02-01-2020, 06:35 PM
Update 97
रात के 12 बज रहे थे. हर तरफ रात का सन्नाटा फैला था. हर तरफ एक अजीब सी खामोसी थी. आशुतोष जीप में बैठा हुआ अपनी किस्मत को रो रहा था. “यार ये किस पत्थर से प्यार हो गया है. फोन ही नही उठा रही है. और ना ही दरवाजा खोल रही है. ऐसे ही चलता रहा ये प्यार तो बड़ी जल्दी स्वर्ग सिधार जाउन्गा.”
आशुतोष काई बार बेल बजा चुका था घर की मगर अपर्णा ने एक बार भी दरवाजा नही खोला था.
“एक बार फिर ट्राइ करता हूँ. अगर अब भी नही खोला तो दुबारा कोशिश नही करूँगा.” आशुतोष ने घर की बेल बजाई. कोई एक मिनिट बाद अंदर कदमो की आहट सुनाई दी.
अपर्णा ने दरवाजा खोला और बोली, “इतनी रात को क्यों परेशान कर रहे हो. मैं सो रही थी.”
“ओह सॉरी…चलिए सो जाईए आप. मैं तो बस गुड नाइट बोलने आया था.” आशुतोष मूड कर चल दिया.
“रूको… कुछ कहना चाहते थे क्या?”
“हां कहना तो बहुत कुछ था. मगर अब रात ज़्यादा हो गयी है और आपको नींद भी आ रही है…कल बात कर लेंगे. गुड नाइट.”
“नही रूको…अभी बात कर लेते हैं.”
“सच…मेरी आँखे नम हो गयी ये सुन कर.” आशुतोष ने मज़ाक में कहा.
“क्या मैं तुमसे बात नही करती हूँ…जो कि ऐसा बोल रहे हो.”
“एक बार भी फोन नही उठाया आपने. ना ही दरवाजा खोला. ऐसा कौन सा गुनाह हो गया था मुझसे. आपके पास दिल नाम की चीज़ ही नही है.”
“आशुतोष यही बात तुम पर भी लागू होती है. सुबह मैं उठी तो तुम्हे हर तरफ देखा. पर तुम यहाँ होते तो मिलते. कॉन्स्टेबल्स से पूछा तो पता चला कि तुम तो सुबह होते ही यहा से चले गये थे. क्या तुम मुझे नही बता सकते थे ये बात. एक मेसेज तो कर ही सकते थे तुम.”
“सॉरी अपर्णा जी. मैं आपको डिस्टर्ब नही करना चाहता था. इसलिए फोन नही किया आपको. लेकिन ये जान कर बहुत अच्छा लग रहा है कि आप मुझे ढूंड रही थी. वैसे क्यों ढूंड रही थी आप मुझे…टेल…टेल.” आशुतोष ने हंसते हुए कहा.
“कुछ बनाया था ख़ास आज नाश्ते में. तुम्हे चखाना चाहती थी. और कोई बात नही थी. ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नही है.”
“फिर तो अच्छा ही हुआ कि मैं यहाँ नही था. पता नही क्या बनाया था आपने. खा कर बेहोश हो जाता तो.”
“कभी खाया भी है तुमने मेरे हाथ का कुछ जो ऐसा बोल रहे हो. बहुत अच्छा खाना बनाती हूँ मैं.”
“ऐसे कैसे यकीन कर लूँ मैं. मैने तो यही सुना था कि हसिनाओं को खाना…वाना बनाना नही आता. बस अपनी अदाओं से घायल करना आता है.”
“अभी बना कर दूं कुछ तो क्या यकीन करोगे?”
“इस वक्त…इतनी रात को आप मेरे लिए कुछ बनाएँगी. कितना प्यार करने लगी हैं आप मुझे. मेरे आँखे अब सच में नम हो गयी हैं.” आशुतोष ने झूठ मूठ आँखे मलते हुए कहा.
“जाओ चुपचाप बैठ जाओ अपनी जीप में जाकर…कुछ नही बना रही हूँ मैं. हद होती है मज़ाक की भी. मुझे नही पता था कि तुम इतना मज़ाक करते हो.”
“अरे मज़ाक का बुरा मान गयी आप. मज़ाक का कोई बुरा मानता है क्या?”
“क्या कहते थे तुम मुझे, प्यार करते हैं हम आपसे…कोई मज़ाक नही. अब ऐसा लग रहा है कि मज़ाक वाला पार्ट ही सही है इसमे बाकी सब झूठ है.”
“आपसे थोड़ा सा हँसी मज़ाक करके दिल खुश हो गया आज. क्या ये खुशी छीन लेंगी आप मुझसे. आपको अगर इतना बुरा लगा तो नही करूँगा मज़ाक आजसे कभी.”
“ऐसी बात नही है आशुतोष… सॉरी… आक्च्युयली मैं सच में अच्छा खाना बनाती हूँ. सब तारीफ़ करते हैं मेरे हाथ के खाने की. इसलिए तुम्हारा मज़ाक बुरा लग गया मुझे.”
“चलिए फिर…तारीफ़ करने वालो में मैं भी शामिल होना चाहता हूँ.” आशुतोष ने कहा.
“तुम यही रूको मैं बना कर लाती हूँ.” अपर्णा ने कहा.
“क्या मैं आपके साथ किचन में नही आ सकता. देखना चाहता हूँ आपको बनाते हुए.”
अपर्णा ने थोड़ी देर सोचा और फिर बोली, “आ जाओ”
“इतना सोचा क्यों आपने मुझे अंदर बुलेट हुए. मैं क्या आपको खा जाउन्गा.”
“कुछ नही…तुम नही समझोगे.” अब अपना सपना कैसे सुनाए अपर्णा आशुतोष को
अपर्णा किचन में गयी और सबसे पहले गॅस ऑन किया. “ओह नो…”
“क्या हुआ?”
“गॅस ख़तम हो गयी…दूसरा सिलिंडर भी नही है.”
“चलिए परेशान होने की कोई ज़रूरत नही है…हम बैठ कर बाते करते हैं.”
“हां पर मेरा मन था कुछ बनाने का. भूक भी लग रही है. उफ्फ ये गॅस भी आज ही ख़तम होनी थी.” अपर्णा ने बड़ी मासूमियत से कहा.
रात के 12 बज रहे थे. हर तरफ रात का सन्नाटा फैला था. हर तरफ एक अजीब सी खामोसी थी. आशुतोष जीप में बैठा हुआ अपनी किस्मत को रो रहा था. “यार ये किस पत्थर से प्यार हो गया है. फोन ही नही उठा रही है. और ना ही दरवाजा खोल रही है. ऐसे ही चलता रहा ये प्यार तो बड़ी जल्दी स्वर्ग सिधार जाउन्गा.”
आशुतोष काई बार बेल बजा चुका था घर की मगर अपर्णा ने एक बार भी दरवाजा नही खोला था.
“एक बार फिर ट्राइ करता हूँ. अगर अब भी नही खोला तो दुबारा कोशिश नही करूँगा.” आशुतोष ने घर की बेल बजाई. कोई एक मिनिट बाद अंदर कदमो की आहट सुनाई दी.
अपर्णा ने दरवाजा खोला और बोली, “इतनी रात को क्यों परेशान कर रहे हो. मैं सो रही थी.”
“ओह सॉरी…चलिए सो जाईए आप. मैं तो बस गुड नाइट बोलने आया था.” आशुतोष मूड कर चल दिया.
“रूको… कुछ कहना चाहते थे क्या?”
“हां कहना तो बहुत कुछ था. मगर अब रात ज़्यादा हो गयी है और आपको नींद भी आ रही है…कल बात कर लेंगे. गुड नाइट.”
“नही रूको…अभी बात कर लेते हैं.”
“सच…मेरी आँखे नम हो गयी ये सुन कर.” आशुतोष ने मज़ाक में कहा.
“क्या मैं तुमसे बात नही करती हूँ…जो कि ऐसा बोल रहे हो.”
“एक बार भी फोन नही उठाया आपने. ना ही दरवाजा खोला. ऐसा कौन सा गुनाह हो गया था मुझसे. आपके पास दिल नाम की चीज़ ही नही है.”
“आशुतोष यही बात तुम पर भी लागू होती है. सुबह मैं उठी तो तुम्हे हर तरफ देखा. पर तुम यहाँ होते तो मिलते. कॉन्स्टेबल्स से पूछा तो पता चला कि तुम तो सुबह होते ही यहा से चले गये थे. क्या तुम मुझे नही बता सकते थे ये बात. एक मेसेज तो कर ही सकते थे तुम.”
“सॉरी अपर्णा जी. मैं आपको डिस्टर्ब नही करना चाहता था. इसलिए फोन नही किया आपको. लेकिन ये जान कर बहुत अच्छा लग रहा है कि आप मुझे ढूंड रही थी. वैसे क्यों ढूंड रही थी आप मुझे…टेल…टेल.” आशुतोष ने हंसते हुए कहा.
“कुछ बनाया था ख़ास आज नाश्ते में. तुम्हे चखाना चाहती थी. और कोई बात नही थी. ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नही है.”
“फिर तो अच्छा ही हुआ कि मैं यहाँ नही था. पता नही क्या बनाया था आपने. खा कर बेहोश हो जाता तो.”
“कभी खाया भी है तुमने मेरे हाथ का कुछ जो ऐसा बोल रहे हो. बहुत अच्छा खाना बनाती हूँ मैं.”
“ऐसे कैसे यकीन कर लूँ मैं. मैने तो यही सुना था कि हसिनाओं को खाना…वाना बनाना नही आता. बस अपनी अदाओं से घायल करना आता है.”
“अभी बना कर दूं कुछ तो क्या यकीन करोगे?”
“इस वक्त…इतनी रात को आप मेरे लिए कुछ बनाएँगी. कितना प्यार करने लगी हैं आप मुझे. मेरे आँखे अब सच में नम हो गयी हैं.” आशुतोष ने झूठ मूठ आँखे मलते हुए कहा.
“जाओ चुपचाप बैठ जाओ अपनी जीप में जाकर…कुछ नही बना रही हूँ मैं. हद होती है मज़ाक की भी. मुझे नही पता था कि तुम इतना मज़ाक करते हो.”
“अरे मज़ाक का बुरा मान गयी आप. मज़ाक का कोई बुरा मानता है क्या?”
“क्या कहते थे तुम मुझे, प्यार करते हैं हम आपसे…कोई मज़ाक नही. अब ऐसा लग रहा है कि मज़ाक वाला पार्ट ही सही है इसमे बाकी सब झूठ है.”
“आपसे थोड़ा सा हँसी मज़ाक करके दिल खुश हो गया आज. क्या ये खुशी छीन लेंगी आप मुझसे. आपको अगर इतना बुरा लगा तो नही करूँगा मज़ाक आजसे कभी.”
“ऐसी बात नही है आशुतोष… सॉरी… आक्च्युयली मैं सच में अच्छा खाना बनाती हूँ. सब तारीफ़ करते हैं मेरे हाथ के खाने की. इसलिए तुम्हारा मज़ाक बुरा लग गया मुझे.”
“चलिए फिर…तारीफ़ करने वालो में मैं भी शामिल होना चाहता हूँ.” आशुतोष ने कहा.
“तुम यही रूको मैं बना कर लाती हूँ.” अपर्णा ने कहा.
“क्या मैं आपके साथ किचन में नही आ सकता. देखना चाहता हूँ आपको बनाते हुए.”
अपर्णा ने थोड़ी देर सोचा और फिर बोली, “आ जाओ”
“इतना सोचा क्यों आपने मुझे अंदर बुलेट हुए. मैं क्या आपको खा जाउन्गा.”
“कुछ नही…तुम नही समझोगे.” अब अपना सपना कैसे सुनाए अपर्णा आशुतोष को
अपर्णा किचन में गयी और सबसे पहले गॅस ऑन किया. “ओह नो…”
“क्या हुआ?”
“गॅस ख़तम हो गयी…दूसरा सिलिंडर भी नही है.”
“चलिए परेशान होने की कोई ज़रूरत नही है…हम बैठ कर बाते करते हैं.”
“हां पर मेरा मन था कुछ बनाने का. भूक भी लग रही है. उफ्फ ये गॅस भी आज ही ख़तम होनी थी.” अपर्णा ने बड़ी मासूमियत से कहा.