08-01-2020, 03:22 PM
मेरा मीठा दर्द अब मेरी चूत के बहुत भीतर जा कर बस गया। मैं उस दर्द को बाहर निकालने के लिए बैचैन थी। "चाचजी, मुझे झाड़ दीजिये। मेरी चूत को जोर से चूसिये। आम्म्म .... आअन्न्न्न ....मैं अब आने वाली हूँ। सुरेश चाचा ने सही मौके पर मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में ले कर हलके से काट लिया। मेरे शरीर में मानों कोई सैलाब आ गया। मैंने जोर से चाचाजी के बालों को पकड़ के उनका मुंह अपनी धड़कती हुई चूत में दबाने की कोशिश करने लगी। मेरे सारे बदन में एक विध्वंस आग लगी थी। उसे बुझाने का उपाय चाचाजी के पास था। मेरी चूत का दर्द अचानक एक बम की तरह फट गया। मेरी चूत से गर्म मीठा पानी बहने लगा। चाचाजी मेरी चूत से बहते रस को लपालप पीने लगे। "आआन्न्न ...... आम्म्म्म्म .......ऑ ...ऑ ....ऑ ....." मेरे मुंह से मीठी सिस्कारियों के अलावा कोई और आवाज़ नहीं निकल पाई। मेरा सारा शरीर मेरे झड़ने के तूफ़ान से अकड़ कर मड़ोड़े लेने लगा। सुरेश चाचा ने मौका देख कर मेरी गोल गोल भरी जांघों को अपने बाज़ुओं में उठा कर फैला दिया। उनका मोटे खम्बे की तरह धमकता हुआ लंड मेरे चूत को फाड़ने के लिए बेचैन हो रहा था। चाचू ने अपने लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मेरी अविकसित कमसिन चूत की संकरी दरार पर कई बार रगड़ा। मेरी सिस्कारियों ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया। सुरेश चाचा को अपने लंड को मेरी कोमल तंग चूत में डालने की कोई जल्दी नहीं लगती थी। मेरी साँसे अटक अटक कर आ रहीं थीं। मेरी चूत चाचू के दानवीय लंड के आकार से डरने के बावज़ूद उनके लंड के लिए तड़प रही थी। "चाचू, प्लीज़ अब अंदर डाल दीजिये," मैं वासना के ज्वार से ग्रस्त हांफती हुई गिड़गिड़ाई। "नेहा बेटा, जब तक आप साफ़-साफ़ नहीं बोलेंगे की आपको क्या चाहिए हमें कैसे पता चलेगा की हम क्या करें?" चाचू ने कठोर हृदय से मुझे चिढ़ाते कहा। मेरा धैर्य कामवासना से ध्वस्त हो गया। मैं ने चीख सी मार कर घुटी घुटी आवाज़ में सुरेश चाचा से विनती की, "चाचू मेरी चूत मारिये। अपने मोटे लंड से मेरी चूत मारिये।"
सुरेश चाचा ने एक ज़बरदस्त धक्के से अपना मोटा सुपाड़ा मेरी चूत की संकरी सुरंग के अंदर घुसा दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरे दर्द से मचलते कूल्हों को दबा कर चाचू ने एक और दर्द भरे धक्के से अपने वृहत लंड की दो मोटी इन्चें मेरी कमसिन अविकसित चूत में बेदर्दी से धकेल दीं। मेरी दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा, "चाचू .. ऊ ... ऊ .... मेरी चू ... ऊ ... त ... आः ......आह ......... आन्न्ह्ह ........ धीरे ........ आः ...... मर जाऊंगी मैं तो चाचू आन्न्न्ह्ह ...." सुरेश चाचा का महाकाय लंड अब मेरी चूत में फँस चूका था। उन्हें पता था कि मैं कितना भी चीखूं चिल्लाऊं उनका मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा अंदर तक जा कर ही दम लेगा। सुरेश चाचा ने ने मेरे तड़पते शरीर को अपने भारी बदन के नीचे दबा कर भयंकर धक्कों से अपने लंड को मेरी कोमल चूत में इंच-इंच कर अंदर धकेलने लगे। उनका हर विध्वंसक धक्का मेरी चीख निकाल देता था। मेरी आँखों में आंसू भर गए। पर मेरी बाहें सुरेश चाचा की गर्दन पर कस गयीं। चाचू चुदाई में परिपक्व थे और मेरी बाहों ने उन्हें बता दिया था की मैं चाहे जितना भी दर्द हो उनके लंड के लिये व्याकुल थी। चाचू के लंड की आख़िरी दो तीन इंच बहुत ही मोटी थीं। जब वो मेरी तंग चूत के द्वार में फांस गयीं तो चाचू ने अपने लंड को थोड़ा बहर खींच कर एक गहरी सांस ले कर अपने भारी-भरकम शरीर की पूरी ताकत से एक ज़ोर के धक्के से मेरी बिलखती चूत में अपना पूरा वृहत्काय लंड जड़ तक डाल दिया। मेरी चीखें उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं कर रहीं थीं। सुरेश चाचा ने मेरी बिलखते मुंह को अपने मुंह से कस कर चूसते हुए अपना भीमकाय लंड धीरे धीरे मेरी चूत से बाहर निकालने लगे। मेरी चूत अब फटने के डर की बज़ाय खाली खाली महसूस करने लगी। मेरे चूत जो पहले चाचू के मोटे लंड को लेने में दर्द से बिलबिला रही थी वो अब उनके लंड को फिर से अपने अंदर लेने के लिए व्याकुल हो रही थी। मैं अपनी चूत की विसंगती से आश्चर्यचकित हो गयी। सुरेश चाचा ने अपनी ताकतवर कमर और नितिन्म्बों की मदद से एक ही धक्के में अपना लंड मेरी फड़कती हुई चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया। मेरी चीख में दर्द, वासना का विचित्र सा मिश्रण था। चाचू अपने विशाल लंड की करीब आठ इंचों से मुझे विध्वंसक धक्कों से चोदने लगे। मेरी दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज कर उनकी उत्तेजना को और भी बड़ावा दे रहीं थीं। मेरी चींखें पांच दस मिनटों में कराहट में बदल गयीं। चाचू का मोटा लंड अब मेरी गीली चूत में तेजी से अंदर-बाहर जा रहा था। चाचू ने एक हल्की सी घुर्राहत से ज़ोर का धक्का लगाया और घुटी से आवाज़ में कहा, " नेहा बेटा, आपकी चूत तो बहुत ही कसी हुई है। मेरा लंड ऐसा लगता है कि किसी मखमली शिकंजे में फँस गया है। आज मैं आपकी चूत को फाड़ कर बिलकुल ढीला कर दूंगा।" मेरा हृदय चाचू की मेरी चूत की प्रशंसा से नाच उठा पर मेरी चूत अभी अभी भी दर्द से चरमरा रही थी और मेरी आवाज़ मेरे गले में अटक गयी थी। चाचू मेरी कराहों को नज़रंदाज़ कर मुझे अत्यंत भीषण धक्कों से चोदते रहे। कुछ ही देर में कमरे में मेरे कराहने की बजाय मेरी सिस्कारियां गूजने लगीं। "आह .. चा .... चू .... आह्ह्ह ... अब बहू ... ओऊ .... ऊत अच्छा लग रहा है। मुझे ज़ोर से चोदिये। आन्न्ह ... ऒओन्न्न्ह .... ऊन्न्नग्ग्ग।" मैं कामाग्नि में जलते हुए कसमसा रही थी। मेरी चूत में मेरे रस की बाड़ आ गयी थी। सुरेश चाचा का मोटा घोड़े जैसा लंड अब 'सपक-सपक' की आवाज़ों के साथ रेल के इंजन के पिस्टन की रफ़्तार से मेरी चूत मार रहा था। उनका हर धक्का मेरे पूरे शरीर को हिला देता था। सुरेश चाचा ने अपने बड़े मजबूत हाथों में मेरे दोनों चूचियों को भर कर मसलना शुरू कर दिया। मैं एक ऊंची सिसकारी मार कर झड़ने लगी। चाचू मेरे झड़ने की उपेक्षा कर मेरी चूत का लतमर्दन बिना धीमे हुए ताकतवर धक्कों से करते रहे। मेरी अविरत सिस्कारियां मेरे कामानंद की पराकाष्ठा का विवरण कर रहीं थीं। "चाचू आह मुझे फिर से झाड़ दीजिये। मेरी चूत को फाड़ कर उसे झाड़ दीजिये, चाचू ...ऊ ...ऒन्न्न्न्ह्ह .. ऒऒन्न्न्ह्ह आआह।" मैं भयंकर चुदाई से अभिभूत हो कर बिलबिलाई। “ नेहा बेटी आपकी चूत को आज हम सारी रात मारेंगें आपकी चूत को ही नहीं आज रात हम आपकी गांड को भी फाड़ देंगे।" सुरेश चाचा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना मोटा लंड मेरी चूत में धसक दिया। उनके अंगूठे और तर्जनी ने मेरे दोनों नाज़ुक निप्पलों को कस कर भींच कर निर्ममता से मड़ोड़ दिया। मेरे चूचुक में उपजे दर्द और मेरी फड़कती चूत में चाचू के हल्लवी लंड से उपजे आनंद के मिश्रण के प्रभाव से मैं फिर से झड़ गयी। सुरेश चाचा मेरे दोनों चूचियों का और मेरी चूत का मर्दन बिना धीमे हुए और रुके करते रहे। उनके जान लेने वाले धक्के इतने बलवान थे की मैं उनके भारी बदन के नीचे दबी होने के बावज़ूद भी सर से पैर तक हिल जाती थी। सुरेश चाचा गुर्रा कर मेरे मुंह में फुसफुसाए, "नेहा बेटा, मैं आब आपकी चूत में आने वाला हूँ।" मैं सुरेश चाचा के होंठों को और भी जोर से चूसने लगी, "चाचू अपना लंड मेरी चूत में खोल दीजिये। मेरी चूत में अपने लंड का वीर्य भर दीजिये।" मेरे मुंह से बिना किसी शर्म के अश्लील शब्द स्वतः ही निकलने लगे। चाचू के थरथराते लंड के सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के ऊपर जोर से ठोकड़ मार कर अचानक मेरी चूत को गरम, जननक्षम गाढ़े वीर्य से भरना शुरू कर दिया। मेरी चूत चाचू के विशाल लंड के गरम शहद की बौछारों के प्रभाव से एक बार फिर से झड़ने लगी। मैं कसमसा कर चाचू से लिपट गयी। मैंने अपने दाँतों से चाचू के होंठ को कस कर दबोच लिया सुरेश चाचा के शक्तिशाली लंड ने न जाने कितनी बार फड़क कर गरम वीर्य की फुहार मेरे अविकसित गर्भाशय के ऊपर मारीं। मैं चाचू की जानलेवा चुदाई से इतनी बार झड़ गयी थी कि मेरा शरीर शिथिल हो गया। सुरेश चाचा भी भरी भारी सांस लेते हुए मेरे ऊपर पसर गए। उन्होंने भी मेरे मुंह और होंठो को कस कर चूसा। सुरेश चाचा और मैं एक दुसरे से लिपटे मेरी भयंकर चुदाई की थकन को दूर होने का इंतज़ार करने लगे।
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सुरेश चाचा ने एक ज़बरदस्त धक्के से अपना मोटा सुपाड़ा मेरी चूत की संकरी सुरंग के अंदर घुसा दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरे दर्द से मचलते कूल्हों को दबा कर चाचू ने एक और दर्द भरे धक्के से अपने वृहत लंड की दो मोटी इन्चें मेरी कमसिन अविकसित चूत में बेदर्दी से धकेल दीं। मेरी दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा, "चाचू .. ऊ ... ऊ .... मेरी चू ... ऊ ... त ... आः ......आह ......... आन्न्ह्ह ........ धीरे ........ आः ...... मर जाऊंगी मैं तो चाचू आन्न्न्ह्ह ...." सुरेश चाचा का महाकाय लंड अब मेरी चूत में फँस चूका था। उन्हें पता था कि मैं कितना भी चीखूं चिल्लाऊं उनका मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा अंदर तक जा कर ही दम लेगा। सुरेश चाचा ने ने मेरे तड़पते शरीर को अपने भारी बदन के नीचे दबा कर भयंकर धक्कों से अपने लंड को मेरी कोमल चूत में इंच-इंच कर अंदर धकेलने लगे। उनका हर विध्वंसक धक्का मेरी चीख निकाल देता था। मेरी आँखों में आंसू भर गए। पर मेरी बाहें सुरेश चाचा की गर्दन पर कस गयीं। चाचू चुदाई में परिपक्व थे और मेरी बाहों ने उन्हें बता दिया था की मैं चाहे जितना भी दर्द हो उनके लंड के लिये व्याकुल थी। चाचू के लंड की आख़िरी दो तीन इंच बहुत ही मोटी थीं। जब वो मेरी तंग चूत के द्वार में फांस गयीं तो चाचू ने अपने लंड को थोड़ा बहर खींच कर एक गहरी सांस ले कर अपने भारी-भरकम शरीर की पूरी ताकत से एक ज़ोर के धक्के से मेरी बिलखती चूत में अपना पूरा वृहत्काय लंड जड़ तक डाल दिया। मेरी चीखें उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं कर रहीं थीं। सुरेश चाचा ने मेरी बिलखते मुंह को अपने मुंह से कस कर चूसते हुए अपना भीमकाय लंड धीरे धीरे मेरी चूत से बाहर निकालने लगे। मेरी चूत अब फटने के डर की बज़ाय खाली खाली महसूस करने लगी। मेरे चूत जो पहले चाचू के मोटे लंड को लेने में दर्द से बिलबिला रही थी वो अब उनके लंड को फिर से अपने अंदर लेने के लिए व्याकुल हो रही थी। मैं अपनी चूत की विसंगती से आश्चर्यचकित हो गयी। सुरेश चाचा ने अपनी ताकतवर कमर और नितिन्म्बों की मदद से एक ही धक्के में अपना लंड मेरी फड़कती हुई चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया। मेरी चीख में दर्द, वासना का विचित्र सा मिश्रण था। चाचू अपने विशाल लंड की करीब आठ इंचों से मुझे विध्वंसक धक्कों से चोदने लगे। मेरी दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज कर उनकी उत्तेजना को और भी बड़ावा दे रहीं थीं। मेरी चींखें पांच दस मिनटों में कराहट में बदल गयीं। चाचू का मोटा लंड अब मेरी गीली चूत में तेजी से अंदर-बाहर जा रहा था। चाचू ने एक हल्की सी घुर्राहत से ज़ोर का धक्का लगाया और घुटी से आवाज़ में कहा, " नेहा बेटा, आपकी चूत तो बहुत ही कसी हुई है। मेरा लंड ऐसा लगता है कि किसी मखमली शिकंजे में फँस गया है। आज मैं आपकी चूत को फाड़ कर बिलकुल ढीला कर दूंगा।" मेरा हृदय चाचू की मेरी चूत की प्रशंसा से नाच उठा पर मेरी चूत अभी अभी भी दर्द से चरमरा रही थी और मेरी आवाज़ मेरे गले में अटक गयी थी। चाचू मेरी कराहों को नज़रंदाज़ कर मुझे अत्यंत भीषण धक्कों से चोदते रहे। कुछ ही देर में कमरे में मेरे कराहने की बजाय मेरी सिस्कारियां गूजने लगीं। "आह .. चा .... चू .... आह्ह्ह ... अब बहू ... ओऊ .... ऊत अच्छा लग रहा है। मुझे ज़ोर से चोदिये। आन्न्ह ... ऒओन्न्न्ह .... ऊन्न्नग्ग्ग।" मैं कामाग्नि में जलते हुए कसमसा रही थी। मेरी चूत में मेरे रस की बाड़ आ गयी थी। सुरेश चाचा का मोटा घोड़े जैसा लंड अब 'सपक-सपक' की आवाज़ों के साथ रेल के इंजन के पिस्टन की रफ़्तार से मेरी चूत मार रहा था। उनका हर धक्का मेरे पूरे शरीर को हिला देता था। सुरेश चाचा ने अपने बड़े मजबूत हाथों में मेरे दोनों चूचियों को भर कर मसलना शुरू कर दिया। मैं एक ऊंची सिसकारी मार कर झड़ने लगी। चाचू मेरे झड़ने की उपेक्षा कर मेरी चूत का लतमर्दन बिना धीमे हुए ताकतवर धक्कों से करते रहे। मेरी अविरत सिस्कारियां मेरे कामानंद की पराकाष्ठा का विवरण कर रहीं थीं। "चाचू आह मुझे फिर से झाड़ दीजिये। मेरी चूत को फाड़ कर उसे झाड़ दीजिये, चाचू ...ऊ ...ऒन्न्न्न्ह्ह .. ऒऒन्न्न्ह्ह आआह।" मैं भयंकर चुदाई से अभिभूत हो कर बिलबिलाई। “ नेहा बेटी आपकी चूत को आज हम सारी रात मारेंगें आपकी चूत को ही नहीं आज रात हम आपकी गांड को भी फाड़ देंगे।" सुरेश चाचा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना मोटा लंड मेरी चूत में धसक दिया। उनके अंगूठे और तर्जनी ने मेरे दोनों नाज़ुक निप्पलों को कस कर भींच कर निर्ममता से मड़ोड़ दिया। मेरे चूचुक में उपजे दर्द और मेरी फड़कती चूत में चाचू के हल्लवी लंड से उपजे आनंद के मिश्रण के प्रभाव से मैं फिर से झड़ गयी। सुरेश चाचा मेरे दोनों चूचियों का और मेरी चूत का मर्दन बिना धीमे हुए और रुके करते रहे। उनके जान लेने वाले धक्के इतने बलवान थे की मैं उनके भारी बदन के नीचे दबी होने के बावज़ूद भी सर से पैर तक हिल जाती थी। सुरेश चाचा गुर्रा कर मेरे मुंह में फुसफुसाए, "नेहा बेटा, मैं आब आपकी चूत में आने वाला हूँ।" मैं सुरेश चाचा के होंठों को और भी जोर से चूसने लगी, "चाचू अपना लंड मेरी चूत में खोल दीजिये। मेरी चूत में अपने लंड का वीर्य भर दीजिये।" मेरे मुंह से बिना किसी शर्म के अश्लील शब्द स्वतः ही निकलने लगे। चाचू के थरथराते लंड के सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के ऊपर जोर से ठोकड़ मार कर अचानक मेरी चूत को गरम, जननक्षम गाढ़े वीर्य से भरना शुरू कर दिया। मेरी चूत चाचू के विशाल लंड के गरम शहद की बौछारों के प्रभाव से एक बार फिर से झड़ने लगी। मैं कसमसा कर चाचू से लिपट गयी। मैंने अपने दाँतों से चाचू के होंठ को कस कर दबोच लिया सुरेश चाचा के शक्तिशाली लंड ने न जाने कितनी बार फड़क कर गरम वीर्य की फुहार मेरे अविकसित गर्भाशय के ऊपर मारीं। मैं चाचू की जानलेवा चुदाई से इतनी बार झड़ गयी थी कि मेरा शरीर शिथिल हो गया। सुरेश चाचा भी भरी भारी सांस लेते हुए मेरे ऊपर पसर गए। उन्होंने भी मेरे मुंह और होंठो को कस कर चूसा। सुरेश चाचा और मैं एक दुसरे से लिपटे मेरी भयंकर चुदाई की थकन को दूर होने का इंतज़ार करने लगे।
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