03-01-2020, 10:01 AM
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गौरव रात भर साइको की तलाश में शहर में भटकने के बाद घर चला गया था. घर जा कर बिस्तर पर गिरते ही उसे बहुत गहरी नींद आ गयी थी.सुबह 10 बजे उठा वो और तैयार हो कर 11 बजे हॉस्पिटल चल दिया. जब वो हॉस्पिटल पहुँचा तो एसपी साहिब को डिसचार्ज किया जा रहा था. मगर अंकिता को अभी 1 दिन और हॉस्पिटल में रहना था. एसपी साहिब को सी ऑफ करने के बाद वो ए एस पी साहिबा से मिलने पहुँचा.
जब गौरव कमरे में घुसा तो देखा कि चौहान अंकिता से बात कर रहा था. अंकिता ने गौरव को देखा मगर इग्नोर करके चौहान से बाते करती रही.
“ओह मिस्टर गौरव पांडे आए हैं. अच्छा मेडम मैं चलता हूँ.” चौहान गौरव की तरफ हंसता हुआ बाहर चला गया.
गौरव दूर खड़ा सब देखता रहा. वही खड़ा-खड़ा बोला, “मेडम कैसी हैं आप.”
“ठीक हूँ…जिंदा हूँ…अभी तुम जाओ बाद में बात करेंगे.” अंकिता ने बेरूख़ी से कहा.
“तो चौहान अपनी गेम खेल गया. तभी हंस रहा था मेरी तरफ. कोई बात नही मेडम…प्यार पहली बार दूर नही हुआ मुझसे. अब तो आदत सी है इन बातों की. खुश रहें आप हमेशा.” गौरव भारी मन से बाहर आ गया. उसकी आँखे नम थी
पूरा दिन किसी काम में मन नही लगा गौरव का. बस अपनी जीप ले कर शहर में यहाँ वहाँ घूमता रहा. दुबारा हॉस्पिटल नही गया वो. शाम को कोई 5 बजे थाने पहुँचा तो चौहान से वहाँ भी सामना हो गया.
“मिस्टर गौरव पांडे कहाँ थे आप. कब से ढूंड रहा हूँ आपको.”
“फोन नंबर है शायद आपके पास मेरा.”
“ वो सब छोड़ो ये बताओ कि तुम सस्पेंड होने के बाद कहाँ चले गये थे.”
“क्यों आपको क्या लेना देना.”
“क्योंकि आपको वापिस वही जाना पड़ेगा आप सस्पेंड हो गये हैं हहेहहे.”
गौरव की आँखे फटी की फटी रह गयी ये सुन कर.
“क्या बकवास कर रहे हो. क्या ए एस पी साहिबा ने आपको नही बताया. आप तो बहुत मिलते जुलते हैं आजकल उनसे.”
गौरव दाँत भींच कर रह गया. मन तो कर रहा था कि मुँह तोड़ दे चौहान का मगर चुप रहा.
चौहान ने उसे सस्पेंशन ऑर्डर थमाया और बोला, “ये लो और दफ़ा हो जाओ यहाँ से. और इस बार वापिस आने की सोचना भी मत क्योंकि मैं ऐसा कभी नही होने दूँगा.”
“ग्रेट बस अब यही होना बाकी था. मेडम को पता था इस बारे में पर बताया नही मुझे. सब कुछ कितना अच्छा हो रहा है.”
गौरव अपनी पिस्टल बेल्ट थाने में जमा करवा कर पैदल ही निकल पड़ा थाने से. पीछे से भोलू ने आवाज़ दी, “सर रुकिये मैं आपको अपने स्कूटर से छोड़ देता हूँ.”
“नही रहने दो भोलू. जींदगी सड़को पर ही बीताई है ज़्यादातर धक्के खाते हुए. अच्छी बात है…कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो जाएँगी. वैसे मेरी जगह किसको दिया जा रहा है ये साइको का केस.
”
“सर सिकेन्दर नाम है उनका. पूरा नाम नही पता मुझे. कल सुबह जॉइन कर लेंगे यहा. सुना है कि काफ़ी शिफारिस लगवा रहे थे वो यहाँ आने के लिए. इस केस पर तो ख़ास नज़र थी उनकी.”
“ह्म्म…ओके मैं चलता हूँ.”
गौरव थाने से बाहर आ गया और सोच में पड़ गया, “कल अपर्णा के घर अटॅक किया साइको ने. फिर बस एक पैंटिंग रख कर चला गया. अब मेरा सस्पेंशन हो गया. ये केस सिकेन्दर को मिल गया. सब कुछ जुड़ा हुआ है या फिर इत्तेफ़ाक है. कही सब कुछ साइको के मायाजाल का हिस्सा तो नही. और ये सिकेन्दर क्यों ज़ोर लगा रहा था यहाँ आने के लिए. ज़रूर कुछ गड़बड़ है. खैर अब मैं क्या कर सकता हूँ. मेडम नाराज़ हो गयी. नौकरी भी चली गयी. जींदगी भी क्या कुछ नही देखती हमें.”
गौरव मुरझाया हुआ चेहरा ले कर आगे बढ़ा जा रहा था. रह-रह कर अंकिता का चेहरा उसकी आँखो के सामने घूम रहा था.
"एक और प्यार मेरे इज़हार करने से पहले ही ख़तम हो गया. अपर्णा ने भी ठुकरा दिया था मेरा प्यार बिना मेरी बात सुने. मेडम ने भी वही किया. लगता है किस्मत में किसी का प्यार है ही नही."
अचानक गौरव का फोन बजा और उसका ध्यान टूटा.
"किसका फोन है?" गौरव ने फोन जेब से निकालते हुए सोचा.
फोन सौरभ का था.
"हेलो...हां सौरभ हाउ आर यू."
"मैं ठीक हूँ सर. आप सुनाए. आशुतोष ने मुझे बताया कि साइको ने अपर्णा के घर अटॅक किया कल रात."
"ये आशुतोष कौन है?" गौरव ने पूछा.
"सर आशु को हम आशुतोष कहते हैं."
"ओह...हां साइको पूरी प्लॅनिंग से आया था मगर बिना कुछ किए चला गया. पोलीस वालो को मार कर घर में घुसा और एक पैंटिंग रख कर चला गया. अपर्णा तक पहुँचने की कोशिश ही नही की उसने. जबकि सब कुछ उसके कंट्रोल में था. मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा. ये एक मायाजाल है जिसमें हम सब उलझ चुके हैं."
"सर मायाजाल ठीक नाम दिया आपने इसे. सब कुछ उलझा हुआ है."
"भाई मेरी नौकरी चली गयी है. मुझे सर मत कहो. अब मैं इनस्पेक्टर नही हूँ. मुझे गौरव कहो..अच्छा लगेगा मुझे."
"नौकरी चली गयी...पर कैसे?"
"सस्पेंड हो गया हूँ मैं."
"पर किस बात के लिए?"
"यहाँ किसी बात की ज़रूरत नही होती. अगर बात पूछने जाएँगे तो कोई भी उल जलूल बात बोल देंगे."
"किसने किया सस्पेंड आपका, क्या ए एस पी साहिबा ने?"
"नही आइजी साहिब ने सस्पेंड किया है. मेडम का कोई रोल नही है इसमें."
"फिर अब आप क्या करोगे."
"घर जा रहा हूँ फिलहाल. आगे का कुछ नही पता."
"गौरव अगर बुरा ना मानो तो मेरे साथ आ जाओ. हम मिलकर कोई ना कोई सुराग ढूंड ही लेंगे साइको का."
"यार क्या कहु तुम्हे. मैं खुद यही सोच रहा था कि तुम्हारे साथ मिल कर इस साइको की खोज जारी रखूँगा. मगर सौरभ हमें कुछ हथियारों की ज़रूरत होगी. खाली हाथ साइको के पीछे घूमना ख़तरे से खाली नही. मेरी पिस्टल तो मैने जमा करवा दी है."
"मेरे पास तो देसी कॅटा है एक. वही रखता हूँ साथ."
"उस से बात नही बनेगी. मैं कुछ करता हूँ. पोलीस की नौकरी का एक्सपीरियेन्स कब काम आएगा. मैं तुम्हे 9 बजे अपने घर मिलूँगा. वही आ जाना. बैठ कर आगे का डिस्कस करते हैं."
"गौरव हमें ये जान-ना है कि कर्नल के घर में कौन रह रहा था. मुझे लगता है कि सब तार अब उसी घर से जुड़े हैं."
"हां तुम ठीक कह रहे हो. अभी तक कर्नल के रिलेटिव्स के यहाँ से भी कुछ पता नही चला. शायद वहाँ की लोकल पोलीस कोई इंटेरेस्ट नही ले रही."
"कोई बात नही हम खुद भी जा सकते हैं वहाँ पूछताछ करने."
"हां ठीक है...तुम शाम को घर आना बाकी बातें वही होंगी."
गौरव ने फोन काट दिया.