08-01-2020, 03:37 PM
मुझे कुछ देर बाद होश सा आया। गंगा बाबा का विशाल लोहे जैसे सख्त खम्बे की तरह मेरी चूत में जड़ तक समाया हुआ था। मैंने गंगा बाबा के मुस्कुराते मुंह को लगभग मात्र-वात्सल्य सामान प्रेम से चुम्बनों से भर दिया। आखिर उन्होंने सुरेश चाचा, बड़े मामा के बाद मेरे सम्भोग ज्ञान को और भी परवान चड़ा दिया था।
गंगा बाबा धीरे से बोले, "नेहा बेटी, अब हमें आपकी चूत पीछे से घोड़ी बना कर मारनी है।" मैं धीमे से मुस्कुराई और फुसफुसाई, "गंगा बाबा आप जैसे भी चाहें मेरी चूत मार लें।" गंगा बाबा बड़े नाटकीय रूप से हँसे, "सिर्फ चूत, नेहा बेटा?" मेरे शरीर में रोमांच की सिहरन दौड़ पड़ी। गंगा बाबा अपने अमानवीय विकराल लंड से मेरी गांड मारने का सन्देश दे रहे थे। मैं सिर्फ उनकी आँखों में झांक कर मुस्कुरा दी, "गंगा बाबा, मैं तो लाचार आपके नीचे दबी हुई हूँ। मैं आपके जैसे शक्तिशाली पुरुष की किसी भी इच्छा का विरोध करने में बिलकुल असमर्थ हूँ।" मेरी लज्जा भरी स्वीकृति सुन कर गंगा बाबा की आँखों में एक अजीब सी आदिमानव जैसे वहशी पुरुष की हवस की चमकार फ़ैल गयी। गंगा बाबा ने मुझे अपनी इच्छा अनुसार पेट पर लिटा कर मेरे कन्धों को दीवान पर दबा दिया। मैंने अपना चेहरा अपने मुड़े हुए हांथों पर रख कर अपनी गांड हवा में ऊपर उठा दी। मेरे घुटने दीवान पर टिके हुए थे। मैंने देखा कि अब जानकी दीदी सुरेश चाचा के ऊपर सवारी करते हुए उनके मोटे लम्बे लंड से अपनी चूत मरवा रहीं थीं।सुरेश चाचा उनके उछलते मचलते बड़ी बड़ी चूचियों को बेरहमी से मसल रहे थे पर जानकी दीदी सिसक सिसक कर उन्हें और भी प्रोत्साहित कर रहीं थीं। बड़े मामा ने भी नम्रता चाची को घोड़ी बना कर, पीछे से भयानक हिंसक धक्कों से उनकी चूत मार रहे थे। नम्रता चाची के विशाल मुलायम भारी उरोज़ बड़े मामा के हर धक्के से गदराये खरबूज़ों की तरह लटक लटक कर आगे पीछे झूल रहे थे। बड़े मामा ने अपने फावड़े जैसे हाथों से नम्रता चाची के डोलते स्तनों को दबोच लिया और उन्हें कस कर मसलने लगे. बीच बीच में बड़े मामा नम्रता चाची के तने हुए मोटे लम्बे चूचुकों को भी बेदर्दी से खींच कर मसल देते थे। नम्रता चाची भी सिसकारी मार कर बड़े मामा को अपनी विशाल चूचियों का मर्दन और भी निर्ममता से करने के लिए उत्साहित कर रहीं थीं। बड़े मामा का हर धक्का नम्रता चाची को सर से पैर तक हिला रहा था। मेरा ध्यान अपनी चूत पर गंगा बाबा के लंड के स्पर्श से फिर से अपनी चुदाई पर केन्द्रित हो गया। गंगा बाबा ने अपने दानवीय सुपाड़े को मेरी रतिरस से भरी चूत में फंसा कर मेरे दोनों नितिम्बों को अपने मर्दाने शक्तिशाली हांथों से जकड़ कर मुझे अपने लंड के आक्रमण के लिए बिलकुल स्थिर कर लिया। मैं अब हिल भी नहीं सकती थी। मैं गंगा बाबा के भीमकाय लंड के निर्दयी धक्के के लिए अपनी तरफ से बिलकुल तैयार थी पर फिर भी जैसे ही उन्होंने एक गहरी साँस ले कर एक क्रूर धक्के में अपना विकराल मूसल मेरी फड़कती चूत में जड़ तक ठूंसा तो मेरे हलक से एक चीख उबल पड़ी। गंगा बाबा ने मेरी चूत का मर्दन पहले की तरह बहुत तेज़ और बहुत ही भारी धक्कों से करना प्रारंभ कर दिया। उनके लंड का हर धक्का मानो मेरे अस्थिपंजर हिलाने के लिए ढृढ़ संकल्पी था। पर मेरी चूत अब गंगा बाबा के हिंसक धक्कों का हार्दिक स्वागत कर रही थी। एक बार जब गंगा बाबा मेरी चुदाई की लय से संतुष्ट हो गए तो उन्होंने आगे झुक कर मेरे कमसिन स्तनों को अपने बड़े हात्नों में भर कर उन्हें मसलने लगे। मेरी सिस्कारियां जब शुरू हुईं तो उन्होंने रुकने का नाम ही नहीं लिया। मैं सिसक सिसक कर गंगा बाबा को अपने रति विसर्जन का हाल सुना रही थी, "आआअह ..... गंगा आआआआ .....बाआआआआ .......... बाआआआआआआ मैं फिर से झड़ रही हूँ। बाबा आआआअ ....अन .... अन .... अन ....अन अर्ररर आरर नन्न ....... मेरी चूत .......आआअह। मैं तो मर जाऊंगी बाबा आआआअ।"
मेरे वासना से लिप्त अनर्गल बकवास की गंगा बाबा ने पूर्ण रूप से उपेक्षा कर मेरी घनघोर चुदाई की तेज़ी और प्रचंडता बिलकुल भी कम नहीं होने दी। एक के बाद एक मेरे रति विसर्जन मेरे अल्पव्यस्क शरीर को तड़पा रहे थे। मेरा शरीर आनंद भरे कामोन्माद के दर्द से करहा उठा। "गंगा बाबा मेरी चूत में अब झड़ जाइये। आपने मुझे बिलकुल ही थका दिया।" मैंने ने अपने नए ताज़े रति विसर्जन के अतिरेक से कांपते शरीर को बड़ी मुश्किल से घोड़ी की अवस्था में रख पा रही थी। पर गंगा बाबा ने जैसे मेरे अनुरोध को बिलकुल उन्सुना कर दिया और वो और भी ज़ोर से मेरी चूत मारने लगे। घंटे से भी ऊपर की भीषण चुदाई से मेरा अविकसित शरीर थक कर चूर हो चला था।
आखिर जब गंगा बाबा ने अपना पूरा लंड मेरी चूत से बाहर निकाल कर असीम क्रूरता से मेरी चूत में धकेला तो मेरे शिथिल होता शरीर की मांसपेशियों ने गंगा बाबा के भयंकर चूत-मर्दन धक्के के बल के सामने समर्पण कर दिया। मैं दीवान पर पेट के बल लुढ़क पड़ी। गंगा बाबा का लंड मेरे आगे गिरने से मेरी चूत से निकल पड़ा। गंगा बाबा ने किसी अदि मानव की गुर्राहट जैसे आवाज़ निकाल कर अधीरता से मेरे कांपते नितिम्बों और झांघों को फैला कर मेरे ऊपर अपना पूरा वज़न डाल कर लेट गए। उनका विकराल अस्तुन्ष्ट लंड ने अपने आप से मेरी जलती चूत के द्वार को ढूंढ लिया। गंगा बाबा ने दो भीषण धक्कों में अपना पूरा लंड मेरी चूत में आखिरी इंच तक ठूंस दिया। उस अवस्था में मेरी अल्पव्यस्क तंग योनि और भी कस गयी थी। मुझे लगा जैसे गंगा बाबा का लंड और भी मोटा हो गया था। मेरे थके शरीर ने सिर्फ हल्की सी दर्द भरी सिसकारी मार कर अपनी झांघें और भी फैला दीं। गंगा बाबा ने बेदर्दी से मेरी चूत मारते हुए मेरे गालों को चुम्बनों से गीला कर दिया। "नेहा बेटा, मैं अब आपकी चूत में झड़ने वाला हूँ।' गंगा बाबा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना लंड मेरी छूट में जड़ तक ठूंस दिया। मैं सिर्फ अनर्गल बुबुदाहत के अलावा कुछ और बोल क्या सोच भी नहीं पा रही थी। मेरा सारा आनंद अब गंगा बाबा के गरम जनक्षम वीर्य की फुहार के लिए उत्तेजित और उत्सुक था। गंगा बाबा के चुदाई के लय अब अनियमित हो चली। उनकी बालों भरी महाकाय पेड़ के तने जैसी झांघें मेरे गुदाज़ नितिम्बों के ऊपर थप्पड़ जैसे प्रहार करते हुए उनके लंड को मेरी चूत में अपनी संतुष्टी की तलाश में बेदर्दी से अंदर बाहर कर रहीं थीं। अचानक गंगा बाबा ने अपना मुंह मेरे बिखरे सुगन्धित घुंघराल बालों में दबा कर मुझे ज़ोर से अपनी बाँहों में भींच लिया। उनके लंड का हर स्पंदन मेरी चूत में सिहरन भर देता था। उनके पेशाब के छेड़ से फूटी पहली वीर्य की मोटी भारी धार ने मेरे योनि की दीवारों को नहला दिया। मैं गंगा बाबा के गरम वीर्य की फुहार के प्रभाव से सिसक उठी। गंगा बाबा के लंड ने एक के बाद एक अपने गरम गाढ़े वीर्य की मोटी धार से मेरी चूत को लबालब भर दिया। मैं गंगा बाबा के गरम वीर्य की फुहारों फुहारों से अपनी चूत के स्नान से विचलित एक बार फिर से झड़ गयी। मेरे सुबकते मुंह से एक ऊंची सिसकारी उबल उठी और मेरा शिथिल शरीर बेहोशी के आलम में दीवान पर ढलक गया। मुझे याद नहीं की गंगा बाबा के लंड ने कितनी देर तक उनके गरम वीर्य की बारिश से मेरी चूत को सराबोर किया। मैंने अपनी आँखे बंद कर अपना शरीर बिलकुल ढीला छोड़ दिया।
कुछ देर बाद मुझे होश सा आया और मैंने संसर्ग में लिप्त सुरेश चाचू, बड़े मामा, नम्रता चाची और जानकी दीदी की तरफ ध्यान दिया। गंगा बाबा का वृहत लंड थोड़ा सा नर्म हो चला था। पर उसका अमानवीय आकार मेरी कमसिन चूत को अभी भी बेदर्दी से फाड़ सकता था। बड़े मामा ने नम्रता चाची को चोद कर बिलकुल निश्चेत कर दिया था। नम्रता चाची गहरी गहरी साँसे ले कर आँखे बंद किये हुए अपनी शरीर की अशक्त हालत को पुनः स्थिर करने का प्रयास कर रहीं थीं।
सुरेश चाचा के जादू भरे हाथ जानकी दीदी की चूचियों और चूचुक मसल सहला कर तरसा रहे थे। उनका विशाल लंड जानकी दीदी की चूत को बिजली की रफ़्तार से मार रहा था। उनकी सिस्कारियां कभी फुसफुसाहट और कभी हल्की चीख के रूप में निरंतर कमरे में गूँज रहीं थीं। बड़े मामा ने अपना विकराल नम्रता चाची के रति रस से सने हुए लंड को उनकी थकी योनी से बाहर निकाल कर सुरेश चाचा के लंड के ऊपर अटकी जानकी दीदी की भरी गांड की तरफ इन्द्रित कर दिया। "रवि, जानकी की गांड खुली हुई है, इंतज़ार किस बात का है," सुरेश चाचा ने बेदर्दी से एक बार फिर नीचे से जानकी दीदी की चूत में अपना लंड निर्मम वासनादायक उत्तेजक धक्के से जड़ तक ठूंस दिया। जानकी दीदी सिसक कर बोलीं, "हाय, सुरेश भैया, एक तो बेदार्दी से पहले ही अपनी बहिन की चूत मार रहे हैं और ऊपर से दुसरे भाई को उस बिचारी की गांड फाड़ने के लिए निमंत्रित कर रहे हैं।" सुरेश चाचा ने जानकी दीदी के दोनों चूचुक को वहशियों की तरह खींच कर कस के उमेठ दिया। जानकी दीदी की चीख निकल गयी।
बड़े मामा ने भोलेपन से दर्द से मचलती जानकी दीदी से पूछा ," क्या हमें अपनी छोटी बहिन की गांड नहीं मिलेगी?" जानकी दीदी सिसकीं और फुसफुसा कर बोलीं, "रवि भैया, क्या आपकी बहिन ने आपको छोड़ने से कभी भी रोका है? मेरी गांड आप जैसे भी मन करे मार लीजिये।" बड़े मामा नेकी और बूझ-बूझ के अंदाज़ में जल्दी से जानकी दीदी के भारी फूले हुए नितिम्बो को सुरेश चाचा के बड़े बलवान हाथों में थमा कर उनकी नाज़ुक तंग गांड के हलके गुलाबी-भूरे छिद्र के ऊपर अपने लंड के विशाल सेब जैसे मोटे सुपाड़े टिका दिया। सुरेश चाचा ने जानकी दीदी की चूत को अपने लंड की जड़ तक फाँस कर उनकी गांड को अपने मित्र और भाई के लिए तैयार कर दिया। बड़े मामा ने ने बलपूर्वक ज़ोर से जानकी दीदी के मलाशय के द्वार को अपने विकराल लंड के सुपाड़े से धीरे-धीरे चौड़ा कर खोल दिया। अचानक जानकी दीदी के नन्हे तंग गुदा-छिद्र ने हथयार डाल दिए। जानकी दीदी के गले से चीत्कार उबल उठी। बड़े मामा का सेब जैसा मोटा सुपाड़ा जानकी दीदी की गर्म मुलायम अँधेरी मलाशय की गुफा में प्रविष्ट हो गया। बड़े मामा ने जानकी दीदी को कुछ क्षण दिए उनकी गांड में उपजे दर्द को कम होने के लिए। सुरेश चाचा ने अपनी जीभ दर्द से मचलती जानकी कान की सुंदर नाक में डाल उसे अपने थूक से भिगो दिया। जानकी दीदी उत्तेजना से कसमसा उठी,
गंगा बाबा धीरे से बोले, "नेहा बेटी, अब हमें आपकी चूत पीछे से घोड़ी बना कर मारनी है।" मैं धीमे से मुस्कुराई और फुसफुसाई, "गंगा बाबा आप जैसे भी चाहें मेरी चूत मार लें।" गंगा बाबा बड़े नाटकीय रूप से हँसे, "सिर्फ चूत, नेहा बेटा?" मेरे शरीर में रोमांच की सिहरन दौड़ पड़ी। गंगा बाबा अपने अमानवीय विकराल लंड से मेरी गांड मारने का सन्देश दे रहे थे। मैं सिर्फ उनकी आँखों में झांक कर मुस्कुरा दी, "गंगा बाबा, मैं तो लाचार आपके नीचे दबी हुई हूँ। मैं आपके जैसे शक्तिशाली पुरुष की किसी भी इच्छा का विरोध करने में बिलकुल असमर्थ हूँ।" मेरी लज्जा भरी स्वीकृति सुन कर गंगा बाबा की आँखों में एक अजीब सी आदिमानव जैसे वहशी पुरुष की हवस की चमकार फ़ैल गयी। गंगा बाबा ने मुझे अपनी इच्छा अनुसार पेट पर लिटा कर मेरे कन्धों को दीवान पर दबा दिया। मैंने अपना चेहरा अपने मुड़े हुए हांथों पर रख कर अपनी गांड हवा में ऊपर उठा दी। मेरे घुटने दीवान पर टिके हुए थे। मैंने देखा कि अब जानकी दीदी सुरेश चाचा के ऊपर सवारी करते हुए उनके मोटे लम्बे लंड से अपनी चूत मरवा रहीं थीं।सुरेश चाचा उनके उछलते मचलते बड़ी बड़ी चूचियों को बेरहमी से मसल रहे थे पर जानकी दीदी सिसक सिसक कर उन्हें और भी प्रोत्साहित कर रहीं थीं। बड़े मामा ने भी नम्रता चाची को घोड़ी बना कर, पीछे से भयानक हिंसक धक्कों से उनकी चूत मार रहे थे। नम्रता चाची के विशाल मुलायम भारी उरोज़ बड़े मामा के हर धक्के से गदराये खरबूज़ों की तरह लटक लटक कर आगे पीछे झूल रहे थे। बड़े मामा ने अपने फावड़े जैसे हाथों से नम्रता चाची के डोलते स्तनों को दबोच लिया और उन्हें कस कर मसलने लगे. बीच बीच में बड़े मामा नम्रता चाची के तने हुए मोटे लम्बे चूचुकों को भी बेदर्दी से खींच कर मसल देते थे। नम्रता चाची भी सिसकारी मार कर बड़े मामा को अपनी विशाल चूचियों का मर्दन और भी निर्ममता से करने के लिए उत्साहित कर रहीं थीं। बड़े मामा का हर धक्का नम्रता चाची को सर से पैर तक हिला रहा था। मेरा ध्यान अपनी चूत पर गंगा बाबा के लंड के स्पर्श से फिर से अपनी चुदाई पर केन्द्रित हो गया। गंगा बाबा ने अपने दानवीय सुपाड़े को मेरी रतिरस से भरी चूत में फंसा कर मेरे दोनों नितिम्बों को अपने मर्दाने शक्तिशाली हांथों से जकड़ कर मुझे अपने लंड के आक्रमण के लिए बिलकुल स्थिर कर लिया। मैं अब हिल भी नहीं सकती थी। मैं गंगा बाबा के भीमकाय लंड के निर्दयी धक्के के लिए अपनी तरफ से बिलकुल तैयार थी पर फिर भी जैसे ही उन्होंने एक गहरी साँस ले कर एक क्रूर धक्के में अपना विकराल मूसल मेरी फड़कती चूत में जड़ तक ठूंसा तो मेरे हलक से एक चीख उबल पड़ी। गंगा बाबा ने मेरी चूत का मर्दन पहले की तरह बहुत तेज़ और बहुत ही भारी धक्कों से करना प्रारंभ कर दिया। उनके लंड का हर धक्का मानो मेरे अस्थिपंजर हिलाने के लिए ढृढ़ संकल्पी था। पर मेरी चूत अब गंगा बाबा के हिंसक धक्कों का हार्दिक स्वागत कर रही थी। एक बार जब गंगा बाबा मेरी चुदाई की लय से संतुष्ट हो गए तो उन्होंने आगे झुक कर मेरे कमसिन स्तनों को अपने बड़े हात्नों में भर कर उन्हें मसलने लगे। मेरी सिस्कारियां जब शुरू हुईं तो उन्होंने रुकने का नाम ही नहीं लिया। मैं सिसक सिसक कर गंगा बाबा को अपने रति विसर्जन का हाल सुना रही थी, "आआअह ..... गंगा आआआआ .....बाआआआआ .......... बाआआआआआआ मैं फिर से झड़ रही हूँ। बाबा आआआअ ....अन .... अन .... अन ....अन अर्ररर आरर नन्न ....... मेरी चूत .......आआअह। मैं तो मर जाऊंगी बाबा आआआअ।"
मेरे वासना से लिप्त अनर्गल बकवास की गंगा बाबा ने पूर्ण रूप से उपेक्षा कर मेरी घनघोर चुदाई की तेज़ी और प्रचंडता बिलकुल भी कम नहीं होने दी। एक के बाद एक मेरे रति विसर्जन मेरे अल्पव्यस्क शरीर को तड़पा रहे थे। मेरा शरीर आनंद भरे कामोन्माद के दर्द से करहा उठा। "गंगा बाबा मेरी चूत में अब झड़ जाइये। आपने मुझे बिलकुल ही थका दिया।" मैंने ने अपने नए ताज़े रति विसर्जन के अतिरेक से कांपते शरीर को बड़ी मुश्किल से घोड़ी की अवस्था में रख पा रही थी। पर गंगा बाबा ने जैसे मेरे अनुरोध को बिलकुल उन्सुना कर दिया और वो और भी ज़ोर से मेरी चूत मारने लगे। घंटे से भी ऊपर की भीषण चुदाई से मेरा अविकसित शरीर थक कर चूर हो चला था।
आखिर जब गंगा बाबा ने अपना पूरा लंड मेरी चूत से बाहर निकाल कर असीम क्रूरता से मेरी चूत में धकेला तो मेरे शिथिल होता शरीर की मांसपेशियों ने गंगा बाबा के भयंकर चूत-मर्दन धक्के के बल के सामने समर्पण कर दिया। मैं दीवान पर पेट के बल लुढ़क पड़ी। गंगा बाबा का लंड मेरे आगे गिरने से मेरी चूत से निकल पड़ा। गंगा बाबा ने किसी अदि मानव की गुर्राहट जैसे आवाज़ निकाल कर अधीरता से मेरे कांपते नितिम्बों और झांघों को फैला कर मेरे ऊपर अपना पूरा वज़न डाल कर लेट गए। उनका विकराल अस्तुन्ष्ट लंड ने अपने आप से मेरी जलती चूत के द्वार को ढूंढ लिया। गंगा बाबा ने दो भीषण धक्कों में अपना पूरा लंड मेरी चूत में आखिरी इंच तक ठूंस दिया। उस अवस्था में मेरी अल्पव्यस्क तंग योनि और भी कस गयी थी। मुझे लगा जैसे गंगा बाबा का लंड और भी मोटा हो गया था। मेरे थके शरीर ने सिर्फ हल्की सी दर्द भरी सिसकारी मार कर अपनी झांघें और भी फैला दीं। गंगा बाबा ने बेदर्दी से मेरी चूत मारते हुए मेरे गालों को चुम्बनों से गीला कर दिया। "नेहा बेटा, मैं अब आपकी चूत में झड़ने वाला हूँ।' गंगा बाबा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना लंड मेरी छूट में जड़ तक ठूंस दिया। मैं सिर्फ अनर्गल बुबुदाहत के अलावा कुछ और बोल क्या सोच भी नहीं पा रही थी। मेरा सारा आनंद अब गंगा बाबा के गरम जनक्षम वीर्य की फुहार के लिए उत्तेजित और उत्सुक था। गंगा बाबा के चुदाई के लय अब अनियमित हो चली। उनकी बालों भरी महाकाय पेड़ के तने जैसी झांघें मेरे गुदाज़ नितिम्बों के ऊपर थप्पड़ जैसे प्रहार करते हुए उनके लंड को मेरी चूत में अपनी संतुष्टी की तलाश में बेदर्दी से अंदर बाहर कर रहीं थीं। अचानक गंगा बाबा ने अपना मुंह मेरे बिखरे सुगन्धित घुंघराल बालों में दबा कर मुझे ज़ोर से अपनी बाँहों में भींच लिया। उनके लंड का हर स्पंदन मेरी चूत में सिहरन भर देता था। उनके पेशाब के छेड़ से फूटी पहली वीर्य की मोटी भारी धार ने मेरे योनि की दीवारों को नहला दिया। मैं गंगा बाबा के गरम वीर्य की फुहार के प्रभाव से सिसक उठी। गंगा बाबा के लंड ने एक के बाद एक अपने गरम गाढ़े वीर्य की मोटी धार से मेरी चूत को लबालब भर दिया। मैं गंगा बाबा के गरम वीर्य की फुहारों फुहारों से अपनी चूत के स्नान से विचलित एक बार फिर से झड़ गयी। मेरे सुबकते मुंह से एक ऊंची सिसकारी उबल उठी और मेरा शिथिल शरीर बेहोशी के आलम में दीवान पर ढलक गया। मुझे याद नहीं की गंगा बाबा के लंड ने कितनी देर तक उनके गरम वीर्य की बारिश से मेरी चूत को सराबोर किया। मैंने अपनी आँखे बंद कर अपना शरीर बिलकुल ढीला छोड़ दिया।
कुछ देर बाद मुझे होश सा आया और मैंने संसर्ग में लिप्त सुरेश चाचू, बड़े मामा, नम्रता चाची और जानकी दीदी की तरफ ध्यान दिया। गंगा बाबा का वृहत लंड थोड़ा सा नर्म हो चला था। पर उसका अमानवीय आकार मेरी कमसिन चूत को अभी भी बेदर्दी से फाड़ सकता था। बड़े मामा ने नम्रता चाची को चोद कर बिलकुल निश्चेत कर दिया था। नम्रता चाची गहरी गहरी साँसे ले कर आँखे बंद किये हुए अपनी शरीर की अशक्त हालत को पुनः स्थिर करने का प्रयास कर रहीं थीं।
सुरेश चाचा के जादू भरे हाथ जानकी दीदी की चूचियों और चूचुक मसल सहला कर तरसा रहे थे। उनका विशाल लंड जानकी दीदी की चूत को बिजली की रफ़्तार से मार रहा था। उनकी सिस्कारियां कभी फुसफुसाहट और कभी हल्की चीख के रूप में निरंतर कमरे में गूँज रहीं थीं। बड़े मामा ने अपना विकराल नम्रता चाची के रति रस से सने हुए लंड को उनकी थकी योनी से बाहर निकाल कर सुरेश चाचा के लंड के ऊपर अटकी जानकी दीदी की भरी गांड की तरफ इन्द्रित कर दिया। "रवि, जानकी की गांड खुली हुई है, इंतज़ार किस बात का है," सुरेश चाचा ने बेदर्दी से एक बार फिर नीचे से जानकी दीदी की चूत में अपना लंड निर्मम वासनादायक उत्तेजक धक्के से जड़ तक ठूंस दिया। जानकी दीदी सिसक कर बोलीं, "हाय, सुरेश भैया, एक तो बेदार्दी से पहले ही अपनी बहिन की चूत मार रहे हैं और ऊपर से दुसरे भाई को उस बिचारी की गांड फाड़ने के लिए निमंत्रित कर रहे हैं।" सुरेश चाचा ने जानकी दीदी के दोनों चूचुक को वहशियों की तरह खींच कर कस के उमेठ दिया। जानकी दीदी की चीख निकल गयी।
बड़े मामा ने भोलेपन से दर्द से मचलती जानकी दीदी से पूछा ," क्या हमें अपनी छोटी बहिन की गांड नहीं मिलेगी?" जानकी दीदी सिसकीं और फुसफुसा कर बोलीं, "रवि भैया, क्या आपकी बहिन ने आपको छोड़ने से कभी भी रोका है? मेरी गांड आप जैसे भी मन करे मार लीजिये।" बड़े मामा नेकी और बूझ-बूझ के अंदाज़ में जल्दी से जानकी दीदी के भारी फूले हुए नितिम्बो को सुरेश चाचा के बड़े बलवान हाथों में थमा कर उनकी नाज़ुक तंग गांड के हलके गुलाबी-भूरे छिद्र के ऊपर अपने लंड के विशाल सेब जैसे मोटे सुपाड़े टिका दिया। सुरेश चाचा ने जानकी दीदी की चूत को अपने लंड की जड़ तक फाँस कर उनकी गांड को अपने मित्र और भाई के लिए तैयार कर दिया। बड़े मामा ने ने बलपूर्वक ज़ोर से जानकी दीदी के मलाशय के द्वार को अपने विकराल लंड के सुपाड़े से धीरे-धीरे चौड़ा कर खोल दिया। अचानक जानकी दीदी के नन्हे तंग गुदा-छिद्र ने हथयार डाल दिए। जानकी दीदी के गले से चीत्कार उबल उठी। बड़े मामा का सेब जैसा मोटा सुपाड़ा जानकी दीदी की गर्म मुलायम अँधेरी मलाशय की गुफा में प्रविष्ट हो गया। बड़े मामा ने जानकी दीदी को कुछ क्षण दिए उनकी गांड में उपजे दर्द को कम होने के लिए। सुरेश चाचा ने अपनी जीभ दर्द से मचलती जानकी कान की सुंदर नाक में डाल उसे अपने थूक से भिगो दिया। जानकी दीदी उत्तेजना से कसमसा उठी,