02-01-2020, 04:28 PM
“सर आप मेडम के लिए प्रोटेक्शन भेजिए…और हां आपके पास आशुतोष का नंबर हो तो मुझे दे दीजिए.” गौरव ने कहा.
चौहान ने आशुतोष का नंबर दे दिया गौरव को. गौरव ने तुरंत आशुतोष को फोन मिलाया.
“आशुतोष मैं गौरव बोल रहा.”
“सर आप…वो साइको तो बोल रहा था कि उसने आपको और मेडम को…”
“उसके बोलने से क्या होता है. साले को छोड़ेंगे नही हम. मैं ठीक हूँ. मेडम की हालत नाज़ुक है. उनका ऑपरेशन चल रहा है. वहाँ सब ठीक है ना.”
“हां सर सब ठीक है…आप यहा की चिंता मत करो. आप अपना ख्याल रखो.”
आशुतोष ने गौरव से बात करने के बाद अपर्णा को सारी बात बताई.
“तो तुम रात झूठ बोल रहे थे हा.क्या ज़रूरत थी ऐसा करने की.” अपर्णा ने पूछा.
“आपको और ज़्यादा परेशान नही करना चाहता था. आप पहले ही सपने के कारण डरी हुई थी.”
“मैं गौरव से मिलने जाना चाहती हूँ.”
“वैसे तो ख़तरा बहुत है इसमें पर आपकी बात नही तालूँगा. चलिए चलते हैं. मुझे भी गौरव सर और मेडम की चिंता हो रही है.”
आशुतोष, अपर्णा को लेकर हॉस्पिटल चल दिया. साथ में दोनो गन्मन भी थे. आशुतोष चुपचाप ड्राइव करता रहा. अपर्णा भी चुपचाप रही.
हॉस्पिटल पहुँच कर वो सीधा गौरव के कमरे में पहुँच गये.
गौरव उस वक्त आँखे बंद करके लेटा हुआ था.
“गौरव कैसे हो तुम?”
“ओह अपर्णा तुम, व्हाट आ प्लेज़ेंट सर्प्राइज़. मगर तुम्हे यहा नही आना चाहिए था… …”
“सॉरी मैने तुम्हारे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया?” अपर्णा ने कहा.
“आप बात कीजिए मैं बाहर वेट करता हूँ.” आशुतोष ने कहा और वहाँ से बाहर आ गया.
“कोई बात नही. शायद किस्मत में हमारा साथ नही था.” गौरव ने कहा.
“हां शायद. मगर मुझे तुम्हारी दोस्ती हमेशा याद रहेगी. आज भी जब कभी ‘पवर ऑफ नाओ’ पढ़ती हूँ तो तुम्हारी बहुत याद आती है. दोस्ती का एक अच्छा रूप देखा था हमने पर ना जाने क्यों सब बिखर गया.”
“कोई बात नही अपर्णा. तुम किसी बात की चिंता मत करो. मैं अभी भी तुम्हारा दोस्त हूँ.”
“तुम क्या कहना चाहते थे उस दिन कॅंटीन में जब गब्बर ने आकर हमें परेशान कर दिया था.”
“अब वो सब क्यों जान-ना चाहती हो. जो था वो बिखर गया. काश तुमने मुझे मोका दिया होता.”
“चाहने लगी थी तुम्हे. प्यार करने लगी थी तुमसे. बहुत बुरा लगा था मुझे कि तुम सब कुछ एक बेट के लिए कर रहे थे.”
“जिंदगी में इंसान किसी ना किसी बहाने एक दूसरे के करीब आते हैं. हम एक बेट के सहारे दोस्त बने. प्यार हो गया था हमें अब ये तुम भी मानती हो. पर कितनी आसानी से ख़तम कर दिया तुमने इस अनकहे प्यार को. एक मोका तक नही दिया तुमने मुझे अपनी बात कहने का. खैर छोड़ो अब फायदा भी क्या है इन सब बातो का.”
“जानती हूँ की कोई फायदा नही है. बस तुमसे सॉरी बोलने आई थी. मैने तुम्हारा पक्ष जान-ने की कोशिश ही नही की. गब्बर ने भी मुझे खूब भड़काया. मुझे माफ़ कर देना. मेरे दोस्त रहना हमेशा हो सके तो.”
“पता है एक लड़की मुझे बहुत प्यार करती है. उसने मुझे बोल दिया है पर मुझे समझ नही आ रहा कि क्या करूँ. मुझे वो बहुत अच्छी लगती है. पर अभी डिसाइड नही कर पा रहा हूँ. उपर से उसके भाई ने हमारा मिलना जुलना बंद कर दिया है.”
“अगर प्यार करते हो उसे तो बोल दो जाकर. उसके प्यार को इग्नोर मत करो.”
“हां सोचूँगा इस बारे में. इस साइको के केस में उलझा रहता हूँ दिन रात. वक्त ही नही मिलता कुछ सोचने का. अच्छा एक बात बताओ. क्या तुम सच में साइको के चेहरे को भूल गयी हो.”
“हां गौरव मुझे सच में अब कुछ याद नही है. धीरे धीरे उसके चेहरे की छवि गायब हो गयी ज़हन से.”
“कोई बात नही ऐसा ही होता है हमारी मेमोरी के साथ. एक ही बार तो देखा था तुमने उसे.”
“ठीक है गौरव मैं चलती हूँ…अपना ख्याल रखना.”
“बहुत अच्छा लगा अपर्णा जो कि तुम आई. अब सारे घाव भर जाएँगे.”
“टेक केर, बाय.” अपर्णा मुस्कुरा कर बोली और कमरे से बाहर आ गयी.
चौहान ने आशुतोष का नंबर दे दिया गौरव को. गौरव ने तुरंत आशुतोष को फोन मिलाया.
“आशुतोष मैं गौरव बोल रहा.”
“सर आप…वो साइको तो बोल रहा था कि उसने आपको और मेडम को…”
“उसके बोलने से क्या होता है. साले को छोड़ेंगे नही हम. मैं ठीक हूँ. मेडम की हालत नाज़ुक है. उनका ऑपरेशन चल रहा है. वहाँ सब ठीक है ना.”
“हां सर सब ठीक है…आप यहा की चिंता मत करो. आप अपना ख्याल रखो.”
आशुतोष ने गौरव से बात करने के बाद अपर्णा को सारी बात बताई.
“तो तुम रात झूठ बोल रहे थे हा.क्या ज़रूरत थी ऐसा करने की.” अपर्णा ने पूछा.
“आपको और ज़्यादा परेशान नही करना चाहता था. आप पहले ही सपने के कारण डरी हुई थी.”
“मैं गौरव से मिलने जाना चाहती हूँ.”
“वैसे तो ख़तरा बहुत है इसमें पर आपकी बात नही तालूँगा. चलिए चलते हैं. मुझे भी गौरव सर और मेडम की चिंता हो रही है.”
आशुतोष, अपर्णा को लेकर हॉस्पिटल चल दिया. साथ में दोनो गन्मन भी थे. आशुतोष चुपचाप ड्राइव करता रहा. अपर्णा भी चुपचाप रही.
हॉस्पिटल पहुँच कर वो सीधा गौरव के कमरे में पहुँच गये.
गौरव उस वक्त आँखे बंद करके लेटा हुआ था.
“गौरव कैसे हो तुम?”
“ओह अपर्णा तुम, व्हाट आ प्लेज़ेंट सर्प्राइज़. मगर तुम्हे यहा नही आना चाहिए था… …”
“सॉरी मैने तुम्हारे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया?” अपर्णा ने कहा.
“आप बात कीजिए मैं बाहर वेट करता हूँ.” आशुतोष ने कहा और वहाँ से बाहर आ गया.
“कोई बात नही. शायद किस्मत में हमारा साथ नही था.” गौरव ने कहा.
“हां शायद. मगर मुझे तुम्हारी दोस्ती हमेशा याद रहेगी. आज भी जब कभी ‘पवर ऑफ नाओ’ पढ़ती हूँ तो तुम्हारी बहुत याद आती है. दोस्ती का एक अच्छा रूप देखा था हमने पर ना जाने क्यों सब बिखर गया.”
“कोई बात नही अपर्णा. तुम किसी बात की चिंता मत करो. मैं अभी भी तुम्हारा दोस्त हूँ.”
“तुम क्या कहना चाहते थे उस दिन कॅंटीन में जब गब्बर ने आकर हमें परेशान कर दिया था.”
“अब वो सब क्यों जान-ना चाहती हो. जो था वो बिखर गया. काश तुमने मुझे मोका दिया होता.”
“चाहने लगी थी तुम्हे. प्यार करने लगी थी तुमसे. बहुत बुरा लगा था मुझे कि तुम सब कुछ एक बेट के लिए कर रहे थे.”
“जिंदगी में इंसान किसी ना किसी बहाने एक दूसरे के करीब आते हैं. हम एक बेट के सहारे दोस्त बने. प्यार हो गया था हमें अब ये तुम भी मानती हो. पर कितनी आसानी से ख़तम कर दिया तुमने इस अनकहे प्यार को. एक मोका तक नही दिया तुमने मुझे अपनी बात कहने का. खैर छोड़ो अब फायदा भी क्या है इन सब बातो का.”
“जानती हूँ की कोई फायदा नही है. बस तुमसे सॉरी बोलने आई थी. मैने तुम्हारा पक्ष जान-ने की कोशिश ही नही की. गब्बर ने भी मुझे खूब भड़काया. मुझे माफ़ कर देना. मेरे दोस्त रहना हमेशा हो सके तो.”
“पता है एक लड़की मुझे बहुत प्यार करती है. उसने मुझे बोल दिया है पर मुझे समझ नही आ रहा कि क्या करूँ. मुझे वो बहुत अच्छी लगती है. पर अभी डिसाइड नही कर पा रहा हूँ. उपर से उसके भाई ने हमारा मिलना जुलना बंद कर दिया है.”
“अगर प्यार करते हो उसे तो बोल दो जाकर. उसके प्यार को इग्नोर मत करो.”
“हां सोचूँगा इस बारे में. इस साइको के केस में उलझा रहता हूँ दिन रात. वक्त ही नही मिलता कुछ सोचने का. अच्छा एक बात बताओ. क्या तुम सच में साइको के चेहरे को भूल गयी हो.”
“हां गौरव मुझे सच में अब कुछ याद नही है. धीरे धीरे उसके चेहरे की छवि गायब हो गयी ज़हन से.”
“कोई बात नही ऐसा ही होता है हमारी मेमोरी के साथ. एक ही बार तो देखा था तुमने उसे.”
“ठीक है गौरव मैं चलती हूँ…अपना ख्याल रखना.”
“बहुत अच्छा लगा अपर्णा जो कि तुम आई. अब सारे घाव भर जाएँगे.”
“टेक केर, बाय.” अपर्णा मुस्कुरा कर बोली और कमरे से बाहर आ गयी.