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Misc. Erotica सेक्स, उत्तेजना और कामुकता -
मैं भी एक बार से कामोन्माद के पराकाष्ठा पे पहुँच कर कौटुम्बिक व्यभिचार की आनद की घाटी में लुड़क गयी। 
संजू और चाचू ने मीनू और मुझे आधा घंटा और चोदा। तब तक हम दोनों रति-निष्पति के उन्माद के अतिरेक से अभिभूत हो कर शिथिल हो गयीं 
थीं। हम दोनों की सिस्कारियां बहुत मंद हो चलीं थीं। 
कुछ क्षणों में संजू ने गुर्रा कर ज़ोर से अपना लंड मेरी चूत में ढूंस कर मेरे बिखरे रेशमी केशों में अपना हांफता हुआ सुंदर मुखड़ा छुपा लिया। 
उसके लंड ने मेरी योनि के भीतर जननक्षम वीर्य की बौछार कर दी। मैं, अपने गर्भाशय के ऊपर संजू के उबलते वीर्य की हर पिचकारी के संवेदन 
से सुबक गयी। मैं निरंतर रति-निष्पति से थक कर निश्चेत हो गयी। उसके पिता ने उसकी अविकसित चूत और गर्भाशय को अपने उर्वर फलदायक 
गरम वीर्य से नहला दिया। मीनू एक बार फिर से अपने डैडी के लिंग स्खलन के प्रभाव से चीखे बिना न रह सकी। 

मैंने संजू को अपनी बाँहों में भरकर उसके गुलाबी मीठे होंठो को चूस चूम कर सुजा दिया। संजू के उसके लार से लिसी जीभ 
गुलबजामुम से भी मीठी थी। 
सुरेश चाचे भी अपनी बेटी को गोद में भर कर कामवासना के के अनुराग और वात्सल्य से भरे चुम्बनों से उसे पिता के अनुराग से 
आन्दित कर रहे थे। 
तभी नम्रता चाची और दीदी भरभरा कर कमरे में दाखिल हुईं। 
"अरे, ये आप यहाँ व्यस्त हो गए। आप को तो पता है कि आज का क्या कार्यक्रम है?" नम्रता चाची ने प्यार भरा अपने पति को 
उलहाना दिया। 
"सॉरी मम्मी डैडी मेरी चूत मारने में व्यस्त हो गए थे," मीनू ने अपने पिता की तरफदारी में कोइ देर नहीं लगाई। 
"मुझे पता है बिटिया रानी। तेरी चूत देख कर तेरे डैडी का लंड काबू में नहीं रहता। मैं शिकायत कहाँ ही कर रहीं हूँ ?" चाची ने अपनी 
भीषण चुदाई से थकी-मांदी बेटी को प्यार से चूमा। 
"बेगम, मीनू के हवा में उठी गांड और उसकी गुलाबी चूत को देख कर तो भगवान् भी बेकाबू हो जायेंगें," सुरेश चाचा ने भी प्यार से 
अपनी बेटी तो चूमा। 
मीनू शर्मा कर लाल हो गयी। 
"संजू बेटा आखिर में अपनी नेहा दीदी को चोद ही लिया तूने। अब तो खुश है ? अपने माँ के लिए भी कुछ बचा रखा है कि नहीं? " 
नम्रता चाची ने कमसिन संजू को भी उलहाना देने में कोई देर नहीं की। 
"मम्मी क्या कोई बेटा अपने माँ की चूत के लिए दुनिया की दूसरी तरफ तक नहीं दौड़ जायेगा। मैं तो आप के लिए हमेशा तैयार 
रहता हूँ ," संजू ने अपने प्यार का आश्वासन अपने मम्मे को जल्दी से दे दिया। 
"मैं तो मज़ाक कर रहीं हूँ, मेरे लाल ,तू तो हीरा है. तेरे लंड के ऊपर तो मैं स्वर्ग भी न्यौछावर दूंगी," चाची ने संजू के मेरे थूक से 
लिसे गुलाबी होंठो को कस कर चूम लिया, "पर अब आप लोगों को हम लड़कियों से अलग हो जाना है। चलिए बाहर के कुछ काम 
वाम भी तो करने हैं।" 
संजू और चाचू नाटकीय उदास मुंह बना कर बाहर चले गए। 
"नेहा बेटी आज आपके कौमार्यभंग की पार्टी है," चाची का उत्साह उनसे समाये नहीं बन रहा था। मेरे चेहरे पे अज्ञानता के भाव को 
देख कर दोनों चाची और जमुना दीदी खिलखिला कर हंस दी। 
मैं और मीनू जल्दी से स्नानगृह की और चल दिए। 
मैं मीनू के नाजुक छरहरे शरीर से मंत्रमुग्ध और उसकी छोटी जैसे सुंदर चेहरे से अभिभूत हो गयी थी। 
"दीदी मुझे बहुत ज़ोर से मूत आया है," मीनू ने मचल कर कहा। 
ना जाने कहाँ से मेरे शब्द मेरे मुंह से उबाल पड़े , " मीनू क्या तू मुझे अपना मीठा पेशाब पिलाएगी ?" 
मीनू चहक कर बोली, "नेहा दीदी क्या आप अपनी छोटी बहिन को भी अपना सुनहरी प्रसाद दोगी? जब संजू को पता चलेगा कि मैंने 
आप का मूत्र उससे पहले पी लिया है तो वो बहुत जलेगा। " 
मैं मीनू को खींच कर विशाल खुले स्नानघर के फौवारे के नीचे गयी। मैंने उसकी एक टांग अपने कंधे पर रख अपना खुला मुंह उसकी 
छोटी तंग गुलाबी झांटरहित चूत के निकट कर दिया। मीनू का मूत्राशय वाकई भरा हुआ था। उसकी सुनहरी गरम धार झरने की 
आवाज़ करते हुए मेरे मुंह पर वर्षा की बौछार के तरह गिरने लगी। पहली मूत्र-वर्षा में सुरेश चाचा का सफ़ेद गाड़ा वीर्य मिला हुआ था 
जिसे मैं प्यार से सतक गयी। 
मैंने नदीदेपन से मीनू का तीखा पर फिर भी मीठा मूत जितना भी हो सकता था पीने लगी। मीनू के पेशाब की वर्षा बड़ी देर तक चली। 
मैं तो उसके सुनहरे मीठे मूत से बिलकुल नहा गयी। फिर भी मैंने न जाने कितनई बार अपना मुंह उसके पेशाब से पूरा भर कर बेसब्री 
से निगल लिया और फिर से मुंह खोल कर तैयार हो गयी। 
आखिर में मीनू की वस्ति खाली हो गयी। 
मैंने अपनी जीभ से उसके गुलाबी भगोष्ठों के ऊपर सुबह की ओस जैसे चमकती बूंदे चाट ली। 
अब मीनू की बारी थी। 
मैंने अपनी चूत के भगोष्ठों को फैला कर अपने मूत्राशय की संकोचक पेशी तो ढीला कर दिया और मेरे गरम मूत्र की बौछार मीनू के 
सुंदर चेहरे पर गिर पड़ी। 
मीनू ने लपक कर अपना मुंह भर लिया और जल्दी से मेरा सुनहरी द्रव्य सतक कर फिर से अपने मुंह को मेरी मूत्र-वर्षा के नीचे लगा 
दिया। 
मीनू ने भी अनेक बार अपना मुंह भरने में सफल हो गयी। 
"नेहा दीदी, आपका मूत बहुत ही प्यारा और मीठा है। संजू को भी प्लीज़ पिलाना ,"मीनू ने मुझे प्यार से चूमा। 
"मीनू मेरा तेरे पेशाब जितना मीठा नहीं हो सकता। यदि संजू को मेरा मूत अच्छा लगेगा तो मुझे बहुत खुशी होगी। क्या तुम दोद्नो 
भी एक दुसरे का मूत्र-पान करते हो?" मैंने मीनू के मुस्कराते होंठो को चूसा और अपने पेशाब के स्वाद तो चखा। 
मीनू खिलखिला कर हंसी , "बहुत बार दीदी न जाने कितनी बार। " 

मैंने मीनू को छोटी बालिका की तरह नहलाया और खुद भी नहा कर पहले उसे फिर अपने को सुखाने लगी। 


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RE: सेक्स, उत्तेजना और कामुकता - - by usaiha2 - 08-01-2020, 03:42 PM



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