08-01-2020, 03:30 PM
सुरेश चाचा ने मेरी गांड का मर्दन अब निसंकोच भीषण पर अत्यंत कामानंद उपजाते हुए धक्कों से करते हुए मुझे एक बार फिर से झाड़ दिया। मेरी चूत रति रस से लबालब भरी हुई थी और मेरा रस मेरी गुदाज़ झांगों पर फिसलने लगा। मैं अब पूरे भ्रमांड से कट चुकी थी। मेरा अस्तित्व अब तो सुरेश चाचा के विकराल लंड और मेरी तड़पती गांड पर स्थिर हो गया था। सुरेश चाचा के लंड की भयंकर ठोकरों ने, और उनकी मेरे भग-शिश्न को सहलाती अनुभवी उँगलियों ने मुझे कामोन्माद के कगार पर फिर से पहुंचा दिया। जब मैं झड़ रही थी और मेरी सिस्कारियां मेरे कम्पित शरीर की स्तिथी अंकित कर रही थीं तब ही सुरेश चाचू ने गुर्रा कर तीन बार मेरी प्रताड़ित गांड में निर्ममता से ठूँस कर अपने गरम जननक्षम वीर्य से मेरी सुलगती गांड को सींचने लगे। मेरे लम्बे निर्दयी गांड मर्दन और अनिगिनत रति-निष्पति से थका मेरा अल्पव्यस्क शरीर शिथिल हो कर बिस्तर पर गिर जाता यदि चाचू ने अपनी मजबूत भुजाओं से मुझे जकड़ ना रखा होता। सुरेच चाचा मुझे पकड़े हुए बिस्तर पर लेट गए। उनका लंड अभी भी मेरी गांड में समाया हुआ था। ************************************** जब मुझे 'होश' आया तो मैंने अपने आप को चाचू के विशाल शरीर की गुफा में बेशकीमत मोती के सामान सुरक्षित पाया। मैंने मुस्कुरा कर अपने सर को चाचू के सीने तीन चार बार रगड़ा। "नेहा बेटा, आप तो मुझे प्रस्सन लग रहें हैं," सुरेश चाचा ने मेरे दोनों कुचले हुए स्तनों को प्यार से सहलाया। "ह्म्म्ममम्म! चाचू, आपने हमें आज रात कितना आनंद दिया है," मैंने सुरेश चाचा के साथ अविश्वसनीय सम्भोग के आनंद के लिए उन्हें धन्यवाद देने का प्रयास किया। "नेहा बिटिया अभी रात तो और भी बाकी है।" चाचू ने मेरे दोनों चूचुक को होले से मसला। मैं खिलखिला कर हंस दी, "तब तो मेरी गांड की खैर नहीं है।" सुरेश चाचा ने भी अपनी भारी आवाज़ में कहकहा लगया कर मुझे अपने विशाल शरीर से जकड़ लिया। मैं अपनी गांड को चाचा के लंड के ऊपर घुमाने लगी। सुरेश चाचा के मजबूत हाथ मेरे उरोजों के ऊपर कस गए। आधे घंटे की वासना भरी चुहलबाजी से चाचू का लंड फिर से हिनहिना कर ताना उठा। मेरी गांड की संवेदनशील कोमल दीवारों ने उनके फड़कते लंड की विकराल विशालता को कस कर जकड़ा कर उसे निचोड़ने के प्रयास से उसका स्वागत सा किया। सुरेश चाचा ने मेरी गांड में अपना लंड धीरे धीरे अंदर बाहर हिलाना शुरू कर दिया। उनके हाथ मेरी दोनों चूचियों को मसल कर उन्हें सम्वेंदंशील उत्तेजना से भरने लगे। मेरी कोमल पीठ की त्वचा उनकी बालों भरी सीने और पेट से रगड़ खा कर मुझे एक विचित्र से आनंद से भर रही थी। सुरेश चाचू ने ने मेरी गांड पीछे से मारना शुरू कर दिया। मैं भी अपनी गांड मटका कर उनके लंड को और भी अधिक आनंद देने का प्रयास करने लगी। इस बार चाचू ने मेरी गांड धीरे हलके धक्कों से मारी। मेरी गांड का मर्दन में इस बार कोई भी बेताबी, निर्ममता नहीं थी। इस के बावजूद भी मेरी सिस्कारिया अविरत मेरे अध्-खुले मूंह से उबलने लगीं। चाचू के वृहत स्थूल लंड ने मुझे चरम-आनंद के द्वार पर पहुंचा दिया। मैं एन्थ कर झड़ उठी। सुरेच चाचा ने मेरे बालों पर चुम्बन दे कर मेरे स्खलन को प्यार से स्वीकार सा किया। उनका विशाल लंड लम्बे पर सुस्त रफ़्तार के प्रहरों से मेरी गांड में अपनी लम्बाई और मोटाई को नापते हुए मेरी गांड की जलती हुई कोमल रेशमी सुरंग की गहराइयों को अपने से अवगत करा रहा था। मैं शीघ्र ही दो बार और झड़ गयी। सुरेश चाचे ने अपना खुला मूंह मेरे बिखरे घुंघराले बालों में छुपा कर अब थोड़ी तेज़ी से मेरी गांड मारने लगे। मेरे अवयस्क लड़की के शरीर में छुपी स्त्री ने उनके सन्निकट स्खलन को आसाने से महसूस कर लिया। "चाचू, मेरी गांड में अपना लंड खोल दीजिये।मारी गांड को अपने वीर्य से भर दीजिये," मैंने सुबक कर कहा। मेरे कहने की देर थी कि सुरेश का लंड ज्वालामुखी के तरह फुट उठा। उनके थरकते हुए लंड की हर थड़कन ने प्रचुर मात्रा में अपने फलदायक मर्दाने शहद से मेरी मलाशय की रेशमी दीवारों को नहला दिया। "आं ...आं ...आं ...आं ऊऊंं ... ऊम्म ...चा ...आ .....आ ....आ .... चू ...ऊ ....ऊ ....ऊ ," मैं सिसकारी मार कर बुदबुदाई, "मैं फिर से झड़ गयी चाचू। " मेरी आँखें आनंद के अतिरेक से बंद होने लगी और मैं कामोन्माद के थकन की निंद्रा के आगोश में समा कर सो गयी। उस रात सुरेश चाचा और मैं एक बार और रात में जग गए। सुरेश चच का लंड मेरी गांड में तनतना कर तय्यार था। मैंने भी कुनमुना कर अपनी गांड का मर्दन के स्वीकृति दे दी। उस बार चाचू ने लगभग घंटे भर मेरी गांड को अहिस्ता और प्यार से मार कर मुझे अनेकों बार झाड़ दिया। जब तक उनका लंड मेरी गांड में स्खलित हो पाता तब तक मेरे अल्पव्यस्क शरीर ने चाचू के काम-क्रिया के अनुभव के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। मेरी शिथिल काम-आनन्द से अभिभूत कमसिन शरीर बेहोशी से भी गहरी नींद की गोद में छुप गया।
सुरेश चाचा और मैं सुबह देर तक सोते रहे। जब नम्रता चाची और बड़े मामा ने हमें उठाया तब भी मैं सुरेश चाचा की बाँहों में थी। उनका लंड अभी भी मेरी गांड में घुसा हुआ था। सुबह सवेरे भी उनका लंड तन कर मेरी गांड को प्रताड़ित करने के लिए उत्सुक था। मैं अभी भी निद्रालु थी पर नम्रता चाची की चहकती मदुर अव्वाज़ ने मेरी नींद खोलने में मदद की। "नेहा बेटी, मैं तो आपसे बहुत ही प्रभावित हूँ। आपने अपने चाचू का लंड अभी भी गांड में छुपा रखा है," बड़े मामा और नम्रता चाची बिलकुल नग्न थे। नम्रता चाची का भरा गदराया हुआ शरीर और अत्यंत आकर्षिक चेहरा रात की प्रचंड चुदाई से निखरा हुआ था। उनके विशाल विपुल स्तन बड़े भारी और उनके छाती के ऊपर ढलक रहे थे। गोल थोड़े उभरे हुए पेट के के साथ उनकी भरी कमर के ऊपर दो तहों के बीच में एक गहराव था। उसके नीचे उनके दो विशाल, गदराये, विपुल नितिन्म्ब उनकी भारी गुदाज़ नारी सुलभ जाँघों और गोल भरी-भरी टखनों को और भे सुंदर बना रहे थे। उनके छोटे कोमल पैर एक सम्पूर्ण नारी का चित्रण करते प्रतीत हो रहे थे। नम्रता चाची के पेट, नितिम्बों और जाँघों पर दो गर्भों के बाद के खिंचाव के निशाँ उन्हें और भी नारीत्व का आकर्षण प्रदान कर रहे थे। नम्रता चाची के रोम रोम से जनक्षम ईश्वरीय सुन्दरता के द्योतक था। जब तक मैं नम्रता चाची की देवितुल्य सुन्दरता के मोहक समोहन से बहार निकल पाई तब तक उन्होंने मुझे अपने पति से छीन कर अपने बाँहों में भर लिया था। उनके गुलाबी होंठ मेरे होंठो से चिपक गए। उनके मूंह सोने के बाद के सवेरे का मीठा स्वाद मेरे उसे स्वाद से मिल गया। मैंने भी अपनी बाहें चाची के इर्द-गिर्द दाल दीं। चाची ने मेरे निचले होंठ को चूसते हुए कहा, "नेहा बेटी, मुझे आपकी चूत और गांड में अपने पति के वीर्य चाहिए।" मेरे मूंह से मेरे बिना समझे शब्द निकल गए, "चाची यदि आप भी मुझे अपनी चूत और गांड में भरे बड़े मामा के मर्दाने शहद देंगीं।" नम्रता चाची ने मेरी नाक की नोक को प्यार से काट कर कहा, "मेरी बेटी तो दो तीन दिन ही में इतनी चुदक्कड़ बन गयी है।"
सुरेश चाचा और मैं सुबह देर तक सोते रहे। जब नम्रता चाची और बड़े मामा ने हमें उठाया तब भी मैं सुरेश चाचा की बाँहों में थी। उनका लंड अभी भी मेरी गांड में घुसा हुआ था। सुबह सवेरे भी उनका लंड तन कर मेरी गांड को प्रताड़ित करने के लिए उत्सुक था। मैं अभी भी निद्रालु थी पर नम्रता चाची की चहकती मदुर अव्वाज़ ने मेरी नींद खोलने में मदद की। "नेहा बेटी, मैं तो आपसे बहुत ही प्रभावित हूँ। आपने अपने चाचू का लंड अभी भी गांड में छुपा रखा है," बड़े मामा और नम्रता चाची बिलकुल नग्न थे। नम्रता चाची का भरा गदराया हुआ शरीर और अत्यंत आकर्षिक चेहरा रात की प्रचंड चुदाई से निखरा हुआ था। उनके विशाल विपुल स्तन बड़े भारी और उनके छाती के ऊपर ढलक रहे थे। गोल थोड़े उभरे हुए पेट के के साथ उनकी भरी कमर के ऊपर दो तहों के बीच में एक गहराव था। उसके नीचे उनके दो विशाल, गदराये, विपुल नितिन्म्ब उनकी भारी गुदाज़ नारी सुलभ जाँघों और गोल भरी-भरी टखनों को और भे सुंदर बना रहे थे। उनके छोटे कोमल पैर एक सम्पूर्ण नारी का चित्रण करते प्रतीत हो रहे थे। नम्रता चाची के पेट, नितिम्बों और जाँघों पर दो गर्भों के बाद के खिंचाव के निशाँ उन्हें और भी नारीत्व का आकर्षण प्रदान कर रहे थे। नम्रता चाची के रोम रोम से जनक्षम ईश्वरीय सुन्दरता के द्योतक था। जब तक मैं नम्रता चाची की देवितुल्य सुन्दरता के मोहक समोहन से बहार निकल पाई तब तक उन्होंने मुझे अपने पति से छीन कर अपने बाँहों में भर लिया था। उनके गुलाबी होंठ मेरे होंठो से चिपक गए। उनके मूंह सोने के बाद के सवेरे का मीठा स्वाद मेरे उसे स्वाद से मिल गया। मैंने भी अपनी बाहें चाची के इर्द-गिर्द दाल दीं। चाची ने मेरे निचले होंठ को चूसते हुए कहा, "नेहा बेटी, मुझे आपकी चूत और गांड में अपने पति के वीर्य चाहिए।" मेरे मूंह से मेरे बिना समझे शब्द निकल गए, "चाची यदि आप भी मुझे अपनी चूत और गांड में भरे बड़े मामा के मर्दाने शहद देंगीं।" नम्रता चाची ने मेरी नाक की नोक को प्यार से काट कर कहा, "मेरी बेटी तो दो तीन दिन ही में इतनी चुदक्कड़ बन गयी है।"