02-01-2020, 05:57 PM
जैसे ही गौरव ने फोन रखा, उसका फोन बज उठा.फोन रीमा का था.
“हेलो.” गौरव ने कहा
“गौरव…कैसे हो तुम?”
“पूछो मत साइको की आर्ट का हिस्सा बनते-बनते बचा हूँ आज मैं.अभी हॉस्पिटल में अड्मिट हूँ.”
“क्या… …तुम ठीक तो हो ना.”
“हां मैं ठीक हूँ. तुम सूनाओ.”
“गौरव कल मुझे देखने आ रहे हैं लड़के वाले. क्या करूँ मैं. बड़ी मुश्किल से मिला ये फोन. भैया ने छुपा कर रखा था.?”
“मैं तुम्हारे भैया से बात करूँगा…वो यही हैं हॉस्पिटल में.”
“क्या बात करोगे?”
“हमारी शादी की बात और क्या?”
“तुम मुझसे शादी करोगे…प्यार तो किया नही अभी तक …”
“कुछ तो है रीमा मेरे दिल में तुम्हारे लिए. वो प्यार है या कुछ और पता नही. तुम्हारे भैया मान गये तो क्या करोगी मुझसे शादी तुम.”
“करूँगी क्यों नही…ज़रूर करूँगी…तुम प्लीज़ भैया को मना लो.”
“यार उन्हे ही तो मनाना मुश्किल है…समझ में नही आता कि क्या करूँ…एक नंबर का कमीना है तुम्हारा….” गौरव पूरा सेंटेन्स नही बोल पाया क्योंकि कमरे के दरवाजे पर चौहान खड़ा था. गौरव ने तुरंत फोन काट दिया.
चौहान आँखो में आग लिए कमरे में घुसा और बोला, “मेरी बहन का पीछा छोड़ते हो कि नही. चुपचाप उसका पीछा छोड़ दो वरना तुम्हे गोली मार दूँगा मैं.”
“सर मैं शादी करना चाहता हूँ रीमा से. वो मुझे प्यार करती है…खुश रखूँगा उसे मैं.”
“रीमा की शादी और तुमसे. शीशे में चेहरा देख कर आओ. रीमा की शादी वही होगी जहाँ मैं चाहूँगा. लड़के वाले उसकी फोटो देख कर ही उसे पसंद कर चुके हैं. कल बस देखने आ रहे हैं. एक हफ्ते में ही सगाई और शादी दोनो निपटा दूँगा. तुम में ज़रा भी शरम बाकी हो तो दूर रहना मेरी बहन से. उसकी ख़ुशीयों में आग मत लगाना. और अगर तुमने दुबारा उस से बात भी की तो तुम्हे तो बाद में देखूँगा पहले उसे जान से मार दूँगा.”
गौरव कुछ नही बोल पाया. उसने चुप ही रहना ठीक समझा.
चौहान के जाने के बाद फिर से गौरव के फोन की घंटी बजी. फोन रीमा का ही था.
“क्या हुआ गौरव. फोन क्यों काट दिया था.”
“रीमा तुम्हे अगर मुझसे शादी करनी है तो अपने भैया के खीलाफ जा कर करनी होगी. वो हमारे रिस्ते के लिए तैयार नही है और ना ही होंगे.”
रीमा एक दम खामोश हो गयी.
“क्या हुआ…करोगी मुझसे शादी अपने भैया की मर्ज़ी के बिना. तुम बस हां बोलो बाकी मैं देख लूँगा.”
“नही गौरव. मैं ऐसा नही कर सकती. उनकी मर्ज़ी के खीलाफ नही जा सकती. उन्होने मम्मी पापा के गुजरने के बाद मुझे पाला है. उनकी मर्ज़ी से ही शादी करनी होगी.”
“फिर भूल जाओ ये शादी. तुम्हे वही शादी करनी होगी जहा तुम्हारे भैया चाहते हैं.”
“गौरव प्लीज़….”
“सोच लो रीमा. वो मान-ने वाले नही हैं. तुम मना सकती हो तो मना लो. वरना जो मैं कह रहा हूँ वो करो.”
“मैं भैया से बात नही कर सकती…”
“फिर तुम्हे मेरी बात मान-नी पड़ेगी. उनके खीलाफ जा कर ही शादी कर सकते हैं हम.”
“सॉरी गौरव नही कर पाउन्गि ये. तुम प्लीज़ भैया को मना लो ना.”
“अच्छा छोड़ो. बाद में बात करेंगे. मुझे सुबह जल्दी उठना है और एक इम्पोर्टेन्ट इन्वेस्टिगेशन के लिए जाना है.”
“ओके गौरव. सो जाओ. गुड नाइट.”
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“हेलो.” गौरव ने कहा
“गौरव…कैसे हो तुम?”
“पूछो मत साइको की आर्ट का हिस्सा बनते-बनते बचा हूँ आज मैं.अभी हॉस्पिटल में अड्मिट हूँ.”
“क्या… …तुम ठीक तो हो ना.”
“हां मैं ठीक हूँ. तुम सूनाओ.”
“गौरव कल मुझे देखने आ रहे हैं लड़के वाले. क्या करूँ मैं. बड़ी मुश्किल से मिला ये फोन. भैया ने छुपा कर रखा था.?”
“मैं तुम्हारे भैया से बात करूँगा…वो यही हैं हॉस्पिटल में.”
“क्या बात करोगे?”
“हमारी शादी की बात और क्या?”
“तुम मुझसे शादी करोगे…प्यार तो किया नही अभी तक …”
“कुछ तो है रीमा मेरे दिल में तुम्हारे लिए. वो प्यार है या कुछ और पता नही. तुम्हारे भैया मान गये तो क्या करोगी मुझसे शादी तुम.”
“करूँगी क्यों नही…ज़रूर करूँगी…तुम प्लीज़ भैया को मना लो.”
“यार उन्हे ही तो मनाना मुश्किल है…समझ में नही आता कि क्या करूँ…एक नंबर का कमीना है तुम्हारा….” गौरव पूरा सेंटेन्स नही बोल पाया क्योंकि कमरे के दरवाजे पर चौहान खड़ा था. गौरव ने तुरंत फोन काट दिया.
चौहान आँखो में आग लिए कमरे में घुसा और बोला, “मेरी बहन का पीछा छोड़ते हो कि नही. चुपचाप उसका पीछा छोड़ दो वरना तुम्हे गोली मार दूँगा मैं.”
“सर मैं शादी करना चाहता हूँ रीमा से. वो मुझे प्यार करती है…खुश रखूँगा उसे मैं.”
“रीमा की शादी और तुमसे. शीशे में चेहरा देख कर आओ. रीमा की शादी वही होगी जहाँ मैं चाहूँगा. लड़के वाले उसकी फोटो देख कर ही उसे पसंद कर चुके हैं. कल बस देखने आ रहे हैं. एक हफ्ते में ही सगाई और शादी दोनो निपटा दूँगा. तुम में ज़रा भी शरम बाकी हो तो दूर रहना मेरी बहन से. उसकी ख़ुशीयों में आग मत लगाना. और अगर तुमने दुबारा उस से बात भी की तो तुम्हे तो बाद में देखूँगा पहले उसे जान से मार दूँगा.”
गौरव कुछ नही बोल पाया. उसने चुप ही रहना ठीक समझा.
चौहान के जाने के बाद फिर से गौरव के फोन की घंटी बजी. फोन रीमा का ही था.
“क्या हुआ गौरव. फोन क्यों काट दिया था.”
“रीमा तुम्हे अगर मुझसे शादी करनी है तो अपने भैया के खीलाफ जा कर करनी होगी. वो हमारे रिस्ते के लिए तैयार नही है और ना ही होंगे.”
रीमा एक दम खामोश हो गयी.
“क्या हुआ…करोगी मुझसे शादी अपने भैया की मर्ज़ी के बिना. तुम बस हां बोलो बाकी मैं देख लूँगा.”
“नही गौरव. मैं ऐसा नही कर सकती. उनकी मर्ज़ी के खीलाफ नही जा सकती. उन्होने मम्मी पापा के गुजरने के बाद मुझे पाला है. उनकी मर्ज़ी से ही शादी करनी होगी.”
“फिर भूल जाओ ये शादी. तुम्हे वही शादी करनी होगी जहा तुम्हारे भैया चाहते हैं.”
“गौरव प्लीज़….”
“सोच लो रीमा. वो मान-ने वाले नही हैं. तुम मना सकती हो तो मना लो. वरना जो मैं कह रहा हूँ वो करो.”
“मैं भैया से बात नही कर सकती…”
“फिर तुम्हे मेरी बात मान-नी पड़ेगी. उनके खीलाफ जा कर ही शादी कर सकते हैं हम.”
“सॉरी गौरव नही कर पाउन्गि ये. तुम प्लीज़ भैया को मना लो ना.”
“अच्छा छोड़ो. बाद में बात करेंगे. मुझे सुबह जल्दी उठना है और एक इम्पोर्टेन्ट इन्वेस्टिगेशन के लिए जाना है.”
“ओके गौरव. सो जाओ. गुड नाइट.”
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