06-01-2020, 02:18 PM
निराली की देसी कसक
‘‘क्या करें बाबूजी, मरद काम न करे तो मुश्किल तो होती ही है,’’ निराली बोली.
‘‘कितनी आमदनी हो जाती है तुम्हारी?’’ पंकज ने पूछा.
‘‘वही एक हजार रुपए जो आपके घर से मिलते हैं.’’
“कहीं और काम क्यों नहीं करती तुम?”
“बाबूजी, आजकल शहर में बांग्लादेश की इतनी बाइयां आई हुई हैं कि घर बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.” निराली दुखी हो कर बोली.
“लेकिन इतने कम पैसों में तुम्हारा घर कैसे चलता होगा?”
“अब क्या करें बाबूजी, हम गरीबों की सुध लेने वाला है ही कौन?” निराली विवशता से बोली.
थोड़ी देर एक बोझिल सन्नाटा छाया रहा. फिर पंकज मीठे स्वर में बोले, ‘‘अगर तुम्हे इतने काम के दो हज़ार रुपए मिलने लगे तो?’’
निराली अचरज से बोली, ‘‘दो हज़ार कौन देता है, बाबूजी?’’
‘‘मैं दूंगा.’’ पंकज ने हिम्मत कर के कहा और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया.
निराली उनके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी. उसे समझ में नहीं आया कि इस मेहरबानी का क्या कारण हो सकता है. उसने पूछा, ‘‘आप क्यों देगें, बाबूजी?’’
निराली के हाथ को सहलाते हुए पंकज ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं तुम्हे अपना समझता हूँ. मैं तुम्हारी गरीबी और तुम्हारा दुःख दूर करना चाहता हूँ.”
“और मुझे सिर्फ वो ही काम करना होगा जो मैं अभी करती हूँ?”
“हां, पर साथ में मुझे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार भी चाहिए. दे सकोगी?’’ पंकज ने हिम्मत कर के कहा.
कुछ पलों तक सन्नाटा रहा. फिर निराली ने शंका व्यक्त की, ‘‘बीवीजी को पता चल गया तो?’’
‘‘अगर मैं और तुम उन्हें न बताएं तो उन्हें कैसे पता लगेगा?’’ पंकज ने उत्तर दिया. अब उन्हें बात बनती नज़र आ रही थी.
‘‘ठीक है पर मेरी एक शर्त है …’’
यह सुनते ही पंकज खुश हो गए. उन्होंने निराली को टोकते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है. तुम बस हां कह दो.’’
‘‘क्या करें बाबूजी, मरद काम न करे तो मुश्किल तो होती ही है,’’ निराली बोली.
‘‘कितनी आमदनी हो जाती है तुम्हारी?’’ पंकज ने पूछा.
‘‘वही एक हजार रुपए जो आपके घर से मिलते हैं.’’
“कहीं और काम क्यों नहीं करती तुम?”
“बाबूजी, आजकल शहर में बांग्लादेश की इतनी बाइयां आई हुई हैं कि घर बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.” निराली दुखी हो कर बोली.
“लेकिन इतने कम पैसों में तुम्हारा घर कैसे चलता होगा?”
“अब क्या करें बाबूजी, हम गरीबों की सुध लेने वाला है ही कौन?” निराली विवशता से बोली.
थोड़ी देर एक बोझिल सन्नाटा छाया रहा. फिर पंकज मीठे स्वर में बोले, ‘‘अगर तुम्हे इतने काम के दो हज़ार रुपए मिलने लगे तो?’’
निराली अचरज से बोली, ‘‘दो हज़ार कौन देता है, बाबूजी?’’
‘‘मैं दूंगा.’’ पंकज ने हिम्मत कर के कहा और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया.
निराली उनके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी. उसे समझ में नहीं आया कि इस मेहरबानी का क्या कारण हो सकता है. उसने पूछा, ‘‘आप क्यों देगें, बाबूजी?’’
निराली के हाथ को सहलाते हुए पंकज ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं तुम्हे अपना समझता हूँ. मैं तुम्हारी गरीबी और तुम्हारा दुःख दूर करना चाहता हूँ.”
“और मुझे सिर्फ वो ही काम करना होगा जो मैं अभी करती हूँ?”
“हां, पर साथ में मुझे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार भी चाहिए. दे सकोगी?’’ पंकज ने हिम्मत कर के कहा.
कुछ पलों तक सन्नाटा रहा. फिर निराली ने शंका व्यक्त की, ‘‘बीवीजी को पता चल गया तो?’’
‘‘अगर मैं और तुम उन्हें न बताएं तो उन्हें कैसे पता लगेगा?’’ पंकज ने उत्तर दिया. अब उन्हें बात बनती नज़र आ रही थी.
‘‘ठीक है पर मेरी एक शर्त है …’’
यह सुनते ही पंकज खुश हो गए. उन्होंने निराली को टोकते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है. तुम बस हां कह दो.’’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
