02-01-2020, 11:32 AM
Update 70
“क्या हुआ चलाओ गोली…रुक क्यों गये.”
“गोली तो तुम्हे मारूँगा ही मैं.” विजय करूरता से बोला.
मगर अगले ही पल बंदूक उसके हाथ से छ्छूट गयी. गौरव ने वार ही कुछ ऐसा किया था. विजय के हाथ पर ही मुक्का मारा था ज़ोर से गौरव ने.
अगला मुक्का विजय के मूह पे लगा. मुक्का इतनी ज़ोर का था कि विजय के 2 दाँत बाहर आ गये और उसका मूह खून से लथपथ हो गया.
उसके बाद तो वो पिता गौरव ने विजय को कि पूछो मत. बहुत ज़्यादा गुस्से में था गौरव. विजय ने हरकत ही कुछ ऐसी की थी. बहुत प्यार करता था गौरव अपनी बहन को और उसने उसके साथ इतनी गंदी हरकत की थी. गौरव रुका नही एक भी बार.
“मेरी बहन को छुआ तूने कामीने, ये हाथ काट डालूँगा मैं. साइको है तू हां, आज तेरा साइको पना निकालता हूँ.” गौरव ने घूँसो की बोचार शुरू कर दी विजय पर.
विजय को खूब पीट कर गौरव ने अपनी बंदूक उठा ली और विजय के सर पर रख दी.
“मुझे जैल में डाल दो. मैने ग़लती की है. मुझे माफ़ कर दो. क़ानून जो सज़ा देगा मुझे मंजूर होगी.”
“क़ानून नही, सज़ा मैं दूँगा तुझे. तेरे पाप का घड़ा भर चुका है अब. न्याय अभी और इसी वक्त होगा.”
“देखो मैं साइको किलर नही हूँ.”
“अच्छा फिर कौन हो तुम, उसके भाई हो या बेटे हो…कौन हो.”
“मैं सच कह रहा हूँ. मैं साइको नही हूँ. हां मैने ग़लत किया तुम्हारी बहन के साथ. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था. मुझे जैल में डाल दो…मैं भुगत लूँगा चुपचाप अपनी सज़ा.”
“हर मुजरिम पकड़े जाने पर यही कहता है. तुम तो एस.आइ. हो ये बात तो तुम जानते ही होंगे.”
“हां पर मैं सच बोल रहा हूँ. मैं साइको नही हूँ.” विजय गिड़गिडया.
“मुझे आज कम सुन रहा है. और मेरा दिमाग़ भी खराब हो रखा है. मुझे कुछ समझ नही आ रहा कि तुम क्या कह रहे हो. एनीवे हॅव ए नाइस जर्नी टू दा हेल…गुड बाय.” गौरव ने कहा और विजय का भेजा उड़ा दिया. उसके खून की छींटे उसके मूह पर भी पड़ी.
गौरव ने तुरंत अपनी जेब से फोन निकाला और एएसपी साहिबा को फोन किया, “मैने गोली मार दी है साइको को मेडम…मेरे घर पर लाश पड़ी है उसकी…नही रोक सका खुद को सॉरी.”
बस इतना कह कर फोन काट दिया गौरव ने.
“क्या हुआ चलाओ गोली…रुक क्यों गये.”
“गोली तो तुम्हे मारूँगा ही मैं.” विजय करूरता से बोला.
मगर अगले ही पल बंदूक उसके हाथ से छ्छूट गयी. गौरव ने वार ही कुछ ऐसा किया था. विजय के हाथ पर ही मुक्का मारा था ज़ोर से गौरव ने.
अगला मुक्का विजय के मूह पे लगा. मुक्का इतनी ज़ोर का था कि विजय के 2 दाँत बाहर आ गये और उसका मूह खून से लथपथ हो गया.
उसके बाद तो वो पिता गौरव ने विजय को कि पूछो मत. बहुत ज़्यादा गुस्से में था गौरव. विजय ने हरकत ही कुछ ऐसी की थी. बहुत प्यार करता था गौरव अपनी बहन को और उसने उसके साथ इतनी गंदी हरकत की थी. गौरव रुका नही एक भी बार.
“मेरी बहन को छुआ तूने कामीने, ये हाथ काट डालूँगा मैं. साइको है तू हां, आज तेरा साइको पना निकालता हूँ.” गौरव ने घूँसो की बोचार शुरू कर दी विजय पर.
विजय को खूब पीट कर गौरव ने अपनी बंदूक उठा ली और विजय के सर पर रख दी.
“मुझे जैल में डाल दो. मैने ग़लती की है. मुझे माफ़ कर दो. क़ानून जो सज़ा देगा मुझे मंजूर होगी.”
“क़ानून नही, सज़ा मैं दूँगा तुझे. तेरे पाप का घड़ा भर चुका है अब. न्याय अभी और इसी वक्त होगा.”
“देखो मैं साइको किलर नही हूँ.”
“अच्छा फिर कौन हो तुम, उसके भाई हो या बेटे हो…कौन हो.”
“मैं सच कह रहा हूँ. मैं साइको नही हूँ. हां मैने ग़लत किया तुम्हारी बहन के साथ. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था. मुझे जैल में डाल दो…मैं भुगत लूँगा चुपचाप अपनी सज़ा.”
“हर मुजरिम पकड़े जाने पर यही कहता है. तुम तो एस.आइ. हो ये बात तो तुम जानते ही होंगे.”
“हां पर मैं सच बोल रहा हूँ. मैं साइको नही हूँ.” विजय गिड़गिडया.
“मुझे आज कम सुन रहा है. और मेरा दिमाग़ भी खराब हो रखा है. मुझे कुछ समझ नही आ रहा कि तुम क्या कह रहे हो. एनीवे हॅव ए नाइस जर्नी टू दा हेल…गुड बाय.” गौरव ने कहा और विजय का भेजा उड़ा दिया. उसके खून की छींटे उसके मूह पर भी पड़ी.
गौरव ने तुरंत अपनी जेब से फोन निकाला और एएसपी साहिबा को फोन किया, “मैने गोली मार दी है साइको को मेडम…मेरे घर पर लाश पड़ी है उसकी…नही रोक सका खुद को सॉरी.”
बस इतना कह कर फोन काट दिया गौरव ने.