02-01-2020, 05:58 PM
अंकिता को सुबह होश आया. उसके पेरेंट्स सारी रात आइक्यू के बाहर बेचैनी से उसके होश में आने का वेट कर रहे थे.
डॉक्टर से मिलने की इज़ाज़त लेने के बाद अंकिता के पेरेंट्स उस से मिलने गये. चौहान भी उनके साथ ही अंदर आ गया.
“गौरव कहाँ है…वो ठीक तो है?” अंकिता ने सबसे पहले यही कहा.
“मेडम वो तो सुबह-सुबह ही निकल गया हॉस्पिटल से. वो तो ठीक ही था उसे क्या हुआ था. आपसे मिलने तक की फ़ुर्सत नही थी उसे, पता नही कहाँ जाना था उसे.” चौहान ने आग उगली.
ये सुनते ही अंकिता का चेहरा उतर गया. उसने अपनी आँखे बंद कर ली.
“बेटा हमें बहुत चिंता हो रही थी तुम्हारी. शूकर है तुम्हे होश आ गया. बेटा कैसे हुआ ये सब.” अंकिता के डेडी ने कहा.
अंकिता ने चौहान को बाहर जाने को कहा और अपने पेरेंट्स को पूरी बात बताई.
“बेटा तभी कहता था कि मत करो ये नौकरी. दुबारा एग्ज़ॅम देना चाहिए था तुम्हे. आइएएस या आइआरएस में जाना चाहिए था.”
“डेडी मुझे पसंद है ये नौकरी. हां ये नही पता था कि ये सब हो जाएगा. मैं तो हिम्मत हार चुकी थी. पता नही कैसे लाया मुझे गौरव यहा.”
“कौन है ये गौरव बेटा?”
“ही ईज़ माय इनस्पेक्टर. साइको का केस उसे ही दे रखा है मैने.”
“अगर वो ढंग से काम करता तो ये नौबत ही ना आती. किसी और को लगाओ इस केस पर. उसके बस की बात नही लगती है ये.”
“ऐसी बात नही है डेडी, वो बहुत मेहनत कर रहा है…आअहह.”
“क्या हुआ?”
“डेडी पेट में बहुत दर्द हो रहा है…”
“मैं डॉक्टर को बुलाता हूँ…”
डॉक्टर ने आकर एक पेनकिलर का इंजेक्षन दिया तो कुछ आराम मिला अंकिता को.
“पेन रहेगा जब तक घाव नही भर जाते. लेकिन पेनकिलर से आराम रहेगा. घबराने की कोई बात नही है.” डॉक्टर ने कहा.
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डॉक्टर से मिलने की इज़ाज़त लेने के बाद अंकिता के पेरेंट्स उस से मिलने गये. चौहान भी उनके साथ ही अंदर आ गया.
“गौरव कहाँ है…वो ठीक तो है?” अंकिता ने सबसे पहले यही कहा.
“मेडम वो तो सुबह-सुबह ही निकल गया हॉस्पिटल से. वो तो ठीक ही था उसे क्या हुआ था. आपसे मिलने तक की फ़ुर्सत नही थी उसे, पता नही कहाँ जाना था उसे.” चौहान ने आग उगली.
ये सुनते ही अंकिता का चेहरा उतर गया. उसने अपनी आँखे बंद कर ली.
“बेटा हमें बहुत चिंता हो रही थी तुम्हारी. शूकर है तुम्हे होश आ गया. बेटा कैसे हुआ ये सब.” अंकिता के डेडी ने कहा.
अंकिता ने चौहान को बाहर जाने को कहा और अपने पेरेंट्स को पूरी बात बताई.
“बेटा तभी कहता था कि मत करो ये नौकरी. दुबारा एग्ज़ॅम देना चाहिए था तुम्हे. आइएएस या आइआरएस में जाना चाहिए था.”
“डेडी मुझे पसंद है ये नौकरी. हां ये नही पता था कि ये सब हो जाएगा. मैं तो हिम्मत हार चुकी थी. पता नही कैसे लाया मुझे गौरव यहा.”
“कौन है ये गौरव बेटा?”
“ही ईज़ माय इनस्पेक्टर. साइको का केस उसे ही दे रखा है मैने.”
“अगर वो ढंग से काम करता तो ये नौबत ही ना आती. किसी और को लगाओ इस केस पर. उसके बस की बात नही लगती है ये.”
“ऐसी बात नही है डेडी, वो बहुत मेहनत कर रहा है…आअहह.”
“क्या हुआ?”
“डेडी पेट में बहुत दर्द हो रहा है…”
“मैं डॉक्टर को बुलाता हूँ…”
डॉक्टर ने आकर एक पेनकिलर का इंजेक्षन दिया तो कुछ आराम मिला अंकिता को.
“पेन रहेगा जब तक घाव नही भर जाते. लेकिन पेनकिलर से आराम रहेगा. घबराने की कोई बात नही है.” डॉक्टर ने कहा.
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