02-01-2020, 11:42 AM
…………………………………
“अच्छा हुआ जो कि मैं रात यही रहा. अगर विजय साइको नही था तो फिर कौन है साइको. ये बात तो और ज़्यादा उलझती जा रही है. अब टीवी पर आ रही न्यूज़ के कारण साइको और ज़्यादा चोक्कन्ना हो जाएगा.” आशुतोष सोच में डूबा था.
अपर्णा के मम्मी, डेडी कही जा रहे थे किसी काम से सुबह 10 बजे. अपर्णा के दादी ने आशुतोष से कहा, “किसी और को ही मार दिया तुम लोगो ने. क्या ऐसे ही काम करते हो तुम लोग. असली मुजरिम आज़ाद घूम रहा और एक बेकसूर को मार डाला. मेरा तो विश्वास उठ चुका है पोलीस के उपर से.”
“आप शायद ठीक कह रहे हैं मगर हम लोग भी इंसान ही हैं. ग़लती हो सकती है हम लोगो से भी.”
“तुम लोगो की ग़लती के कारण कोई बेकसूर मारे जाए, उसका क्या.”
आशुतोष ने चुप रहना ही ठीक समझा.
“अगर मान लो ये झूठी बात सुन कर अपर्णा बाहर निकलती और साइको का शिकार हो जाती तो क्या होता. वो तो शूकर है उसने टीवी पर देख लिया. वरना तो मुसीबत तो मेरी बेटी के गले पड़नी थी.”
“मैं समझ सकता हूँ…” आशुतोष ने कहा.
“अब तुम अकेले ही हो यहाँ, कैसी सुरक्षा दे रहे हो मेरी बेटी को.”
“बाकी लोग आ रहे हैं आप चिंता ना करें. मेरे होते हुए अपर्णा जी को कुछ नही होगा.” आशुतोष ने कहा.
“हमें ज़रूरी काम से बाहर जाना पड़ रहा है. हम शाम तक लौटेंगे.”
“आप निसचिंत हो कर जायें.” आशुतोष ने कहा.
अपर्णा के डेडी और मम्मी कार में बैठ कर चले गये. उनके जाते ही 2 गन्मन और 4 कॉन्स्टेबल्स आ गये.
आशुतोष ने 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के पीछे लगा दिए और 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के आगे. “बिल्कुल सतर्क रहना तुम लोग.” आशुतोष ने सभी को हिदायत दी.
“रात कुछ कहते-कहते रुक गयी थी अपर्णा जी. अच्छा मौका है, उनके मम्मी, पापा घर नही है. अब बात हो सकती है.” आशुतोष ने सोचा और अपर्णा के घर के दरवाजे की तरफ चल दिया. गहरी साँस ले कर उसने बेल बजाई. अपर्णा ने दरवाजा खोला.
“आशुतोष तुम…बोलो क्या बात है.” अपर्णा ने गहरी साँस ले कर कहा.
“अपर्णा जी आप कुछ कहना चाहती थी कल. अगर आपका मन हो तो बता दीजिए अब.”
अपर्णा ने आशुतोष को घर के अंदर नही बुलाया बल्कि खुद बाहर आ कर दरवाजा अपने पीछे बंद कर लिया. वो घर में अकेली थी इसलिए आशुतोष को अंदर नही बुलाना चाहती थी.
“आशुतोष एक बात बताओ.”
“हां पूछिए.” आशुतोष ने उत्सुकता से पूछा.
“तुमने कल दूसरी बार कहा मुझे कि ‘प्यार करते हैं हम आपसे, कोई मज़ाक नही’ . क्या मैं जान सकती हूँ कि इस बात का मतलब क्या है.” अपर्णा की बात में थोड़ी कठोरता थी.
“मतलब नही बता पाउन्गा अपर्णा जी.” आशुतोष ने धीरे से कहा.
“अच्छा…तुम कुछ कहते हो अपने मूह से और उसका मतलब तुम नही जानते. कितनी अजीब बात है, है ना.”
“मैं बस इतना जानता हूँ कि आपको चाहने लगा हूँ. अब इस चाहत का मतलब कैसे बताउ मैं आपको. मुझे खुद कुछ नही पता.”
“बस इतनी ही बात करनी थी मैने. जान-ना चाहती थी कि क्या चल रहा है तुम्हारे दिमाग़ में. कल रात तुम खिड़की में आ गये. क्या पूछ सकती हूँ कि क्यों किया तुमने ऐसा. तुमने ज़रा भी नही सोचा कि कोई देख लेता तो कितनी बदनामी होती मेरी.”
“सॉरी अपर्णा जी. मैं बस आपको बताना चाहता था साइको के बारे में. एग्ज़ाइटेड था आप तक ये खबर पहुँचाने के लिए.”
“पता नही क्यों मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे मन में हवस है मेरे लिए और प्यार का दिखावा कर रहे हो. याद है तुम्हे क्या-क्या बोल रहे थे तुम उस दिन सौरभ के घर पर मेरे बारे में. कुछ अश्चर्य नही हुआ था मुझे वो सुन कर. ज़्यादा तर लड़को ने मेरे शरीर को ही देखा है. किसी ने मेरी आत्मा में झाँकने की कोशिश नही की. आज तुम प्यार की बात कर रहे हो. तुम्हे पता भी है कि प्यार क्या होता है. सच-सच बताओ अब तक कितनी लड़कियों से संबंध रह चुके हैं तुम्हारे और कितनो को तुम ये डाइलॉग बोल चुके हो कि ‘प्यार करते हैं आपसे हम, कोई मज़ाक नही. मुझे झुत बिल्कुल पसंद नही है. सच-सच बताना.”
“अगर सेक्स को ही संबंध कहा जा सकता है तो 10 लड़कियों से संबंध रहे हैं मेरे.”
“10 लड़कियाँ ….ग्रेट….मैने 2-3 का अंदाज़ा लगाया था. तुम तो उम्मीद से भी ज़्यादा आगे निकले मेरी. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से.”
“अपर्णा जी मगर मैने कभी किसी के लिए ऐसा प्यार महसूस नही किया जैसा आपके लिए कर रहा हूँ. मेरे दिल में कोई हवस नही है आपके लिए. आपको यकीन बेशक ना हो पर प्यार करता हूँ आपसे, कोई मज़ाक नही.”
“बंद करो अपनी बकवास तुम. 10-10 लड़कियों से तुम्हारी प्यास नही बुझी अब मेरे उपर नज़र है तुम्हारी. ये प्यार नही हवस है. सब जानती हूँ मैं. देख रही हूँ तुम्हे कुछ दिनो से. जान-ना चाहती थी की तुम्हारी मंशा क्या है. कैसे प्यार कर सकते हो तुम किसी से. तुम्हे तो बस शरीर से खेलना आता है. मेरे से बात मत करना आगे से. दुख हुआ मुझे तुमसे बात करके. मुझे नही पता था कि इतनी लड़कियाँ आ चुकी हैं तुम्हारी जिंदगी में.” आँखे नम हो गयी अपर्णा की बोलते-बोलते और उसने अंदर आ कर दरवाजा बंद कर लिया.
आशुतोष को समझ नही आया कि वो क्या करे. दरवाजा पीटा उसने, “अपर्णा जी सच बोल दिया आपसे. झूठ नही बोल सकता था. प्लीज़ मेरे प्यार को हवस का नाम मत दीजिए. बात बेशक मत कीजिएगा मगर मुझे ग़लत मत समझिएगा.”
“चले जाओ तुम. एक नंबर के मक्कार हो तुम. झूठ ही बोल देते मुझसे…इतना कड़वा सच बोलने की ज़रूरत क्या थी. मुझे तुमसे कोई भी बात नही करनी है. आइन्दा मेरी तरफ मत देखना वरना आँखे नोच लूँगी तुम्हारी.” अपर्णा को बहुत दुख हुआ था.
“सच बोलने की इतनी बड़ी सज़ा मत दीजिए अपर्णा जी. मुझे एक मौका दीजिए.”
“मेरा 11 नंबर होगा, फिर 12 नंबर भी होगा किसी का. ये हवस का सिलसिला चलता रहेगा. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से तुम. मुझे तुमसे कुछ लेना देना नही है. दफ़ा हो जाओ.”
“ठीक है अपर्णा जी…आपकी कसम मैं दुबारा नही कहूँगा आपको कुछ भी. पर आप ऐसे परेशान मत हो. जा रहा हूँ मैं. अब आपको नही देखूँगा…ना ही कुछ कहूँगा आपको. हां मुझे नही पता कि प्यार क्या होता है. शायद हवस को ही प्यार बोल रहा हूँ मैं. मुझे सच में नही पता. पता होता तो भटकता नही अपनी जिंदगी में. आपके लायक नही था मैं फिर भी आपके खवाब देख रहा था. पागल हो गया हूँ शायद. माफ़ कीजिएगा मुझे आज के बाद आपको कभी परेशान नही करूँगा. खुश रहें आप अपनी जिंदगी में और हर बाला से दूर रहें. गॉड ब्लेस्स यू.”
“तुम ऐसे क्यों हो आशुतोष..क्यों हो ऐसे…नही कर सकती तुमसे प्यार मैं. नही कर सकती…………” अपर्णा फूट-फूट कर रोने लगी.
आशुतोष ने सुन लिया सब कुछ मगर कुछ कहने की हिम्मत नही हुई. चल दिया चुपचाप आँखो में आँसू लिया वहाँ से. “काश आप समझ पाती मेरे दिल की बात. पर आपसे शिकायत भी क्या करूँ. मैं खुद भी अपने आप को समझ नही पाया आज तक. बहुत समझाया अपने दिल को की प्यार मत करो और फिर वही हुआ जिसका डर था. मेरी किस्मत में प्यार लिखा ही नही भगवान ने. नही कहूँगा कुछ भी अब. आपको बिल्कुल परेशान नही करूँगा. मुझे आपकी आँखो में कुछ लगता था जिसके कारण मेरी हिम्मत बढ़ गयी. वरना मैं कहा हिम्मत कर पाता आपकी खिड़की तक पहुँचने की. खुश रहें आप और क्या कहूँ….मेरी उमर लग जाए आपको……….”
अपर्णा बंद रही कमरे में सारा दिन और बिल्कुल दरवाजा नही खोला. ना ही उसने खिड़की से झाँक कर देखा बाहर. आशुतोष भी चुपचाप आँखे मिचे जीप में बैठा रहा.
शाम के कोई 7 बजे एक आदमी आया. उसके हाथ में 2 डब्बे थे. उसने आशुतोष से पूछा, “क्या अपर्णा जी यही रहती हैं.”
“हां यही रहती हैं. क्या काम है?”
“उनका कौरीएर है.” आदमी ने कहा.
आशुतोष ने एक कॉन्स्टेबल से कहा कि तलासी लेकर इसके साथ जाओ तुम. कॉन्स्टेबल ने आचे से तलासी ली उसकी और उसके साथ चल दिया.
“अच्छा हुआ जो कि मैं रात यही रहा. अगर विजय साइको नही था तो फिर कौन है साइको. ये बात तो और ज़्यादा उलझती जा रही है. अब टीवी पर आ रही न्यूज़ के कारण साइको और ज़्यादा चोक्कन्ना हो जाएगा.” आशुतोष सोच में डूबा था.
अपर्णा के मम्मी, डेडी कही जा रहे थे किसी काम से सुबह 10 बजे. अपर्णा के दादी ने आशुतोष से कहा, “किसी और को ही मार दिया तुम लोगो ने. क्या ऐसे ही काम करते हो तुम लोग. असली मुजरिम आज़ाद घूम रहा और एक बेकसूर को मार डाला. मेरा तो विश्वास उठ चुका है पोलीस के उपर से.”
“आप शायद ठीक कह रहे हैं मगर हम लोग भी इंसान ही हैं. ग़लती हो सकती है हम लोगो से भी.”
“तुम लोगो की ग़लती के कारण कोई बेकसूर मारे जाए, उसका क्या.”
आशुतोष ने चुप रहना ही ठीक समझा.
“अगर मान लो ये झूठी बात सुन कर अपर्णा बाहर निकलती और साइको का शिकार हो जाती तो क्या होता. वो तो शूकर है उसने टीवी पर देख लिया. वरना तो मुसीबत तो मेरी बेटी के गले पड़नी थी.”
“मैं समझ सकता हूँ…” आशुतोष ने कहा.
“अब तुम अकेले ही हो यहाँ, कैसी सुरक्षा दे रहे हो मेरी बेटी को.”
“बाकी लोग आ रहे हैं आप चिंता ना करें. मेरे होते हुए अपर्णा जी को कुछ नही होगा.” आशुतोष ने कहा.
“हमें ज़रूरी काम से बाहर जाना पड़ रहा है. हम शाम तक लौटेंगे.”
“आप निसचिंत हो कर जायें.” आशुतोष ने कहा.
अपर्णा के डेडी और मम्मी कार में बैठ कर चले गये. उनके जाते ही 2 गन्मन और 4 कॉन्स्टेबल्स आ गये.
आशुतोष ने 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के पीछे लगा दिए और 2 कॉन्स्टेबल्स और एक गन्मन घर के आगे. “बिल्कुल सतर्क रहना तुम लोग.” आशुतोष ने सभी को हिदायत दी.
“रात कुछ कहते-कहते रुक गयी थी अपर्णा जी. अच्छा मौका है, उनके मम्मी, पापा घर नही है. अब बात हो सकती है.” आशुतोष ने सोचा और अपर्णा के घर के दरवाजे की तरफ चल दिया. गहरी साँस ले कर उसने बेल बजाई. अपर्णा ने दरवाजा खोला.
“आशुतोष तुम…बोलो क्या बात है.” अपर्णा ने गहरी साँस ले कर कहा.
“अपर्णा जी आप कुछ कहना चाहती थी कल. अगर आपका मन हो तो बता दीजिए अब.”
अपर्णा ने आशुतोष को घर के अंदर नही बुलाया बल्कि खुद बाहर आ कर दरवाजा अपने पीछे बंद कर लिया. वो घर में अकेली थी इसलिए आशुतोष को अंदर नही बुलाना चाहती थी.
“आशुतोष एक बात बताओ.”
“हां पूछिए.” आशुतोष ने उत्सुकता से पूछा.
“तुमने कल दूसरी बार कहा मुझे कि ‘प्यार करते हैं हम आपसे, कोई मज़ाक नही’ . क्या मैं जान सकती हूँ कि इस बात का मतलब क्या है.” अपर्णा की बात में थोड़ी कठोरता थी.
“मतलब नही बता पाउन्गा अपर्णा जी.” आशुतोष ने धीरे से कहा.
“अच्छा…तुम कुछ कहते हो अपने मूह से और उसका मतलब तुम नही जानते. कितनी अजीब बात है, है ना.”
“मैं बस इतना जानता हूँ कि आपको चाहने लगा हूँ. अब इस चाहत का मतलब कैसे बताउ मैं आपको. मुझे खुद कुछ नही पता.”
“बस इतनी ही बात करनी थी मैने. जान-ना चाहती थी कि क्या चल रहा है तुम्हारे दिमाग़ में. कल रात तुम खिड़की में आ गये. क्या पूछ सकती हूँ कि क्यों किया तुमने ऐसा. तुमने ज़रा भी नही सोचा कि कोई देख लेता तो कितनी बदनामी होती मेरी.”
“सॉरी अपर्णा जी. मैं बस आपको बताना चाहता था साइको के बारे में. एग्ज़ाइटेड था आप तक ये खबर पहुँचाने के लिए.”
“पता नही क्यों मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारे मन में हवस है मेरे लिए और प्यार का दिखावा कर रहे हो. याद है तुम्हे क्या-क्या बोल रहे थे तुम उस दिन सौरभ के घर पर मेरे बारे में. कुछ अश्चर्य नही हुआ था मुझे वो सुन कर. ज़्यादा तर लड़को ने मेरे शरीर को ही देखा है. किसी ने मेरी आत्मा में झाँकने की कोशिश नही की. आज तुम प्यार की बात कर रहे हो. तुम्हे पता भी है कि प्यार क्या होता है. सच-सच बताओ अब तक कितनी लड़कियों से संबंध रह चुके हैं तुम्हारे और कितनो को तुम ये डाइलॉग बोल चुके हो कि ‘प्यार करते हैं आपसे हम, कोई मज़ाक नही. मुझे झुत बिल्कुल पसंद नही है. सच-सच बताना.”
“अगर सेक्स को ही संबंध कहा जा सकता है तो 10 लड़कियों से संबंध रहे हैं मेरे.”
“10 लड़कियाँ ….ग्रेट….मैने 2-3 का अंदाज़ा लगाया था. तुम तो उम्मीद से भी ज़्यादा आगे निकले मेरी. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से.”
“अपर्णा जी मगर मैने कभी किसी के लिए ऐसा प्यार महसूस नही किया जैसा आपके लिए कर रहा हूँ. मेरे दिल में कोई हवस नही है आपके लिए. आपको यकीन बेशक ना हो पर प्यार करता हूँ आपसे, कोई मज़ाक नही.”
“बंद करो अपनी बकवास तुम. 10-10 लड़कियों से तुम्हारी प्यास नही बुझी अब मेरे उपर नज़र है तुम्हारी. ये प्यार नही हवस है. सब जानती हूँ मैं. देख रही हूँ तुम्हे कुछ दिनो से. जान-ना चाहती थी की तुम्हारी मंशा क्या है. कैसे प्यार कर सकते हो तुम किसी से. तुम्हे तो बस शरीर से खेलना आता है. मेरे से बात मत करना आगे से. दुख हुआ मुझे तुमसे बात करके. मुझे नही पता था कि इतनी लड़कियाँ आ चुकी हैं तुम्हारी जिंदगी में.” आँखे नम हो गयी अपर्णा की बोलते-बोलते और उसने अंदर आ कर दरवाजा बंद कर लिया.
आशुतोष को समझ नही आया कि वो क्या करे. दरवाजा पीटा उसने, “अपर्णा जी सच बोल दिया आपसे. झूठ नही बोल सकता था. प्लीज़ मेरे प्यार को हवस का नाम मत दीजिए. बात बेशक मत कीजिएगा मगर मुझे ग़लत मत समझिएगा.”
“चले जाओ तुम. एक नंबर के मक्कार हो तुम. झूठ ही बोल देते मुझसे…इतना कड़वा सच बोलने की ज़रूरत क्या थी. मुझे तुमसे कोई भी बात नही करनी है. आइन्दा मेरी तरफ मत देखना वरना आँखे नोच लूँगी तुम्हारी.” अपर्णा को बहुत दुख हुआ था.
“सच बोलने की इतनी बड़ी सज़ा मत दीजिए अपर्णा जी. मुझे एक मौका दीजिए.”
“मेरा 11 नंबर होगा, फिर 12 नंबर भी होगा किसी का. ये हवस का सिलसिला चलता रहेगा. दूर हो जाओ मेरी नज़रो से तुम. मुझे तुमसे कुछ लेना देना नही है. दफ़ा हो जाओ.”
“ठीक है अपर्णा जी…आपकी कसम मैं दुबारा नही कहूँगा आपको कुछ भी. पर आप ऐसे परेशान मत हो. जा रहा हूँ मैं. अब आपको नही देखूँगा…ना ही कुछ कहूँगा आपको. हां मुझे नही पता कि प्यार क्या होता है. शायद हवस को ही प्यार बोल रहा हूँ मैं. मुझे सच में नही पता. पता होता तो भटकता नही अपनी जिंदगी में. आपके लायक नही था मैं फिर भी आपके खवाब देख रहा था. पागल हो गया हूँ शायद. माफ़ कीजिएगा मुझे आज के बाद आपको कभी परेशान नही करूँगा. खुश रहें आप अपनी जिंदगी में और हर बाला से दूर रहें. गॉड ब्लेस्स यू.”
“तुम ऐसे क्यों हो आशुतोष..क्यों हो ऐसे…नही कर सकती तुमसे प्यार मैं. नही कर सकती…………” अपर्णा फूट-फूट कर रोने लगी.
आशुतोष ने सुन लिया सब कुछ मगर कुछ कहने की हिम्मत नही हुई. चल दिया चुपचाप आँखो में आँसू लिया वहाँ से. “काश आप समझ पाती मेरे दिल की बात. पर आपसे शिकायत भी क्या करूँ. मैं खुद भी अपने आप को समझ नही पाया आज तक. बहुत समझाया अपने दिल को की प्यार मत करो और फिर वही हुआ जिसका डर था. मेरी किस्मत में प्यार लिखा ही नही भगवान ने. नही कहूँगा कुछ भी अब. आपको बिल्कुल परेशान नही करूँगा. मुझे आपकी आँखो में कुछ लगता था जिसके कारण मेरी हिम्मत बढ़ गयी. वरना मैं कहा हिम्मत कर पाता आपकी खिड़की तक पहुँचने की. खुश रहें आप और क्या कहूँ….मेरी उमर लग जाए आपको……….”
अपर्णा बंद रही कमरे में सारा दिन और बिल्कुल दरवाजा नही खोला. ना ही उसने खिड़की से झाँक कर देखा बाहर. आशुतोष भी चुपचाप आँखे मिचे जीप में बैठा रहा.
शाम के कोई 7 बजे एक आदमी आया. उसके हाथ में 2 डब्बे थे. उसने आशुतोष से पूछा, “क्या अपर्णा जी यही रहती हैं.”
“हां यही रहती हैं. क्या काम है?”
“उनका कौरीएर है.” आदमी ने कहा.
आशुतोष ने एक कॉन्स्टेबल से कहा कि तलासी लेकर इसके साथ जाओ तुम. कॉन्स्टेबल ने आचे से तलासी ली उसकी और उसके साथ चल दिया.