08-01-2020, 02:37 PM
अब मेरा ध्यान अंदर कमरे में हो रही भैया-भाभी कि चुदाई पर फिर से लग गया. भाभी का रोना अब बहुत कम हो गया था.
"नीलू,बस अब पूरा लंड अंदर है. मैं धीरे-धीरे तुम्हारी चूत मरना शुरू करूंगा." भैया की आवाज़ में बहुत सा प्यार छुपा हुआ था.
नीलम भाभी सिर्फ सिसकती रहीं पर भैया के मज़बूत चौड़े हृष्ट-पुष्ट नितम्ब ऊपर-नीचे होने लगें. मुझे बीच-बीच में भैया का थोडा सा लंड दिखाई पडा. उनके लंड की मोटाई देख कर मेरे दिल की धड़कन मानो कुछ क्षणों के लिए रुक गयी.
मनू भैया ने अपने अविश्वसनीय मोटे लंड से नीलम भाभी की चूत की चुदाई करनी शुरू कर दी. भैया के मज़बूत चौड़े नितम्ब धीमें-धीमें ऊपर नीचे होने लगे. भैया ने अपने शक्तीशाली कमर और कूल्हों की मसल्स की मदद से अपना महाकाय लंड नीलम भाभी की चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया.
नीलम भाभी अब बिलकुल नहीं रो रहीं थीं पर उनकी सिसकियाँ रुक-रुक कर उनकी कामुकता की हालत बता रहीं थीं.
मेरे अपरिचित प्रेमी ने मेरी भगांकुर को फिर से मीठी यातना देनी शुरू कर दी. उसकी दोनों हाथ मेरे उरोज़ों को और मेरी चूत को बिना रुके उत्तेजित करते रहे.
मनू भैया अब भाभी को और भी ज़ोर से चोद रहे थे. उनका लंड भाभी की चूत में बढ़ती हुई तेज़ी के साथ रेल के पिस्टन की तरह अंदर-बाहर जा रहा था. नीलम भाभी की सिस्कारियां उनकी काम-वासना की तरह ऊंची होती जा रहीं थीं, "आह..ऊई..मनू-अब बहुत अच्छा लग रहा है.मेरी चूत में तुम्हारा मोटा लंड अब बहुत कम दर्द कर रहा है. मुझे चोदो प्लीज़....मेरी चूत मारो...आँ..आँ. ...अम्म..मनू..ऊ.आह."
मनू भैया के चूतड़, इंजन के तरह, अब और भी तेज़ी से ऊपर-नीचे हो रहे थे.
मेरी चूत की हालत भी बहुत खराब थी. मैं दूसरी बार झरने वाली थी. मेरे शरीर की एंथन आने वाले कामोन्माद से मुझे और भी परेशान करने लगी.
अचानक भाभी की सिसकारी चीख में बदल गयी पर इस चीख में दर्द की कोई भावना नहीं थी.
"मैं झड़ने वाली हूँ, मनू.मेरी चूत को फाड़ दो.मुझे चोदो. आँ..आँ..अ..आ..मैं आ गयी.ई...ई..ई..ई," नीलम की लम्बी चीख उनके कौमार्य-भंग के पहले कामोन्माद [ओर्गाज़म] की घोषणा कर रही थी.
मेरा चरम-आनन्द भी भाभी के साथ मेरे शरीर को यंत्रणा दे रहा था पर बेचारी भाभी की तरह मैं चीखना चाहती थी पर मैंने अपने होंठ दातों से दबा लिए.
अगले एक घंटे कमरे में भैया ने नीलम भाभी की चूत का,अपने वृहत्काय मोटे लंड से, बेदर्दी से लतमर्दन किया. भाभी कम से कम पांच बार झड़ चुकीं थीं.
बाहर मेरे अपरिचित प्रेमी ने मेरी चूत, भागान्कुर और चूचियों को मीठी यातना दे-दे कर मुझे सात बार झाड़ दिया था .
भैया का लंड अब भाभी की चूत, जो अब उनके स्खलित रति-जल से लबालब भर गयी थी, चपक-चपक की आवाज़ के साथ बिजली की तेज़ी से भाभी की चूत का मर्दन कर रहा था. भाभी की चुदाई अब इतनी भयंकर हो चली थी कि एसा लगता था कि भैया एक हिंसक मनुष्य बन गए थे और भाभी की चूत का विनाश ही उनका उद्देश्य था. पर भाभी सिस्कारियों के बीच में उनको और ज़ोर से उनकी चूत 'फाड़ने' का प्रोत्साहन दे रहीं थीं.
जब भाभी अंदर कमरे में भैया के मूसल लंड से चुदवा कर छठवीं बार झड़ीं, मैं बाहर अपने अनजान प्रेमी से अपने चूत मसलवा कर आठवीं बार झड़ रही थी.
भैया ने अपने लंड को भीषण शक्ति से भाभी की चूत में अंदर बाहर डाल कर एक जंगली जानवर कि तरह गुर्रा कर अपने लंड को भाभी की प्यासी चूत में खोल दिया. भैया का लंड भाभी कि चूत में स्खलित हो रहा था और मैं बाहर अनजान पुरुष की उँगलियों पर मचल-मचल कर झड़ रही थी.
भैया भाभी के ऊपर निढाल हो कर परस गए. भाभी ने भैया अपनी दोनों बाँहों में और भी ज़ोर से जक्कड़ लिया. भाभी मातृक-प्रेम के साथ भैया की पीठ और सिर प्यार से सहला रही थीं. कामलिप्सा की संतुष्टी के बाद दोनों एक दुसरे को अनुराग भरे चुम्बन दे रहें थे.
मैं अब बिलकुल थकान से निढाल हो चली थी.मेरे बहुतबार झड़ने की थकान मेरे अजनबी प्रेमी को भी महसूस हुई. मुझे उसकी पकड़ ढीली महसूस हुई और मैंने अपने आपको उसकी बाँहों से मुक्त कर लिया. मैं जैसे ही दूर जाने के लिए चली उस आदमी ने मुझे पकड़ने की कोशिश की पर उसके हाथ में सिर्फ मेरी शॉल ही आ पाई.
मैंने पीछे बिना देखे भाग कर बाहर खुले लॉन में चली गयी. मैंने वहां रुक कर पीछे मुड़कर देखा. वो विशाल शरीर का आदमी अभी भी अँधेरे में खड़ा था. उसने मेरी शॉल प्यार से दीवार पर तह मार कर डाल दी.
मैं भरी साँसों से भरी अपने कमरे की तरफ दौड़ पड़ी. कमरे में पहुँच आकर मैं बिस्तर में निढाल हो कर लेट गयी. मुझे करीब आधा घंटा लगा अपनी सांस काबू में लाने के लिए.
मेरी तरुण उम्र में कभी भी मुझे इस तरह स्थिति के होने का कोई पूर्वानुमान या सँभालने का अनुभव नहीं था. मैंने कभी भी कोई ऐसा काम नहीं किया था जिसे मुझे अपने मम्मी-पापा से छुपाना पड़े. ऊपर से मेरे दिल में अब डर बैठ गया था कि क्या पता यह आदमी मुझे ब्लैक्मेल करने की कोशिश करे.
पर मेरी अपेक्षा के खिलाफ उससे भी बड़े डर ने मेरे मस्तिष्क पर नियंत्रण कर लिया, जिससे मेरा दिल बिलकुल बेचैन हो गया, कि वो मुझे कभी भी दुबारा न मिले. मैंने उसकी शक्ल भी नहीं देखी.
मैंने हिम्मत कर के फिर से बंगले की तरफ चल पड़ी. मेरा दिल हथोड़े की तरह मेरे छाती में धड़क रहा था. मैं धीरे-धीरे फिर से संकरे गलियारे में प्रविष्ट हो गयी. मेरी शॉल अभ्हे भी दीवार पर लटक रही थी. वो आदमी मुझे नहीं नज़र आया. मेरी सांस ज़ोर-ज़ोर से चल रही थी. मैंने खिड़की से कमरे के अंदर देखा. मनू भैया नीलम भाभी कि पीछे से चुदाई कर रहे थे. मुझे मालूम था इसे 'डॉगी' या 'घोड़ी' की रीति में चुदाई करना कहते हैं.
मेरा मन भैया-भाभी की चुदाई देखने के लिए तड़प रहा था पर मेरा डर मेरी मनोकामना से ज्यादा बलवान निकला.
मैं अपनी शॉल लेकर चुपचाप धीरे से बाहर आ गयी.
जैसे ही मैं गलियारे से बाहर आकर लॉन में जाने के लिए मुड़ी, मैं अँधेरे में खड़े लम्बे-चौड़े आदमी को देख कर डर के मारे स्तंभित हो कर बिलकुल स्थिर घड़ी हो गयी.
मेरी सांस रुक कर गले में अटक गयी. मेरे दीमाग ने काम करना बंद कर दिया. अब मुझे पता चला के शिकार का जानवर कैसे महसूस करता है जब शिकारी उसके बचने सब रस्ते बंद कर देता है.
मैं डरी हुई पर शांती से खड़ी रही. वो विशालकाय मर्द धीरे-धीरे मेरी तरफ आया. जब उसका चेहरा थोड़ी* सी रोशनी में आया तो मेरी जान ही निकल गयी. उस आदमी की शक्ल देख कर मेरा दीमाग चकरा गया. मुझे ज़ोर से चक्कर आने लगे. मैं घास पर गिरने ही वाले थी कि उस आदमी ने मुझे अपनी बाँहों में संभाल लिया.
मुझे थोड़ी देर बाद होश आया,और मेरी चीख निकलने वाले थी पर उस महाकाय विशाल शरीर के मालिक व्यक्ती ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मैं थोड़ी देर कुनमुनायी पर मेरा मूंह स्वाभिक रूप में अपने आप ही से खुल गया और उस मेरे बड़े मामा की जीभ मेरे मूंह में प्रविष्ट हो गयी. मैंने अपनी दोनों बाहें बड़े मामा के गले के इर्द-गिर्द डाल दीं. उन्होंने ने अपने जीभ से अंदर से मेरा सारा मूंह का अन्वेषण कर लिया. मेरी सांस फिरसे तेज़ हो गयी.
****************************
"नीलू,बस अब पूरा लंड अंदर है. मैं धीरे-धीरे तुम्हारी चूत मरना शुरू करूंगा." भैया की आवाज़ में बहुत सा प्यार छुपा हुआ था.
नीलम भाभी सिर्फ सिसकती रहीं पर भैया के मज़बूत चौड़े हृष्ट-पुष्ट नितम्ब ऊपर-नीचे होने लगें. मुझे बीच-बीच में भैया का थोडा सा लंड दिखाई पडा. उनके लंड की मोटाई देख कर मेरे दिल की धड़कन मानो कुछ क्षणों के लिए रुक गयी.
मनू भैया ने अपने अविश्वसनीय मोटे लंड से नीलम भाभी की चूत की चुदाई करनी शुरू कर दी. भैया के मज़बूत चौड़े नितम्ब धीमें-धीमें ऊपर नीचे होने लगे. भैया ने अपने शक्तीशाली कमर और कूल्हों की मसल्स की मदद से अपना महाकाय लंड नीलम भाभी की चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया.
नीलम भाभी अब बिलकुल नहीं रो रहीं थीं पर उनकी सिसकियाँ रुक-रुक कर उनकी कामुकता की हालत बता रहीं थीं.
मेरे अपरिचित प्रेमी ने मेरी भगांकुर को फिर से मीठी यातना देनी शुरू कर दी. उसकी दोनों हाथ मेरे उरोज़ों को और मेरी चूत को बिना रुके उत्तेजित करते रहे.
मनू भैया अब भाभी को और भी ज़ोर से चोद रहे थे. उनका लंड भाभी की चूत में बढ़ती हुई तेज़ी के साथ रेल के पिस्टन की तरह अंदर-बाहर जा रहा था. नीलम भाभी की सिस्कारियां उनकी काम-वासना की तरह ऊंची होती जा रहीं थीं, "आह..ऊई..मनू-अब बहुत अच्छा लग रहा है.मेरी चूत में तुम्हारा मोटा लंड अब बहुत कम दर्द कर रहा है. मुझे चोदो प्लीज़....मेरी चूत मारो...आँ..आँ. ...अम्म..मनू..ऊ.आह."
मनू भैया के चूतड़, इंजन के तरह, अब और भी तेज़ी से ऊपर-नीचे हो रहे थे.
मेरी चूत की हालत भी बहुत खराब थी. मैं दूसरी बार झरने वाली थी. मेरे शरीर की एंथन आने वाले कामोन्माद से मुझे और भी परेशान करने लगी.
अचानक भाभी की सिसकारी चीख में बदल गयी पर इस चीख में दर्द की कोई भावना नहीं थी.
"मैं झड़ने वाली हूँ, मनू.मेरी चूत को फाड़ दो.मुझे चोदो. आँ..आँ..अ..आ..मैं आ गयी.ई...ई..ई..ई," नीलम की लम्बी चीख उनके कौमार्य-भंग के पहले कामोन्माद [ओर्गाज़म] की घोषणा कर रही थी.
मेरा चरम-आनन्द भी भाभी के साथ मेरे शरीर को यंत्रणा दे रहा था पर बेचारी भाभी की तरह मैं चीखना चाहती थी पर मैंने अपने होंठ दातों से दबा लिए.
अगले एक घंटे कमरे में भैया ने नीलम भाभी की चूत का,अपने वृहत्काय मोटे लंड से, बेदर्दी से लतमर्दन किया. भाभी कम से कम पांच बार झड़ चुकीं थीं.
बाहर मेरे अपरिचित प्रेमी ने मेरी चूत, भागान्कुर और चूचियों को मीठी यातना दे-दे कर मुझे सात बार झाड़ दिया था .
भैया का लंड अब भाभी की चूत, जो अब उनके स्खलित रति-जल से लबालब भर गयी थी, चपक-चपक की आवाज़ के साथ बिजली की तेज़ी से भाभी की चूत का मर्दन कर रहा था. भाभी की चुदाई अब इतनी भयंकर हो चली थी कि एसा लगता था कि भैया एक हिंसक मनुष्य बन गए थे और भाभी की चूत का विनाश ही उनका उद्देश्य था. पर भाभी सिस्कारियों के बीच में उनको और ज़ोर से उनकी चूत 'फाड़ने' का प्रोत्साहन दे रहीं थीं.
जब भाभी अंदर कमरे में भैया के मूसल लंड से चुदवा कर छठवीं बार झड़ीं, मैं बाहर अपने अनजान प्रेमी से अपने चूत मसलवा कर आठवीं बार झड़ रही थी.
भैया ने अपने लंड को भीषण शक्ति से भाभी की चूत में अंदर बाहर डाल कर एक जंगली जानवर कि तरह गुर्रा कर अपने लंड को भाभी की प्यासी चूत में खोल दिया. भैया का लंड भाभी कि चूत में स्खलित हो रहा था और मैं बाहर अनजान पुरुष की उँगलियों पर मचल-मचल कर झड़ रही थी.
भैया भाभी के ऊपर निढाल हो कर परस गए. भाभी ने भैया अपनी दोनों बाँहों में और भी ज़ोर से जक्कड़ लिया. भाभी मातृक-प्रेम के साथ भैया की पीठ और सिर प्यार से सहला रही थीं. कामलिप्सा की संतुष्टी के बाद दोनों एक दुसरे को अनुराग भरे चुम्बन दे रहें थे.
मैं अब बिलकुल थकान से निढाल हो चली थी.मेरे बहुतबार झड़ने की थकान मेरे अजनबी प्रेमी को भी महसूस हुई. मुझे उसकी पकड़ ढीली महसूस हुई और मैंने अपने आपको उसकी बाँहों से मुक्त कर लिया. मैं जैसे ही दूर जाने के लिए चली उस आदमी ने मुझे पकड़ने की कोशिश की पर उसके हाथ में सिर्फ मेरी शॉल ही आ पाई.
मैंने पीछे बिना देखे भाग कर बाहर खुले लॉन में चली गयी. मैंने वहां रुक कर पीछे मुड़कर देखा. वो विशाल शरीर का आदमी अभी भी अँधेरे में खड़ा था. उसने मेरी शॉल प्यार से दीवार पर तह मार कर डाल दी.
मैं भरी साँसों से भरी अपने कमरे की तरफ दौड़ पड़ी. कमरे में पहुँच आकर मैं बिस्तर में निढाल हो कर लेट गयी. मुझे करीब आधा घंटा लगा अपनी सांस काबू में लाने के लिए.
मेरी तरुण उम्र में कभी भी मुझे इस तरह स्थिति के होने का कोई पूर्वानुमान या सँभालने का अनुभव नहीं था. मैंने कभी भी कोई ऐसा काम नहीं किया था जिसे मुझे अपने मम्मी-पापा से छुपाना पड़े. ऊपर से मेरे दिल में अब डर बैठ गया था कि क्या पता यह आदमी मुझे ब्लैक्मेल करने की कोशिश करे.
पर मेरी अपेक्षा के खिलाफ उससे भी बड़े डर ने मेरे मस्तिष्क पर नियंत्रण कर लिया, जिससे मेरा दिल बिलकुल बेचैन हो गया, कि वो मुझे कभी भी दुबारा न मिले. मैंने उसकी शक्ल भी नहीं देखी.
मैंने हिम्मत कर के फिर से बंगले की तरफ चल पड़ी. मेरा दिल हथोड़े की तरह मेरे छाती में धड़क रहा था. मैं धीरे-धीरे फिर से संकरे गलियारे में प्रविष्ट हो गयी. मेरी शॉल अभ्हे भी दीवार पर लटक रही थी. वो आदमी मुझे नहीं नज़र आया. मेरी सांस ज़ोर-ज़ोर से चल रही थी. मैंने खिड़की से कमरे के अंदर देखा. मनू भैया नीलम भाभी कि पीछे से चुदाई कर रहे थे. मुझे मालूम था इसे 'डॉगी' या 'घोड़ी' की रीति में चुदाई करना कहते हैं.
मेरा मन भैया-भाभी की चुदाई देखने के लिए तड़प रहा था पर मेरा डर मेरी मनोकामना से ज्यादा बलवान निकला.
मैं अपनी शॉल लेकर चुपचाप धीरे से बाहर आ गयी.
जैसे ही मैं गलियारे से बाहर आकर लॉन में जाने के लिए मुड़ी, मैं अँधेरे में खड़े लम्बे-चौड़े आदमी को देख कर डर के मारे स्तंभित हो कर बिलकुल स्थिर घड़ी हो गयी.
मेरी सांस रुक कर गले में अटक गयी. मेरे दीमाग ने काम करना बंद कर दिया. अब मुझे पता चला के शिकार का जानवर कैसे महसूस करता है जब शिकारी उसके बचने सब रस्ते बंद कर देता है.
मैं डरी हुई पर शांती से खड़ी रही. वो विशालकाय मर्द धीरे-धीरे मेरी तरफ आया. जब उसका चेहरा थोड़ी* सी रोशनी में आया तो मेरी जान ही निकल गयी. उस आदमी की शक्ल देख कर मेरा दीमाग चकरा गया. मुझे ज़ोर से चक्कर आने लगे. मैं घास पर गिरने ही वाले थी कि उस आदमी ने मुझे अपनी बाँहों में संभाल लिया.
मुझे थोड़ी देर बाद होश आया,और मेरी चीख निकलने वाले थी पर उस महाकाय विशाल शरीर के मालिक व्यक्ती ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मैं थोड़ी देर कुनमुनायी पर मेरा मूंह स्वाभिक रूप में अपने आप ही से खुल गया और उस मेरे बड़े मामा की जीभ मेरे मूंह में प्रविष्ट हो गयी. मैंने अपनी दोनों बाहें बड़े मामा के गले के इर्द-गिर्द डाल दीं. उन्होंने ने अपने जीभ से अंदर से मेरा सारा मूंह का अन्वेषण कर लिया. मेरी सांस फिरसे तेज़ हो गयी.
****************************