02-01-2020, 01:02 PM
…………..
“कितने आँसू बहायें हम, अब इंतेहा हो चुकी है
वक्त की ऐसी करवट से, जिंदगी तबाह हो चुकी है
क्या गुनाह था मेरा, जो ये सज़ा दी मुझको
जीने की चाहत भी अब फ़ना हो चुकी है.”
आशुतोष को समझ नही आ रहा था की कैसे संभाले अपर्णा को. वो पागलो की तरह रोए जा रही थी. बिल्कुल उस डब्बे के पास ही बैठी थी जिसमे उसके पापा का सर था. अपर्णा को ऐसी हालत में देख कर आशुतोष की आँखे भी नम हो गयी. बिल्कुल नही देख पा रहा था वो अपर्णा को ऐसी हालत में. प्यार जो करता था उसे.
बहुत ही मुश्किल होता है उसे तड़प्ते हुए देखना जिसे आप बहुत प्यार करते हैं. और जब पता हो कि आप बस देख ही सकते हैं उसे तड़प्ते हुए कुछ कर नही सकते तो दिल पर क्या बीत-ती है उसे सबदो में नही कहा जा सकता. आशुतोष बिल्कुल ऐसी ही स्तिथि में था. कुछ भी तो नही कर पा रहा था अपर्णा के लिए. और अगर वो कुछ करता भी तो उसे डर था कि कही अपर्णा उसे डाँट ना दे. और परेशान नही करना चाहता था आशुतोष अपर्णा को. मगर फिर भी उसने सोचा की कुछ तो करना ही चाहिए उसे.
आशुतोष ने दोनो डब्बे वहाँ से हटवा दिए और सभी को बाहर भेज दिया, “तुम लोग बाहर नज़र रखो. कुछ भी ऐसा वैसा हो तो मुझे बताना.”
“जी सर”
आशुतोष बैठ गया वही अपर्णा के पास और बोला, “अपर्णा जी आपकी कसम खा कर कहता हूँ मैं तडपा-तडपा कर मारूँगा इस साइको को. आप प्लीज़ चुप हो जाओ.”
“कैसे चुप हो जाउ. अपने मा-बाप को खो दिया मैने. कितनी दर्दनाक मौत मिली है उन्हे. तुम मेरा गम नही समझ सकते. चले जाओ यहाँ से.”
“मैने बचपन में ही खो दिया था अपने मा-बाप को. बस 7 साल खा था जब वो आक्सिडेंट में मारे गये. अनाथ हूँ तभी से. मा-बाप को खोने का गम क्या होता है मुझसे बहतर कोई नही समझ सकता. आपके गम को अच्छे से समझ सकता हूँ मैं.” आशुतोष ने भावुक हो कर कहा.
अपर्णा ने अपने आँसू पोंछे और बोली, “तुमने पहले क्यों नही बताया.” एक अजीब सी मासूमियत थी अपर्णा के चेहरे पर बोलते हुए.
“बात ही कहाँ होती है आपसे. वैसे भी मैं बताता नही हूँ किसी को ये बात. आप प्लीज़ चुप हो जाओ, मुझसे देखा नही जा रहा.”
“मैं नही रोक सकती खुद को आशुतोष. तुम नही समझ सकते. ये आँसू खुद-ब-खुद आ रहे हैं.” अपर्णा सुबक्ते हुए बोली.
“समझ सकता हूँ. मैं भी 2 दिन लगातार रोता रहा था. कर लीजिए मन हल्का अपना. मैं बस आपको देख नही पा रहा इस हालत में इसलिए चुप होने को बोल रहा था. और मेरी तरफ से परेशान मत होना आप अब. मैं अपनी ग़लती समझ गया हूँ.”
तभी गौरव और अंकिता भी वहाँ पहुँच गये. गौरव तो कुछ नही बोल पाया उसे रोते देख. अंकिता उसके पास बैठ गयी और बोली, “बहुत ही बुरा हुआ है ये. मुझे बहुत दुख है अपर्णा. हम कुछ भी नही कर पाए. पूरा पोलीस डेप्ट तुम्हारा दोषी है. लेकिन यकीन दिलाती हूँ तुम्हे कि इस पाप की सज़ा जल्द मिलेगी उसे.”
“मुझे उसे सौप दीजिए. ये सब मेरे कारण हुआ है. अगर वो मारना चाहता है मुझे तो वही सही. वैसे भी अब जी कर करना भी क्या है. कुछ नही बचा मेरे पास. मेरी मौत से ये सिलसिला रुकता है तो मुझे मर जाने दीजिए.”
इस से पहले की अंकिता कुछ बोल पाती आशुतोष ने तुरंत कहा, “ये क्या बोल रही हैं आप. आपको कुछ नही होने दूँगा मैं. मरना उस साइको को है अब.”
अंकिता, गौरव और अपर्णा तीनो ने आशुतोष की तरफ देखा. “मैं सही कह रहा हूँ. आप क्यों मरेंगी. मरेगा अब वो जो की इतने घिनोने काम कर रहा है.”
“आशुतोष सही कह रहे हो तुम. यही जज़्बा चाहिए हमें पोलीस में.” गौरव ने कहा.
“चुप करो तुम. ग़लत बाते मत सिख़ाओ उसे. तुमसे ये उम्मीद नही रखती हूँ मैं… …..” अंकिता ने गौरव को डाँट दिया.
“सॉरी मेडम ….” गौरव ने मायूस स्वर में कहा.
“आशुतोष भावनाओ को काबू करना सीखो. और दुबारा ऐसी बात मत करना मेरे सामने. हां सज़ा मिलेगी उसे, ज़रूर मिलेगी.”
“बिल्कुल…उसे सज़ा मिलेगी काई सालो केस चलने के बाद. वो ऐसो-आराम से जैल की रोटिया तोड़ेगा. और हो सकता है…क़ानूनी दाँव पेंच लगा कर वो बच जाए.” गौरव ने कहा.
“स्टॉप दिस नॉनसेन्स आइ से.” अंकिता चिल्लाई.
गौरव ने कुछ नही कहा. बस चुपचाप खड़ा रहा. आशुतोष भी कुछ बोलने की हिम्मत नही कर पाया.
“ये सब बकवास करने की बजाए उन डब्बो का मूवायना करो और देखो कि कौरीएर कहाँ से आया था और किसने भेजा था. स्टुपिड.” अंकिता ने गुस्से में कहा.
“जी मेडम अभी देखता हूँ.” गौरव ने कहा. “आशुतोष कहा हैं वो डब्बे.”
“अपर्णा जी के सामने से हटवा दिए थे मैने. दूसरे कमरे में रखे हैं.”
“चलो देखते हैं.” गौरव ने कहा और आशुतोष के साथ उस कमरे में आ गया जहाँ डब्बे रखे थे.
“जीसस…” गौरव से देखा नही गया और उसने आँखे बंद कर ली.
“कितने आँसू बहायें हम, अब इंतेहा हो चुकी है
वक्त की ऐसी करवट से, जिंदगी तबाह हो चुकी है
क्या गुनाह था मेरा, जो ये सज़ा दी मुझको
जीने की चाहत भी अब फ़ना हो चुकी है.”
आशुतोष को समझ नही आ रहा था की कैसे संभाले अपर्णा को. वो पागलो की तरह रोए जा रही थी. बिल्कुल उस डब्बे के पास ही बैठी थी जिसमे उसके पापा का सर था. अपर्णा को ऐसी हालत में देख कर आशुतोष की आँखे भी नम हो गयी. बिल्कुल नही देख पा रहा था वो अपर्णा को ऐसी हालत में. प्यार जो करता था उसे.
बहुत ही मुश्किल होता है उसे तड़प्ते हुए देखना जिसे आप बहुत प्यार करते हैं. और जब पता हो कि आप बस देख ही सकते हैं उसे तड़प्ते हुए कुछ कर नही सकते तो दिल पर क्या बीत-ती है उसे सबदो में नही कहा जा सकता. आशुतोष बिल्कुल ऐसी ही स्तिथि में था. कुछ भी तो नही कर पा रहा था अपर्णा के लिए. और अगर वो कुछ करता भी तो उसे डर था कि कही अपर्णा उसे डाँट ना दे. और परेशान नही करना चाहता था आशुतोष अपर्णा को. मगर फिर भी उसने सोचा की कुछ तो करना ही चाहिए उसे.
आशुतोष ने दोनो डब्बे वहाँ से हटवा दिए और सभी को बाहर भेज दिया, “तुम लोग बाहर नज़र रखो. कुछ भी ऐसा वैसा हो तो मुझे बताना.”
“जी सर”
आशुतोष बैठ गया वही अपर्णा के पास और बोला, “अपर्णा जी आपकी कसम खा कर कहता हूँ मैं तडपा-तडपा कर मारूँगा इस साइको को. आप प्लीज़ चुप हो जाओ.”
“कैसे चुप हो जाउ. अपने मा-बाप को खो दिया मैने. कितनी दर्दनाक मौत मिली है उन्हे. तुम मेरा गम नही समझ सकते. चले जाओ यहाँ से.”
“मैने बचपन में ही खो दिया था अपने मा-बाप को. बस 7 साल खा था जब वो आक्सिडेंट में मारे गये. अनाथ हूँ तभी से. मा-बाप को खोने का गम क्या होता है मुझसे बहतर कोई नही समझ सकता. आपके गम को अच्छे से समझ सकता हूँ मैं.” आशुतोष ने भावुक हो कर कहा.
अपर्णा ने अपने आँसू पोंछे और बोली, “तुमने पहले क्यों नही बताया.” एक अजीब सी मासूमियत थी अपर्णा के चेहरे पर बोलते हुए.
“बात ही कहाँ होती है आपसे. वैसे भी मैं बताता नही हूँ किसी को ये बात. आप प्लीज़ चुप हो जाओ, मुझसे देखा नही जा रहा.”
“मैं नही रोक सकती खुद को आशुतोष. तुम नही समझ सकते. ये आँसू खुद-ब-खुद आ रहे हैं.” अपर्णा सुबक्ते हुए बोली.
“समझ सकता हूँ. मैं भी 2 दिन लगातार रोता रहा था. कर लीजिए मन हल्का अपना. मैं बस आपको देख नही पा रहा इस हालत में इसलिए चुप होने को बोल रहा था. और मेरी तरफ से परेशान मत होना आप अब. मैं अपनी ग़लती समझ गया हूँ.”
तभी गौरव और अंकिता भी वहाँ पहुँच गये. गौरव तो कुछ नही बोल पाया उसे रोते देख. अंकिता उसके पास बैठ गयी और बोली, “बहुत ही बुरा हुआ है ये. मुझे बहुत दुख है अपर्णा. हम कुछ भी नही कर पाए. पूरा पोलीस डेप्ट तुम्हारा दोषी है. लेकिन यकीन दिलाती हूँ तुम्हे कि इस पाप की सज़ा जल्द मिलेगी उसे.”
“मुझे उसे सौप दीजिए. ये सब मेरे कारण हुआ है. अगर वो मारना चाहता है मुझे तो वही सही. वैसे भी अब जी कर करना भी क्या है. कुछ नही बचा मेरे पास. मेरी मौत से ये सिलसिला रुकता है तो मुझे मर जाने दीजिए.”
इस से पहले की अंकिता कुछ बोल पाती आशुतोष ने तुरंत कहा, “ये क्या बोल रही हैं आप. आपको कुछ नही होने दूँगा मैं. मरना उस साइको को है अब.”
अंकिता, गौरव और अपर्णा तीनो ने आशुतोष की तरफ देखा. “मैं सही कह रहा हूँ. आप क्यों मरेंगी. मरेगा अब वो जो की इतने घिनोने काम कर रहा है.”
“आशुतोष सही कह रहे हो तुम. यही जज़्बा चाहिए हमें पोलीस में.” गौरव ने कहा.
“चुप करो तुम. ग़लत बाते मत सिख़ाओ उसे. तुमसे ये उम्मीद नही रखती हूँ मैं… …..” अंकिता ने गौरव को डाँट दिया.
“सॉरी मेडम ….” गौरव ने मायूस स्वर में कहा.
“आशुतोष भावनाओ को काबू करना सीखो. और दुबारा ऐसी बात मत करना मेरे सामने. हां सज़ा मिलेगी उसे, ज़रूर मिलेगी.”
“बिल्कुल…उसे सज़ा मिलेगी काई सालो केस चलने के बाद. वो ऐसो-आराम से जैल की रोटिया तोड़ेगा. और हो सकता है…क़ानूनी दाँव पेंच लगा कर वो बच जाए.” गौरव ने कहा.
“स्टॉप दिस नॉनसेन्स आइ से.” अंकिता चिल्लाई.
गौरव ने कुछ नही कहा. बस चुपचाप खड़ा रहा. आशुतोष भी कुछ बोलने की हिम्मत नही कर पाया.
“ये सब बकवास करने की बजाए उन डब्बो का मूवायना करो और देखो कि कौरीएर कहाँ से आया था और किसने भेजा था. स्टुपिड.” अंकिता ने गुस्से में कहा.
“जी मेडम अभी देखता हूँ.” गौरव ने कहा. “आशुतोष कहा हैं वो डब्बे.”
“अपर्णा जी के सामने से हटवा दिए थे मैने. दूसरे कमरे में रखे हैं.”
“चलो देखते हैं.” गौरव ने कहा और आशुतोष के साथ उस कमरे में आ गया जहाँ डब्बे रखे थे.
“जीसस…” गौरव से देखा नही गया और उसने आँखे बंद कर ली.