08-01-2020, 03:43 PM
जब हम कमरे में आये तो कुछ क्षणों में ही बाद नम्रता चाची, जमुना दीदी और ऋतू मौसी हंसती हुई दाखिल हो गयीं।
उस समय ऋतू मौसी बाइस साल की थीं। मनोहर नानाजी के आखिरी बेटी, ऋतू , और उनसे तीन साल बड़े भाई ,राज , नम्रता
चाची के बीस साल बाद पैदा हुए थे।
ऋतू मौसी की सुंदर काया को देख कर कोइ भी मनुष्य मंत्रमुग्ध हो जाये। ऋतू मौसी पांच फुट लम्बी और गदराये शरीर की मलिका
हैं। उनके देवी सामान सुंदर चेहरे को देख कर सब लोग भगवान् में विश्वास करने लग जाए। उनकी भरे उन्नत भारी स्तन ढीले
कफ्तान में भी छुप नहीं पा रहे थे। उनके गोल सुडौल थोड़ी उभरी कमर उनके भरे-भरे गोल नितम्ब इतने गदराये हुए थे कि उन्हें
हिलते हुए देख कर देवताओं का भी मन बेहक जाए। ऋतू मौसी के देवी समान सौंदर्य उनकी प्रशांत सागर की तरह स्थिर शांत व्यवहार
से और भी उभर कर उन्हें अकिर्षक बना देता है। ऋतू मौसी के सौंदर्य को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं बने। यथेष्ट कि उनके
सौंदर्य के लिए देवता इंद्रप्रस्थ छोड़ने के लिए तैयार हो जायेंगें।
मैं एकटक ऋतू मौसी के हलके मुस्कान से भरे सुंदर चेहरे को निहारने लगी। उनकी अत्यंत सुंदर नासिका उनके चेहरे की चरमोत्कर्ष
है। जब वो मुस्कुरातीं है तो मानों उनके होंठो की मुस्कान उनके नथुनों को भी शामिल कर लेती है।
ऋतू मौसी ने मुझे ऊपर से नीचे तक निहारा ,"दीदी देखो तो हमारी नन्ही नेहा कितनी सुंदर और बड़ी हो गयी है। "मीनू और मैं अभी
भी निवस्त्र थे।
मैं शर्मा गयी। जमुना दीदी ने कार्यक्रम बताया ,"पहले आप दोनों की शादी होगी।फिर आपके दुल्हे राजा सब परिवार के सामने
अधिकारिक रूप से आप दोनों के कौमार्यभंग फिर से करेंगें। उसके बाद हम सब देर से लंच खाएंगें। "
ऋतू मौसे बीच में कूद पड़ीं , "और फिर होगा रंडी-समारोह। "
मीनू और मैं भौंचक्के भाव से उन्हें घूर रहीं थीं।
"अरे नादान नन्ही बलिकायों हम सब मिल कर निस्चय करते हैं कि हम मैं से कौन रात भर को लिए रंडी बनने का सौभाग्य पायेगी।
उसका मतलब है कि सारे पुरुष उस भाग्यशाली स्त्री को मन भर कर चोदेंगे और उस स्त्री को उन सब पुरुषो के सारे वीर्य पर हक़
होगा ," नम्रता चाची ने मीनू और मुझे समझाया।
"दीदी आप देखो पहले की तरह गड़बड़ कर रही हो। आखिर बार हम सबने निश्चय किया था कि जो सौभागयशाली रंडी बनने का हक़
जीतेगी उसे सब पुरुषो के शरी के हर द्रव्य पर पहला हक़ होगा। याद है न डीड? यदि नहीं तो जमुना दीदी से पूछ लो ?" ऋतू मौसी ने
नम्रता चाची की अपनी गहरी सुंदर आँखें मटका कर चिढ़ाया।
नम्रता चाची ने गहरी सांस भर कर नाटकीय अंदाज़ में कहा , "मेरी बेटी जैसी मेरी छोटी बहन देखो कैसी रंडियों जैसी बोल रही है। "
चाची के निरर्थक मज़ाक पर हम सारे हंस दिये।
"और तू तो ऐसे कह रही है कि जैसे तू ही वो सौभाग्यशाली रंडी होगी ," नम्रता चाची के शिकायती शब्दों में और उनके सुंदर चेहरे पर
फ़ैली मुस्कान में उनकी बेटी समान छोटी बहन के लिए अपर प्यार भरा था। नम्रता चाची के लिए राज मामा और ऋतू मौसी भाई-
बहन कम और बेटा-बेटी ज़यादा थे। आखिर में उन्होंने ही तो नानी के निधन के बाद माँ की तरह दोनों का पालन-पोषण किया था।
आखिर में तीनों ने हंस कर ताश की गड्डी निकाली और नम्रता चाची ने तीन ताश बाटें । तीनों सुंदर स्त्रियां बड़ी देर तक एक दुसरे की
तरफ देख कर अपने ताशों के ऊपर कर हाथ रख कर एक दुसरे को घूरने लगीं।
आखिरकार नम्रता चाची ने अपना ताश सीधा कर दिया। उनके पास ग़ुलाम था। जमुना दीदी ने अपना ताश खोला और उदास चेहरे
बना कर अपना लिया , "धत तेरे की। "
जमुना दीदी का ताश सिर्फ दहला था।
ऋतू मौसी ने आँखे मटका कर ज़ोरों से मुस्कुरायीं , "न जाने क्यों मुझे शुरू से ही विजय का आभास हो रहा था ?"
नम्रता चाची ने बनावटी चिढ़ते हुए कहा ,"मेरी बेटी जैसी बहना अभी तो मेरा ताश ही सबसे बड़ा है। आज लगता है कि घर के छै
लंड मेरे होंगे। "
ऋतू मौसी ने मज़ाकिया चिड़ाने के लिए अपनी माँ जैसी बड़ी बहन को चूम कर कहा , " मेरी माँ सामान पूजनीय दीदी, आपका मन
क्या कह रहा है? वैसे तो मुझे पता है कि आप मेरा और जमुना दीदी का दिल रखने के लिए जीत कर भी हार मान लेंगीं।
"अच्छा चल औए बात नहीं बना औए अपना ताश दिखा दे , " नम्रता चाची बनावटी गुस्से से बोलीं पर उन्होंने प्यार से ऋतू मौसी
के सुंदर चेहरे को दुलारा।
ऋतू मौसी ने एक झटके से अपना ताश सीधा कर दिया और विजय की घोषणा करते हुए मज़ाकिया नृत्य करने लगीं। उनके पास
इक्का था।
इस हंसी मज़ाक के बाद तीनो का ध्यान मीनू और मेरी तरफ मुड़ गया।
जमुना दीदी ने अपने पिछले सालों के कपडे निकाले थे। मीनू को उनके छोटे ब्लाउज भी ढीला पड़ा। आखिर में मीनू के पास उस समय चूचियाँ ही नहीं थी
और जमुना दीदी के स्तन बहुत कम उम्र में विकसित हो गए थे। पर लहंगा तो ढीला हे होता है सो उसमे मीनू चमक उठी। दोनों वस्त्र बहुत ही महीन कोमल
रेशम से बने थे और उनपर अत्यंत जटिल और बारीक पेचीदा सोने के धागों से सजावट थी। मीनू उन बड़े माप के वस्त्रों में और भी अविकसित औरनन्ही पर
बाला की सुंदर लग रही थी।
मेरा ब्लाऊज़ भी उतना ही सुंदर और आकर्षक था। मेरे भरे भरी चूचियों ने उसे पूरा भर दिया। लहंगा भी उतना ही सुंदर और आकर्षक था।
मीनू और मुझे ब्रा और पैंटीज नहीं पहनने की आज्ञा दी गयी थी।
"अरे बुद्धू कुंवारी कन्याओं। क्या तुम अपने दूल्हों को ब्रा और पैंटीज उतरने में उलझना पसंद करोगी ?"
हमें हलके श्रृंगार से और भी सुंदर बनाया गया। नम्रता चाची ने सोने की नथनी हम दोनों को पहनायी।
"चलो दुल्हनें तो तैयार हो गयीं अब दूल्हों और बारात को तैयार करतें हैं। " नम्रता चाची ने प्यार से मीनू और मुझे चूमा। अचानक उनकी आँखों में आंसू भर
गये, "हाय, कितनी सुंदर लग रहीं हैं मेरी बेटियां ? कहीं इन्हें मेरी ही नज़र न लग जाये ?"
"आज तो ठीक है पर मैं वास्तव में तो इनका कन्यादान कभी भी नहीं कर पाऊॅंगी। इन्हें तो सारा जीवन अपने घर में हीं रखूँगी किसी को भी इन्हें अपने घर
से नहीं ले जाने दूंगी।" नम्रता चाची की आवाज़ में रोनापन आने लगा।
ऋतू मौसी और जमुना दीदी के नेत्र भी गरम आंसुओं से भर गए।
"दीदी, इनके दुल्हे तो हमारे घर के ही हैं। यह दोनों कहीं भी नहीं जा रहीं। " जमुना दीदी ने मज़ाक से बात सम्भाली।
तीनों अपनी आँखें पौंछते हुए कमरे कमरे से रवाना हो गयीं।
उस समय ऋतू मौसी बाइस साल की थीं। मनोहर नानाजी के आखिरी बेटी, ऋतू , और उनसे तीन साल बड़े भाई ,राज , नम्रता
चाची के बीस साल बाद पैदा हुए थे।
ऋतू मौसी की सुंदर काया को देख कर कोइ भी मनुष्य मंत्रमुग्ध हो जाये। ऋतू मौसी पांच फुट लम्बी और गदराये शरीर की मलिका
हैं। उनके देवी सामान सुंदर चेहरे को देख कर सब लोग भगवान् में विश्वास करने लग जाए। उनकी भरे उन्नत भारी स्तन ढीले
कफ्तान में भी छुप नहीं पा रहे थे। उनके गोल सुडौल थोड़ी उभरी कमर उनके भरे-भरे गोल नितम्ब इतने गदराये हुए थे कि उन्हें
हिलते हुए देख कर देवताओं का भी मन बेहक जाए। ऋतू मौसी के देवी समान सौंदर्य उनकी प्रशांत सागर की तरह स्थिर शांत व्यवहार
से और भी उभर कर उन्हें अकिर्षक बना देता है। ऋतू मौसी के सौंदर्य को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं बने। यथेष्ट कि उनके
सौंदर्य के लिए देवता इंद्रप्रस्थ छोड़ने के लिए तैयार हो जायेंगें।
मैं एकटक ऋतू मौसी के हलके मुस्कान से भरे सुंदर चेहरे को निहारने लगी। उनकी अत्यंत सुंदर नासिका उनके चेहरे की चरमोत्कर्ष
है। जब वो मुस्कुरातीं है तो मानों उनके होंठो की मुस्कान उनके नथुनों को भी शामिल कर लेती है।
ऋतू मौसी ने मुझे ऊपर से नीचे तक निहारा ,"दीदी देखो तो हमारी नन्ही नेहा कितनी सुंदर और बड़ी हो गयी है। "मीनू और मैं अभी
भी निवस्त्र थे।
मैं शर्मा गयी। जमुना दीदी ने कार्यक्रम बताया ,"पहले आप दोनों की शादी होगी।फिर आपके दुल्हे राजा सब परिवार के सामने
अधिकारिक रूप से आप दोनों के कौमार्यभंग फिर से करेंगें। उसके बाद हम सब देर से लंच खाएंगें। "
ऋतू मौसे बीच में कूद पड़ीं , "और फिर होगा रंडी-समारोह। "
मीनू और मैं भौंचक्के भाव से उन्हें घूर रहीं थीं।
"अरे नादान नन्ही बलिकायों हम सब मिल कर निस्चय करते हैं कि हम मैं से कौन रात भर को लिए रंडी बनने का सौभाग्य पायेगी।
उसका मतलब है कि सारे पुरुष उस भाग्यशाली स्त्री को मन भर कर चोदेंगे और उस स्त्री को उन सब पुरुषो के सारे वीर्य पर हक़
होगा ," नम्रता चाची ने मीनू और मुझे समझाया।
"दीदी आप देखो पहले की तरह गड़बड़ कर रही हो। आखिर बार हम सबने निश्चय किया था कि जो सौभागयशाली रंडी बनने का हक़
जीतेगी उसे सब पुरुषो के शरी के हर द्रव्य पर पहला हक़ होगा। याद है न डीड? यदि नहीं तो जमुना दीदी से पूछ लो ?" ऋतू मौसी ने
नम्रता चाची की अपनी गहरी सुंदर आँखें मटका कर चिढ़ाया।
नम्रता चाची ने गहरी सांस भर कर नाटकीय अंदाज़ में कहा , "मेरी बेटी जैसी मेरी छोटी बहन देखो कैसी रंडियों जैसी बोल रही है। "
चाची के निरर्थक मज़ाक पर हम सारे हंस दिये।
"और तू तो ऐसे कह रही है कि जैसे तू ही वो सौभाग्यशाली रंडी होगी ," नम्रता चाची के शिकायती शब्दों में और उनके सुंदर चेहरे पर
फ़ैली मुस्कान में उनकी बेटी समान छोटी बहन के लिए अपर प्यार भरा था। नम्रता चाची के लिए राज मामा और ऋतू मौसी भाई-
बहन कम और बेटा-बेटी ज़यादा थे। आखिर में उन्होंने ही तो नानी के निधन के बाद माँ की तरह दोनों का पालन-पोषण किया था।
आखिर में तीनों ने हंस कर ताश की गड्डी निकाली और नम्रता चाची ने तीन ताश बाटें । तीनों सुंदर स्त्रियां बड़ी देर तक एक दुसरे की
तरफ देख कर अपने ताशों के ऊपर कर हाथ रख कर एक दुसरे को घूरने लगीं।
आखिरकार नम्रता चाची ने अपना ताश सीधा कर दिया। उनके पास ग़ुलाम था। जमुना दीदी ने अपना ताश खोला और उदास चेहरे
बना कर अपना लिया , "धत तेरे की। "
जमुना दीदी का ताश सिर्फ दहला था।
ऋतू मौसी ने आँखे मटका कर ज़ोरों से मुस्कुरायीं , "न जाने क्यों मुझे शुरू से ही विजय का आभास हो रहा था ?"
नम्रता चाची ने बनावटी चिढ़ते हुए कहा ,"मेरी बेटी जैसी बहना अभी तो मेरा ताश ही सबसे बड़ा है। आज लगता है कि घर के छै
लंड मेरे होंगे। "
ऋतू मौसी ने मज़ाकिया चिड़ाने के लिए अपनी माँ जैसी बड़ी बहन को चूम कर कहा , " मेरी माँ सामान पूजनीय दीदी, आपका मन
क्या कह रहा है? वैसे तो मुझे पता है कि आप मेरा और जमुना दीदी का दिल रखने के लिए जीत कर भी हार मान लेंगीं।
"अच्छा चल औए बात नहीं बना औए अपना ताश दिखा दे , " नम्रता चाची बनावटी गुस्से से बोलीं पर उन्होंने प्यार से ऋतू मौसी
के सुंदर चेहरे को दुलारा।
ऋतू मौसी ने एक झटके से अपना ताश सीधा कर दिया और विजय की घोषणा करते हुए मज़ाकिया नृत्य करने लगीं। उनके पास
इक्का था।
इस हंसी मज़ाक के बाद तीनो का ध्यान मीनू और मेरी तरफ मुड़ गया।
जमुना दीदी ने अपने पिछले सालों के कपडे निकाले थे। मीनू को उनके छोटे ब्लाउज भी ढीला पड़ा। आखिर में मीनू के पास उस समय चूचियाँ ही नहीं थी
और जमुना दीदी के स्तन बहुत कम उम्र में विकसित हो गए थे। पर लहंगा तो ढीला हे होता है सो उसमे मीनू चमक उठी। दोनों वस्त्र बहुत ही महीन कोमल
रेशम से बने थे और उनपर अत्यंत जटिल और बारीक पेचीदा सोने के धागों से सजावट थी। मीनू उन बड़े माप के वस्त्रों में और भी अविकसित औरनन्ही पर
बाला की सुंदर लग रही थी।
मेरा ब्लाऊज़ भी उतना ही सुंदर और आकर्षक था। मेरे भरे भरी चूचियों ने उसे पूरा भर दिया। लहंगा भी उतना ही सुंदर और आकर्षक था।
मीनू और मुझे ब्रा और पैंटीज नहीं पहनने की आज्ञा दी गयी थी।
"अरे बुद्धू कुंवारी कन्याओं। क्या तुम अपने दूल्हों को ब्रा और पैंटीज उतरने में उलझना पसंद करोगी ?"
हमें हलके श्रृंगार से और भी सुंदर बनाया गया। नम्रता चाची ने सोने की नथनी हम दोनों को पहनायी।
"चलो दुल्हनें तो तैयार हो गयीं अब दूल्हों और बारात को तैयार करतें हैं। " नम्रता चाची ने प्यार से मीनू और मुझे चूमा। अचानक उनकी आँखों में आंसू भर
गये, "हाय, कितनी सुंदर लग रहीं हैं मेरी बेटियां ? कहीं इन्हें मेरी ही नज़र न लग जाये ?"
"आज तो ठीक है पर मैं वास्तव में तो इनका कन्यादान कभी भी नहीं कर पाऊॅंगी। इन्हें तो सारा जीवन अपने घर में हीं रखूँगी किसी को भी इन्हें अपने घर
से नहीं ले जाने दूंगी।" नम्रता चाची की आवाज़ में रोनापन आने लगा।
ऋतू मौसी और जमुना दीदी के नेत्र भी गरम आंसुओं से भर गए।
"दीदी, इनके दुल्हे तो हमारे घर के ही हैं। यह दोनों कहीं भी नहीं जा रहीं। " जमुना दीदी ने मज़ाक से बात सम्भाली।
तीनों अपनी आँखें पौंछते हुए कमरे कमरे से रवाना हो गयीं।