03-01-2020, 12:01 PM
कल का पूरा दिन अंकिता के लिए बहुत अजीब गुजरा था. जब सुबह उसकी आँख खुली थी तो आँखो में आंशू भर आए थे उसकी. सपना ही कुछ ऐसा देखा था उसने.
सपने में वो गौरव के साथ थी. दोनो डिन्नर कर रहे थे. डिन्नर की जगह बड़ी अजीब थी. थाने की बिल्डिंग की छत पर थे दोनो. वहाँ एक टेबल लगी थी जिसके दोनो तरफ कुर्सियों पर गौरव और अंकिता बैठे थे.
खाते हुए दोनो प्यारी-प्यारी बातें कर रहे थे. अचानक अंकिता ने प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा, “गौरव तुम जान-ना चाहते थे ना मेरे दिल की बात. क्या बोल दूं आज.”
“हां बोलो ना मैं तो कब से इंतेज़ार कर रहा हूँ. बताओ क्या है तुम्हारे दिल में.”
“मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ गौरव. मगर इस प्यार में दो कदम भी साथ नही चल सकती तुम्हारे.”
“प्यार करती हो और दो कदम भी साथ नही चल सकती. ए एस पी साहिबा इतनी कमजोर निकलेगी सोचा भी नही था मैने. मैं तुमसे कोई बात नही करना चाहता.”
“गौरव प्लीज़ सुनो तो.”
“क्या सुनू मैं…प्यार का मज़ाक बना रखा है तुमने. प्यार का ऐसा बेहूदा इज़हार आज तक ना देखा ना सुना मैने. आइ हेट यू.”
तभी अंकिता की आँख खुल गयी थी और उसकी आँखो में आँसू भर आए थे. गौरव की बात किसी काँटे की तरह चुभ रही थी अंकिता के दिल में.
“इसीलिए मैने प्यार का इज़हार नही लिया अब तक. प्यार का इज़हार करके इस प्यार को ठुकराना नही चाहती मैं. इसीलिए दिल में दबा कर रखती हूँ इस प्यार को. पर गौरव तुम जानते तो हो ना कि मैं प्यार करती हूँ तुम्हे. मैं कहूँ या ना कहूँ पर तुमसे कुछ छुपा तो नही है ना. काश तुम्हे कह पाती एक बार कि कितना प्यार करती हूँ तुम्हे पर किस्मत मुझे मौका ही नही दे रही. काश घर में तुम्हारे बारे में बात करने से पहले ही तुम्हे ‘आइ लव यू’ बोल देती तो दिल पर बोझ ना रहता. पता नही पापा क्यों इतना नापसंद करते हैं तुम्हे.” अंकिता चुपचाप बिस्तर पर पड़ी सब सोच रही थी.
कुछ देर अंकिता यू ही चुपचाप पड़ी रही. अचानक उसे ख्याल आया, “आज फिर से पापा से बात करके देखती हूँ तुम्हारे बारे में. पूरी कोशिश करूँगी उन्हे मनाने की. अगर वो मान गये तो तुम्हे अपने दिल में छुपा प्यार दिखा दूँगी आज.” अंकिता दिल में एक उम्मीद ले कर बिस्तर से उठ गयी.
सुबह के 7 बज रहे थे. अंकिता के डेडी ड्रॉयिंग रूम में बैठे अख़बार पढ़ रहे थे. अंकिता चुपचाप उनके पास आकर बैठ गयी.
“गुड मॉर्निंग पापा.”
“गुड मॉर्निंग बेटा. बड़ी जल्दी उठ गयी आज तुम.”
“एक बात करनी थी आपसे.”
“हां बोलो क्या बात है.”
“पापा क्या मेरी पसंद नापसंद कोई मायने नही रखती?”
“क्या मतलब… मैं कुछ समझा नही.”
“मैं गौरव को पसंद करती हूँ और आप ज़बरदस्ती मेरी शादी कही और करना चाहते हैं. क्या आपको नही लगता कि ये ग़लत है.”
“कैसे ग़लत है. कहाँ मदन और कहा गौरव. एक आइएएस ऑफीसर है और एक इनस्पेक्टर. कोई कंपॅरिज़न ही नही है.”
“लेकिन मैं उस इनस्पेक्टर को पसंद करती हूँ. क्या इस बात से कोई फर्क नही पड़ता आपको.”
“तुम पागल हो गयी हो क्या. इतना अच्छा रिश्ता ढूँढा है तुम्हारे लिए और तुम उस निक्कम्मे इनस्पेक्टर की बातें कर रही हो फिर से. मैने पहले ही क्लियर कर दिया था तुम्हे कि मुझे ये मंजूर नही फिर क्यों दुबारा वही बात कर रही हो.”
“क्योंकि मैं घुट घुट कर नही जीना चाहती शादी के बाद. आख़िर बुराई क्या है गौरव में.”
“मदन में क्या बुराई है. तुम दोनो का कॅड्रर भी एक है. एक ऑफीसर, ऑफीसर से ही शादी करे तो अच्छा है वरना बात नही बनेगी.”
“बात बुराई की नही है पापा. मैं गौरव को पसंद करती हूँ मदन को नही.”
“शादी हो जाएगी तो पसंद करने लगोगी.”
“नही करूँगी मैं ये शादी.” अंकिता ने कहा.
अंकिता की मम्मी भी आ गयी दोनो की बहस सुन कर.
“मत करो. इसी दिन के लिए पाल पोश कर बड़ा किया था हमनें तुम्हे. पहली बार ज़ुबान लड़ा रही हो तुम मुझसे. मैने अपना फ़ैसला बता दिया था फिर भी तुमने आज ये मुद्दा उठाया.”
“पापा मैं ज़बान नही लड़ा रही. बस अपने दिल की बात कह रही हूँ.”
“दिल की बात करने से जिंदगी नही संवर जाएगी तुम्हारी. दिमाग़ से काम लो. तुम्हारा भला चाहता हूँ मैं. मदन के परिवार वालो को अच्छे से जानता हूँ मैं. उसके पापा मेरे कॉलेज के दोस्त हैं. अपने दिल की बात पर अपने दिमाग़ से गौर करो. जिंदगी भर खुश रहोगी तुम उस घर में.”
“कॉन जानता है कि खुश रहूंगी या दुखी रहूंगी.”
“हां हम तो तुम्हारे दुश्मन है जो तुम्हे दुख झेलने के लिए मजबूर कर रहे हैं. अगर ऐसा है तो जाओ कर लो जो करना है. तुम बालिग हो. अपने फ़ैसले खुद करने का क़ानूनी अधिकार है तुम्हे. पोलीस ऑफीसर भी हो. हमारी औकात ही क्या है तुम्हे कुछ कहने की अब. जाओ बेटा कर लो जो करना है.”
“नही पापा प्लीज़. ऐसा मत बोलिए. आपकी इच्छा के बिना एक कदम भी नही उठा सकती मैं आप ये अच्छे से जानते हैं.” अंकिता भावुक हो गयी.
“मेरी इच्छा की इतना परवाह है तुम्हे तो क्यों दुबारा गौरव की बात की तुमने. मुझे वो लड़का बिल्कुल पसंद नही है. दुबारा तुमने इस बारे में बात की तो मेरा मरा मूह देखोगी तुम.”
अंकिता अपने पापा के कदमो में बैठ गयी और बोली, “पापा प्लीज़ ऐसा मत बोलिए. मैं वही करूँगी जो आप कहेंगे.”
“मेरी मर्ज़ी तुम जानती हो. दुबारा इस मुद्दे पर बात मत करना मुझसे. बहुत दुख होता है मुझे. तुमने भूल कर भी गौरव का नाम लिया मेरे सामने तो तेरा मेरा रिश्ता हमेशा के लिए खाँ हो जाएगा. भूल जाऊगा मैं कि तुम मेरी बेटी हो.” ये बोल कर अंकिता के पापा वहाँ से चले गये.
बहुत उम्मीद ले कर आई थी अंकिता अपने पापा से बात करने.मगर उसकी उम्मीद गहरी निराशा में बदल गयी. बड़ी मुश्किल से थाने जाने के लिए तैयार हुई थी वो. मान इतना उदास था कि बिना नाश्ता किए घर से निकल गयी थी.
सपने में वो गौरव के साथ थी. दोनो डिन्नर कर रहे थे. डिन्नर की जगह बड़ी अजीब थी. थाने की बिल्डिंग की छत पर थे दोनो. वहाँ एक टेबल लगी थी जिसके दोनो तरफ कुर्सियों पर गौरव और अंकिता बैठे थे.
खाते हुए दोनो प्यारी-प्यारी बातें कर रहे थे. अचानक अंकिता ने प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा, “गौरव तुम जान-ना चाहते थे ना मेरे दिल की बात. क्या बोल दूं आज.”
“हां बोलो ना मैं तो कब से इंतेज़ार कर रहा हूँ. बताओ क्या है तुम्हारे दिल में.”
“मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ गौरव. मगर इस प्यार में दो कदम भी साथ नही चल सकती तुम्हारे.”
“प्यार करती हो और दो कदम भी साथ नही चल सकती. ए एस पी साहिबा इतनी कमजोर निकलेगी सोचा भी नही था मैने. मैं तुमसे कोई बात नही करना चाहता.”
“गौरव प्लीज़ सुनो तो.”
“क्या सुनू मैं…प्यार का मज़ाक बना रखा है तुमने. प्यार का ऐसा बेहूदा इज़हार आज तक ना देखा ना सुना मैने. आइ हेट यू.”
तभी अंकिता की आँख खुल गयी थी और उसकी आँखो में आँसू भर आए थे. गौरव की बात किसी काँटे की तरह चुभ रही थी अंकिता के दिल में.
“इसीलिए मैने प्यार का इज़हार नही लिया अब तक. प्यार का इज़हार करके इस प्यार को ठुकराना नही चाहती मैं. इसीलिए दिल में दबा कर रखती हूँ इस प्यार को. पर गौरव तुम जानते तो हो ना कि मैं प्यार करती हूँ तुम्हे. मैं कहूँ या ना कहूँ पर तुमसे कुछ छुपा तो नही है ना. काश तुम्हे कह पाती एक बार कि कितना प्यार करती हूँ तुम्हे पर किस्मत मुझे मौका ही नही दे रही. काश घर में तुम्हारे बारे में बात करने से पहले ही तुम्हे ‘आइ लव यू’ बोल देती तो दिल पर बोझ ना रहता. पता नही पापा क्यों इतना नापसंद करते हैं तुम्हे.” अंकिता चुपचाप बिस्तर पर पड़ी सब सोच रही थी.
कुछ देर अंकिता यू ही चुपचाप पड़ी रही. अचानक उसे ख्याल आया, “आज फिर से पापा से बात करके देखती हूँ तुम्हारे बारे में. पूरी कोशिश करूँगी उन्हे मनाने की. अगर वो मान गये तो तुम्हे अपने दिल में छुपा प्यार दिखा दूँगी आज.” अंकिता दिल में एक उम्मीद ले कर बिस्तर से उठ गयी.
सुबह के 7 बज रहे थे. अंकिता के डेडी ड्रॉयिंग रूम में बैठे अख़बार पढ़ रहे थे. अंकिता चुपचाप उनके पास आकर बैठ गयी.
“गुड मॉर्निंग पापा.”
“गुड मॉर्निंग बेटा. बड़ी जल्दी उठ गयी आज तुम.”
“एक बात करनी थी आपसे.”
“हां बोलो क्या बात है.”
“पापा क्या मेरी पसंद नापसंद कोई मायने नही रखती?”
“क्या मतलब… मैं कुछ समझा नही.”
“मैं गौरव को पसंद करती हूँ और आप ज़बरदस्ती मेरी शादी कही और करना चाहते हैं. क्या आपको नही लगता कि ये ग़लत है.”
“कैसे ग़लत है. कहाँ मदन और कहा गौरव. एक आइएएस ऑफीसर है और एक इनस्पेक्टर. कोई कंपॅरिज़न ही नही है.”
“लेकिन मैं उस इनस्पेक्टर को पसंद करती हूँ. क्या इस बात से कोई फर्क नही पड़ता आपको.”
“तुम पागल हो गयी हो क्या. इतना अच्छा रिश्ता ढूँढा है तुम्हारे लिए और तुम उस निक्कम्मे इनस्पेक्टर की बातें कर रही हो फिर से. मैने पहले ही क्लियर कर दिया था तुम्हे कि मुझे ये मंजूर नही फिर क्यों दुबारा वही बात कर रही हो.”
“क्योंकि मैं घुट घुट कर नही जीना चाहती शादी के बाद. आख़िर बुराई क्या है गौरव में.”
“मदन में क्या बुराई है. तुम दोनो का कॅड्रर भी एक है. एक ऑफीसर, ऑफीसर से ही शादी करे तो अच्छा है वरना बात नही बनेगी.”
“बात बुराई की नही है पापा. मैं गौरव को पसंद करती हूँ मदन को नही.”
“शादी हो जाएगी तो पसंद करने लगोगी.”
“नही करूँगी मैं ये शादी.” अंकिता ने कहा.
अंकिता की मम्मी भी आ गयी दोनो की बहस सुन कर.
“मत करो. इसी दिन के लिए पाल पोश कर बड़ा किया था हमनें तुम्हे. पहली बार ज़ुबान लड़ा रही हो तुम मुझसे. मैने अपना फ़ैसला बता दिया था फिर भी तुमने आज ये मुद्दा उठाया.”
“पापा मैं ज़बान नही लड़ा रही. बस अपने दिल की बात कह रही हूँ.”
“दिल की बात करने से जिंदगी नही संवर जाएगी तुम्हारी. दिमाग़ से काम लो. तुम्हारा भला चाहता हूँ मैं. मदन के परिवार वालो को अच्छे से जानता हूँ मैं. उसके पापा मेरे कॉलेज के दोस्त हैं. अपने दिल की बात पर अपने दिमाग़ से गौर करो. जिंदगी भर खुश रहोगी तुम उस घर में.”
“कॉन जानता है कि खुश रहूंगी या दुखी रहूंगी.”
“हां हम तो तुम्हारे दुश्मन है जो तुम्हे दुख झेलने के लिए मजबूर कर रहे हैं. अगर ऐसा है तो जाओ कर लो जो करना है. तुम बालिग हो. अपने फ़ैसले खुद करने का क़ानूनी अधिकार है तुम्हे. पोलीस ऑफीसर भी हो. हमारी औकात ही क्या है तुम्हे कुछ कहने की अब. जाओ बेटा कर लो जो करना है.”
“नही पापा प्लीज़. ऐसा मत बोलिए. आपकी इच्छा के बिना एक कदम भी नही उठा सकती मैं आप ये अच्छे से जानते हैं.” अंकिता भावुक हो गयी.
“मेरी इच्छा की इतना परवाह है तुम्हे तो क्यों दुबारा गौरव की बात की तुमने. मुझे वो लड़का बिल्कुल पसंद नही है. दुबारा तुमने इस बारे में बात की तो मेरा मरा मूह देखोगी तुम.”
अंकिता अपने पापा के कदमो में बैठ गयी और बोली, “पापा प्लीज़ ऐसा मत बोलिए. मैं वही करूँगी जो आप कहेंगे.”
“मेरी मर्ज़ी तुम जानती हो. दुबारा इस मुद्दे पर बात मत करना मुझसे. बहुत दुख होता है मुझे. तुमने भूल कर भी गौरव का नाम लिया मेरे सामने तो तेरा मेरा रिश्ता हमेशा के लिए खाँ हो जाएगा. भूल जाऊगा मैं कि तुम मेरी बेटी हो.” ये बोल कर अंकिता के पापा वहाँ से चले गये.
बहुत उम्मीद ले कर आई थी अंकिता अपने पापा से बात करने.मगर उसकी उम्मीद गहरी निराशा में बदल गयी. बड़ी मुश्किल से थाने जाने के लिए तैयार हुई थी वो. मान इतना उदास था कि बिना नाश्ता किए घर से निकल गयी थी.