02-01-2020, 06:58 PM
अपर्णा ने दिन भर दरवाजा भी बंद रखा और अपना फोन भी बंद रखा. वो आशुतोष को देखने के लिए खिड़की में भी नही आई. कयी बार मन हुआ उसका की फोन ऑन करके आशुतोष से बात करे या फिर खिड़की से झाँक कर उसे देखे मगर कुछ सोच कर हर बार रुक जाती, “नही…नही उसे समझना होगा कि मेरे साथ कैसे बिहेव करना है. क्या मैं कोई खिलोना हूँ जिसके साथ जैसे मर्ज़ी खेल लिया और चलते बने. मेरी भावनाओ की कदर करनी चाहिए उसे. प्यार का मतलब ये तो नही है कि कुछ भी कर लो. आज बिल्कुल बात नही करूँगी…चाहे कुछ हो जाए..”
आशुतोष डोरबेल बजा बजा कर थक गया मगर अपर्णा ने दरवाजा नही खोला. “यार ये अजीब मोहब्बत हो गयी है इनसे. लगता है यहा रोज कोई ना कोई नाटक झेलना पड़ेगा इनका. लगता है बर्बाद करड़ेगी मुझे ये मोहब्बत.”
थक हार कर आशुतोष वापिस अपनी जीप में जाकर बैठ गया.
रात के 12 बज रहे थे तब. बहुत उदास और मायूस नज़र आ रहा था वो. केयी बार बेल बजाई थी उसने मगर अपर्णा ने एक बार भी दरवाजा नही खोला था.
“क्या मैने आज कुछ ज़्यादा कर दिया. लेकिन प्यार में क्या ज़्यादा क्या कम. भावनायें साची हों तो क्या इन बातों से कोई फर्क पड़ता है.” आशुतोष सोच रहा था. सोचते सोचते उसे नींद की झपकीयाँ आ रही थी.
रात के ठीक 1 बजे एक कॉन्स्टेबल भागता हुआ आशुतोष के पास आया.
“सर…सर…”
आशुतोष की आँख लग गयी थी. वो फ़ौरन चोंक कर उठ गया, “क्या हुआ?”
“सर घर के पीछे गन्मन और हवलदार मरे पड़े हैं.”
“क्या …”
आशुतोष ने अपनी पिस्टल निकाली और घर के आगे खड़े गन्मन और कॉन्स्टेबल्स से कहा, “तुम लोग यहाँ से हिलना मत मैं अभी आया.”
आशुतोष उस कॉन्स्टेबल को लेकर घर के पीछे की तरफ भागा. वहाँ सच में गन्मन और कॉन्स्टेबल्स की लाशे पड़ी थी.
“लगता है साइलेनसर लगा कर सूट किया गया है इन्हे, क्योंकि गोली की ज़रा भी आवाज़ नही आई. बिल्कुल सर में गोली मारी गयी है.”
आशुतोष ने तुरंत अपना मोबायल निकाला और गौरव को फोन मिलाया. मगर फोन नही मिला. मिलता भी कैसे फोन में नेटवर्क ही नही था.
“उफ्फ ये नेटवर्क को भी अभी गायब होना था. तुम्हारे फोन से ट्राइ करना गौरव सर का नंबर.”
“सर मेरे फोन में भी नेटवर्क नही है.”
“मेरी जीप में वाइर्ले पड़ा है उस से ट्राइ करते हैं.” दोनो भाग कर आगे आए.
“तुम ट्राइ करो और सारी सिचुयेशन बता दो.” आशुतोष कह कर अपर्णा के घर की तरफ बढ़ा.
आशुतोष ने लगातार घर की बेल बजानी शुरू कर दी.
अपर्णा गहरी नींद से आँखे मलति हुई बिस्तर पर बैठ गयी, “पागल हो गया है क्या ये आशुतोष. रात के 1 बज रहे हैं. बार-बार बेल क्यों बजा रहा है. अपर्णा खिड़की में आई और उसने जो बाहर देखा उसे देख कर उसकी रूह काँप उठी. जीप से सॅट कर एक नकाब पोश खड़ा था और उसके हाथ में बंदूक थी. जीप में एक लाश साफ देखाई दे रही थी.
आशुतोष को ध्यान भी नही था कि बाकी बचे पोलीस वाले भी सूट कर दिए गये हैं और अब उस पर निशाना लगाया जा रहा है. अपर्णा भाग कर आई नीचे. सीढ़ियों से गिरते-गिरते बची. फ़ौरन दरवाजा खोला और आशुतोष को अंदर खींच कर कुण्डी लगा ली.
“अपर्णा जी…साइको है यहाँ.”
“हां मैने देखा उसे.” अपर्णा कांपति आवाज़ में बोली.
“कहाँ देखा?”
“तुम्हारे जीप के पीछे छुपा था. खिड़की से देखा मैने. उसने सब को मार दिया.” अपर्णा थर-थर काँप रही थी.
“शायद उसने मोबायल जॅमर लगा दिया है कही आस-पास. फोन में नेटवर्क नही आ रहा. किसी को बुला भी नही सकते.” आशुतोष की आवाज़ में भी डर देखाई दे रहा था.
“हे भगवान अब क्या होगा?”
“आप चिंता क्यों करती हैं…मैं हूँ ना. मेरे होते हुए आपको कुछ नही होगा.” आशुतोष ने दिलासा दिया.
अपर्णा आशुतोष से चिपक गयी और बोली, “अपनी चिंता नही है मुझे. तुम्हारी चिंता है. मेरे लिए अपनी जींदगी को ख़तरे में मत डालना चाहे कुछ हो जाए.”
“कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही हैं आप. आपके लिए तो कुछ भी कर सकता हूँ. मेरा हक़ मत छीनिए मुझसे.” आशुतोष ने कहा.
“आशुतोष तुम नही जानते. मैने एक सपना देखा था जिसमे साइको ने तुम्हे गोली मार दी थी.”
“ये साइको मेरा बाल भी बांका नही कर सकता. इसकी तो मैं वाट लगाने वाला हूँ आज.” आशुतोष ने अपर्णा का डर कम करने की कोशिश की
अचानक कमरे की लाइट चली गयी.
“अब लाइट को क्या हो गया?”
“बहुत शातिर है. पूरी प्लॅनिंग से काम कर रहा है” आशुतोष कांपति आवाज़ में बोला.
“आशुतोष वो घर के आगे है. हम घर के पीछे से यहाँ से निकल कर भाग सकते हैं.”
“भागेंगे नही हम कही भी सुन लीजिए आप. आज इस साइको का खेल ख़तम करना है.”
“तुम पागल हो क्या. सब पोलीस वाले मारे गये. तुम अकेले हो अभी. और वो खूंखार हत्यारा है. क्या मेरी बात नही मानोगे. प्लीज़ आशुतोष. मेरे लिए क्या इतना भी नही कर सकते.”
“बस आप ऐसे कहेंगी तो मना नही कर पाउन्गा. चलिए देखते हैं. लेकिन आप को सुरक्षित जगह छोड़ कर मैं वापिस आउन्गा यहाँ.”
“चलो तो सही पहले”
आशुतोष और अपर्णा घर के पीछे भाग की तरफ बढ़े. मगर जब उन्होने पिछला दरवाजा खोलने की कोशिश की तो उनके होश उड़ गये. पिछला दरवाजा बाहर से बंद था.
“इसे बाहर से किसने बंद कर दिया ” अपर्णा ने आश्चर्य में कहा.
“और कौन करेगा साइको के सिवा.”
“हे भगवान ये क्या हो रहा है?”
अपर्णा और आशुतोष बुरी तरह से घिर चुके थे. दोनो के ही मन में हज़ारों सवाल घूम रहे थे.
आशुतोष ने अपर्णा का हाथ पकड़ा और बोला, “चलिए यहाँ से चलते हैं. किसी भी खिड़की या दरवाजे के पास रुकना ख़तरे से खाली नही है.”
आशुतोष डोरबेल बजा बजा कर थक गया मगर अपर्णा ने दरवाजा नही खोला. “यार ये अजीब मोहब्बत हो गयी है इनसे. लगता है यहा रोज कोई ना कोई नाटक झेलना पड़ेगा इनका. लगता है बर्बाद करड़ेगी मुझे ये मोहब्बत.”
थक हार कर आशुतोष वापिस अपनी जीप में जाकर बैठ गया.
रात के 12 बज रहे थे तब. बहुत उदास और मायूस नज़र आ रहा था वो. केयी बार बेल बजाई थी उसने मगर अपर्णा ने एक बार भी दरवाजा नही खोला था.
“क्या मैने आज कुछ ज़्यादा कर दिया. लेकिन प्यार में क्या ज़्यादा क्या कम. भावनायें साची हों तो क्या इन बातों से कोई फर्क पड़ता है.” आशुतोष सोच रहा था. सोचते सोचते उसे नींद की झपकीयाँ आ रही थी.
रात के ठीक 1 बजे एक कॉन्स्टेबल भागता हुआ आशुतोष के पास आया.
“सर…सर…”
आशुतोष की आँख लग गयी थी. वो फ़ौरन चोंक कर उठ गया, “क्या हुआ?”
“सर घर के पीछे गन्मन और हवलदार मरे पड़े हैं.”
“क्या …”
आशुतोष ने अपनी पिस्टल निकाली और घर के आगे खड़े गन्मन और कॉन्स्टेबल्स से कहा, “तुम लोग यहाँ से हिलना मत मैं अभी आया.”
आशुतोष उस कॉन्स्टेबल को लेकर घर के पीछे की तरफ भागा. वहाँ सच में गन्मन और कॉन्स्टेबल्स की लाशे पड़ी थी.
“लगता है साइलेनसर लगा कर सूट किया गया है इन्हे, क्योंकि गोली की ज़रा भी आवाज़ नही आई. बिल्कुल सर में गोली मारी गयी है.”
आशुतोष ने तुरंत अपना मोबायल निकाला और गौरव को फोन मिलाया. मगर फोन नही मिला. मिलता भी कैसे फोन में नेटवर्क ही नही था.
“उफ्फ ये नेटवर्क को भी अभी गायब होना था. तुम्हारे फोन से ट्राइ करना गौरव सर का नंबर.”
“सर मेरे फोन में भी नेटवर्क नही है.”
“मेरी जीप में वाइर्ले पड़ा है उस से ट्राइ करते हैं.” दोनो भाग कर आगे आए.
“तुम ट्राइ करो और सारी सिचुयेशन बता दो.” आशुतोष कह कर अपर्णा के घर की तरफ बढ़ा.
आशुतोष ने लगातार घर की बेल बजानी शुरू कर दी.
अपर्णा गहरी नींद से आँखे मलति हुई बिस्तर पर बैठ गयी, “पागल हो गया है क्या ये आशुतोष. रात के 1 बज रहे हैं. बार-बार बेल क्यों बजा रहा है. अपर्णा खिड़की में आई और उसने जो बाहर देखा उसे देख कर उसकी रूह काँप उठी. जीप से सॅट कर एक नकाब पोश खड़ा था और उसके हाथ में बंदूक थी. जीप में एक लाश साफ देखाई दे रही थी.
आशुतोष को ध्यान भी नही था कि बाकी बचे पोलीस वाले भी सूट कर दिए गये हैं और अब उस पर निशाना लगाया जा रहा है. अपर्णा भाग कर आई नीचे. सीढ़ियों से गिरते-गिरते बची. फ़ौरन दरवाजा खोला और आशुतोष को अंदर खींच कर कुण्डी लगा ली.
“अपर्णा जी…साइको है यहाँ.”
“हां मैने देखा उसे.” अपर्णा कांपति आवाज़ में बोली.
“कहाँ देखा?”
“तुम्हारे जीप के पीछे छुपा था. खिड़की से देखा मैने. उसने सब को मार दिया.” अपर्णा थर-थर काँप रही थी.
“शायद उसने मोबायल जॅमर लगा दिया है कही आस-पास. फोन में नेटवर्क नही आ रहा. किसी को बुला भी नही सकते.” आशुतोष की आवाज़ में भी डर देखाई दे रहा था.
“हे भगवान अब क्या होगा?”
“आप चिंता क्यों करती हैं…मैं हूँ ना. मेरे होते हुए आपको कुछ नही होगा.” आशुतोष ने दिलासा दिया.
अपर्णा आशुतोष से चिपक गयी और बोली, “अपनी चिंता नही है मुझे. तुम्हारी चिंता है. मेरे लिए अपनी जींदगी को ख़तरे में मत डालना चाहे कुछ हो जाए.”
“कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही हैं आप. आपके लिए तो कुछ भी कर सकता हूँ. मेरा हक़ मत छीनिए मुझसे.” आशुतोष ने कहा.
“आशुतोष तुम नही जानते. मैने एक सपना देखा था जिसमे साइको ने तुम्हे गोली मार दी थी.”
“ये साइको मेरा बाल भी बांका नही कर सकता. इसकी तो मैं वाट लगाने वाला हूँ आज.” आशुतोष ने अपर्णा का डर कम करने की कोशिश की
अचानक कमरे की लाइट चली गयी.
“अब लाइट को क्या हो गया?”
“बहुत शातिर है. पूरी प्लॅनिंग से काम कर रहा है” आशुतोष कांपति आवाज़ में बोला.
“आशुतोष वो घर के आगे है. हम घर के पीछे से यहाँ से निकल कर भाग सकते हैं.”
“भागेंगे नही हम कही भी सुन लीजिए आप. आज इस साइको का खेल ख़तम करना है.”
“तुम पागल हो क्या. सब पोलीस वाले मारे गये. तुम अकेले हो अभी. और वो खूंखार हत्यारा है. क्या मेरी बात नही मानोगे. प्लीज़ आशुतोष. मेरे लिए क्या इतना भी नही कर सकते.”
“बस आप ऐसे कहेंगी तो मना नही कर पाउन्गा. चलिए देखते हैं. लेकिन आप को सुरक्षित जगह छोड़ कर मैं वापिस आउन्गा यहाँ.”
“चलो तो सही पहले”
आशुतोष और अपर्णा घर के पीछे भाग की तरफ बढ़े. मगर जब उन्होने पिछला दरवाजा खोलने की कोशिश की तो उनके होश उड़ गये. पिछला दरवाजा बाहर से बंद था.
“इसे बाहर से किसने बंद कर दिया ” अपर्णा ने आश्चर्य में कहा.
“और कौन करेगा साइको के सिवा.”
“हे भगवान ये क्या हो रहा है?”
अपर्णा और आशुतोष बुरी तरह से घिर चुके थे. दोनो के ही मन में हज़ारों सवाल घूम रहे थे.
आशुतोष ने अपर्णा का हाथ पकड़ा और बोला, “चलिए यहाँ से चलते हैं. किसी भी खिड़की या दरवाजे के पास रुकना ख़तरे से खाली नही है.”