03-01-2020, 11:41 AM
“5…6….7…8….9…” साइको गिनती गिन रहा था.
“अबे आ रहा हूँ क्यों चूतिया की तरह गिनती गिन रहे हो. कॉलेज में नही सीखी थी क्या ये गिनती. पता नही कैसे-कैसे चूतिया हैं दुनिया में.” आशुतोष ने दीवार फाँदते हुए कहा.
वैसे तो चाँदनी रात एक खूबसूरत रात होती है और ऐसी चाँदनी रात में बहुत सुन्दर फसाने बने हुए हैं. लेकिन ये चाँदनी रात बहुत भयानक रूप ले रही थी. फार्म हाउस पर जो कुछ भी हो रहा था उसके कारण ये चाँदनी रात अमावस्या की रात में बदल गयी थी.
जब आशुतोष फार्म हाउस की दीवार कूद रहा था तब अपर्णा यही दुवा कर रही थी कि उसकी उमर आशुतोष को लग जाए और उस पर आने वाली अनहोनी उस पर आ जाए. प्यार में इंसान खुद को भूल कर सिर्फ़ उसे याद रखता है जिसे वो बहुत प्यार करता है. गौरव अपनी परवाह किए बिना अंकिता के उपर पड़ा था क्योंकि उसे मार खाते नही देख सकता था. खुद को भुला देना आसान नही होता. बड़े-बड़े साधु महात्मा भी नही कर पाते हैं ये काम. लेकिन प्यार में डूबे प्रेमी बड़ी आसानी से कर लेते हैं. तभी शायद प्यार सबसे बड़ी साधना है और परमात्मा को पाने का सबसे सच्चा और पवित्र रास्ता है. प्रेम-साधना में, साधना ने भी कुछ ऐसा ही रास्ता दिखाया था हमें.
“मैं अपने प्यार को कुछ नही होने दूँगी चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों ना देनी पड़े. लेकिन मैं क्या करूँ भगवान कुछ समझ नही आ रहा. क्या मैं यही बैठी रहूं. कुछ तो करना होगा मुझे.मुझे रास्ता दीखाओ भगवान…रास्ता दीखाओ मुझे.” अपर्णा ने आँखे बंद करके प्रेयर की.
मुश्किल वक्त में इंसान सबसे पहले भगवान को याद करता है. अपर्णा भी वही कर रही थी. कुछ सोच कर अपर्णा उठी और दीवार के साथ झुक कर उस जगह से आगे बढ़ गयी. उसने कुछ करने की ठान ली थी.
आशुतोष फार्म हाउस में कूद कर दीवार के साथ ही खड़ा रहा.
“क्या कहा तुमने मुझे…चूतिया…हा…ये बंदूक वही गिरा कर चुपचाप यहाँ आजा. मैं तुझे बताता हूँ क़ि चूतिया किसे कहते हैं.” साइको कठोर शब्दो में कहा.
“ओके फाइन… ये लो गिरा दी बंदूक मैने. और मुझे पता है चूतिया किसे कहते हैं. तुझसे बड़ा चूतिया मिलेगा क्या कही. बिना मतलब लोगो को मारता फिरता है. तुझे मिलता क्या है ये सब करके?”
“एक आर्टिस्ट को जो मिलता है…वही मुझे मिलता है. मैं लोगो को ख़ास तरीके से मारता हूँ. एक खूबसूरत मौत देता हूँ उन्हे. आज मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन है. आज एक साथ इतने लोगो को मारने का मौका मिल रहा है. तुम नही समझ सकते कि क्या मज़ा है इस आर्ट में. ये सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ. चुपचाप यहाँ आओ तुम्हारी खातिरदारी करता हूँ. तुम्हारे हर सवाल का जवाब मिलेगा तुम्हे…हिहिहीही.”
आशुतोष बिना कुछ कहे चुपचाप साइको के करीब आ गया.
“बहुत दिन से मैने किसी की खोपड़ी नही उड़ाई अपनी बंदूक से. सोचता हूँ आज ये कमी पूरी कर दी जाए. मेरे सर पर निशाना लगाया था तूने हा. मेरे कान को ज़ख्मी कर दिया तूने. तुम्हारा निशाना तो चूक गया पर मेरा नही चूकेगा. उड़ती चिड़िया को गिरा सकता हूँ मैं ज़मीन पर गोली मार कर. तो सोचो तुम्हारी खोपड़ी कैसे बचेगी…हिहिहिहीही.”
ये सुन कर एक पल को आशुतोष के होश उड़ गये. “इस से पहले ये मेरी खोपड़ी उड़ाए मुझे इसकी उड़ा देनी चाहिए.” आशुतोष ने फुर्ती से गन निकाली पीठ के पीछे से. लेकिन फाइयर नही कर पाया क्योंकि बंदूक उसके हाथ से छूट चुकी थी.
“हाहहहाहा…अब बताओ कॉन है चूतिया. मेरे सामने कोई बंदूक लेकर खड़ा नही हो सकता. कोई डाउट हो तो अपनी ए एस पी साहिबा से पूछ लो. या फिर इस रिपोर्टर से पूछ लो. कोई और बंदूक हो तो वो भी निकाल कर ट्राइ कर लो.”
“होती तो ट्राइ ज़रूर करता” आशुतोष ने कहा.
साइको ने आशुतोष के हाथ से छुट्टी बंदूक उठा ली और उसमें से गोलिया निकाल कर उसे दूर फेंक दिया.
“बहुत खूब…तुम्हारे साथ गेम खेलने में मज़ा आएगा. तुम्हारी खोपड़ी उड़ाने के लिए तड़प रहा हूँ मैं. तुरंत तुम्हे गोली मारने का मन कर रहा है. लेकिन तुम एक काम करोगे तो मैं ये तड़प भूल जाऊगा और तुम्हे यहाँ से जाने दूँगा. ये देखो तुम्हारे सामने ए एस पी साहिबा पड़ी हैं. इनके उपर मिस्टर गौरव पांडे पड़ें हैं. हद है ना बेशर्मी की. इन दोनो की इन्ही हर्कतो की वजह से शहर में क्राइम बढ़ रहा है. ये तो मैने मिस्टर पांडे को किसी लायक छोड़ा नही है वरना तो ये अभी हमारे सामने ही चूत मार रहा होता ए एस पी साहिबा की.” साइको ने कहा.
“शट अप यू बस्टर्ड. शरम आनी चाहिए तुम्हे ऐसा बोलते हुए.” बहुत ज़्यादा दर्द था अंकिता की आवाज़ में. इतना दर्द की आशुतोष की आँखे भी नम हो गयी उसकी आवाज़ सुन कर.
“अगर तुम जींदा रहना चाहते हो तो तुम्हे इन दोनो बेशार्मो को मारना होगा. ये बेसबॉल बॅट लो और मार डालो इन दोनो को. जितना ज़्यादा खून बहेगा उतना अच्छा रहेगा. मुझे यकीन है अपनी खोपड़ी बचाने के लिए तुम इतना तो कर ही सकते हो. बहुत मज़ा आएगा चलो शुरू हो जाओ.”
साइको ने बेसबॉल बॅट आशुतोष की तरफ फेंका और बोला, "उठाओ इसे और जल्दी शुरू हो जाओ. सिर्फ़ 10 मिनिट का टाइम है तुम्हारे पास इन दोनो को मारने का. नही मार पाए इन दोनो को तो तुम्हारी खोपड़ी में अपनी बंदूक की सारी की सारी गोलिया उतार दूँगा.और हां अब कोई चालाकी मत करना...हर वक्त तुम्हारी खोपड़ी मेरे निशाने पर है हिहिहिहीही."
आशुतोष अजीब असमंजस में पड़ गया. उसे मरना मंजूर नही था. ना ही वो अंकिता और गौरव को मार सकता था. वो बात उठाने के लिए नीचे झुका.
"क्या हुआ बुजदिल.... कायर...खुद क्यों नही मारते हमे. तू नपुन्शक है और नपुन्शक ही रहेगा." गौरव ने कहा
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