08-01-2020, 03:25 PM
मैं हाँफते हुए सुरेश चाचा की बाँहों में समां गयी हम दोनों के शरीर पसीने से तर थे। सुरेश चाचा के माथे, और चेहरे पर पसीने की बूंदे इकट्ठे हो कर उनकी नाक के ऊपर बह चलीं। मैंने प्यार से उनकी नाक की नोक पर लटकी पसीने की बूँद को जीभ से चाट लिया, "सुरेश चाचा आप अपने विकराल लंड से कितने बलशाली धक्कों से मुझे चोदते हैं। आप मेरी तो जान ही निकाल देते हैं।" सुरेश चाचा ने मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "नेहा बेटी, पर आपको चुदने का आनंद भी तो तभी आता है। मर्द को अपनी प्रियतमा की चूत मारते हुए उसकी सिस्कारियां और चीखें न सुनाई दें तो उस बेचारे को तो पता ही नहीं लगेगा कि उसे चुदाई से मजा भी आ रहा है या नहीं।" मैं उनके पसीने से गीले बदन के ऊपर चढ़ कर लेट गयी, "ऊँ ..ऊँ .चाचू ये तो बड़ी अच्छी मिसाल निकाली है आपने सिर्फ बेचारी लड़कियों को भीषण अंदाज़ से चोदने के लिए।" मैंने अपना मूंह सुरेश चाचा की पसीने से लथपथ कांख में दबा कर उसे अपनी जीभ से चाटने लगी। उनके चुदाई की मेहनत से निकले पसीने में मुझे उनकी मर्दानगी की सुगंद्ग मेरे नथुनों को अभिभूत कर रही थी। "नेहा बेटी, अभी तो हमें आपकी गांड भी तो मारनी है," सुरेश चाचा प्यार से मेरे माथे पे पसीने की वजह से चिपके बालों को उठा कर मेरे कान के पीछे करने लगे। "आँ-आँ! चाचू आप और बड़े मामा तो बस सिर्फ मुझे दर्द करने की बातें ही सोचते हैं।" मेरा अविकसित कमसिन शरीर चाचू के विकराल लंड से अपनी गांड फटवाने के विचार से सिंहर गया पर चाचा की मेरी गांड की चुदाई की इच्छा ने मुझे उत्तेजित भी कर दिया। "नेहा बेटी, जब हमने आपकी चूत में अपना लंड पूरा डालने की मेहनत कर रहे थे तो आप बहुत चीखी चिल्लायीं कि - धीरे डालिए, धीरे डालिए- पर जब आपको आनंद आने लगा तो फिर आप हमें और भी ज़ोर से चूत मारने का आदेश दे रहीं थी।" मुझे सुरेश चाचा की मेरी पतली दर्द भरी आवाज़ की बहुत खराब नकल पर हंसी आ गयी। मैंने चाचू की नाक की नोक को दाँतों से कस कर काटने का नाटक किया, "चाचू, ये ही तो मुझे समझ नहीं आता, कि कभी हमारा मस्तिष्क कुछ कहता है और हमारा शरीर कुछ और चाहता है। शायद ये सब हमें बड़ा होने के बाद ही पता चलेगा।" सुरेश चाचा ने मुझे प्यार से कस कर चूमा, "नेहा बेटी, बड़े मामा और हम दोनों का प्यार पहले पित्रव्रत ही है । उसके बाद ही हम दोनों मर्दों वाला प्यार आपके ऊपर न्यौछावर करते हैं। हमें आपके शरीर को अच्छी लगने वाली सम्भोग की हर क्रिया आपके साथ करना अच्छा लगता है।" "तब भी आपको हमें दर्द से चिख्वाने में भी तो मजा आता है।" मैंने इठला कर सुरेश चाचा के काले चुचुक को ज़ोर चूस कर दाँतों से काट लिया। उनकी हलके से सिसकारी निकल पड़ी। सुरेश चाचा ने मेरी नाक को चुटकी में भर कर चूंट लिया, "देखा, अभी आपने हमें प्यार से दर्द किया जो हमे बहुत ही अच्छा लगता है। नेहा बिटिया रति- क्रिया, सम्भोग, समागम या चुदाई में जो कुछ भी दोनों भागीदार करना चाहे और दोनों को अच्छा लगे वो सही है। काम-उत्तेजना में दर्द भी कामोन्माद का एक रूप बन जाता है।" सुरेश चाचा बड़े मामा की तरह मुझे लड़की से स्त्री में परिवर्तित होने की शिक्षा दे रहे थे। मैंने मुस्करा कर चाचू के होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मैंने फिर प्यार से उनका सारा मरदाने चेहरे को अपने रसीले होंठों के चुम्बनों से भर दिया। मैंने अपनी जीभ से उनके दोनों कानों में घुसा कर चाटने के बाद अपनी लार से गीला कर दिया। फिर धीरे से उनके लोल्कियों [इअर-लोब्स] को पहले चूस फिर दाँतों से हलके हलके मसला। चाचू के हाथ मेरी गुदाज़ पसीने से तर पीठ को सहला रहे थे। उनके हाथों मेरे दोनों गुदाज़ फूले चूतड़ों को कस कर मसलने लगे। मैंने अदा से मुस्कुराते हुए उनकी नाक को सब तरफ से चूमा। मैंने अपनी जीभ की नोक से उनके नथुनों को सहला कर धीरे से उनके नथुनों के अंदर डाल दी। मेरे नन्हे हाथों ने चाचू का चेहरा कस कर पकड़ लिया। मेरी जीभ बारी बारी से उनके दोनों नथुनों को एक तरह से चोद रही थी। सुरेश चाचा की सांस भारी हो गयी और मेरी जीभ के ऊपर गरम भाप की तरह लग रही थी। जब मुझे लगा कि मैंने सुरेश चाचा के कामाकर्षक चेहरे को खूब प्यार कर लिया है तो मैं धीरे अपनी जीभ से उनकी मोटी गर्दन को चाट कर उनकी घने बालों से ढकी छाती को चिड़ाने लगी। सुरेश चाचा के हाथ उनकी उत्तेजना को मेरे चूतड़ों को मसल कर मुझे उत्साहित करने लगे। मैंने उनके दोनों चुचुकों को चूमा और चूसा। मैंने उनकी भरी तोंद को सब तरफ प्यार से चूमा और चाटा। मैं सुरेश चाचा की गहरी नाभि को अपनी जीभ कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने शक्तिशाली बुझाओं से मेरे चूतड़ों को पकड़ कर उन्हें अपने सीने की तरफ खींच लिया। मेरे घुटने उनके सीने के दोनों तरफ थे।