02-01-2020, 07:12 PM
“झूठ…प्यार में साथ रहना चाहिए ना कि अलग-अलग. नींद आएगी तो यही सो जाना”
“आशुतोष मज़ाक नही है ये कोई…छोड़ो.” अपर्णा ने गुस्से में कहा.
“आप को साथ रहने को बोल रहा हूँ…कोई सुहागरात मनाने को नही बोल रहा. जाओ जाना है तो…मुझे तो नींद नही आ रही.” आशुतोष ने अपर्णा का हाथ छोड़ दिया.
आशुतोष फर्श पर पड़ी चदडार पर आ कर लेट गया अपर्णा खड़ी-खड़ी देखती रही. अजीब सी स्थिति में फँस गयी थी वो. आशुतोष की नाराज़ भी नही देख सकती थी और उसके पास भी नही जा सकती थी.
“कैसे लेट जाउ इसके पास जाकर…इसका भरोसा तो कोई है नही.” अपर्णा ने सोचा.
आशुतोष आँखो पर बाजू रख कर पड़ा था. ऐसा लग रहा था जैसे कि बहुत नाराज़ है अपर्णा से. अपर्णा खड़े-खड़े उसे देख रही थी. अजीब कसंकश में थी वो. ना वो आशुतोष को नाराज़ छोड़ कर वापिस बेडरूम में जा सकती थी और ना आशुतोष के पास जा कर लेट सकती थी. कुछ सोच कर वो आगे बढ़ी और आशुतोष के पास आकर बैठ गयी और धीरे से बोली, “नाराज़ हो गये मुझसे?”
आशुतोष ने कोई जवाब नही दिया. चुपचाप पड़ा रहा.
“बात नही करोगे मुझसे…” अपर्णा ने बड़ी मासूमियत से कहा.
“ओह आप…आप कब आई. मुझे तो नींद आ गयी थी.” आशुतोष ने कहा.
“नाराज़ हो गये मुझसे?”
आशुतोष अचानक उठा और अपर्णा को बिस्तर पर लेटा कर चढ़ गया उसके उपर.
“आपसे नाराज़ हो कर कहाँ जाउन्गा. मुझे पता था कि आप ज़रूर आएँगी.”
“मैं बात करने आई हूँ ना कि ये सब करने…हटो.” अपर्णा छटपटाते हुए बोली.
आशुतोष ने बिना कुछ कहे अपर्णा की गर्दन पर अपने गरम-गरम होठ टिका दिए. अपर्णा के शरीर में बीजली की लहर दौड़ गयी. वो बोली, “हट जाओ आशुतोष…प्लीज़.”
मगर आशुतोष अपर्णा की गर्दन को यहाँ वहाँ चूमता रहा. अपर्णा छटपटाती रही उसके नीचे.
अचानक वो रुक गया और अपने होठ हटा लिए अपर्णा की गर्दन से.
“क्या बात है. आपके हर अंग में कामुक रस है. म्रिग्नय्नि सी आँखें हैं आपकी और म्रिग्नय्नि सी ही गर्दन है. मज़ा आ गया”
“अब हटने का कष्ट करोगे?”
आशुतोष हँसने लगा और बोला, “बिल्कुल नही…आज थोड़ा आगे बढ़ेंगे प्यार में.”
“क्या मतलब?”
आशुतोष ने अपर्णा के उभारो को थाम लिया दोनो हाथो से. अपर्णा के पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
“आशुतोष…ये क्या कर रहे हो…हटो.” अपर्णा ने आशुतोष के हाथ दूर झटक दिए.
“छू लेने दीजिए ना…प्यार करते हैं हम आपसे कोई मज़ाक नही.”
“अब तो ये सब मज़ाक ही बन चुका है. तुम मेरे शरीर से खेल रहे हो और कुछ नही. शक होता है मुझे कि ये प्यार है तुम्हारा या हवस.”
“लव ईज़ प्यूरेस्ट फॉर्म ऑफ लस्ट…आइ गेस. जब प्यार हो गया आपको मुझसे तो खुद को बंधनों में क्यों जाकड़ रखा है आपने. आज़ाद कीजिए खुद को और मेरे साथ प्यार के हसीन सफ़र पर चलिए. यकीन दिलाता हूँ आपको कि आप निराश नही होंगी.”
आशुतोष ने फिर से अपर्णा के उभारों को थाम लिया और उन्हे ज़ोर से दबाते हुए बोला, “माफ़ कीजिएगा मुझे पर मैं अपनी प्रेमिका से दूर नही रह सकता. वो भी तब जब वो मुझे बहुत प्यार करती है.”
अपने उभारों पर आशुतोष के हाथों का कसाव पड़ने से अपर्णा सिहर उठी. उसकी साँसे तेज हो गयी और टांगे काँपने लगी. हिम्मत जुटा कर वो बोली, “आशुतोष आइ हेट यू.”
“मज़ाक कर रही हैं आप है ना.”
“मज़ाक नही है ये. ये प्यार नफ़रत में बदल जाएगा अगर तुम नही रुके तो.”
आशुतोष ने अपर्णा के उभारों को छोड़ दिया और अपर्णा के उपर से हट कर उसके बाजू में लेट गया, “आपकी नफ़रत मंजूर नही है. प्यार में दूरी सह लूँगा.”
“मेरी कुछ मर्यादाए हैं. मैं ऐसा सोच भी नही सकती जैसा तुम मेरे साथ कर रहे हो. प्यार हुआ है हमें शादी नही जो कि कुछ भी कर लोगे तुम.”
“मुझे तो शक है कि शादी के बाद भी हम नज़दीक आ पाएँगे या नही. आप कुछ भी नही करने देंगी मुझे.”
आशुतोष करवट ले कर लेट गया.
“लो अब नाराज़ हो गये. अपने आप शैतानी करते हो और नाराज़ भी खुद ही हो जाते हो. ये बहुत बढ़िया है. ” अपर्णा ने कहा आशुतोष के नज़दीक आ कर उस से लिपट गयी.
“हट जाओ तुम अब मैं दूर ही रहूँगा तुमसे. मुझे कुछ नही चाहिए तुमसे. ना अब ना शादी के बाद.”
“प्यार करती हूँ तुमसे कोई मज़ाक नही. क्यों हटु मैं. हां मैं इतना आगे नही बढ़ सकती जितना तुम चाहते हो पर दूर मैं भी नही रह सकती तुमसे.”
“हाहहहाहा….ऐसा जोक आज तक नही सुना मैने. मेरे पेट में दर्द हो जाएगा हंसते-हंसते दुबारा मत सुनाना ऐसा जोक.”
“मैं मज़ाक नही कर रही…काश तुम मुझे समझ पाते.” अपर्णा ने भावुक अंदाज में कहा.
आशुतोष तुरंत अपर्णा की तरफ मुड़ा और देखा कि अपर्णा सूबक रही है.
“अरे इन म्रिग्नय्नि आँखों में ये आँसू क्यों भर लिए. प्यार में छोटी मोटी लड़ाई तो चलती रहती है.”
“चलती होंगी पर मुझसे तुम्हारी नाराज़गी बर्दास्त नही होती. मुझसे नाराज़ मत हुआ करो.” सारी दुनिया की मासूमियत झलक रही थी अपर्णा की इस बात में.
आशुतोष ने बाहों में भर लिया अपर्णा को और उसके माथे को चूम कर बोला, “बस चुप हो जाओ. मैं भी क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ. कंट्रोल नही होता मुझसे. ग़लत मत समझो मुझे. मेरी हर बात में प्यार है… बस प्यार. और ये प्यार जींदगी भर रहेगा.”
दोनो एक दूसरे की बाहों में खो गये. इस कदर डूब गये एक दूसरे में कि साइको को बिल्कुल भूल ही गये. कब नींद आ गयी दोनो को पता ही नही चला.
“आशुतोष मज़ाक नही है ये कोई…छोड़ो.” अपर्णा ने गुस्से में कहा.
“आप को साथ रहने को बोल रहा हूँ…कोई सुहागरात मनाने को नही बोल रहा. जाओ जाना है तो…मुझे तो नींद नही आ रही.” आशुतोष ने अपर्णा का हाथ छोड़ दिया.
आशुतोष फर्श पर पड़ी चदडार पर आ कर लेट गया अपर्णा खड़ी-खड़ी देखती रही. अजीब सी स्थिति में फँस गयी थी वो. आशुतोष की नाराज़ भी नही देख सकती थी और उसके पास भी नही जा सकती थी.
“कैसे लेट जाउ इसके पास जाकर…इसका भरोसा तो कोई है नही.” अपर्णा ने सोचा.
आशुतोष आँखो पर बाजू रख कर पड़ा था. ऐसा लग रहा था जैसे कि बहुत नाराज़ है अपर्णा से. अपर्णा खड़े-खड़े उसे देख रही थी. अजीब कसंकश में थी वो. ना वो आशुतोष को नाराज़ छोड़ कर वापिस बेडरूम में जा सकती थी और ना आशुतोष के पास जा कर लेट सकती थी. कुछ सोच कर वो आगे बढ़ी और आशुतोष के पास आकर बैठ गयी और धीरे से बोली, “नाराज़ हो गये मुझसे?”
आशुतोष ने कोई जवाब नही दिया. चुपचाप पड़ा रहा.
“बात नही करोगे मुझसे…” अपर्णा ने बड़ी मासूमियत से कहा.
“ओह आप…आप कब आई. मुझे तो नींद आ गयी थी.” आशुतोष ने कहा.
“नाराज़ हो गये मुझसे?”
आशुतोष अचानक उठा और अपर्णा को बिस्तर पर लेटा कर चढ़ गया उसके उपर.
“आपसे नाराज़ हो कर कहाँ जाउन्गा. मुझे पता था कि आप ज़रूर आएँगी.”
“मैं बात करने आई हूँ ना कि ये सब करने…हटो.” अपर्णा छटपटाते हुए बोली.
आशुतोष ने बिना कुछ कहे अपर्णा की गर्दन पर अपने गरम-गरम होठ टिका दिए. अपर्णा के शरीर में बीजली की लहर दौड़ गयी. वो बोली, “हट जाओ आशुतोष…प्लीज़.”
मगर आशुतोष अपर्णा की गर्दन को यहाँ वहाँ चूमता रहा. अपर्णा छटपटाती रही उसके नीचे.
अचानक वो रुक गया और अपने होठ हटा लिए अपर्णा की गर्दन से.
“क्या बात है. आपके हर अंग में कामुक रस है. म्रिग्नय्नि सी आँखें हैं आपकी और म्रिग्नय्नि सी ही गर्दन है. मज़ा आ गया”
“अब हटने का कष्ट करोगे?”
आशुतोष हँसने लगा और बोला, “बिल्कुल नही…आज थोड़ा आगे बढ़ेंगे प्यार में.”
“क्या मतलब?”
आशुतोष ने अपर्णा के उभारो को थाम लिया दोनो हाथो से. अपर्णा के पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
“आशुतोष…ये क्या कर रहे हो…हटो.” अपर्णा ने आशुतोष के हाथ दूर झटक दिए.
“छू लेने दीजिए ना…प्यार करते हैं हम आपसे कोई मज़ाक नही.”
“अब तो ये सब मज़ाक ही बन चुका है. तुम मेरे शरीर से खेल रहे हो और कुछ नही. शक होता है मुझे कि ये प्यार है तुम्हारा या हवस.”
“लव ईज़ प्यूरेस्ट फॉर्म ऑफ लस्ट…आइ गेस. जब प्यार हो गया आपको मुझसे तो खुद को बंधनों में क्यों जाकड़ रखा है आपने. आज़ाद कीजिए खुद को और मेरे साथ प्यार के हसीन सफ़र पर चलिए. यकीन दिलाता हूँ आपको कि आप निराश नही होंगी.”
आशुतोष ने फिर से अपर्णा के उभारों को थाम लिया और उन्हे ज़ोर से दबाते हुए बोला, “माफ़ कीजिएगा मुझे पर मैं अपनी प्रेमिका से दूर नही रह सकता. वो भी तब जब वो मुझे बहुत प्यार करती है.”
अपने उभारों पर आशुतोष के हाथों का कसाव पड़ने से अपर्णा सिहर उठी. उसकी साँसे तेज हो गयी और टांगे काँपने लगी. हिम्मत जुटा कर वो बोली, “आशुतोष आइ हेट यू.”
“मज़ाक कर रही हैं आप है ना.”
“मज़ाक नही है ये. ये प्यार नफ़रत में बदल जाएगा अगर तुम नही रुके तो.”
आशुतोष ने अपर्णा के उभारों को छोड़ दिया और अपर्णा के उपर से हट कर उसके बाजू में लेट गया, “आपकी नफ़रत मंजूर नही है. प्यार में दूरी सह लूँगा.”
“मेरी कुछ मर्यादाए हैं. मैं ऐसा सोच भी नही सकती जैसा तुम मेरे साथ कर रहे हो. प्यार हुआ है हमें शादी नही जो कि कुछ भी कर लोगे तुम.”
“मुझे तो शक है कि शादी के बाद भी हम नज़दीक आ पाएँगे या नही. आप कुछ भी नही करने देंगी मुझे.”
आशुतोष करवट ले कर लेट गया.
“लो अब नाराज़ हो गये. अपने आप शैतानी करते हो और नाराज़ भी खुद ही हो जाते हो. ये बहुत बढ़िया है. ” अपर्णा ने कहा आशुतोष के नज़दीक आ कर उस से लिपट गयी.
“हट जाओ तुम अब मैं दूर ही रहूँगा तुमसे. मुझे कुछ नही चाहिए तुमसे. ना अब ना शादी के बाद.”
“प्यार करती हूँ तुमसे कोई मज़ाक नही. क्यों हटु मैं. हां मैं इतना आगे नही बढ़ सकती जितना तुम चाहते हो पर दूर मैं भी नही रह सकती तुमसे.”
“हाहहहाहा….ऐसा जोक आज तक नही सुना मैने. मेरे पेट में दर्द हो जाएगा हंसते-हंसते दुबारा मत सुनाना ऐसा जोक.”
“मैं मज़ाक नही कर रही…काश तुम मुझे समझ पाते.” अपर्णा ने भावुक अंदाज में कहा.
आशुतोष तुरंत अपर्णा की तरफ मुड़ा और देखा कि अपर्णा सूबक रही है.
“अरे इन म्रिग्नय्नि आँखों में ये आँसू क्यों भर लिए. प्यार में छोटी मोटी लड़ाई तो चलती रहती है.”
“चलती होंगी पर मुझसे तुम्हारी नाराज़गी बर्दास्त नही होती. मुझसे नाराज़ मत हुआ करो.” सारी दुनिया की मासूमियत झलक रही थी अपर्णा की इस बात में.
आशुतोष ने बाहों में भर लिया अपर्णा को और उसके माथे को चूम कर बोला, “बस चुप हो जाओ. मैं भी क्या करूँ मैं ऐसा ही हूँ. कंट्रोल नही होता मुझसे. ग़लत मत समझो मुझे. मेरी हर बात में प्यार है… बस प्यार. और ये प्यार जींदगी भर रहेगा.”
दोनो एक दूसरे की बाहों में खो गये. इस कदर डूब गये एक दूसरे में कि साइको को बिल्कुल भूल ही गये. कब नींद आ गयी दोनो को पता ही नही चला.