06-01-2020, 02:17 PM
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो पंकज की नींद खुल गई. उन्होंने देखा कि बिस्तर पर वे अकेले थे. वे बुदबुदा उठे … इसी वक़्त आना था …. पर वे घड़ी देख कर खिसिया गए. सुबह हो चुकी थी. दुबारा दस्तक हुई तो उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला. बाहर निराली खड़ी थी, उनकी कामवाली, जो एक मिनट पहले ही उनके अधूरे सपने से ओझल हुई थी. उसके अन्दर आने पर पंकज ने दरवाजा बंद कर दिया.
जबसे उनकी पत्नी दीपिका गई थी वे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे थे. दीपिका की दीदी शादी के पांच वर्ष बाद गर्भवती हुई थी. वे कोई जोखिम नही उठाना चाहती थीं इसलिए दो महीने पहले ही उन्होंने दीपिका को अपने यहाँ बुला लिया था. पिछले माह उनके बेटा हुआ था. जच्चा के कमजोर होने के कारण दीपिका को एक महीने और वहां रुकना था. इसलिये पंकज इस वक्त मजबूरी में ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे.
काफी समय से उनका मन अपने घर पर काम करने वाली निराली पर आया हुआ था. निराली युवा थी. उसके नयन-नक्श आकर्षक थे. उसका बदन गदराया हुआ था. अपनी पत्नी के रहते उन्होंने कभी निराली को वासना की नज़र से नहीं देखा था. दीपिका थी ही इतनी खूबसूरत! उसके सामने निराली कुछ भी नहीं थी. पर अब पत्नी के वियोग ने उन की मनोदशा बदल दी थी. निराली उन्हें बहुत लुभावनी लगने लगी थी और वे उसे पाने के लिए वे बेचैन हो उठे थे. पंकज जानते थे कि निराली बहुत गरीब है. वो मेहनत कर के बड़ी मुश्किल से अपना घर चलाती है. उसका पति निठल्ला है और पत्नी की कमाई पर निर्भर है. उन्होंने सोचा कि पैसा ही निराली की सबसे बड़ी कमजोरी होगी और उसी के सहारे उसे पाया जा सकता है. पंकज जानते थे कि पैसे के लोभ में अच्छे-अच्छों का ईमान डगमगा जाता है. फिर निराली की क्या औकात कि उन्हें पुट्ठे पर हाथ न रखने दे.
निराली को हासिल करने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई थी. आज उन्होंने उस योजना को क्रियान्वित करने का फैसला कर लिया. निराली के आने के बाद वे अपने बिस्तर पर लेट गए और कराहने लगे. निराली अंदर काम कर रही थी. जब उसने पंकज के कराहने की आवाज सुनी तो वो साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती हुई उनके पास आयी. उन्हें बेचैन देख कर उसने पूछा, ‘‘बाबूजी, क्या हुआ? … तबियत खराब है?’’
दर्द का अभिनय करते हुए पंकज ने कहा, “सर में बहुत दर्द है.”
“आपने दवा ली?”
“हां, ली थी पर कोई फायदा नहीं हुआ. जब दीपिका यहाँ थी तो सर दबा देती थी और दर्द दूर हो जाता था. पर अब वो तो यहाँ है नहीं.”
निराली सहानुभूति से बोली, ‘‘बाबूजी, आपको बुरा न लगे तो मैं आपका सर दबा दूं?’’
‘‘तुम्हे वापस जाने में देर हो जायेगी! मैं तुम्हे तकलीफ़ नहीं देना चाहता … पर घर में कोई और है भी नहीं,’’ पंकज ने विवशता दिखाते हुए कहा.
“इसमें तकलीफ़ कैसी? और मुझे घर जाने की कोई जल्दी भी नहीं है,” निराली ने कहा.
निराली झिझकते हुए पलंग पर उनके पास बैठ गई. वो उनके माथे को आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और सहलाने लगी. एक स्त्री के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही पंकज का शरीर उत्तेजना से झनझनाने लगा. उन्होंने कुछ देर स्त्री-स्पर्श का आनंद लिया और फिर अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए बोले, ‘‘निराली, तुम्हारे हाथों में तो जादू है! बस थोड़ी देर और दबा दो.’’
कुछ देर और स्पर्श-सुख लेने के बाद उन्होंने सहानुभूति से कहा, ‘‘मैंने सुना है कि तुम्हारा आदमी कोई काम नहीं करता. वो बीमार रहता है क्या?’’
‘‘बीमार काहे का? … खासा तन्दरुस्त है पर काम करना ही नहीं चाहता!’’ निराली मुंह बनाते हुए बोली.
‘‘फिर तो तम्हारा गुजारा मुश्किल से होता होगा?’’
जबसे उनकी पत्नी दीपिका गई थी वे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे थे. दीपिका की दीदी शादी के पांच वर्ष बाद गर्भवती हुई थी. वे कोई जोखिम नही उठाना चाहती थीं इसलिए दो महीने पहले ही उन्होंने दीपिका को अपने यहाँ बुला लिया था. पिछले माह उनके बेटा हुआ था. जच्चा के कमजोर होने के कारण दीपिका को एक महीने और वहां रुकना था. इसलिये पंकज इस वक्त मजबूरी में ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे.
काफी समय से उनका मन अपने घर पर काम करने वाली निराली पर आया हुआ था. निराली युवा थी. उसके नयन-नक्श आकर्षक थे. उसका बदन गदराया हुआ था. अपनी पत्नी के रहते उन्होंने कभी निराली को वासना की नज़र से नहीं देखा था. दीपिका थी ही इतनी खूबसूरत! उसके सामने निराली कुछ भी नहीं थी. पर अब पत्नी के वियोग ने उन की मनोदशा बदल दी थी. निराली उन्हें बहुत लुभावनी लगने लगी थी और वे उसे पाने के लिए वे बेचैन हो उठे थे. पंकज जानते थे कि निराली बहुत गरीब है. वो मेहनत कर के बड़ी मुश्किल से अपना घर चलाती है. उसका पति निठल्ला है और पत्नी की कमाई पर निर्भर है. उन्होंने सोचा कि पैसा ही निराली की सबसे बड़ी कमजोरी होगी और उसी के सहारे उसे पाया जा सकता है. पंकज जानते थे कि पैसे के लोभ में अच्छे-अच्छों का ईमान डगमगा जाता है. फिर निराली की क्या औकात कि उन्हें पुट्ठे पर हाथ न रखने दे.
निराली को हासिल करने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई थी. आज उन्होंने उस योजना को क्रियान्वित करने का फैसला कर लिया. निराली के आने के बाद वे अपने बिस्तर पर लेट गए और कराहने लगे. निराली अंदर काम कर रही थी. जब उसने पंकज के कराहने की आवाज सुनी तो वो साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती हुई उनके पास आयी. उन्हें बेचैन देख कर उसने पूछा, ‘‘बाबूजी, क्या हुआ? … तबियत खराब है?’’
दर्द का अभिनय करते हुए पंकज ने कहा, “सर में बहुत दर्द है.”
“आपने दवा ली?”
“हां, ली थी पर कोई फायदा नहीं हुआ. जब दीपिका यहाँ थी तो सर दबा देती थी और दर्द दूर हो जाता था. पर अब वो तो यहाँ है नहीं.”
निराली सहानुभूति से बोली, ‘‘बाबूजी, आपको बुरा न लगे तो मैं आपका सर दबा दूं?’’
‘‘तुम्हे वापस जाने में देर हो जायेगी! मैं तुम्हे तकलीफ़ नहीं देना चाहता … पर घर में कोई और है भी नहीं,’’ पंकज ने विवशता दिखाते हुए कहा.
“इसमें तकलीफ़ कैसी? और मुझे घर जाने की कोई जल्दी भी नहीं है,” निराली ने कहा.
निराली झिझकते हुए पलंग पर उनके पास बैठ गई. वो उनके माथे को आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और सहलाने लगी. एक स्त्री के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही पंकज का शरीर उत्तेजना से झनझनाने लगा. उन्होंने कुछ देर स्त्री-स्पर्श का आनंद लिया और फिर अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए बोले, ‘‘निराली, तुम्हारे हाथों में तो जादू है! बस थोड़ी देर और दबा दो.’’
कुछ देर और स्पर्श-सुख लेने के बाद उन्होंने सहानुभूति से कहा, ‘‘मैंने सुना है कि तुम्हारा आदमी कोई काम नहीं करता. वो बीमार रहता है क्या?’’
‘‘बीमार काहे का? … खासा तन्दरुस्त है पर काम करना ही नहीं चाहता!’’ निराली मुंह बनाते हुए बोली.
‘‘फिर तो तम्हारा गुजारा मुश्किल से होता होगा?’’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.