03-01-2020, 10:36 AM
Update 105
अपर्णा बुरी तरह सूबक रही थी चटाई पर पड़ी हुई. दिल कुछ इस कदर भारी हो रहा था की ज़ोर-ज़ोर से रोना चाहती थी वो पर आशुतोष की फटकार ने उसकी आवाज़ दबा दी थी. वो अंदर ही अंदर घुट रही थी. आँखो से आँसू लगातार बह रहे थे. बहुत कोशिश कर रही थी कि मुँह से कोई आवाज़ ना हो पर रह-रह कर सूबक ही पड़ती थी.
आशुतोष बिस्तर पर बैठा चुपचाप सब सुन रहा था.
“रोती रहो मुझे क्या है. तुम खुद इसके लिए ज़िम्मेदार हो.” आशुतोष ने मन ही मन सोचा और लेट गया बिस्तर पर चुपचाप.
प्यार में गुस्सा ज़्यादा देर तक नही टिक सकता. प्यार वो आग है जिसमे की जीवन की हर बुराई जल कर खाक हो जाती है. गुस्सा तो बहुत छ्होटी चीज़ है. जब आप बहुत प्यार करते हैं किसी को तो उसके प्रति मन में गुस्सा ज़्यादा देर तक नही टिक पाता. संभव ही नही है ये बात.
आशुतोष का गुस्सा शांत हुआ तो उसे अपर्णा की शिसकियों में मौजूद उस दर्द का अहसास हुआ जो उसने उसे दिया था.“हे भगवान मैने ये क्या किया? क्या कुछ नही कह दिया मैने अपर्णा को.” आशुतोष ने सोचा और तुरंत उठ कर अपर्णा के पास आ कर बैठ गया.
अपर्णा अभी भी सूबक रही थी. आशुतोष ने अपर्णा के सर पर हाथ रखा और बोला, “बस अपर्णा चुप हो जाओ.”
अपर्णा की दबी आवाज़ जैसे आज़ाद हो गयी और वो फूट-फूट कर रोने लगी. आशुतोष घबरा गया उस यू रोते देख.
“अपर्णा प्लीज़…ऐसे रोता है क्या कोई….प्लीज़ चुप हो जाओ मेरा दिल बैठा जा रहा है तुम्हे यू रोते देख कर.” आशुतोष ने भावुक आवाज़ में कहा.
“क्यों आए हो मेरे पास तुम. ना मैं प्यार के लायक हूँ ना शादी के लायक हूँ.”
“प्लीज़ ऐसा मत कहो तुम तो भगवान की तरह पूजा के लायक हो. मैने वो सब गुस्से में बोल दिया था. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. ”
“गुस्से में दिल की बात ही तो कही ना तुमने. और सच ही कहा. मैं बिल्कुल लायक नही हूँ तुम्हारे प्यार के. अच्छा हो कि साइको मेरी आर्ट बना दे ताकि धरती से कुछ बोझ कम हो. मैं और नही जीना चाहती.”
“अपर्णा! खबरदार जो ऐसी बात की तुमने.”
“तो क्या करूँ मैं अगर ऐसा ना कहूँ तो. तुम मुझे नही समझते. मेरे दर्द और तकलीफ़ का अहसास तक नही तुम्हे. मेरे पास बस एक ही चीज़ के लिए आते हो जबकि बहुत सारी उम्मीदे लगाए रखती हूँ मैं तुमसे. मेरे लिए ये प्यार कुछ और है और तुम्हारे लिए कुछ और. मैं अकेली हूँ बिल्कुल अकेली जिसे कोई नही समझता. मैं धरती पर बोझ हूँ जिसे मर जाना चाहिए.”
“अगर ऐसा है तो मैं मर जाता हूँ पहले. कहाँ है मेरी बंदूक.” आशुतोष उठ कर कमरे की आल्मिरा की तरफ बढ़ा. बंदूक वही रखी थी उसने घर में घुस कर.
ये सुनते ही अपर्णा थर-थर काँपने लगी. इंसान अपनी मौत के बारे में तो बड़ी आसानी से सोच सकता है मगर जिसे वो बहुत प्यार करता है उसकी मौत के ख्याल से भी काँप उठता है. अपर्णा फ़ौरन उठ खड़ी हुई. आशुतोष अंधेरे में कहाँ है उसके कुछ नज़र नही आ रहा था. उसने भाग कर कमरे की लाइट जलाई. तब तक आशुतोष पिस्टल निकाल चुका था आल्मिरा से और अपनी कनपटी पर रखने वाला था. अपर्णा बिना वक्त गवाए आशुतोष की तरफ भागी और बंदूक आशुतोष के सर से हटा दी. गोली दीवार में जा कर धँस गयी.
अपर्णा लिपट गयी आशुतोष से और रोते हुए बोली, “तुम्हे नही खो सकती आशुतोष…बहुत कुछ खो चुकी हूँ…. तुम्हे नही खो सकती. मेरा कोई नही है तुम्हारे सिवा.”
“तो सोचो क्या गुज़री होगी मेरे दिल पर जब तुम मरने की बात कर रही थी. दिल बैठ गया था मेरा. आज के बाद मरने की बात कही तुमने तो तुरंत गोली मार लूँगा खुद को. प्यार करता हूँ मैं तुमसे….कोई मज़ाक नही.”
दोनो एक दूसरे से लिपटे खड़े थे. दोनो की ही आँखे टपक रही थी.
अपर्णा बुरी तरह सूबक रही थी चटाई पर पड़ी हुई. दिल कुछ इस कदर भारी हो रहा था की ज़ोर-ज़ोर से रोना चाहती थी वो पर आशुतोष की फटकार ने उसकी आवाज़ दबा दी थी. वो अंदर ही अंदर घुट रही थी. आँखो से आँसू लगातार बह रहे थे. बहुत कोशिश कर रही थी कि मुँह से कोई आवाज़ ना हो पर रह-रह कर सूबक ही पड़ती थी.
आशुतोष बिस्तर पर बैठा चुपचाप सब सुन रहा था.
“रोती रहो मुझे क्या है. तुम खुद इसके लिए ज़िम्मेदार हो.” आशुतोष ने मन ही मन सोचा और लेट गया बिस्तर पर चुपचाप.
प्यार में गुस्सा ज़्यादा देर तक नही टिक सकता. प्यार वो आग है जिसमे की जीवन की हर बुराई जल कर खाक हो जाती है. गुस्सा तो बहुत छ्होटी चीज़ है. जब आप बहुत प्यार करते हैं किसी को तो उसके प्रति मन में गुस्सा ज़्यादा देर तक नही टिक पाता. संभव ही नही है ये बात.
आशुतोष का गुस्सा शांत हुआ तो उसे अपर्णा की शिसकियों में मौजूद उस दर्द का अहसास हुआ जो उसने उसे दिया था.“हे भगवान मैने ये क्या किया? क्या कुछ नही कह दिया मैने अपर्णा को.” आशुतोष ने सोचा और तुरंत उठ कर अपर्णा के पास आ कर बैठ गया.
अपर्णा अभी भी सूबक रही थी. आशुतोष ने अपर्णा के सर पर हाथ रखा और बोला, “बस अपर्णा चुप हो जाओ.”
अपर्णा की दबी आवाज़ जैसे आज़ाद हो गयी और वो फूट-फूट कर रोने लगी. आशुतोष घबरा गया उस यू रोते देख.
“अपर्णा प्लीज़…ऐसे रोता है क्या कोई….प्लीज़ चुप हो जाओ मेरा दिल बैठा जा रहा है तुम्हे यू रोते देख कर.” आशुतोष ने भावुक आवाज़ में कहा.
“क्यों आए हो मेरे पास तुम. ना मैं प्यार के लायक हूँ ना शादी के लायक हूँ.”
“प्लीज़ ऐसा मत कहो तुम तो भगवान की तरह पूजा के लायक हो. मैने वो सब गुस्से में बोल दिया था. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. ”
“गुस्से में दिल की बात ही तो कही ना तुमने. और सच ही कहा. मैं बिल्कुल लायक नही हूँ तुम्हारे प्यार के. अच्छा हो कि साइको मेरी आर्ट बना दे ताकि धरती से कुछ बोझ कम हो. मैं और नही जीना चाहती.”
“अपर्णा! खबरदार जो ऐसी बात की तुमने.”
“तो क्या करूँ मैं अगर ऐसा ना कहूँ तो. तुम मुझे नही समझते. मेरे दर्द और तकलीफ़ का अहसास तक नही तुम्हे. मेरे पास बस एक ही चीज़ के लिए आते हो जबकि बहुत सारी उम्मीदे लगाए रखती हूँ मैं तुमसे. मेरे लिए ये प्यार कुछ और है और तुम्हारे लिए कुछ और. मैं अकेली हूँ बिल्कुल अकेली जिसे कोई नही समझता. मैं धरती पर बोझ हूँ जिसे मर जाना चाहिए.”
“अगर ऐसा है तो मैं मर जाता हूँ पहले. कहाँ है मेरी बंदूक.” आशुतोष उठ कर कमरे की आल्मिरा की तरफ बढ़ा. बंदूक वही रखी थी उसने घर में घुस कर.
ये सुनते ही अपर्णा थर-थर काँपने लगी. इंसान अपनी मौत के बारे में तो बड़ी आसानी से सोच सकता है मगर जिसे वो बहुत प्यार करता है उसकी मौत के ख्याल से भी काँप उठता है. अपर्णा फ़ौरन उठ खड़ी हुई. आशुतोष अंधेरे में कहाँ है उसके कुछ नज़र नही आ रहा था. उसने भाग कर कमरे की लाइट जलाई. तब तक आशुतोष पिस्टल निकाल चुका था आल्मिरा से और अपनी कनपटी पर रखने वाला था. अपर्णा बिना वक्त गवाए आशुतोष की तरफ भागी और बंदूक आशुतोष के सर से हटा दी. गोली दीवार में जा कर धँस गयी.
अपर्णा लिपट गयी आशुतोष से और रोते हुए बोली, “तुम्हे नही खो सकती आशुतोष…बहुत कुछ खो चुकी हूँ…. तुम्हे नही खो सकती. मेरा कोई नही है तुम्हारे सिवा.”
“तो सोचो क्या गुज़री होगी मेरे दिल पर जब तुम मरने की बात कर रही थी. दिल बैठ गया था मेरा. आज के बाद मरने की बात कही तुमने तो तुरंत गोली मार लूँगा खुद को. प्यार करता हूँ मैं तुमसे….कोई मज़ाक नही.”
दोनो एक दूसरे से लिपटे खड़े थे. दोनो की ही आँखे टपक रही थी.