02-01-2020, 06:46 PM
गौरव अंकिता के रूम पर पहुँचा तो देखा की अंदर से एक नर्स निकल रही है. गौरव ने उस नर्स को रोका और पूछा, “मेडम जाग रही हैं या सो रही हैं.”
“अभी-अभी इंजेक्षन दे कर आई हूँ उन्हे. वो जाग रही हैं.”
गौरव का चेहरा चमक उठा ये सुन कर. वो घुस गया कमरे में. अंकिता आँखे मीचे पड़ी थी.
“मेडम सब ठीक है ना. कोई तकलीफ़ तो नही है.” गौरव ने धीरे से कहा.
“गौरव तुम! तुम यहाँ क्या कर रहे हो. आराम करने को कहा था ना मैने.”
“आराम ही कर रहा था मैं कमरे में की अचानक” गौरव ने पूरी बात बताई ए एस पी साहिबा को.
“ओह…फिर भी दूसरे पोलीस वाले भी हैं यहा.”
“मेडम क्या चौहान को आपने कही भेजा है.”
“नही मैने तो कही नही भेजा.” अंकिता ने कहा.
“ओह…शायद किसी काम से गये होंगे?” गौरव ने कहा.
“गौरव!” अंकिता ने आवाज़ दी.
“जी मेडम बोलिए.”
“कुछ नही…जाओ सो जाओ.” अंकिता ने गहरी साँस लेकर कहा.
“क्या बात है बोलिए ना?”
“नही रहने दो…कोई बात नही है.”
“क्या आप नाराज़ हैं मुझसे.”
“नही गौरव”
“फिर बोलिए ना क्या बात है.”
“किसी ने मुझे ऐसे नही डांटा कभी जैसे तुमने डांटा था वहाँ जंगल में.”
“सॉरी मेडम, जो सज़ा देनी है दे दीजिए. चाहे तो सस्पेंड कर दीजिए तुरंत, बुरा नही मानूँगा बिल्कुल भी.”
“नही मेरा वो मतलब नही था.”
“फिर आप अब मुझे डाँट कर दिल की भादास निकाल लीजिए.”
“नही वो भी नही करना चाहती”
“फिर क्या करना चाहती हैं आप.”
“कुछ नही..तुम सो जाओ जाकर. मुझे अब नींद आ रही है.”
गौरव सर खुजाता हुआ बाहर आ गया
“मेडम कैसी बहकी बहकी बाते कर रही हैं. पता नही क्या चक्कर है …कही वही चक्कर तो नही जो कि मैं सोच रहा था. ”
“अभी-अभी इंजेक्षन दे कर आई हूँ उन्हे. वो जाग रही हैं.”
गौरव का चेहरा चमक उठा ये सुन कर. वो घुस गया कमरे में. अंकिता आँखे मीचे पड़ी थी.
“मेडम सब ठीक है ना. कोई तकलीफ़ तो नही है.” गौरव ने धीरे से कहा.
“गौरव तुम! तुम यहाँ क्या कर रहे हो. आराम करने को कहा था ना मैने.”
“आराम ही कर रहा था मैं कमरे में की अचानक” गौरव ने पूरी बात बताई ए एस पी साहिबा को.
“ओह…फिर भी दूसरे पोलीस वाले भी हैं यहा.”
“मेडम क्या चौहान को आपने कही भेजा है.”
“नही मैने तो कही नही भेजा.” अंकिता ने कहा.
“ओह…शायद किसी काम से गये होंगे?” गौरव ने कहा.
“गौरव!” अंकिता ने आवाज़ दी.
“जी मेडम बोलिए.”
“कुछ नही…जाओ सो जाओ.” अंकिता ने गहरी साँस लेकर कहा.
“क्या बात है बोलिए ना?”
“नही रहने दो…कोई बात नही है.”
“क्या आप नाराज़ हैं मुझसे.”
“नही गौरव”
“फिर बोलिए ना क्या बात है.”
“किसी ने मुझे ऐसे नही डांटा कभी जैसे तुमने डांटा था वहाँ जंगल में.”
“सॉरी मेडम, जो सज़ा देनी है दे दीजिए. चाहे तो सस्पेंड कर दीजिए तुरंत, बुरा नही मानूँगा बिल्कुल भी.”
“नही मेरा वो मतलब नही था.”
“फिर आप अब मुझे डाँट कर दिल की भादास निकाल लीजिए.”
“नही वो भी नही करना चाहती”
“फिर क्या करना चाहती हैं आप.”
“कुछ नही..तुम सो जाओ जाकर. मुझे अब नींद आ रही है.”
गौरव सर खुजाता हुआ बाहर आ गया
“मेडम कैसी बहकी बहकी बाते कर रही हैं. पता नही क्या चक्कर है …कही वही चक्कर तो नही जो कि मैं सोच रहा था. ”