08-01-2020, 02:33 PM
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हम दोपहर तक शिमला पहुँच गए. बाहर एक बहुत बड़ा शामियाना लगा हुआ था. नानाजी ने*शहर के गरीब और मजलूमों के लिए खुला पूरे दिन खाने का इन्तिज़ाम किया था. उन लोगों का खाना खत्म हो जाने के बाद*सारी सफाई हो चुकी थी.
मेरे बड़े मामाजी बाहर ही थे. मैंने चिल्ला पड़ी, "बड़े मामा," मामाजी ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और प्यार से कई बार दोनों गालों पर चुम्बन दिए. मुझे मुक्त कर के मम्मी को ज़ोर से आलिंगन में भर लिया. मम्मी दोनों भाइयों से छोटीं थी और दोनों भाई उनपर अपनी जान छिड़कते थे.
मामाजी और पापा गले मिले. मामाजी पापा जितने ही लम्बे थे पर उनका गए सालों में**थोड़ा वज़न बड़*गया था. बड़े मामा ने सफ़ेद कुरता-पजामा पहना हुआ था जिसमे उनकी छोटी* सी तोंद का उभार दिख रहा था, बड़े मामा बहुत हैण्डसम लग रहे थे. उनकी घनी मूंछें उन्हें और भी आकर्षित बनाती थी. मेरे बड़े मामा विधुर थे. मेरी बड़ी मामीजी का देहांत अचानक स्तन के कैंसर से बारह साल पहले हो गया था. तभी से बड़े मामा ने अपने दोनों लड़कों की देखभाग में अपनी ज़िन्दगी लगा दी.
मम्मी बोलीं,"रवि भैया, कोई काम तो नहीं बचा करने को?"
पापा ने भी सर हिलाया.
"नहीं सुनी, डैडी ने सब पहले से ही इंतज़ाम कर रखा था.तुम्हे तो पता है उनकी आयोजन करने की आदत का." बड़े मामा ने मेरे कन्धों के उपर अपना बाज़ू डालकर हमसब को अंदर ले गए.
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शिमला का घर विशाल था. वो करीब १०० एकड़ ज़मीन पर बना था. इस विशाल घर में शायद १५ कमरे थे. उसके अलावा १० बंगले भी इर्द गिर्द बने हुए थे. उन में से एक बंगला मनु और नीलम की सुहागरात के लिए सजाया गया था. जायदाद की परिधि के नज़दीक २५ घर में काम करने वालों के लिए थे.
नानाजी ने इस घर को सारे परिवार के लिए बनाया था. उनकी इच्छा थी की जब वो इस संसार से चले जाएँ तो सब परिवार के सदस्य इस घर में, कम से कम साल में एक बार इकट्ठे हों.
घर में घुसते ही नरेश भैया ने मुझे आलिंगन में भर लिया. नरेश भैया करीब ६'३" लम्बे और पापा की तरह बड़ी बड़ी मांस पेशियों से विपुल भारी भरकम*शरीर के मालिक थे. नरेश भैया ने मुझे हमेशा के जैसे बच्ची की तरह प्यार दर्शाया. मम्मी और डैड ने नरेश को बेटे की तरह गले से लगाया.
नरेश की पत्नी अंजनी, जिसको सब अंजू कह कर पुकारते थे, दौड़ी दौड़ी आयी और हम सबसे गले मिली. अंजू बेहद सुंदर स्त्री थी. उसका गदराया हुआ शरीर किसी देवता को भी आकर्षित कर सकता था.
हम दोपहर तक शिमला पहुँच गए. बाहर एक बहुत बड़ा शामियाना लगा हुआ था. नानाजी ने*शहर के गरीब और मजलूमों के लिए खुला पूरे दिन खाने का इन्तिज़ाम किया था. उन लोगों का खाना खत्म हो जाने के बाद*सारी सफाई हो चुकी थी.
मेरे बड़े मामाजी बाहर ही थे. मैंने चिल्ला पड़ी, "बड़े मामा," मामाजी ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और प्यार से कई बार दोनों गालों पर चुम्बन दिए. मुझे मुक्त कर के मम्मी को ज़ोर से आलिंगन में भर लिया. मम्मी दोनों भाइयों से छोटीं थी और दोनों भाई उनपर अपनी जान छिड़कते थे.
मामाजी और पापा गले मिले. मामाजी पापा जितने ही लम्बे थे पर उनका गए सालों में**थोड़ा वज़न बड़*गया था. बड़े मामा ने सफ़ेद कुरता-पजामा पहना हुआ था जिसमे उनकी छोटी* सी तोंद का उभार दिख रहा था, बड़े मामा बहुत हैण्डसम लग रहे थे. उनकी घनी मूंछें उन्हें और भी आकर्षित बनाती थी. मेरे बड़े मामा विधुर थे. मेरी बड़ी मामीजी का देहांत अचानक स्तन के कैंसर से बारह साल पहले हो गया था. तभी से बड़े मामा ने अपने दोनों लड़कों की देखभाग में अपनी ज़िन्दगी लगा दी.
मम्मी बोलीं,"रवि भैया, कोई काम तो नहीं बचा करने को?"
पापा ने भी सर हिलाया.
"नहीं सुनी, डैडी ने सब पहले से ही इंतज़ाम कर रखा था.तुम्हे तो पता है उनकी आयोजन करने की आदत का." बड़े मामा ने मेरे कन्धों के उपर अपना बाज़ू डालकर हमसब को अंदर ले गए.
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शिमला का घर विशाल था. वो करीब १०० एकड़ ज़मीन पर बना था. इस विशाल घर में शायद १५ कमरे थे. उसके अलावा १० बंगले भी इर्द गिर्द बने हुए थे. उन में से एक बंगला मनु और नीलम की सुहागरात के लिए सजाया गया था. जायदाद की परिधि के नज़दीक २५ घर में काम करने वालों के लिए थे.
नानाजी ने इस घर को सारे परिवार के लिए बनाया था. उनकी इच्छा थी की जब वो इस संसार से चले जाएँ तो सब परिवार के सदस्य इस घर में, कम से कम साल में एक बार इकट्ठे हों.
घर में घुसते ही नरेश भैया ने मुझे आलिंगन में भर लिया. नरेश भैया करीब ६'३" लम्बे और पापा की तरह बड़ी बड़ी मांस पेशियों से विपुल भारी भरकम*शरीर के मालिक थे. नरेश भैया ने मुझे हमेशा के जैसे बच्ची की तरह प्यार दर्शाया. मम्मी और डैड ने नरेश को बेटे की तरह गले से लगाया.
नरेश की पत्नी अंजनी, जिसको सब अंजू कह कर पुकारते थे, दौड़ी दौड़ी आयी और हम सबसे गले मिली. अंजू बेहद सुंदर स्त्री थी. उसका गदराया हुआ शरीर किसी देवता को भी आकर्षित कर सकता था.