02-01-2020, 03:34 PM
Update 88
कुछ भी करने और कहने का मन नही था
"थाने से आकर रोज जिम जाती हूँ मैं. कल अकेली ही निकल गयी अपनी कार लेकर. जिम ख़तम करके अपनी कार की और जा रही थी. साइको ने पीछे से अचानक दबोच लिया और कुछ सूँघा दिया मुझे. सुनसान था पार्किंग एरिया शायद किसी ने ये सब नही देखा. आँख खुली तो खुद को पेड़ से टँगे पाया. साइको ने मुझे अपनी सारी गेम बता दी थी. मेरे सामने ही उसने तुमसे फोन पर बात की. मुझे लग रहा था कि तुम नही आओगे मौत के मुँह में. पर तुम आ गये."
"आता क्यों नही. आप मेरी बॉस हो."
"मैं फिर से बॉस बन गयी और आप भी बन गयी हरे आआहह."
"आप कम बोलो तो अच्छा है. मुझ पर विश्वास रखो मैं कोई ना कोई रास्ता ढूंड लूँगा."
"साइको अपने विक्टिम्स की मौत की पैंटिंग बनाता है गौरव. सब इंतज़ाम कर रखा था उसने वहाँ उपर. लाइट का भी इंतज़ाम कर रखा था. ये साइको बहुत शातिर है गौरव."
"रहने दो शातिर उसे. अब बचेगा नही वो ज़्यादा दिन. उसके पाप का घड़ा भर चुका है. अब मुझे सबसे ज़्यादा कर्नल देवेंदर सिंग पर शक हो रहा है. उसे पैंटिंग का शौक है और उसके घर मैने बहुत अज़ीब पैंटिंग देखी थी. वैसी पैंटिंग कोई साइको ही बना सकता है."
"छोड़ना मत इस साइको को गौरव. तडपा-तडपा कर मारना उसे."
"आप खुद देखेंगी उसे मरते हुए, फिर से निराशा भरी बाते मत करो वरना अब सच में थप्पड़ लगेगा."
"सॉरी गौरव." अंकिता ने मासूमियत भरे लहज़े में कहा.
"हाहहाहा मेरी बॉस ने मुझे सॉरी कहा हरे."
"देख लूँगी बाद में तुम्हे, एक बार हॉस्पिटल पहुँचने दो मुझे."
"देख लेना जी भरके हॉस्पिटल तो आप हर हाल में पहुँचेगी."
गौरव दिल में उम्मीद की किरण लिए अंकिता को गोद में लेकर आगे बढ़ता रहा. अंकिता ने अपनी आँखे बंद कर ली थी और खुद को किस्मत के सहारे छोड़ दिया था.
“क्या आप सो गयी” गौरव ने पूछा.
“सर चकरा रहा है, बस यू ही आँखे बंद कर रखी हैं. शरीर में इतना दर्द हो तो कोई कैसे सो सकता है.”
“हां ये भी है. मेरा भी अंग-अंग दुख रहा है. रात को नीचे गिरने के बाद तो हम शायद बेहोश हो गये थे. मेरी तो सुबह ही आँख खुली.”
“मेरी भी सुबह ही खुली. और आँख खुलते ही इतना दर्द महसूस हुआ कि यही लगा की काश आँख कभी ना खुलती.”
“बस अब चुप ही रहें आप. कोई ना कोई रास्ता ज़रूर मिलेगा.”
कोई एक घंटे तक गौरव अंकिता को उठाए आगे बढ़ता रहा. धीरे धीरे चल पा रहा था वो क्योंकि उसके पाँव खुद बुरी तरह से घायल थे. अचानक उसे दूर एक भेड़ चरती हुई देखाई दी.
“ये तो पालतू भेड़ लगती है. ज़रूर पूरा झुंड होगा आस-पास और साथ में चरवहां भी होगा.” गौरव ने मन ही मन सोचा और तेज़ी से उस भेड़ की तरफ बढ़ा.
उसका अंदाज़ा सही था. जब वो कुछ आगे बढ़ा तो उसे पूरा झुंड देखाई दिया. मगर उसे कोई चरवहां नही दिखा.
“हे किसकी भेड़ हैं ये.” गौरव चिल्लाया.
गौरव की आवाज़ सुन कर अंकिता चोंक गयी और आँखे खोल कर सर घुमा कर देखने लगी. “अगर यहाँ भेड़ हैं तो कोई रास्ता ज़रूर होगा.” अंकिता ने कहा.
“वही मैं भी सोच रहा हूँ. चरवहां मिलेगा तभी बात बनेगी.” गौरव ने फिर से आवाज़ लगाई.
एक 14-15 साल का लड़का भाग कर आया गौरव के पास.
“हमें तुरंत हॉस्पिटल पहुँचना है. जल्दी से सड़क तक जाने का रास्ता बताओ.” गौरव ने पूछा.
“हे भगवान क्या हुआ इन्हे….” लड़के ने अंकिता को देख कर कहा.
“जल्दी से रास्ता बताओ, हमारे पास ज़्यादा वक्त नही है.
“पर मैं अपने भेड़ को छोड़ कर कही नही जा सकता. मालिक से डाँट पड़ेगी.”
“तुम्हारे मालिक को मैं देख लूँगा, फिलहाल रास्ता बताओ इनका वक्त पर हॉस्पिटल पहुँचना ज़रूरी है.” गौरव ने कहा
वो लड़का गौरव के आगे आगे चल दिया. कहीं कही थोड़ी चढ़ाई भी थी. बहुत मुश्किल हुई गौरव को चढ़ने में. मगर धीरे-धीरे वो चढ़ ही गया. मगर एक जगह उसका पाँव फिसल गया. अंकिता के पेट में गाड़ी लकड़ी गौरव की गर्दन से टकराई. अंकिता कराह उठी. “आअहह.”
“सॉरी मेडम, पाँव फिसल गया था थोड़ा सा.”
“कोई बात नही, इतना कुछ कर रहे हो तुम मेरे लिए, तुम्हारे कारण भी थोड़ा दर्द सह ही सकती हूँ.” अंकिता ने मुस्कुराते हुए कहा.
“मुझे पता है बाद में इस सब की सज़ा मिलने वाली है मुझे…” गौरव ने हंसते हुए कहा.
“हां वो तो मिलनी ही है…” अंकिता भी हंसते हुए बोली.
धीरे धीरे एक घंटे में वो लड़का गौरव को सड़क के किनारे ले आया. सड़क को दूर से देखते ही गौरव की आँखे चमक उठी.
“थॅंक यू, क्या नाम है तुम्हारा.” गौरव ने कहा.
“कृष्णा”
“तुम सच में हमारे लिए कृष्णा ही हो. बाद में मिलूँगा तुम्हे आकर. कहाँ मिलोगे तुम.”
“मैं यही भेड़ चराता हूँ रोज” उसने अपना अड्रेस भी बता दिया
“ठीक है जाओ तुम” गौरव ने उसे भेज दिया.
गौरव अंकिता को लेकर सड़क किनारे आ गया. उसने अंकिता को धीरे से ज़मीन पर लेटा दिया, “मैं किसी कार को रोकता हूँ.”
गौरव को कोई 5 मिनिट बाद एक कार आती दिखाई दी वो उसे रोकने के लिए बीच सड़क में आ गया और उसे रुकने पर मजबूर कर दिया.
“क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी.” कार चालक चिल्लाया.
“देखो मुझे लिफ्ट चाहिए एमर्जेन्सी है. मुझे हॉस्पिटल पहुँचना है जल्द से जल्द.”
“दारू पीकर गिर गये थे क्या कही. क्या हालत बना रखी है. आओ बैठ जाओ.”
“रूको थोड़ी देर.” गौरव ने कहा और अंकिता की ओर चल दिया.
गौरव अंकिता को उठा लाया.
“क्या हुआ इनको?”
“लंबी कहानी है…तुम प्लीज़ जल्दी चलाओ.” गौरव अंकिता को लेकर पीछे बैठ गया.
“मेडम…मेडम” गौरव ने कहा.
पर अंकिता ने कोई रेस्पॉन्स नही दिया. “लगता है बेहोश हो गयी हैं. खून बहुत बह गया है. बेहोश होना लाज़मी है.”
40 मिनिट में देहरादून पहुँच गये वो और कार वाले ने एक प्राइवेट हॉस्पिटल के सामने कार रोक दी.
“ये अच्छा हॉस्पिटल है. ले जाओ इनको. भगवान सब भली करेंगे.” कार वाले ने कहा.
गौरव ने अंकिता को उठाया और तुरंत हॉस्पिटल में घुस गया. तुरंत अंकिता को ऑपरेशन थियेटर भेज दिया गया.
“शुकर है आपने ये लकड़ी नही निकाली बाहर, वरना इनका बचना मुश्किल हो जाता.” डॉक्टर ने कहा.
गौरव को भी अड्मिट कर लिया गया. हॉस्पिटल से गौरव ने थाने फोन किया, चौहान ने फोन उठाया. गौरव ने सारी बात बताई चौहान को.
“अच्छा हुआ जो कि तुम बच गये. तुम्हे तो मैं मारूँगा अपने हाथो से.”
कुछ भी करने और कहने का मन नही था
"थाने से आकर रोज जिम जाती हूँ मैं. कल अकेली ही निकल गयी अपनी कार लेकर. जिम ख़तम करके अपनी कार की और जा रही थी. साइको ने पीछे से अचानक दबोच लिया और कुछ सूँघा दिया मुझे. सुनसान था पार्किंग एरिया शायद किसी ने ये सब नही देखा. आँख खुली तो खुद को पेड़ से टँगे पाया. साइको ने मुझे अपनी सारी गेम बता दी थी. मेरे सामने ही उसने तुमसे फोन पर बात की. मुझे लग रहा था कि तुम नही आओगे मौत के मुँह में. पर तुम आ गये."
"आता क्यों नही. आप मेरी बॉस हो."
"मैं फिर से बॉस बन गयी और आप भी बन गयी हरे आआहह."
"आप कम बोलो तो अच्छा है. मुझ पर विश्वास रखो मैं कोई ना कोई रास्ता ढूंड लूँगा."
"साइको अपने विक्टिम्स की मौत की पैंटिंग बनाता है गौरव. सब इंतज़ाम कर रखा था उसने वहाँ उपर. लाइट का भी इंतज़ाम कर रखा था. ये साइको बहुत शातिर है गौरव."
"रहने दो शातिर उसे. अब बचेगा नही वो ज़्यादा दिन. उसके पाप का घड़ा भर चुका है. अब मुझे सबसे ज़्यादा कर्नल देवेंदर सिंग पर शक हो रहा है. उसे पैंटिंग का शौक है और उसके घर मैने बहुत अज़ीब पैंटिंग देखी थी. वैसी पैंटिंग कोई साइको ही बना सकता है."
"छोड़ना मत इस साइको को गौरव. तडपा-तडपा कर मारना उसे."
"आप खुद देखेंगी उसे मरते हुए, फिर से निराशा भरी बाते मत करो वरना अब सच में थप्पड़ लगेगा."
"सॉरी गौरव." अंकिता ने मासूमियत भरे लहज़े में कहा.
"हाहहाहा मेरी बॉस ने मुझे सॉरी कहा हरे."
"देख लूँगी बाद में तुम्हे, एक बार हॉस्पिटल पहुँचने दो मुझे."
"देख लेना जी भरके हॉस्पिटल तो आप हर हाल में पहुँचेगी."
गौरव दिल में उम्मीद की किरण लिए अंकिता को गोद में लेकर आगे बढ़ता रहा. अंकिता ने अपनी आँखे बंद कर ली थी और खुद को किस्मत के सहारे छोड़ दिया था.
“क्या आप सो गयी” गौरव ने पूछा.
“सर चकरा रहा है, बस यू ही आँखे बंद कर रखी हैं. शरीर में इतना दर्द हो तो कोई कैसे सो सकता है.”
“हां ये भी है. मेरा भी अंग-अंग दुख रहा है. रात को नीचे गिरने के बाद तो हम शायद बेहोश हो गये थे. मेरी तो सुबह ही आँख खुली.”
“मेरी भी सुबह ही खुली. और आँख खुलते ही इतना दर्द महसूस हुआ कि यही लगा की काश आँख कभी ना खुलती.”
“बस अब चुप ही रहें आप. कोई ना कोई रास्ता ज़रूर मिलेगा.”
कोई एक घंटे तक गौरव अंकिता को उठाए आगे बढ़ता रहा. धीरे धीरे चल पा रहा था वो क्योंकि उसके पाँव खुद बुरी तरह से घायल थे. अचानक उसे दूर एक भेड़ चरती हुई देखाई दी.
“ये तो पालतू भेड़ लगती है. ज़रूर पूरा झुंड होगा आस-पास और साथ में चरवहां भी होगा.” गौरव ने मन ही मन सोचा और तेज़ी से उस भेड़ की तरफ बढ़ा.
उसका अंदाज़ा सही था. जब वो कुछ आगे बढ़ा तो उसे पूरा झुंड देखाई दिया. मगर उसे कोई चरवहां नही दिखा.
“हे किसकी भेड़ हैं ये.” गौरव चिल्लाया.
गौरव की आवाज़ सुन कर अंकिता चोंक गयी और आँखे खोल कर सर घुमा कर देखने लगी. “अगर यहाँ भेड़ हैं तो कोई रास्ता ज़रूर होगा.” अंकिता ने कहा.
“वही मैं भी सोच रहा हूँ. चरवहां मिलेगा तभी बात बनेगी.” गौरव ने फिर से आवाज़ लगाई.
एक 14-15 साल का लड़का भाग कर आया गौरव के पास.
“हमें तुरंत हॉस्पिटल पहुँचना है. जल्दी से सड़क तक जाने का रास्ता बताओ.” गौरव ने पूछा.
“हे भगवान क्या हुआ इन्हे….” लड़के ने अंकिता को देख कर कहा.
“जल्दी से रास्ता बताओ, हमारे पास ज़्यादा वक्त नही है.
“पर मैं अपने भेड़ को छोड़ कर कही नही जा सकता. मालिक से डाँट पड़ेगी.”
“तुम्हारे मालिक को मैं देख लूँगा, फिलहाल रास्ता बताओ इनका वक्त पर हॉस्पिटल पहुँचना ज़रूरी है.” गौरव ने कहा
वो लड़का गौरव के आगे आगे चल दिया. कहीं कही थोड़ी चढ़ाई भी थी. बहुत मुश्किल हुई गौरव को चढ़ने में. मगर धीरे-धीरे वो चढ़ ही गया. मगर एक जगह उसका पाँव फिसल गया. अंकिता के पेट में गाड़ी लकड़ी गौरव की गर्दन से टकराई. अंकिता कराह उठी. “आअहह.”
“सॉरी मेडम, पाँव फिसल गया था थोड़ा सा.”
“कोई बात नही, इतना कुछ कर रहे हो तुम मेरे लिए, तुम्हारे कारण भी थोड़ा दर्द सह ही सकती हूँ.” अंकिता ने मुस्कुराते हुए कहा.
“मुझे पता है बाद में इस सब की सज़ा मिलने वाली है मुझे…” गौरव ने हंसते हुए कहा.
“हां वो तो मिलनी ही है…” अंकिता भी हंसते हुए बोली.
धीरे धीरे एक घंटे में वो लड़का गौरव को सड़क के किनारे ले आया. सड़क को दूर से देखते ही गौरव की आँखे चमक उठी.
“थॅंक यू, क्या नाम है तुम्हारा.” गौरव ने कहा.
“कृष्णा”
“तुम सच में हमारे लिए कृष्णा ही हो. बाद में मिलूँगा तुम्हे आकर. कहाँ मिलोगे तुम.”
“मैं यही भेड़ चराता हूँ रोज” उसने अपना अड्रेस भी बता दिया
“ठीक है जाओ तुम” गौरव ने उसे भेज दिया.
गौरव अंकिता को लेकर सड़क किनारे आ गया. उसने अंकिता को धीरे से ज़मीन पर लेटा दिया, “मैं किसी कार को रोकता हूँ.”
गौरव को कोई 5 मिनिट बाद एक कार आती दिखाई दी वो उसे रोकने के लिए बीच सड़क में आ गया और उसे रुकने पर मजबूर कर दिया.
“क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी.” कार चालक चिल्लाया.
“देखो मुझे लिफ्ट चाहिए एमर्जेन्सी है. मुझे हॉस्पिटल पहुँचना है जल्द से जल्द.”
“दारू पीकर गिर गये थे क्या कही. क्या हालत बना रखी है. आओ बैठ जाओ.”
“रूको थोड़ी देर.” गौरव ने कहा और अंकिता की ओर चल दिया.
गौरव अंकिता को उठा लाया.
“क्या हुआ इनको?”
“लंबी कहानी है…तुम प्लीज़ जल्दी चलाओ.” गौरव अंकिता को लेकर पीछे बैठ गया.
“मेडम…मेडम” गौरव ने कहा.
पर अंकिता ने कोई रेस्पॉन्स नही दिया. “लगता है बेहोश हो गयी हैं. खून बहुत बह गया है. बेहोश होना लाज़मी है.”
40 मिनिट में देहरादून पहुँच गये वो और कार वाले ने एक प्राइवेट हॉस्पिटल के सामने कार रोक दी.
“ये अच्छा हॉस्पिटल है. ले जाओ इनको. भगवान सब भली करेंगे.” कार वाले ने कहा.
गौरव ने अंकिता को उठाया और तुरंत हॉस्पिटल में घुस गया. तुरंत अंकिता को ऑपरेशन थियेटर भेज दिया गया.
“शुकर है आपने ये लकड़ी नही निकाली बाहर, वरना इनका बचना मुश्किल हो जाता.” डॉक्टर ने कहा.
गौरव को भी अड्मिट कर लिया गया. हॉस्पिटल से गौरव ने थाने फोन किया, चौहान ने फोन उठाया. गौरव ने सारी बात बताई चौहान को.
“अच्छा हुआ जो कि तुम बच गये. तुम्हे तो मैं मारूँगा अपने हाथो से.”