02-01-2020, 11:35 AM
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अगले दिन सुबह से ही हर न्यूज़ चॅनेल पर एक ही ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी. विजय की तस्वीर दिखाई जा रही थी और बताया जा रहा था कि कैसे एक पोलीस वाला ही साइको निकला. विजय की बीवी का इंटरव्यू दिखाया जा रहा था जो कि मान-ने को तैयार नही थी कि उसका पति साइको था.
आशुतोष को ये बात रात को ही पता चल गयी थी. सौरभ ने फोन करके उसे सब कुछ बता दिया था. वो ये सुनते ही अपर्णा के घर के दरवाजे की तरफ लपका. रात के 11 बज रहे थे तब. उसने बेल बजाई तो अपर्णा के डेडी ने दरवाजा खोला.
"मुझे अभी अभी पता चला कि साइको मारा गया, क्या मैं अपर्णा जी से मिल सकता हूँ."
"मारा गया वो.....बहुत अच्छा हुआ...अब मेरी बेटी शकुन से जी पाएगी."
"क्या मैं मिल सकता हूँ अपर्णा जी से." आशुतोष ने कहा.
"वो अभी सोई है गोली ले कर. उसे उठाना ठीक नही होगा."
"चलिए कोई बात नही मैं उनसे कल सुबह मिल लूँगा."
"हां बेटा कल सुबह मिल लेना...."
आशुतोष तड़प रहा था ये न्यूज़ अपर्णा को सुनने के लिए. मगर कोई चारा नही था उसके पास. जब वो वापिस जीप में आया तो उसे अंकिता का फोन आया, "आशुतोष साइको विजय ही था एन्ड ही ईज़ डेड नाओ."
"हां पता चला मुझे मेडम."
"तुम्हारी वहाँ की ड्यूटी ख़तम होती है. तुम अब घर जा सकते हो. कल सुबह थाने आ जाना. और हां बाकी जो भी हैं तुम्हारे साथ उन सब की भी छुट्टी कर दो और कल सुबह थाने आने को बोल दो."
"जी मेडम."
आशुतोष ने बाकी सभी को भेज दिया मगर खुद अपनी जीप में वही बैठा रहा. उसे अपर्णा से एक बार बात जो करनी थी. बैठा रहा बेचैन दिल को लेकर चुपचाप जीप में. अचानक उसे पता नही क्या सूझी अपर्णा के कमरे की खिड़की को देखते वक्त कि वो उठा और चल दिया उस खिड़की की तरफ.
"ह्म्म चढ़ा जा सकता है उपर." आशुतोष ने सोचा.
पता नही उसे क्या हो गया था. बिना सोचे समझे चढ़ गया किसी तरह वो दीवार के सहारे और पहुँच गया उस खिड़की तक जिसमे से अपर्णा झँकति थी. खिड़की के सीसे को खड़काया उसने. अपर्णा वाकाई सोई हुई थी. मगर खिड़की के उपर हो रही ठप-ठप से उसकी आँख खुल गयी.
"कौन दरवाजा पीट रहा है इस वक्त" अपर्णा ने आँखे खुलते ही कहा. मगर जल्दी ही वो समझ गयी कि आवाज़ दरवाजे से नही खिड़की से आ रही है. अपर्णा हैरान रह गयी. वो उठी डरते-डरते और खिड़की का परदा हटाया, "आशुतोष तुम ..........तुम यहाँ क्या कर रहे हो."
"अपर्णा जी साइको मारा गया, अब आपको चिंता की कोई ज़रूरत नही है"
अपर्णा को समझ नही आया कि वो कैसे रिक्ट करे.
"क्या हुआ ख़ुशी नही हुई आपको. मुझे तो बहुत ख़ुशी मिली ये जान कर की अब आपकी जान को कोई ख़तरा नही है."
"आशुतोष तुम गिर गये तो, ऐसे यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी."
"मैने आपके डेडी को बताई ये बात. आपसे मिलने की रिक्वेस्ट भी की मैने. पर उन्होने कहा कि आप गोली ले कर सो रही हैं. रहा नही गया मुझसे और मैं यहाँ आ गया."
"ठीक है, जाओ अब वरना गिर जाओगे."
"आपसे बात करना चाहता हूँ कुछ क्या आप रुक सकती हैं थोड़ी देर."
"पागल हो गये हो क्या, यहाँ खिड़की में टँगे हुए बात करोगे. जाओ अभी बाद में बात करेंगे."
"ठीक है जाता हूँ अभी मगर आप भूल मत जाना मुझे. मेरी यहाँ की ड्यूटी ख़तम होती है. मगर फिर भी मैं सुबह ही जाउन्गा यहाँ से. पूरी रात रोज की तरह आपके घर के बाहर ही गुज़ारुँगा."
"क्यों कर रहे हो ऐसा तुम?"
"फिर से कहूँगा तो आप थप्पड़ मार देंगी."
"नही मारूँगी बोलो तुम."
"प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही."
"एक बात करना चाहती थी तुमसे मगर अभी नही बाद में. तुम अभी जाओ किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी होगी. क्या तुम्हे अच्छा लगेगा ये."
"नही नही अपर्णा जी मुझे ये बिल्कुल अच्छा नही लगेगा. मैं जा रहा हूँ. मगर मैं सुबह तक यही रहूँगा."
अपर्णा हंस पड़ी आशुतोष की बात पर और बोली, "जैसी तुम्हारी मर्ज़ी"
"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ, थप्पड़ मत मारिएगा."
"हां-हां बोलो."
"आपके चेहरे पर हँसी बहुत प्यारी लगती है, आप हमेशा हँसती रहे यही दुवा करता हूँ."
तभी अपर्णा के रूम का दरवाजा खड़का, "तुम जाओ अब, शायद मम्मी आई हैं. दुबारा मत आना."
"ठीक है, सुबह आपसे मिल कर ही जाउन्गा." आशुतोष ने कहा.
"अब जाओ भी." अपर्णा ने दाँत भींच कर कहा.
आशुतोष झट से नीचे उतर गया. उसके चेहरे पर हल्की हल्की मुस्कान थी. "अपर्णा जी कितने प्यार से मिली. थप्पड़ भी नही मारा. कितनी बदल गयी हैं वो."
अपर्णा ने दरवाजा खोला. उसकी मम्मी ही थी. "कैसी तबीयत है"
"ठीक है मम्मी, सर में दर्द है हल्का सा अभी."
"तुम फोन पे बात कर रही थी क्या?"
अपर्णा सोच में पड़ गयी. झूठ बोला पड़ा उसे, "ओह हां मैं फोन पर थी."
"सो जाओ बेटा, आराम करो... तभी तबीयत जल्दी ठीक होगी" अपर्णा की मम्मी कह कर चली गयी.
"क्या ज़रूरत थी आशुतोष को खिड़की में आने की. बेवजह झूठ बोलना पड़ा." अपर्णा लेट गयी बिस्तर पर वापिस और सो गयी.
अगले दिन सुबह से ही हर न्यूज़ चॅनेल पर एक ही ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी. विजय की तस्वीर दिखाई जा रही थी और बताया जा रहा था कि कैसे एक पोलीस वाला ही साइको निकला. विजय की बीवी का इंटरव्यू दिखाया जा रहा था जो कि मान-ने को तैयार नही थी कि उसका पति साइको था.
आशुतोष को ये बात रात को ही पता चल गयी थी. सौरभ ने फोन करके उसे सब कुछ बता दिया था. वो ये सुनते ही अपर्णा के घर के दरवाजे की तरफ लपका. रात के 11 बज रहे थे तब. उसने बेल बजाई तो अपर्णा के डेडी ने दरवाजा खोला.
"मुझे अभी अभी पता चला कि साइको मारा गया, क्या मैं अपर्णा जी से मिल सकता हूँ."
"मारा गया वो.....बहुत अच्छा हुआ...अब मेरी बेटी शकुन से जी पाएगी."
"क्या मैं मिल सकता हूँ अपर्णा जी से." आशुतोष ने कहा.
"वो अभी सोई है गोली ले कर. उसे उठाना ठीक नही होगा."
"चलिए कोई बात नही मैं उनसे कल सुबह मिल लूँगा."
"हां बेटा कल सुबह मिल लेना...."
आशुतोष तड़प रहा था ये न्यूज़ अपर्णा को सुनने के लिए. मगर कोई चारा नही था उसके पास. जब वो वापिस जीप में आया तो उसे अंकिता का फोन आया, "आशुतोष साइको विजय ही था एन्ड ही ईज़ डेड नाओ."
"हां पता चला मुझे मेडम."
"तुम्हारी वहाँ की ड्यूटी ख़तम होती है. तुम अब घर जा सकते हो. कल सुबह थाने आ जाना. और हां बाकी जो भी हैं तुम्हारे साथ उन सब की भी छुट्टी कर दो और कल सुबह थाने आने को बोल दो."
"जी मेडम."
आशुतोष ने बाकी सभी को भेज दिया मगर खुद अपनी जीप में वही बैठा रहा. उसे अपर्णा से एक बार बात जो करनी थी. बैठा रहा बेचैन दिल को लेकर चुपचाप जीप में. अचानक उसे पता नही क्या सूझी अपर्णा के कमरे की खिड़की को देखते वक्त कि वो उठा और चल दिया उस खिड़की की तरफ.
"ह्म्म चढ़ा जा सकता है उपर." आशुतोष ने सोचा.
पता नही उसे क्या हो गया था. बिना सोचे समझे चढ़ गया किसी तरह वो दीवार के सहारे और पहुँच गया उस खिड़की तक जिसमे से अपर्णा झँकति थी. खिड़की के सीसे को खड़काया उसने. अपर्णा वाकाई सोई हुई थी. मगर खिड़की के उपर हो रही ठप-ठप से उसकी आँख खुल गयी.
"कौन दरवाजा पीट रहा है इस वक्त" अपर्णा ने आँखे खुलते ही कहा. मगर जल्दी ही वो समझ गयी कि आवाज़ दरवाजे से नही खिड़की से आ रही है. अपर्णा हैरान रह गयी. वो उठी डरते-डरते और खिड़की का परदा हटाया, "आशुतोष तुम ..........तुम यहाँ क्या कर रहे हो."
"अपर्णा जी साइको मारा गया, अब आपको चिंता की कोई ज़रूरत नही है"
अपर्णा को समझ नही आया कि वो कैसे रिक्ट करे.
"क्या हुआ ख़ुशी नही हुई आपको. मुझे तो बहुत ख़ुशी मिली ये जान कर की अब आपकी जान को कोई ख़तरा नही है."
"आशुतोष तुम गिर गये तो, ऐसे यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी."
"मैने आपके डेडी को बताई ये बात. आपसे मिलने की रिक्वेस्ट भी की मैने. पर उन्होने कहा कि आप गोली ले कर सो रही हैं. रहा नही गया मुझसे और मैं यहाँ आ गया."
"ठीक है, जाओ अब वरना गिर जाओगे."
"आपसे बात करना चाहता हूँ कुछ क्या आप रुक सकती हैं थोड़ी देर."
"पागल हो गये हो क्या, यहाँ खिड़की में टँगे हुए बात करोगे. जाओ अभी बाद में बात करेंगे."
"ठीक है जाता हूँ अभी मगर आप भूल मत जाना मुझे. मेरी यहाँ की ड्यूटी ख़तम होती है. मगर फिर भी मैं सुबह ही जाउन्गा यहाँ से. पूरी रात रोज की तरह आपके घर के बाहर ही गुज़ारुँगा."
"क्यों कर रहे हो ऐसा तुम?"
"फिर से कहूँगा तो आप थप्पड़ मार देंगी."
"नही मारूँगी बोलो तुम."
"प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही."
"एक बात करना चाहती थी तुमसे मगर अभी नही बाद में. तुम अभी जाओ किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी होगी. क्या तुम्हे अच्छा लगेगा ये."
"नही नही अपर्णा जी मुझे ये बिल्कुल अच्छा नही लगेगा. मैं जा रहा हूँ. मगर मैं सुबह तक यही रहूँगा."
अपर्णा हंस पड़ी आशुतोष की बात पर और बोली, "जैसी तुम्हारी मर्ज़ी"
"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ, थप्पड़ मत मारिएगा."
"हां-हां बोलो."
"आपके चेहरे पर हँसी बहुत प्यारी लगती है, आप हमेशा हँसती रहे यही दुवा करता हूँ."
तभी अपर्णा के रूम का दरवाजा खड़का, "तुम जाओ अब, शायद मम्मी आई हैं. दुबारा मत आना."
"ठीक है, सुबह आपसे मिल कर ही जाउन्गा." आशुतोष ने कहा.
"अब जाओ भी." अपर्णा ने दाँत भींच कर कहा.
आशुतोष झट से नीचे उतर गया. उसके चेहरे पर हल्की हल्की मुस्कान थी. "अपर्णा जी कितने प्यार से मिली. थप्पड़ भी नही मारा. कितनी बदल गयी हैं वो."
अपर्णा ने दरवाजा खोला. उसकी मम्मी ही थी. "कैसी तबीयत है"
"ठीक है मम्मी, सर में दर्द है हल्का सा अभी."
"तुम फोन पे बात कर रही थी क्या?"
अपर्णा सोच में पड़ गयी. झूठ बोला पड़ा उसे, "ओह हां मैं फोन पर थी."
"सो जाओ बेटा, आराम करो... तभी तबीयत जल्दी ठीक होगी" अपर्णा की मम्मी कह कर चली गयी.
"क्या ज़रूरत थी आशुतोष को खिड़की में आने की. बेवजह झूठ बोलना पड़ा." अपर्णा लेट गयी बिस्तर पर वापिस और सो गयी.