02-01-2020, 03:28 PM
Update 87
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अपर्णा गहरी नींद से चिल्ला कर उठी, "गौरव...."
आवाज़ बाहर जीप में बैठे आशुतोष को भी सुनाई दी. वो दरवाजे की तरफ भागा. और उसने घर की बेल बजाई. घर में काम वाली बाई रुकी हुई थी. उसने दरवाजा खोला.
"क्या हुआ, अपर्णा जी क्यों चिल्लाई."
"मुझे नही पता. मैं भी उनकी आवाज़ सुन कर अभी उठी."
आशुतोष अपर्णा के कमरे की तरफ दौड़ा. सीढ़ियाँ चढ़ कर वो उपर आया और अपर्णा के रूम के दरवाजे को पीटने लगा, "अपर्णा जी क्या हुआ, दरवाजा खोलिए."
अपर्णा काँपते कदमो से उठी बिस्तर से और दरवाजा खोला. वो बहुत डरी हुई लग रही थी.
"क्या हुआ अपर्णा जी आप क्यों चिल्लाई थी."
"मैने बहुत भयानक सपना देखा आशुतोष, मुझे बहुत डर लग रहा है."
"ओह...सपना ही तो था. इसमे डरने की क्या बात है. वैसे क्या देखा आपने सपने में."
"मैने देखा की पोलीस स्टेशन में ही साइको ने गौरव की गर्दन....नही बोल सकती मैं..."
"कोई बात नही मैं समझ गया. आप घबराओ मत. लगता है गौरव सर आपके अच्छे दोस्त थे कॉलेज में."
"हां बहुत अच्छे दोस्त थे हम. मैं गौरव से बात करना चाहती हूँ. क्या उसका नंबर है तुम्हारे पास."
"नंबर तो है पर इस वक्त रात के 2 बजे हैं और शायद वो सो रहे होंगे."
"मुझे नंबर दो प्लीज़ मुझे अभी बात करनी है गौरव से."
"क्या आप प्यार करती हैं गौरव सर से." आशुतोष ने दर्द भारी आवाज़ में कहा.
"ओह कम ऑन, नंबर दो प्लीज़. हम अच्छे दोस्त थे बस कितनी बार कहूँ और तुम्हे क्या हक़ है ये सवाल करने का, खुद तो 10-10 लड़कियों से संबंध रखते हो और मुझसे ऐसा सवाल करते हो."
आशुतोष ने नंबर दे दिया अपर्णा को. अपर्णा ने तुरंत नंबर मिलाया.
"हेलो गौरव, थॅंक गॉड तुमने फोन उठाया."
"ओह तो ये फोन किसी गौरव का है."
"कौन हो तुम?" अपर्णा ने पूछा.
"मुझे ये फोन सड़क किनारे पड़ा मिला. मैने उठा लिया. सोच रहा था कि सुबह पोलीस स्टेशन जमा कर दूँगा. आप अपना अड्रेस दे दो मैं फोन आपके अड्रेस पर दे दूँगा."
अपर्णा ने फोन काट दिया.
"क्या हुआ अपर्णा जी."
"फोन किसी आदमी के पास था. कह रहा था कि उसे वो सड़क किनारे मिला. मुझे तो गौरव की चिंता हो रही है...कही सच में तो साइको ने उसे...."
आशुतोष ने अपने फोन से फोन मिलाया गौरव का और उस आदमी को अपर्णा के घर का अड्रेस दे दिया.
"है तो बहुत अजीब बात. पर हो सकता है की गौरव सर का फोन ग़लती से सड़क पर गिर गया हो."
"आशुतोष, पहले वो सपना अब ये गौरव का फोन सड़क पर मिलना, मुझे किसी अनहोनी का अंदेसा हो रहा है."
"आप घबराओ मत, सो जाओ आराम से. ये सब इत्तेफ़ाक है"
"नही मेरा दिल घबरा रहा है, कुछ ना कुछ गड़बड़ ज़रूर है."
"मैं ए एस पी साहिबा को फोन मिलाता हूँ. शायद उन्हे कुछ पता हो." आशुतोष ने अंकिता का फोन मिलाया.
"हेलो मेडम मैं आशुतोष बोल रहा हूँ."
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अपर्णा गहरी नींद से चिल्ला कर उठी, "गौरव...."
आवाज़ बाहर जीप में बैठे आशुतोष को भी सुनाई दी. वो दरवाजे की तरफ भागा. और उसने घर की बेल बजाई. घर में काम वाली बाई रुकी हुई थी. उसने दरवाजा खोला.
"क्या हुआ, अपर्णा जी क्यों चिल्लाई."
"मुझे नही पता. मैं भी उनकी आवाज़ सुन कर अभी उठी."
आशुतोष अपर्णा के कमरे की तरफ दौड़ा. सीढ़ियाँ चढ़ कर वो उपर आया और अपर्णा के रूम के दरवाजे को पीटने लगा, "अपर्णा जी क्या हुआ, दरवाजा खोलिए."
अपर्णा काँपते कदमो से उठी बिस्तर से और दरवाजा खोला. वो बहुत डरी हुई लग रही थी.
"क्या हुआ अपर्णा जी आप क्यों चिल्लाई थी."
"मैने बहुत भयानक सपना देखा आशुतोष, मुझे बहुत डर लग रहा है."
"ओह...सपना ही तो था. इसमे डरने की क्या बात है. वैसे क्या देखा आपने सपने में."
"मैने देखा की पोलीस स्टेशन में ही साइको ने गौरव की गर्दन....नही बोल सकती मैं..."
"कोई बात नही मैं समझ गया. आप घबराओ मत. लगता है गौरव सर आपके अच्छे दोस्त थे कॉलेज में."
"हां बहुत अच्छे दोस्त थे हम. मैं गौरव से बात करना चाहती हूँ. क्या उसका नंबर है तुम्हारे पास."
"नंबर तो है पर इस वक्त रात के 2 बजे हैं और शायद वो सो रहे होंगे."
"मुझे नंबर दो प्लीज़ मुझे अभी बात करनी है गौरव से."
"क्या आप प्यार करती हैं गौरव सर से." आशुतोष ने दर्द भारी आवाज़ में कहा.
"ओह कम ऑन, नंबर दो प्लीज़. हम अच्छे दोस्त थे बस कितनी बार कहूँ और तुम्हे क्या हक़ है ये सवाल करने का, खुद तो 10-10 लड़कियों से संबंध रखते हो और मुझसे ऐसा सवाल करते हो."
आशुतोष ने नंबर दे दिया अपर्णा को. अपर्णा ने तुरंत नंबर मिलाया.
"हेलो गौरव, थॅंक गॉड तुमने फोन उठाया."
"ओह तो ये फोन किसी गौरव का है."
"कौन हो तुम?" अपर्णा ने पूछा.
"मुझे ये फोन सड़क किनारे पड़ा मिला. मैने उठा लिया. सोच रहा था कि सुबह पोलीस स्टेशन जमा कर दूँगा. आप अपना अड्रेस दे दो मैं फोन आपके अड्रेस पर दे दूँगा."
अपर्णा ने फोन काट दिया.
"क्या हुआ अपर्णा जी."
"फोन किसी आदमी के पास था. कह रहा था कि उसे वो सड़क किनारे मिला. मुझे तो गौरव की चिंता हो रही है...कही सच में तो साइको ने उसे...."
आशुतोष ने अपने फोन से फोन मिलाया गौरव का और उस आदमी को अपर्णा के घर का अड्रेस दे दिया.
"है तो बहुत अजीब बात. पर हो सकता है की गौरव सर का फोन ग़लती से सड़क पर गिर गया हो."
"आशुतोष, पहले वो सपना अब ये गौरव का फोन सड़क पर मिलना, मुझे किसी अनहोनी का अंदेसा हो रहा है."
"आप घबराओ मत, सो जाओ आराम से. ये सब इत्तेफ़ाक है"
"नही मेरा दिल घबरा रहा है, कुछ ना कुछ गड़बड़ ज़रूर है."
"मैं ए एस पी साहिबा को फोन मिलाता हूँ. शायद उन्हे कुछ पता हो." आशुतोष ने अंकिता का फोन मिलाया.
"हेलो मेडम मैं आशुतोष बोल रहा हूँ."