ने फिर से रंगमंच जैसी आवाज़ में कहा, " देखो इस लैंड से जब तक सातों फेरे न हो जाएँ हाथ नहीं हिलना चाहिये। " हम दोनों ने अपने
छोटे छोटे हाथों की पकड़ मूसल लंडों पैर और भी मजबूत कर ली।
नम्रता चाची ने दूसरी शपथ कही, " मेरी गांड, मुंह और दोनों चूचियाँ मेरे दुल्हे के आनंद के लिये हमेशा के लिए समर्पित हैं ।"
हमारे शपथ दोहराने के दूसरा फेरा पूर हुआ। बड़े मामा और सुरेश चाचा के लंड अब पूरे फनफना उठे थे।
ऋतू मौसी के हाथों में भी गंगा बाबा और संजू के लोहे जैसे सख्त लंड कुलबुला रहे थे। जमुना दीदी भी राज मौसा और नानू के भीमकाय लंडों को
काबू में करने का निर्थक प्रयास कर रहीं थीं।
चाची ने शपथ दी, " मैं अपने दुल्हे को अपने शरीर से उपजे हर द्रव्य, पदार्थ और कुछ और जो वो चाहे उसे समर्पित करूंगीं। "
हम ली और पूरा हो गया।
अब 'दूल्हों' की बारी थी।
"मैं अपनी दुल्हन के कुंवारेपन को अपने महाकाय लंड से ध्वस्त कर दूंगा। और उसके कौमार्यभंग चीखें निकलें और मेरे लंड पे उसके कौमार्य का
खून न लगे तो मैं मर्द नहीं हूँ। नम्रता चाची की मन घड़न्त शपथें को सुन कर हंसी आने लगी थी। पर सुरेश चाचा और बड़े मामा ने गम्भीरता से
शपथ ली और पूरा हो गया।
"मैं अपनी दुल्हन अपने शरीर से उपजे हर द्रव्य, पदार्थ और और कुछ जो वो चाहे उसे समर्पित करता हूँ। " नम्रता चाची ने दोनों नारी और पुरुषों को
बराबरी का उत्तरदायित्व दे दिया। इस शपथ के बाद पांचवां फेरा भी पूरा हो गया।
नम्रता चाची के चेहरे से साफ़ पता चल वो सातवीं शपथ के लिए अपना मस्तिष्क कुरेद रहीं थीं।
अचानक उन्हें कुछ विचार आया, "और जब मेरी दुल्हन चाहे और जितने भी वो चाहे मैं उसे उतने बच्चों से उसका गर्भ भर दूंगा। "
इस अनापशनाप शपथ के बाद सातवां फेरा भी पूरा हो गया। नम्रता चाची ने दुल्हनों से अपने स्वामियों के पैर छुबवाये।
"अब आप दोनों अपनी दुल्हनो के कौमार्य का विध्वंस कर दीजिये। यदि कुंवारे वधु की पहली चुदाई में चीखें न निकलें और वर के मोटे लंड पे उसके
कौमार्यभंग का लाल लहू न दिखे तो दुल्हे के लंड की ताकत पर हम सबका जायेगा। " नम्रता चाची अब पूरे प्रवाह में थीं।
हॉल में कई मोटे नरम गद्दे थे. दो पर गुलाब की पंखुड़ियाँ फ़ैली हुई थीं। यह हमारी 'सुहागरात' के गद्दे थे।
बड़े मामा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और मेरे गरम जलते हुए होंठों को कस कर लगे। सुरेश चाचा ने भी अपनी नव-वधु को अपनी बलशाली
बाँहों में उठा कर सुहागरात के गद्दे की और चल पड़े। सब दर्शकों को दोनों गद्दों पर होने वाले कार्यकलाप का अबाधित दृष्टिकोण था। नम्रता चाची ने
सारा रंगमंच सोचसमझ कर व्यस्थित किया था।
सुरेश चाचा ने अपनी अपरिपक्व 'दुल्हन' को गद्दे पर लिटा कर उसके होंठों के रसपान करने लगे। उँगलियाँ मीनू के जलते यौवन से खेलेने लगीं।
मीनू के भगोष्ठ वासना के अतिरेक से सूज से गए थे। मेरी चूत बड़े मामा के दानवीय विकराल लंड की प्यासी हो चली थी।
हम दोनों की चूतें हमारे रति रस से सराबोर थीं।
नम्रता चाची ने पुकार लगायी , "अरे दुल्हे राजाओं यह दुल्हने तो पूरी तैयार हैं। इन्हे और गरम करने की ज़रुरत नहीं है। आप तो यह सोचो कि चीखें
निकलवाओगे और कैसे इनकी छूट फाड़ कर अपने लंड पर विजय का प्रतीक लाल रंग दिखाओगे। "
मीनू और की तरफ देखा। वो बेचारी भी लंड लेने के लिए उत्सुक थी।
नम्रता चाची ने दोनों दूल्हों को हमारी फ़ैली टांगों के बीच में स्थापित करने के बाद उनके तनतनाते हुए लंडों को चूस कर और भी खूंटे जैसे सख्त कर
दिया।