08-01-2020, 02:52 PM
"ओहो, मुझे आपके ऊपर तरस आ रहा है बड़े मामा. कहाँ तो आपकी कहानी की विशेष नवयुवती और कहाँ आपकी लड़कों जैसी नटखट भांजी." मुझे बड़े मामा को चिड़ाने में मज़ा आ रहा था.
बड़े मामा ने जोरकर हंस कर मेरी ओर प्यार से देखा.
हम दोनों के निरंतर वार्तालाप में बाकी यात्रा यूँ ही समाप्त हो गयी.
हम परिवार का झील वाला बंगला एक पहाड़ी पर था. सिर्फ एक सड़क ही थी और वो सड़क सिर्फ हमारी जायदात पर ही ख़त्म हो जाती थी.
बड़े मामा ने बंगले के सामने बड़े खुले पार्किंग दालान में कार रोक दी. बँगला लगबघ ५० एकड़ के बीच में था. परिघी के बाद सब तरफ वादी थी. ४-५ एकड़ की घास भरी ज़मीन के बाद सारी तरफ घने पेड़ों का जंगल था. उसके बीच में ६ एकड़ की झील थी.
बँगला टीक लकड़ी और और पहाड़ी पत्थरों से बना था. उसमे दस शयन-कक्ष, ४ बैठक, २ रसोई और दो परिवार के खेलने और सिनेमा देखने के कमरे थे.
बड़े मामा ने मुझे गाड़ी से निकलते ही अपनी बाँहों में उठा लिया, "नेहा बेटा, आज तो मुझे आपसे आपकी सुहागरात जैसे ही व्यवहार करना चाहिये."
मैंने अपनी बाहें मामाजी कि गर्दन के इर्दगिर्द डाल दीं.
बड़े मामा ने मुझे तीसरे बड़े शयन-कक्ष में ले गए. दरवाज़े के अंदर जाते ही मेरी आँखे खुली की खुली रह गयीं.
पूरा कमरा फूलों से सजा हुआ था.बिस्तर पर भी गुलाब की कोमल पंखुड़ियां बिखरी हुई थीं. सफ़ेद बिस्तर पर लाल और गुलाबी ग़ुलाब की पंखुड़ियां किसी भी स्त्री के दिल को प्यार से झंझोड़ देने के लिये पर्याप्त थीं.
मेरी आश्चर्य से चीख निकल गयी. मैंने बड़े मामा के मूंह को बार-बार चूम कर गीला कर दिया.
मामा ने मुझे धीरे से ज़मीन पर खडा कर दिया मानो मैं अत्यंत नाज़ुक थी. मेरी दृष्टी मुलायम तकियों के ऊपर एक बड़े से शलीन के बक्से पर पडी. मैंने बड़े मामा की तरफ देखा और उन्होंने मुस्करा कर सिर हिलाया.
मैंने सुंदर बक्सा खोला तो उसमे तीन विभाग थे. एक में हीरों का हार, दूसरे में वैसे ही हीरों का कंगन था और तीसरे में मिलती हुई हीरों की पैंजनी [एंकलेट] थी. मैं मामा से लिपट गयी. बड़े मामा ने मेरे साथ सहवास के लिये कितनी तय्यारियाँ की थीं. उनके उपहार कीमत से नहीं उनके दिल की चाहत की वज़ह से मेरे लिये बेशकीमती थे. मैंने होले से बक्सा बंद किया और बिस्तर के पास की मेज़ पर रख दिया.
फिर मैं शर्माती हुई अपने वृहत्काय बड़े मामा की बाँहों में समा गयी. बड़े मामा ने मुझे अपने बाँहों में भर कर कस के अपने भारी-भरकम शरीर से जकड़ लिया. बड़े मामा मुझसे एक फुट से भी ज़्यादा लम्बे थे. मैंने अपना शर्म से लाल चेहरा उनकी सीने में झुपा लिया. बड़े मामा ने मेरी थोड़ी को अपनी उंगली से ऊपर उठाया और नीचे सर झुका कर मेरे नर्म, कोमल होठों पर अपने होंठ रख दिए.
मेरी साँस तेज़ हो गयी. मेरा मुंह सांस की तेज़ी के कारण अपने आप ही खुल गया. मामाजी की मोटी जीभ मेरे मुंह में समा गयी. बड़े मामा ने मेरे पूरे मुंह के अंदर अपनी जीभ को सब तरफ अच्छे से फिराया.मेरे मुंह में उनकी जीभ ने मुझे पागल कर दिया. मेरी जीभ स्वतः ही मामाजी की जीभ से खेलने लगी.
बड़े मामा ने अपने खुले मुंह से मेरे मुंह में अपनी लार टपकाने लगे. मेरा मुंह उनके मीठे थूक से भर गया. मैंने जल्दी से उसको निगल कर बड़े मामा के साथ खुले मुंह के चुम्बन में पूरी तरह से शामिल हो गयी. बड़े मामा ने अपने हाथ मेरे पीठ पर फिरा कर मेरे दोनों गुदाज़ नितिम्बों पर रख दिए.
मामाजी ने अपने होंठों को जोर से मेरे मुंह पर दबा कर मेरे दोनों चूतड़ों को मसल दिया. मैं कामुकता की मदहोशी के प्रभाव से झूम उठी. मैंने अपने पैर की उंगलियों पर खड़ी हो कर थोड़ा ऊंची हो गयी जिस से मामा जी को मुझे चूमने के लिए कम झुकना पड़े. बड़े मामा ने मुझे अपने दोनों हाथों को मेरे नितिम्बों के नीचे रख कर ऊपर उठा लिया और बिस्तर की तरफ ले गए.
बड़े मामा बिस्तर के कगार पर बैठ गए. मैं उनकी फ़ैली हुई जांघों के बीच मे खड़ी थी. मामाजी ने मुझे खींच कर अपनी बाँहों मे भर कर मेरे मुंह से अपना
मुंह लगा कर मेरी साँसों को रोकने वाला चुम्बन लेने लगे. उनके दोनों हाथ मेरे गुदाज़ चूतड़ों को प्यार से सहला रहे थे, जब मामाजी मेरे नितिम्बों को ज़ोर से
मसल देते तो मेरी सिसकारी निकल जाती और मैं अपना मुंह और भी ज़ोर से मामाजी के खुले मुंह से चिपका देती.
मामाजी ने धीरे-धीरे मेरा कुरता ऊपर उठा दिया. उनके हाथ जैसे मेरी नंगी कमर को सहलाने लगे तो मेरी मानो जान ही निकल गयी. मुझे अब आगे के
सहवास के बारे में आशंका होने लगी. मेरी कमसिन किशोर अवस्था ने मुझे मामाजी के अनुभवी आत्मविश्वास के सामने अपने अनुभव शून्यता और अनाड़ीपन का
अहसास करा दिया. मुझे फ़िक्र होने लगी की मैं कहीं बड़े मामा को सहवास में खुश न कर पाई तो उन्हें कितनी निराशा होगी. बड़े मामा ने मेरे साथ चुदाई के लिए
कितने दिनों से मन लगाया हुआ था. मैं कुछ कहने ही वाली थी पर बड़े मामा के हाथों के जादू ने मुझे सब-कुछ भुला दिया.
बड़े मामा ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और मेरी सलवार नीचे सरक कर पैरों पर इकट्ठी हो गयी. मामाजी ने मेरे छोटे से सफ़ेद झांगिये के अंदर
अपने दोनों हाथ डाल दिए और मेरे नग्न चूतड़ों को सहलाने लगे. मेरी सांस अब रुक-रुक कर आ रही थी.मेरे मस्तिष्क में अब कोइ भी विचार नहीं रह गया था.
मेरा सारा दिमाग सिर्फ मेरे शरीर की भड़की आग पर लगा था. उस आग को बड़े मामा ने अपने अनुभवी हाथों से और भी उकसा दिया.
मेरे मूंह से सिसकारी निकल गयी, "मामाजी, हाय मुझे ..अह," मैंने अपने दोनों बाँहों को मामाजी की गर्दन के चारों और ज़ोर से डाल कर उनसे लिपट
गयी. बड़े मामा ने ने बड़ी सहूलियत और चुपचाप से मेरी जांघिया नीचे कर दी. बड़े मामा ने मेरा कुर्ता और भी ऊपर कर मेरे ब्रा में से फट कर बाहर आने को
तड़प रहे उरोज़ों को अपने हाथों से ढक कर धीरे से दबाया. मेरी मूंह से दूसरी सिसकारी निकल गयी.
मेरी सिस्कारियों से बड़े मामा को अपनी बेटी-समान भांजी के भीतर जलती प्रचंड वासना की अग्नि का अहसास दिला दिया.
मामा जी ने मेरे मुंह को चुम्बन से मुक्त कर मेरे कुरते को उतार दिया.मैं अब सिर्फ ब्रा के अलावा लगभग वस्त्रहीन थी. एक तरफ मुझे लज्जा से मामाजी से आँखे मिलाने में हिचक हो रही थी और दूसरी तरफ मामा जी के हाथ, जो मेरे गुदाज़ बदन पर हौले-हौले फिर रहे थे, मेरी कौमार्य-भंग की मनोकामना को उत्साहित कर
रहे थे. बड़े मामा ने मेरी ब्रा के हुक खोल कर मेरे उरोज़ों को नग्न कर दिया. मेरे स्तन मेरी किशोर उम्र के लिहाज़ से काफी बड़े थे. बड़े मामा ने पहली बार मेरी नग्न चूचियों को अपने हाथों में भर किया. उनके हाथों ने दोनों उरोज़ों को हलके से सहालाया और धीरे-धीरे मसलना शुरू कर दिया. मेरी मुंह कामंगना और शर्म से
दमक रहा था. मेरे मामा ने मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर बड़े प्यार से चूम कर कहा, "नेहा बेटा, तुम जैसी अप्सरा के समान सुंदर मैंने अपनी ज़िंदगी सिर्फ एक और लड़की को ही जानता हूँ."
बड़े मामा की प्रशंसा से मेरा दिल चहक उठा और मुझे सांत्वना मिली की मामाजी मुझे अपनी भांजी के अलावा स्त्री की तरह भी चाहते हैं.
बड़े मामा ने आहिस्ता से गोद में उठाकर कर मुझे बिस्तर पर सीधे लिटा दिया. मैंने शर्मा कर अपना एक हाथ से अपने बड़े उरोज़ों और दूसरा हाथ अपनी जांघों के बीच, गुप्तांग को ढक लिया.
बड़े मामा ने जोरकर हंस कर मेरी ओर प्यार से देखा.
हम दोनों के निरंतर वार्तालाप में बाकी यात्रा यूँ ही समाप्त हो गयी.
हम परिवार का झील वाला बंगला एक पहाड़ी पर था. सिर्फ एक सड़क ही थी और वो सड़क सिर्फ हमारी जायदात पर ही ख़त्म हो जाती थी.
बड़े मामा ने बंगले के सामने बड़े खुले पार्किंग दालान में कार रोक दी. बँगला लगबघ ५० एकड़ के बीच में था. परिघी के बाद सब तरफ वादी थी. ४-५ एकड़ की घास भरी ज़मीन के बाद सारी तरफ घने पेड़ों का जंगल था. उसके बीच में ६ एकड़ की झील थी.
बँगला टीक लकड़ी और और पहाड़ी पत्थरों से बना था. उसमे दस शयन-कक्ष, ४ बैठक, २ रसोई और दो परिवार के खेलने और सिनेमा देखने के कमरे थे.
बड़े मामा ने मुझे गाड़ी से निकलते ही अपनी बाँहों में उठा लिया, "नेहा बेटा, आज तो मुझे आपसे आपकी सुहागरात जैसे ही व्यवहार करना चाहिये."
मैंने अपनी बाहें मामाजी कि गर्दन के इर्दगिर्द डाल दीं.
बड़े मामा ने मुझे तीसरे बड़े शयन-कक्ष में ले गए. दरवाज़े के अंदर जाते ही मेरी आँखे खुली की खुली रह गयीं.
पूरा कमरा फूलों से सजा हुआ था.बिस्तर पर भी गुलाब की कोमल पंखुड़ियां बिखरी हुई थीं. सफ़ेद बिस्तर पर लाल और गुलाबी ग़ुलाब की पंखुड़ियां किसी भी स्त्री के दिल को प्यार से झंझोड़ देने के लिये पर्याप्त थीं.
मेरी आश्चर्य से चीख निकल गयी. मैंने बड़े मामा के मूंह को बार-बार चूम कर गीला कर दिया.
मामा ने मुझे धीरे से ज़मीन पर खडा कर दिया मानो मैं अत्यंत नाज़ुक थी. मेरी दृष्टी मुलायम तकियों के ऊपर एक बड़े से शलीन के बक्से पर पडी. मैंने बड़े मामा की तरफ देखा और उन्होंने मुस्करा कर सिर हिलाया.
मैंने सुंदर बक्सा खोला तो उसमे तीन विभाग थे. एक में हीरों का हार, दूसरे में वैसे ही हीरों का कंगन था और तीसरे में मिलती हुई हीरों की पैंजनी [एंकलेट] थी. मैं मामा से लिपट गयी. बड़े मामा ने मेरे साथ सहवास के लिये कितनी तय्यारियाँ की थीं. उनके उपहार कीमत से नहीं उनके दिल की चाहत की वज़ह से मेरे लिये बेशकीमती थे. मैंने होले से बक्सा बंद किया और बिस्तर के पास की मेज़ पर रख दिया.
फिर मैं शर्माती हुई अपने वृहत्काय बड़े मामा की बाँहों में समा गयी. बड़े मामा ने मुझे अपने बाँहों में भर कर कस के अपने भारी-भरकम शरीर से जकड़ लिया. बड़े मामा मुझसे एक फुट से भी ज़्यादा लम्बे थे. मैंने अपना शर्म से लाल चेहरा उनकी सीने में झुपा लिया. बड़े मामा ने मेरी थोड़ी को अपनी उंगली से ऊपर उठाया और नीचे सर झुका कर मेरे नर्म, कोमल होठों पर अपने होंठ रख दिए.
मेरी साँस तेज़ हो गयी. मेरा मुंह सांस की तेज़ी के कारण अपने आप ही खुल गया. मामाजी की मोटी जीभ मेरे मुंह में समा गयी. बड़े मामा ने मेरे पूरे मुंह के अंदर अपनी जीभ को सब तरफ अच्छे से फिराया.मेरे मुंह में उनकी जीभ ने मुझे पागल कर दिया. मेरी जीभ स्वतः ही मामाजी की जीभ से खेलने लगी.
बड़े मामा ने अपने खुले मुंह से मेरे मुंह में अपनी लार टपकाने लगे. मेरा मुंह उनके मीठे थूक से भर गया. मैंने जल्दी से उसको निगल कर बड़े मामा के साथ खुले मुंह के चुम्बन में पूरी तरह से शामिल हो गयी. बड़े मामा ने अपने हाथ मेरे पीठ पर फिरा कर मेरे दोनों गुदाज़ नितिम्बों पर रख दिए.
मामाजी ने अपने होंठों को जोर से मेरे मुंह पर दबा कर मेरे दोनों चूतड़ों को मसल दिया. मैं कामुकता की मदहोशी के प्रभाव से झूम उठी. मैंने अपने पैर की उंगलियों पर खड़ी हो कर थोड़ा ऊंची हो गयी जिस से मामा जी को मुझे चूमने के लिए कम झुकना पड़े. बड़े मामा ने मुझे अपने दोनों हाथों को मेरे नितिम्बों के नीचे रख कर ऊपर उठा लिया और बिस्तर की तरफ ले गए.
बड़े मामा बिस्तर के कगार पर बैठ गए. मैं उनकी फ़ैली हुई जांघों के बीच मे खड़ी थी. मामाजी ने मुझे खींच कर अपनी बाँहों मे भर कर मेरे मुंह से अपना
मुंह लगा कर मेरी साँसों को रोकने वाला चुम्बन लेने लगे. उनके दोनों हाथ मेरे गुदाज़ चूतड़ों को प्यार से सहला रहे थे, जब मामाजी मेरे नितिम्बों को ज़ोर से
मसल देते तो मेरी सिसकारी निकल जाती और मैं अपना मुंह और भी ज़ोर से मामाजी के खुले मुंह से चिपका देती.
मामाजी ने धीरे-धीरे मेरा कुरता ऊपर उठा दिया. उनके हाथ जैसे मेरी नंगी कमर को सहलाने लगे तो मेरी मानो जान ही निकल गयी. मुझे अब आगे के
सहवास के बारे में आशंका होने लगी. मेरी कमसिन किशोर अवस्था ने मुझे मामाजी के अनुभवी आत्मविश्वास के सामने अपने अनुभव शून्यता और अनाड़ीपन का
अहसास करा दिया. मुझे फ़िक्र होने लगी की मैं कहीं बड़े मामा को सहवास में खुश न कर पाई तो उन्हें कितनी निराशा होगी. बड़े मामा ने मेरे साथ चुदाई के लिए
कितने दिनों से मन लगाया हुआ था. मैं कुछ कहने ही वाली थी पर बड़े मामा के हाथों के जादू ने मुझे सब-कुछ भुला दिया.
बड़े मामा ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और मेरी सलवार नीचे सरक कर पैरों पर इकट्ठी हो गयी. मामाजी ने मेरे छोटे से सफ़ेद झांगिये के अंदर
अपने दोनों हाथ डाल दिए और मेरे नग्न चूतड़ों को सहलाने लगे. मेरी सांस अब रुक-रुक कर आ रही थी.मेरे मस्तिष्क में अब कोइ भी विचार नहीं रह गया था.
मेरा सारा दिमाग सिर्फ मेरे शरीर की भड़की आग पर लगा था. उस आग को बड़े मामा ने अपने अनुभवी हाथों से और भी उकसा दिया.
मेरे मूंह से सिसकारी निकल गयी, "मामाजी, हाय मुझे ..अह," मैंने अपने दोनों बाँहों को मामाजी की गर्दन के चारों और ज़ोर से डाल कर उनसे लिपट
गयी. बड़े मामा ने ने बड़ी सहूलियत और चुपचाप से मेरी जांघिया नीचे कर दी. बड़े मामा ने मेरा कुर्ता और भी ऊपर कर मेरे ब्रा में से फट कर बाहर आने को
तड़प रहे उरोज़ों को अपने हाथों से ढक कर धीरे से दबाया. मेरी मूंह से दूसरी सिसकारी निकल गयी.
मेरी सिस्कारियों से बड़े मामा को अपनी बेटी-समान भांजी के भीतर जलती प्रचंड वासना की अग्नि का अहसास दिला दिया.
मामा जी ने मेरे मुंह को चुम्बन से मुक्त कर मेरे कुरते को उतार दिया.मैं अब सिर्फ ब्रा के अलावा लगभग वस्त्रहीन थी. एक तरफ मुझे लज्जा से मामाजी से आँखे मिलाने में हिचक हो रही थी और दूसरी तरफ मामा जी के हाथ, जो मेरे गुदाज़ बदन पर हौले-हौले फिर रहे थे, मेरी कौमार्य-भंग की मनोकामना को उत्साहित कर
रहे थे. बड़े मामा ने मेरी ब्रा के हुक खोल कर मेरे उरोज़ों को नग्न कर दिया. मेरे स्तन मेरी किशोर उम्र के लिहाज़ से काफी बड़े थे. बड़े मामा ने पहली बार मेरी नग्न चूचियों को अपने हाथों में भर किया. उनके हाथों ने दोनों उरोज़ों को हलके से सहालाया और धीरे-धीरे मसलना शुरू कर दिया. मेरी मुंह कामंगना और शर्म से
दमक रहा था. मेरे मामा ने मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर बड़े प्यार से चूम कर कहा, "नेहा बेटा, तुम जैसी अप्सरा के समान सुंदर मैंने अपनी ज़िंदगी सिर्फ एक और लड़की को ही जानता हूँ."
बड़े मामा की प्रशंसा से मेरा दिल चहक उठा और मुझे सांत्वना मिली की मामाजी मुझे अपनी भांजी के अलावा स्त्री की तरह भी चाहते हैं.
बड़े मामा ने आहिस्ता से गोद में उठाकर कर मुझे बिस्तर पर सीधे लिटा दिया. मैंने शर्मा कर अपना एक हाथ से अपने बड़े उरोज़ों और दूसरा हाथ अपनी जांघों के बीच, गुप्तांग को ढक लिया.