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Adultery बात एक रात की - The Immortal Romance - {Completed}
"खो...खो...आअहह" खाँसते हुए उठा वो. मुँह से मानो खून की नादिया बह रही थी उसके. आँखे खोली उसने. हल्की सी रोशनी देखाई दी उसे.

 
"लगता है सुबह हो गयी है" उसने मन ही मन सोचा और अचानक वो बेचैन हो गया और बड़बड़ाया,"मेडम कहाँ है."
 
गौरव ने उठने की कोशिश की पर वो उठ नही पाया.
 
"खो...खो...आअहह...गौरव"
 
"मेडम.... आप कहाँ हो"
 
"तुम्हारे सर के बिल्कुल उपर. उठो गौरव और मुझे मार दो प्लीज़ आहह."
 
"ये..ये आप क्या कह रही हैं...प्लीज़ ये सब मत बोलिए. मुझे माफ़ कर दीजिए कुछ नही कर पाया मैं आपके लिए."
 
"तो अब कर दो, मुझे मार दो प्लीज़." अंकिता गिड़गिडाई.
 
गौरव के मन में खाई में गिरने का पूरा नज़ारा घूम गया. उपर से गिरने के बाद वो दोनो तीन बार अलग अलग पेड़ में अटके. इस कारण वो सीधा नीचे गिरने से बच गये मगर अब उनको अपना बचना भी कष्टदायी लग रहा था.
 
गौरव ने पूरा ज़ोर लगा कर हल्की सी अपनी गर्दन उठाई. अपने शरीर को देख कर काँप गया वो. उसके घुटने बुरी तरह छिल गये थे और उनमे से खून बहे जा रहा था. कुछ ऐसा ही हाल था लगभग शरीर के हर अंग का. गौरव ने पूरी कोशिश की उठने की मगर उठ नही पाया. किसी तरह से उसने करवट ली और सर को उठा कर अंकिता की तरफ देखा. रो पड़ा वो अंकिता को देख कर. पेट में एक लकड़ी घुसी हुई थी अंकिता के और वो दर्द से छट पटा रही थी. अब गौरव को समझ में आया की वो क्यों उसे उसको मारने को बोल रही थी.
 
गौरव आँखो में आँसू लिए ज़मीन पर खुद को घसीट-ता हुआ अंकिता की ओर बढ़ा और उसके पास कर बोला, "माफ़ कर दीजिए मुझे मेडम, कुछ नही कर पाया मैं आपके लिए."
 
"..गौरव मैं सह नही पा रही हूँ. प्लीज़ मुझे मार दो."
 
"नही कर पाउन्गा ये पाप, प्लीज़ ये सब करने को ना बोलिए."
 
"तुम समझ नही रहे हो मैं तड़प रही हूँ कब से पर ये जान पता नही क्यों नही जा रही...." रोने लगी अंकिता ये बोल कर.
 
"हे भगवान मेरी मदद कर." गौरव ने कहा और पूरा ज़ोर लगा कर उठने की कोशिश की.
 
उठते वक्त उसे ऐसा लगा जैसे की उसका घुटना बाहर जाएगा. मगर अंकिता की हालत देख कर उसमे कुछ करने का जोश गया था और वो किसी तरह से उठ गया.
 
"मेडम आपको हॉस्पिटल ले जाउन्गा मैं. आप मरने की बाते मत करो प्लीज़." गौरव बोल कर लड़खड़ा कर फिर से गिर गया.
 
"कैसे ले जाओगे गौरव. तुम खुद को नही संभाल पा रहे हो. मुझे मार कर निकल जाओ यहा से, प्लीज़."
 
"आपके साथ ही मारना पसंद करूँगा मैं यहा से अकेले जाने की बजाए."
 
"तुम पागल हो गये हो. अच्छा मत मारो मुझे मगर यहा से निकल जाओ तुम. मैं कुछ ही पल की मेहमान हूँ लगता है. मेरे उपर वक्त बर्बाद मत करो...जाओ."
 
"आपको छोड़ कर कही नही जा रहा मैं." गौरव फिर से हिम्मत करके खड़ा हो गया.
 
"इट्स आन ऑर्डर गौरव चले जाओ."
 
"जाउन्गा तो आपको साथ लेकर ही जाउन्गा. आपके किसी ऑर्डर को नही मानूँगा आज."
 
गौरव ने बड़ी मुश्किल से उठाया शालिमि को और उसे गोदी में लेकर वहां से चल दिया लड़खड़ाते हुए कदमो से.
 
"ये लकड़ी तो खींच लो बाहर कम से कम." अंकिता गिड़गिडाई.
 
"नही इसे अभी निकाला तो आपकी जान को ख़तरा बढ़ जाएगा."
 
"गौरव खाई में हैं हम. कैसे निकलेंगे यहाँ से. मुझे उठा कर कैसे चढ़ोगे पहाड़ पर. मेरी बात मानो तुम निकल जाओ यहा से और जींदा मत छोड़ना साइको को. गोली मारना उसके सर में." अंकिता ने कहा.
 
"आप मारेंगी उसे गोली और आप चुप रहो बस.. जैसे भी हो मैं आपको ले चलूँगा हॉस्पिटल."
 
गौरव हिम्मत करके गोदी में उठा कर चल तो रहा था अंकिता को मगर जल्द ही उसे ये अहसास हो गया कि वो हारी हुई बाजी खेल रहा है. खाई के चारो तरफ पहाड़ियाँ बहुत स्टीप थी. उनपर अंकिता को गोदी में लेकर चढ़ना नामुमकिन था. उसकी गोदी में अंकिता दर्द से छटपटा रही थी और उसे अंकिता की मौत नज़दीक नज़र रही थी. इतना निराश हो गया गौरव कि रो पड़ा फिर से.
 
"मैं क्या करूँ भगवान कोई तो रास्ता दिखाओ, मैं कैसे और कहा से लेकर जाउ मेडम को हॉस्पिटल."
 
अंकिता ने आँखे खोल कर गौरव की ओर देखा. वो भी रो पड़ी, रोक नही पाई खुद को. उसने गौरव के गाल पर हाथ रखा और बोली, "गौरव एक ही रास्ता है जिसे तुम देख कर भी इग्नोर कर रहे हो. क्यों ढो रहे हो मुझे. मरने ही वाली हूँ मैं. तुम बेवजह अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो. क्या अपनी मेडम की बात नही मानोगे, प्लीज़ छोड़ दो मुझे मेरे हाल पर और यहाँ से निकल जाओ. तुम्हे भी मेडिकल अटेन्षन की ज़रूरत है. जाओ तुम्हे उस साइको को गोली मारनी है अभी. मैं बॉस हूँ तुम्हारी मेरी बात मान-नी पड़ेगी तुम्हे."
 
"शट अप, बकवास बंद करो अपनी. आई मेरी बॉस. बॉस हो तो क्या कुछ भी बोलोगी. तुम्हारे बिना जंगल से नही जाउन्गा मैं. तुम्हे कुछ हो गया तो खुद को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा. चुप रहो बिल्कुल, एक शब्द भी निकाला मुँह से तो थप्पड़ पड़ेगा अब. आई बड़ी बॉस हुह."
 
"बॉस को डाँट रहे हो, आप से तुम पर गये, और थप्पड़ क्यों मारोगे तुम, अपनी हद में रहो आअहह." अंकिता दर्द से कराह उठी.
 
"दुबारा बेहूदा बात की मुझसे तो थप्पड़ ज़रूर पड़ेगा. क्या समझती हो खुद को तुम. हर वक्त तुम्हारी ही बात मानी जाएगी क्या."
 
"गौरव प्लीज़, मैं तुम्हारे लिए बोल रही हूँ. कोई रास्ता नही है यहा से निकलने का. मुझे उठा कर तो कभी नही निकल पाओगे. मेरी बात मान लो छोड़ दो मुझे यही."
 
"मैने कहा ना अकेले यहा से नही जाउन्गा मैं. यहा से हम साथ जाएँगे. नही जा पाए तो साथ मरेंगे यही."
 
"कौन हूँ मैं तुम्हारी जो ऐसी बाते कर रहे हो?"
 
"इंसानियत का रिस्ता है आपसे. इतना काफ़ी है आपसे ऐसी बाते करने के लिए."
 
"कोई भी रास्ता नही है गौरव, समझते क्यों नही तुम आआहह."
 
"कहते हैं कि जहाँ चाह, वहाँ राह. कोई ना कोई रास्ता ज़रूर मिलेगा हमें. वैसे साइको ने आपको कैसे किडनॅप कर लिया."
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RE: बात एक रात की - The Immortal Romance - {Completed} - by usaiha2 - 02-01-2020, 03:31 PM



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