02-01-2020, 11:24 AM
सौरभ ने पूजा के जाने के बाद दरवाजा बंद कर लिया था. वो नहाने की तैयारी कर रहा था. सारे कपड़े निकाल कर बस अंडरवेर में था. कंधे पर तोलिया टाँग रखा था.दरवाजा खड़का तो हड़बड़ा गया वो. फुर्ती से टोलिया लपेट कर दरवाजा खोला उसने.
"पूजा तुम रूको...रूको मैं कपड़े पहन लूँ" सौरभ ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया.
पूजा हंस पड़ी सौरभ को ऐसी हालत में देख कर. सौरभ ने तुरंत कपड़े पहन कर दरवाजा खोला, "आओ पूजा, मुझे लगा तुम चली गयी. मैं नहाने जा रहा था. सॉरी."
पूजा अंदर आ गयी और बोली, "मेरी खातिर रुक जाओ सौरभ. मुझे ये सब ठीक नही लग रहा. तुम्ही बताओ क्या हाँसिल होगा मुझे उनके मरने से. कुछ भी तो नही. मेरे साथ जो होना था हो ही चुका है. कुछ भी तो बदल नही जाएगा. तुम बेकार में उनके गंदे खून से अपने हाथ रंग रहे हो."
"क्या तुम्हे नही लगता कि उन्हे उनके किए की सज़ा मिलनी चाहिए." सौरभ ने कहा.
"सज़ा तो मुझे भी मिलनी चाहिए उस हिसाब से. मेरी खुद की कम ग़लतियाँ नही हैं. आँख मिच कर अपना सब कुछ सौंप दिया था मैने विक्की को. क्या मैने ग़लत नही किया. चौहान और परवीन को मैने भी थोड़ा ही सही सहयोग तो दिया. क्या मैं पापी नही हूँ. मुझे मारो सबसे पहले. तुम मेरे लिए कर रहे हो ना ये सब. प्यार करते हो मुझसे तुम. लेकिन सौरभ जिसे तुम प्यार करते हो उसके दामन पर दाग है. मैं तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ. मुझे भी तो मारो. मैं भी उतनी ही पापी हूँ जीतने की ये लोग जिन्हे तुम मारने पर उतारू हो." पूजा ने भावुक शब्दो में कहा.
"पूजा मुझे पता है किसकी कितनी ग़लती है. तुम्हारे साथ प्यार का नाटक हुआ, तुम्हारी वीडियो बनाई गयी. तुम्हे ब्लॅकमेल किया गया. चौहान ने तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाया और अपने कुकर्म में परवीन को भी सामिल किया. मानता हूँ मैं कि थोड़ा सहयोग दिया होगा तुमने उन्हे. पर शायद वो सहयोग तुम्हारी मजबूरी थी. तुम्हारी कहानी सुन कर तो यही लगा था मुझे. तुम पापी हो ही नही सकती. पापी वो लोग हैं जिन्होने तुम्हारे मासूम चरित्र की धज्जियाँ उड़ाई. नही छोड़ूँगा मैं बाकी के 2 लोगो को भी."
"नही सौरभ प्लीज़. कहने को प्यार करते हो मुझसे और मेरी एक बात भी मान-ने को तैयार नही. क्या यही प्यार है तुम्हारा. तुम ये भी नही सोच रहे हो कि अगर तुम्हे ही साइको समझ लिया गया तो फिर क्या होगा."
"क्या तुम प्यार करने लगी हो मुझसे पूजा जो कि इतनी चिंता कर रही हो मेरी."
"प्यार मेरे लिए एक कन्फ्यूषन बन गया है. प्यार नही कर पाउन्गि जिंदगी में दुबारा. इंसानियत के नाते तुम्हारी चिंता है मुझे."
"तुमने बाहर कहा था की क्या मेरी चिंता नही तुम्हे, क्यों कहा था ऐसा तुमने"
"तुम अगर मेरे लिए खून ख़राबा करोगे तो क्या ख़ुशी मिलेगी मुझे. परेशान ही तो रहूंगी. जब प्यार करते हो मुझसे तो क्या मुझे परेशानी में डालोगे. तुम ऐसा करोगे तो क्या मैं चिंता नही करूँगी तुम्हारी. ख़तरनाक खेल खेल रहे हो तुम जिसमे तुम्हारी जान भी जा सकती है."
"वाओ...तुम्हे मेरी फिकर हो रही है. यही तो प्यार है. देखा पटा ही लिया मैने तुम्हे." सौरभ ने हंसते हुए कहा.
"दुबारा प्यार मेरे लिए असंभव है. प्यार नही है ये. तुम्हारी चिंता है मुझे और कुछ नही...सौरभ. कर बैठती प्यार तुमसे इस दीवाने पन के लिए अगर प्यार में धोका ना खाया होता मैने. प्यार नही कर पाउन्गि तुम्हे, मजबूर हूँ अपने दिल के हातो. लेकिन तुम अगर मुझे सच में प्यार करते हो तो तुम्हे तुरंत ये खून ख़राबा बंद करना पड़ेगा."
सौरभ ने गहरी साँस ली और बोला, "ठीक है पूजा, एनितिंग फॉर यू. लेकिन कम से कम इस विजय का खेल तो ख़तम करने दो. वही है वो साइको जिसने शहर में आतंक मचा रखा है."
"कौन विजय?"
"वही पोलीस वाला जो तुम्हे ज़बरदस्ती घर ले गया था. उसका नाम विजय है"
"अगर ऐसा भी है तो तुम क्यों क़ानून अपने हाथ में लेते हो. मेरे जीते जी तुम कुछ नही करोगे ऐसा समझ लो. मुझे मार दो फिर कर लेना जो करना है"
"अच्छा ठीक है बाबा. मैं ये बात इनस्पेक्टर गौरव को बता देता हूँ. देख लेंगे आगे वो खुद."
"थॅंक यू सौरभ. बहुत शुकून मिला मेरे दिल को ये सुन कर. काश तुम मुझे पहले मिले होते." पूजा ने गहरी साँस ली.
"पूजा इंतेज़ार करूँगा तुम्हारा. मुझे यकीन है कि तुम मेरे प्यार से दूर नही रह पाओगि. मेरा प्यार सच्चा है तो तुम्हे भी प्यार हो ही जाएगा."
पूजा की आँखे भी भर आई और वो मुस्कुरा भी पड़ी सौरभ की बात पर. एक साथ दो भावनाए जाग गयी थी पूजा के अंदर. "मैं चलती हूँ सौरभ. दीदी मेरे लिए परेशान हो रही होगी."
"मिलती रहना मुझसे, एक आचे दोस्त तो हम रह ही सकते हैं."
"हां बिल्कुल" पूजा सौरभ की आँखो में देख कर मुस्कुराइ और धीरे से दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी.
"कितना प्यार है तुम्हारी आँखो में मेरे लिए, पर तुम स्वीकार नही करना चाहती इस प्यार को. देखता हूँ मैं भी कब तक धोका दोगि खुद को." सौरभ ने कहा.
"पूजा तुम रूको...रूको मैं कपड़े पहन लूँ" सौरभ ने तुरंत दरवाजा बंद कर दिया.
पूजा हंस पड़ी सौरभ को ऐसी हालत में देख कर. सौरभ ने तुरंत कपड़े पहन कर दरवाजा खोला, "आओ पूजा, मुझे लगा तुम चली गयी. मैं नहाने जा रहा था. सॉरी."
पूजा अंदर आ गयी और बोली, "मेरी खातिर रुक जाओ सौरभ. मुझे ये सब ठीक नही लग रहा. तुम्ही बताओ क्या हाँसिल होगा मुझे उनके मरने से. कुछ भी तो नही. मेरे साथ जो होना था हो ही चुका है. कुछ भी तो बदल नही जाएगा. तुम बेकार में उनके गंदे खून से अपने हाथ रंग रहे हो."
"क्या तुम्हे नही लगता कि उन्हे उनके किए की सज़ा मिलनी चाहिए." सौरभ ने कहा.
"सज़ा तो मुझे भी मिलनी चाहिए उस हिसाब से. मेरी खुद की कम ग़लतियाँ नही हैं. आँख मिच कर अपना सब कुछ सौंप दिया था मैने विक्की को. क्या मैने ग़लत नही किया. चौहान और परवीन को मैने भी थोड़ा ही सही सहयोग तो दिया. क्या मैं पापी नही हूँ. मुझे मारो सबसे पहले. तुम मेरे लिए कर रहे हो ना ये सब. प्यार करते हो मुझसे तुम. लेकिन सौरभ जिसे तुम प्यार करते हो उसके दामन पर दाग है. मैं तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ. मुझे भी तो मारो. मैं भी उतनी ही पापी हूँ जीतने की ये लोग जिन्हे तुम मारने पर उतारू हो." पूजा ने भावुक शब्दो में कहा.
"पूजा मुझे पता है किसकी कितनी ग़लती है. तुम्हारे साथ प्यार का नाटक हुआ, तुम्हारी वीडियो बनाई गयी. तुम्हे ब्लॅकमेल किया गया. चौहान ने तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाया और अपने कुकर्म में परवीन को भी सामिल किया. मानता हूँ मैं कि थोड़ा सहयोग दिया होगा तुमने उन्हे. पर शायद वो सहयोग तुम्हारी मजबूरी थी. तुम्हारी कहानी सुन कर तो यही लगा था मुझे. तुम पापी हो ही नही सकती. पापी वो लोग हैं जिन्होने तुम्हारे मासूम चरित्र की धज्जियाँ उड़ाई. नही छोड़ूँगा मैं बाकी के 2 लोगो को भी."
"नही सौरभ प्लीज़. कहने को प्यार करते हो मुझसे और मेरी एक बात भी मान-ने को तैयार नही. क्या यही प्यार है तुम्हारा. तुम ये भी नही सोच रहे हो कि अगर तुम्हे ही साइको समझ लिया गया तो फिर क्या होगा."
"क्या तुम प्यार करने लगी हो मुझसे पूजा जो कि इतनी चिंता कर रही हो मेरी."
"प्यार मेरे लिए एक कन्फ्यूषन बन गया है. प्यार नही कर पाउन्गि जिंदगी में दुबारा. इंसानियत के नाते तुम्हारी चिंता है मुझे."
"तुमने बाहर कहा था की क्या मेरी चिंता नही तुम्हे, क्यों कहा था ऐसा तुमने"
"तुम अगर मेरे लिए खून ख़राबा करोगे तो क्या ख़ुशी मिलेगी मुझे. परेशान ही तो रहूंगी. जब प्यार करते हो मुझसे तो क्या मुझे परेशानी में डालोगे. तुम ऐसा करोगे तो क्या मैं चिंता नही करूँगी तुम्हारी. ख़तरनाक खेल खेल रहे हो तुम जिसमे तुम्हारी जान भी जा सकती है."
"वाओ...तुम्हे मेरी फिकर हो रही है. यही तो प्यार है. देखा पटा ही लिया मैने तुम्हे." सौरभ ने हंसते हुए कहा.
"दुबारा प्यार मेरे लिए असंभव है. प्यार नही है ये. तुम्हारी चिंता है मुझे और कुछ नही...सौरभ. कर बैठती प्यार तुमसे इस दीवाने पन के लिए अगर प्यार में धोका ना खाया होता मैने. प्यार नही कर पाउन्गि तुम्हे, मजबूर हूँ अपने दिल के हातो. लेकिन तुम अगर मुझे सच में प्यार करते हो तो तुम्हे तुरंत ये खून ख़राबा बंद करना पड़ेगा."
सौरभ ने गहरी साँस ली और बोला, "ठीक है पूजा, एनितिंग फॉर यू. लेकिन कम से कम इस विजय का खेल तो ख़तम करने दो. वही है वो साइको जिसने शहर में आतंक मचा रखा है."
"कौन विजय?"
"वही पोलीस वाला जो तुम्हे ज़बरदस्ती घर ले गया था. उसका नाम विजय है"
"अगर ऐसा भी है तो तुम क्यों क़ानून अपने हाथ में लेते हो. मेरे जीते जी तुम कुछ नही करोगे ऐसा समझ लो. मुझे मार दो फिर कर लेना जो करना है"
"अच्छा ठीक है बाबा. मैं ये बात इनस्पेक्टर गौरव को बता देता हूँ. देख लेंगे आगे वो खुद."
"थॅंक यू सौरभ. बहुत शुकून मिला मेरे दिल को ये सुन कर. काश तुम मुझे पहले मिले होते." पूजा ने गहरी साँस ली.
"पूजा इंतेज़ार करूँगा तुम्हारा. मुझे यकीन है कि तुम मेरे प्यार से दूर नही रह पाओगि. मेरा प्यार सच्चा है तो तुम्हे भी प्यार हो ही जाएगा."
पूजा की आँखे भी भर आई और वो मुस्कुरा भी पड़ी सौरभ की बात पर. एक साथ दो भावनाए जाग गयी थी पूजा के अंदर. "मैं चलती हूँ सौरभ. दीदी मेरे लिए परेशान हो रही होगी."
"मिलती रहना मुझसे, एक आचे दोस्त तो हम रह ही सकते हैं."
"हां बिल्कुल" पूजा सौरभ की आँखो में देख कर मुस्कुराइ और धीरे से दरवाजा खोल कर बाहर निकल गयी.
"कितना प्यार है तुम्हारी आँखो में मेरे लिए, पर तुम स्वीकार नही करना चाहती इस प्यार को. देखता हूँ मैं भी कब तक धोका दोगि खुद को." सौरभ ने कहा.