03-01-2020, 10:54 AM
आशुतोष और अपर्णा अपने प्यार की खुमारी में खोए थे. उन्हे ज़रा भी अंदाज़ा नही था कि पूजा को किडनॅप कर लिया है साइको ने और रीमा को मार दिया है. दोनो दुनिया की हर बात से बेख़बर थे. आशुतोष अपर्णा को बाहर डिन्नर करवा कर आज फिर से अपने घर ले आया था.
“पूरे एक महीने बाद वापिस आए हैं हम इस छोटे से घर में. हमारी जंग अभी भी जारी है.”
“वो तो जारी रहेगी आशुतोष…हार मान-ने वालो में से नही हूँ मैं.”
“मैने भी जिंदगी में हारना नही सीखा. मैं जीतूँगा ज़रूर एक दिन. हो सकता है आज ही जीत जाऊ.”
“कुछ भी हो आशुतोष. आइ लव यू फ्रॉम दा बॉटम ऑफ माय हार्ट.”
“आइ लव यू टू बेबी. अगर ऐसा है तो आज हार मान लो तुम…दूरी बर्दस्त नही हो रही तुमसे.”
“एमोशनल करने की कोशिश कर रहे हो. खूब समझ रही हूँ मैं. कुछ भी कर लो शादी से पहले कुछ नही.”
“उफ्फ…कब होगा डाइवोर्स तुम्हारा. मेरी तो जान पर बन आई है. कोई आशिक़ अपनी महबूबा के लिए इतना नही तडपा होगा जितना मैं तड़प्ता हूँ तुम्हारे लिए.”
“धीरज रखो मेरे दीवाने. डाइवोर्स फाइल कर तो दिया है ना. थोड़ा वक्त तो लगता ही है इन बातों में”
“तड़प तड़प कर मर ना जाए ये दीवाना.” आशुतोष ने कहा.
अपर्णा आशुतोष से लिपट गयी और बोली, “ऐसे मत बोलो….आइ लव यू सो मच.”
आशुतोष ने अपर्णा के नितंबो को दोनो हाथो से थाम लिया और उसे ज़ोर से अपनी तरफ खींचा.
“क्या कर रहे हो.”
“जंग लड़ रहा हूँ और क्या….मेरा हथियार महसूस नही हो रहा क्या तुम्हे”
“उफ्फ फिर से शुरू हो गये…क्या करूँ तुम्हारा मैं.”
“अच्छा बस एक बात मान लो मेरी.”
“क्या?”
“जैसे हम दोनो चुंबन लेते हैं होंटो से होठ मिला कर. कम से कम एक बार एक चुंबन तो ले लेने दो दोनो को.”
अपर्णा की साँसे तेज चलने लगी ये सुन कर.
“प्लीज़ आशुतोष ऐसी बाते मत करो.”
“पर सच कह रहा हूँ…आज बहुत तड़प रहा हूँ मैं. तुम इसे हवस कहो या कुछ और…पर मैं तुम में समा जाना चाहता हूँ आज.”
अपर्णा को आशुतोष का लंड ठीक अपनी चूत के उपर महसूस हो रहा था. आशुतोष की बातें और लंड की चुअन कुछ अजीब सा जादू कर रही थी अपर्णा पर. मगर वो फिर भी खुद को संभाले हुए थी.
“आज कुछ ज़्यादा ही दीवाने लग रहे हो.”
“सब तुम्हारे कारण है. क्या लग रही हो तुम आज.कसम से तुम्हे कचा चबाने का मन कर रहा है. वैसे एक बात कहूँ.”
“हां बोलो.”
“तुम्हारे नितंबो को थामे खड़ा हूँ…कुछ बोल नही रही आज तुम.”
“ओह हां भूल गयी. हटाओ हाथ जल्दी.”
“नही हटाउँगा…कर लो जो करना है.”
“उफ्फ आज तुम ख़तरनाक मूड में हो. मुझे डर लग रहा है तुमसे.”
“डरना भी चाहिए हहहे.”
आशुतोष ने अपने हाथो से अपर्णा के नितंबो को मसनला शुरू कर दिया. अपर्णा की साँसे उखाड़ने लगी.
“आशुतोष नही……आआअहह” अपर्णा ने कहा और आशुतोष को धक्का दे कर उसकी बाहों से आज़ाद हो गयी.
“क्या हुआ जानेमन…इतना करीब तो हम रोज ही रहते हैं.”
“आज बर्दास्त नही हो रही ये नज़दीकियाँ.”
“मतलब आप जंग हार रही हैं…वेरी गुड”
“हार नही मानूँगी मैं.”
“ज़बरदस्ती मत करो अपने साथ अपर्णा…कभी कभी खुद को आज़ाद छोड़ दिया करो.”
“वाह…वाह क्या शिक्षा दे रहे हो अपनी प्रेमिका को. अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कह सकते हो तुम” अपर्णा कह कर वॉश रूम की तरफ चल दी.
“कहाँ जा रही हो.”
“नहाने जा रही हूँ”
“ये आग नहाने से नही बुझेगी. इस आग को बुझाने के लिए एक अलग ही पानी बनाया है भगवान ने. वो पानी मेरे पास है. फ्री ऑफ कॉस्ट तुम्हे देने के लिए तैयार हूँ.”
“मुझे नही चाहिए…”
आशुतोष ने भाग कर अपर्णा को पीछे से दबोच लिया और उसकी गर्दन पर किस करके बोला, “एक बार ट्राइ तो करो…सारी आग ठंडी हो जाएगी”
“मेरे अंदर कोई आग नही लगी. मैं तो वैसे ही नहाने जा रही थी. छोड़ो मुझे.”
आशुतोष के दाई तरफ एक छोटी सी टेबल थी. वो अपर्णा को खींच कर वहाँ ले आया और उसका नाडा खोने लगा.
“आशुतोष नही प्लीज़…”
“नही रोक सकता खुद को मैं अब. चाहे कुछ भी सज़ा देना मुझे बाद में परवाह नही मुझे. अब मैं ये जंग जीतने जा रहा हूँ.”
“नही आशुतोष प्लीज़….”
नाडा खोल चुका था आशुतोष और हल्की से सलवार भी नीचे सरका चुका था. अपर्णा ने अपने दोनो हाथो से अपनी सलवार को अपने कुल्हो पर थाम लिया और अपना नाडा वापिस बंद करने की कोशिश करने लगी. आशुतोष ने अपर्णा की परवाह किए बगैर अपने लंड को बाहर निकाल लिया और बोला, “नही रोक पाओगि इस तूफान को मान लो. खुद को आज़ाद छोड़ तो इन हवाओं में…प्यार है ये कोई पाप नही.”
आशुतोष ने एक झटके में सलवार नीचे सरका दी अपर्णा की.
“आशुतोष क्या अपनी अपर्णा की बात नही मानोगे तुम. प्लीज़ रुक जाओ.”
आशुतोष ने पॅंटी भी नीचे सरका दी और बोला, “प्लीज़ ऐसा मत कहो…तुम जानती हो मैं रुक नही सकता.”
आशुतोष ने दोनो हाथो से अपर्णा के नग्न नितंबो को थाम लिया.
“उफ्फ ये मखमली गान्ड….सच में तुम्हारा कोई मुक़ाबला नही अपर्णा. यू आर मोस्ट ब्यूटिफुल वुमन इन दा वर्ल्ड.”
अपर्णा कुछ भी बोलने की हालत में नही थी. कुछ अजीब सी मदहोशी छा रही थी उस पर. शायद सब आशुतोष के प्यार का असर था.
“क्या हुआ अपर्णा…कुछ करो यार ये जंग तुम हार रही हो.”
“पूरे एक महीने बाद वापिस आए हैं हम इस छोटे से घर में. हमारी जंग अभी भी जारी है.”
“वो तो जारी रहेगी आशुतोष…हार मान-ने वालो में से नही हूँ मैं.”
“मैने भी जिंदगी में हारना नही सीखा. मैं जीतूँगा ज़रूर एक दिन. हो सकता है आज ही जीत जाऊ.”
“कुछ भी हो आशुतोष. आइ लव यू फ्रॉम दा बॉटम ऑफ माय हार्ट.”
“आइ लव यू टू बेबी. अगर ऐसा है तो आज हार मान लो तुम…दूरी बर्दस्त नही हो रही तुमसे.”
“एमोशनल करने की कोशिश कर रहे हो. खूब समझ रही हूँ मैं. कुछ भी कर लो शादी से पहले कुछ नही.”
“उफ्फ…कब होगा डाइवोर्स तुम्हारा. मेरी तो जान पर बन आई है. कोई आशिक़ अपनी महबूबा के लिए इतना नही तडपा होगा जितना मैं तड़प्ता हूँ तुम्हारे लिए.”
“धीरज रखो मेरे दीवाने. डाइवोर्स फाइल कर तो दिया है ना. थोड़ा वक्त तो लगता ही है इन बातों में”
“तड़प तड़प कर मर ना जाए ये दीवाना.” आशुतोष ने कहा.
अपर्णा आशुतोष से लिपट गयी और बोली, “ऐसे मत बोलो….आइ लव यू सो मच.”
आशुतोष ने अपर्णा के नितंबो को दोनो हाथो से थाम लिया और उसे ज़ोर से अपनी तरफ खींचा.
“क्या कर रहे हो.”
“जंग लड़ रहा हूँ और क्या….मेरा हथियार महसूस नही हो रहा क्या तुम्हे”
“उफ्फ फिर से शुरू हो गये…क्या करूँ तुम्हारा मैं.”
“अच्छा बस एक बात मान लो मेरी.”
“क्या?”
“जैसे हम दोनो चुंबन लेते हैं होंटो से होठ मिला कर. कम से कम एक बार एक चुंबन तो ले लेने दो दोनो को.”
अपर्णा की साँसे तेज चलने लगी ये सुन कर.
“प्लीज़ आशुतोष ऐसी बाते मत करो.”
“पर सच कह रहा हूँ…आज बहुत तड़प रहा हूँ मैं. तुम इसे हवस कहो या कुछ और…पर मैं तुम में समा जाना चाहता हूँ आज.”
अपर्णा को आशुतोष का लंड ठीक अपनी चूत के उपर महसूस हो रहा था. आशुतोष की बातें और लंड की चुअन कुछ अजीब सा जादू कर रही थी अपर्णा पर. मगर वो फिर भी खुद को संभाले हुए थी.
“आज कुछ ज़्यादा ही दीवाने लग रहे हो.”
“सब तुम्हारे कारण है. क्या लग रही हो तुम आज.कसम से तुम्हे कचा चबाने का मन कर रहा है. वैसे एक बात कहूँ.”
“हां बोलो.”
“तुम्हारे नितंबो को थामे खड़ा हूँ…कुछ बोल नही रही आज तुम.”
“ओह हां भूल गयी. हटाओ हाथ जल्दी.”
“नही हटाउँगा…कर लो जो करना है.”
“उफ्फ आज तुम ख़तरनाक मूड में हो. मुझे डर लग रहा है तुमसे.”
“डरना भी चाहिए हहहे.”
आशुतोष ने अपने हाथो से अपर्णा के नितंबो को मसनला शुरू कर दिया. अपर्णा की साँसे उखाड़ने लगी.
“आशुतोष नही……आआअहह” अपर्णा ने कहा और आशुतोष को धक्का दे कर उसकी बाहों से आज़ाद हो गयी.
“क्या हुआ जानेमन…इतना करीब तो हम रोज ही रहते हैं.”
“आज बर्दास्त नही हो रही ये नज़दीकियाँ.”
“मतलब आप जंग हार रही हैं…वेरी गुड”
“हार नही मानूँगी मैं.”
“ज़बरदस्ती मत करो अपने साथ अपर्णा…कभी कभी खुद को आज़ाद छोड़ दिया करो.”
“वाह…वाह क्या शिक्षा दे रहे हो अपनी प्रेमिका को. अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कह सकते हो तुम” अपर्णा कह कर वॉश रूम की तरफ चल दी.
“कहाँ जा रही हो.”
“नहाने जा रही हूँ”
“ये आग नहाने से नही बुझेगी. इस आग को बुझाने के लिए एक अलग ही पानी बनाया है भगवान ने. वो पानी मेरे पास है. फ्री ऑफ कॉस्ट तुम्हे देने के लिए तैयार हूँ.”
“मुझे नही चाहिए…”
आशुतोष ने भाग कर अपर्णा को पीछे से दबोच लिया और उसकी गर्दन पर किस करके बोला, “एक बार ट्राइ तो करो…सारी आग ठंडी हो जाएगी”
“मेरे अंदर कोई आग नही लगी. मैं तो वैसे ही नहाने जा रही थी. छोड़ो मुझे.”
आशुतोष के दाई तरफ एक छोटी सी टेबल थी. वो अपर्णा को खींच कर वहाँ ले आया और उसका नाडा खोने लगा.
“आशुतोष नही प्लीज़…”
“नही रोक सकता खुद को मैं अब. चाहे कुछ भी सज़ा देना मुझे बाद में परवाह नही मुझे. अब मैं ये जंग जीतने जा रहा हूँ.”
“नही आशुतोष प्लीज़….”
नाडा खोल चुका था आशुतोष और हल्की से सलवार भी नीचे सरका चुका था. अपर्णा ने अपने दोनो हाथो से अपनी सलवार को अपने कुल्हो पर थाम लिया और अपना नाडा वापिस बंद करने की कोशिश करने लगी. आशुतोष ने अपर्णा की परवाह किए बगैर अपने लंड को बाहर निकाल लिया और बोला, “नही रोक पाओगि इस तूफान को मान लो. खुद को आज़ाद छोड़ तो इन हवाओं में…प्यार है ये कोई पाप नही.”
आशुतोष ने एक झटके में सलवार नीचे सरका दी अपर्णा की.
“आशुतोष क्या अपनी अपर्णा की बात नही मानोगे तुम. प्लीज़ रुक जाओ.”
आशुतोष ने पॅंटी भी नीचे सरका दी और बोला, “प्लीज़ ऐसा मत कहो…तुम जानती हो मैं रुक नही सकता.”
आशुतोष ने दोनो हाथो से अपर्णा के नग्न नितंबो को थाम लिया.
“उफ्फ ये मखमली गान्ड….सच में तुम्हारा कोई मुक़ाबला नही अपर्णा. यू आर मोस्ट ब्यूटिफुल वुमन इन दा वर्ल्ड.”
अपर्णा कुछ भी बोलने की हालत में नही थी. कुछ अजीब सी मदहोशी छा रही थी उस पर. शायद सब आशुतोष के प्यार का असर था.
“क्या हुआ अपर्णा…कुछ करो यार ये जंग तुम हार रही हो.”