02-01-2020, 01:03 PM
“फर्स्ट फ्लाइट से आया था कौरीएर सर ये.”
“ह्म्म…कौन दे कर गया?”
“था एक आदमी सर?”
“क्या नाम था उसका?”
“नाम नही पूछा सर”
“चलो कोई बात नही फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस से सब पता चल जाएगा.”
जब गौरव बाहर आया तो अंकिता ने पूछा, “कुछ पता चला.”
“फर्स्ट फ्लाइट वालो से ही पता चलेगा सब कुछ मेडम.”
“ह्म्म तो पता करो जाकर.” अंकिता ने कहा.
अपर्णा को विस करके अंकिता बाहर की तरफ चल दी, “चलो गौरव.”
“आता हूँ अभी मेडम, अपर्णा से ज़रा बात कर लूँ.” गौरव ने कहा.
मगर आशुतोष वही खड़ा रहा.
“आशुतोष तुम घर के चारो तरफ राउंड ले कर आओ. देखो सब ठीक है की नही.”
आशुतोष को अजीब सा तो लगा मगर फिर भी वो चला गया.
आशुतोष के जाने के बाद गौरव अपर्णा के पास आया. वो अब सोफे पर गुमशुम बैठी थी.
“सब से बड़ा गुनहगार तो मैं हूँ तुम्हारा अपर्णा. मेरे होते हुए ते सब हो गया. खुद को माफ़ नही कर पाउन्गा. मगर मैं तुम्हे यकीन दिलाता हूँ. जिंदा नही बचेगा वो…बस एक बार आ जाए मेरे सामने.”
अपर्णा कुछ नही बोली.
“जिंदगी भर नाराज़ रहोगी क्या. मुझे इस काबिल भी नही समझती की मैं तुमसे तुम्हारे गम बाँट सकूँ. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. कितनी बाते करते थे हम प्यारी-प्यारी…पता नही किसकी नज़र लग गयी हमारी दोस्ती को.”
“मैं कुछ नही सुन-ना चाहती. मेरा सर फटा जा रहा है. प्लीज़ चले जाओ…प्लीज़. मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ…..” अपर्णा फिर से फूट-फूट कर रोने लगी.
आशुतोष ने ये सुन लिया. वो समझ नही पाया कि हो क्या रहा है. गौरव चुपचाप चल दिया वहाँ से. आँखे नम थी उसकी. आशुतोष ने देख लिया गौरव की आँखो की नमी को. असमंजस में पड़ गया और भी ज़्यादा. उसकी कुछ हिम्मत नही हुई गौरव से कुछ पूछने की.
आशुतोष अपर्णा के पास आया और बोला, “क्या बात थी अपर्णा जी. क्या आप जानती हैं गौरव को.”
“हां…बहुत अच्छे दोस्त थे हम. एक साथ पढ़ते थे कॉलेज में.” अपर्णा ने कहा.
“उनकी आँखो में आँसू थे यहाँ से जाते वक्त. मैं समझ नही पा रहा हूँ की क्या बात है.”
“आशुतोष प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो. अभी मैं इस हालत में नही हूँ की कुछ कह पाउ…प्लीज़…”
“सॉरी अपर्णा जी. मैं बाहर ही हूँ. कोई भी बात हो तो बस एक आवाज़ देना तुरंत आ जाउन्गा.” आशुतोष ये कह कर बाहर आ गया.
गौरव अपर्णा के घर से सीधा फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस गया. मगर वहाँ कोई सुराग नही मिला उसे. यही पता चला की एक रिक्शे वाला आया था दो डब्बे लेकर और कोरियर करवा कर चला गया.
“क्या कुछ बता सकते हो उस रिक्शे वाले के बारे में.”
“अब क्या बताउ सर. बहुत लोग आते हैं यहाँ. कुछ नही पता मुझे.”
“बहुत ही चालक है ये साइको. किसी रिक्शे वाले को पकड़ के दो डब्बे पकड़ा दिए और कौरीएर करवा दिए अपर्णा के घर. बहुत शातिर दिमाग़ है.”
“ह्म्म…कौन दे कर गया?”
“था एक आदमी सर?”
“क्या नाम था उसका?”
“नाम नही पूछा सर”
“चलो कोई बात नही फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस से सब पता चल जाएगा.”
जब गौरव बाहर आया तो अंकिता ने पूछा, “कुछ पता चला.”
“फर्स्ट फ्लाइट वालो से ही पता चलेगा सब कुछ मेडम.”
“ह्म्म तो पता करो जाकर.” अंकिता ने कहा.
अपर्णा को विस करके अंकिता बाहर की तरफ चल दी, “चलो गौरव.”
“आता हूँ अभी मेडम, अपर्णा से ज़रा बात कर लूँ.” गौरव ने कहा.
मगर आशुतोष वही खड़ा रहा.
“आशुतोष तुम घर के चारो तरफ राउंड ले कर आओ. देखो सब ठीक है की नही.”
आशुतोष को अजीब सा तो लगा मगर फिर भी वो चला गया.
आशुतोष के जाने के बाद गौरव अपर्णा के पास आया. वो अब सोफे पर गुमशुम बैठी थी.
“सब से बड़ा गुनहगार तो मैं हूँ तुम्हारा अपर्णा. मेरे होते हुए ते सब हो गया. खुद को माफ़ नही कर पाउन्गा. मगर मैं तुम्हे यकीन दिलाता हूँ. जिंदा नही बचेगा वो…बस एक बार आ जाए मेरे सामने.”
अपर्णा कुछ नही बोली.
“जिंदगी भर नाराज़ रहोगी क्या. मुझे इस काबिल भी नही समझती की मैं तुमसे तुम्हारे गम बाँट सकूँ. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. कितनी बाते करते थे हम प्यारी-प्यारी…पता नही किसकी नज़र लग गयी हमारी दोस्ती को.”
“मैं कुछ नही सुन-ना चाहती. मेरा सर फटा जा रहा है. प्लीज़ चले जाओ…प्लीज़. मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ…..” अपर्णा फिर से फूट-फूट कर रोने लगी.
आशुतोष ने ये सुन लिया. वो समझ नही पाया कि हो क्या रहा है. गौरव चुपचाप चल दिया वहाँ से. आँखे नम थी उसकी. आशुतोष ने देख लिया गौरव की आँखो की नमी को. असमंजस में पड़ गया और भी ज़्यादा. उसकी कुछ हिम्मत नही हुई गौरव से कुछ पूछने की.
आशुतोष अपर्णा के पास आया और बोला, “क्या बात थी अपर्णा जी. क्या आप जानती हैं गौरव को.”
“हां…बहुत अच्छे दोस्त थे हम. एक साथ पढ़ते थे कॉलेज में.” अपर्णा ने कहा.
“उनकी आँखो में आँसू थे यहाँ से जाते वक्त. मैं समझ नही पा रहा हूँ की क्या बात है.”
“आशुतोष प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो. अभी मैं इस हालत में नही हूँ की कुछ कह पाउ…प्लीज़…”
“सॉरी अपर्णा जी. मैं बाहर ही हूँ. कोई भी बात हो तो बस एक आवाज़ देना तुरंत आ जाउन्गा.” आशुतोष ये कह कर बाहर आ गया.
गौरव अपर्णा के घर से सीधा फर्स्ट फ्लाइट के ऑफीस गया. मगर वहाँ कोई सुराग नही मिला उसे. यही पता चला की एक रिक्शे वाला आया था दो डब्बे लेकर और कोरियर करवा कर चला गया.
“क्या कुछ बता सकते हो उस रिक्शे वाले के बारे में.”
“अब क्या बताउ सर. बहुत लोग आते हैं यहाँ. कुछ नही पता मुझे.”
“बहुत ही चालक है ये साइको. किसी रिक्शे वाले को पकड़ के दो डब्बे पकड़ा दिए और कौरीएर करवा दिए अपर्णा के घर. बहुत शातिर दिमाग़ है.”