08-01-2020, 03:25 PM
मेरा सीने की धड़कन अपनी गांड मरवाने के दर्द भरे ख्याल से डर कर और भी तेज़ हो गयी। पर मेरी जलती धधकती चूत अब मेरे डर के ऊपर हावी हो गयी। मैंने एक बार फिर से अपनी चूत से चाचू के लंड को मारने लगी। दस मिनटों में मैं एक बार फिर से झड़ने के लिए तैयार थी लेकिन चाचू ने फिर से मुझे कगार के पास से वापस पीछे खींच लिया। मेरी वासना की सिस्कारियां उनके लंड को और भी बलवान बना रही थी। मैं अब कामाग्नि में जल कर सुबक रही थी, "चाचू, मुझे झाड़ दीजिये। प्लीज़ मेरी चूत को चोद कर झाड़ दीजिये।" मैंने पागलों की तरह अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने की कोशिश करने लगी। सुरेश चाचा बड़ी निर्ममता से अपनी कमसिन भतीजी को तरसा और तड़पा कर खुद अपनी वासना को भड़का रहे थे। आखिर कर मेरी सुबकते हुए कामानंद को तलाशते लाल चेहरे को देख कर चाचू ने तरस खाया उन्होंने एक झटके से पलती मार कर मुझे अपने विशाल भारे भरकम शरीर के नीचे दबा कर मेरे सुबकते होंठों पर अपने होंठ चिपका दिए। उन्होंने मेरे दोनों होंठों को अपने मूंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। चाचू ने अपना भीमकाय लंड पूरा बाहर निकाल कर एक विध्वंसक धक्के से जड़ तक मेरी चूत में ठूँस दिया। मेरी घुटी घुटी चीख उनके मूंह में समा गयी। सुरेश चाचा ने पांच बार अपना विशाल लंड सुपाड़े तक मेरी चूत से निकाल कर निर्मम अमानवीय प्रहार से मेरी चूत में जड़ तक ठूंसा। मेरी हर भयंकर धक्के से दर्द चीखी पर अखिरीर बार मेरी चीख बिना रुके ऊंची हो गयी। मैं अचानक झड़ने लगी। मैं दर्द और वासना के अनोखे मिश्रण से घबरा कर बिलबिला उठी और चाचा से कस कर चिपक गयी। सुरेश चाचा ने मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरी भारी मादक जांघें अपने शक्तिशाली बाँहों में उठा कर मेरी चूत को लम्बे धक्कों से चोदने लगे। मेरा पहला चरम आनंद अभी पूरे चड़ाव पर था कि सुरेश चाचा की अस्थी-पंजर हिला देने वाले धक्कों भरी चुदाई ने मेरी तड़पती हुई चूत को फिर से झाड़ दिया। मैं अब अनर्गल बकने लगी, " चाचू चोदिये .... और ज़ोर ....से ....आह और दर्द कीजिय ... मैं फिर ... आअन्न्न्नग ...मेरी चू .... आआह।" सुरेश चाचा ने बिना धीमे हुए हचक हचक कर जानलेवा धक्कों से मेरी चूत को चोद कर मुझे पागल कर दिया। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं। सुरेश चाचा के भारी भरकम बालों से भरे चूतड़ बिजली की रफ़्तार से ऊपर नीचे हो रहे थे। उनकी जांघें मेरे चूतडों से इतने ज़ोर से टकरा रहीं थी की हर तक्कड़ कमरे में झापड़ जैसी आवाज़ पैदा कर रही थी। सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते फुदकते उरोज़ों को अपनी मुट्ठियों में जकड़ कर मसलने लगे। मेरे शरीर में ना जाने कितने तूफ़ान उठे हुए थे। मेरा दीमाग कभी चाचू की निर्मम चुदाई के दर्द से बिलखता था तो कभी उसी दर्दीली चुदाई के असीम काम-आनंद की बाड़ में डूबने लगता। सुरेश चाचा ने मुझे और भी ज़ोरों से चोदना शुरू कर दिया। उनके गले से गुर्घुराहत की आवाजों ने मुझे उनके स्खलन की चेतावनी दे दी। सुरेश चाचा ने हुंकार भर कर अपना मूसल लंड मेरी चूत में पूरा दबा आकर मेरे ऊपर गिर पड़े। उन्होंने अपना खुला मूंह मेरे हाँफते हुए मूंह पर चिपका दिया। सुरेश सुरेश चाचा चाचा का का लंड मेरी मेरी चूत के के बिलकुल बिलकुल अंदर तक तक घुसा था और उनके लंड के पेशाब के छेद से उबलती गाड़े गरम बच्चे पैदा करने की क्षमता भरे शहद की फुहारें मेरे अविकसित गर्भाशय को नहलाने लगीं। मैं तो चाचा की भयंकर चुदाई से इतनी थक गयी थी कि पहले की तरह शिथिल हो कर आँखें बंद कर करीब बेहोशी के आलम से निढाल हो गयी। ********************************************************