02-01-2020, 11:23 AM
Update 68
शाम के 6 बज रहे हैं. हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा है.
सरिता विजय की पत्नी, बाजार से कुछ समान ले कर लौट रही है. घर पहुँच कर वो पाती है की उनके घर के बाहर कोई खड़ा है बायक ले कर. वो उसे पहचान जाती है. "ये तो सौरभ है."
सौरभ सरिता को देखते ही बोला, आपका ही इंतेज़ार कर रहा था मैं. कैसी हैं आप."
"मैं ठीक हूँ, अंदर आइए."
सरिता ने दरवाजे का ताला खोला और सौरभ को अंदर इन्वाइट किया.
"मेरे पति घर पर नही हैं. आप अच्छे वक्त पर आयें हैं. मैं बिना किसी चिंता के अपना क़र्ज़ उतार सकती हूँ."
"कहाँ हैं आपके पति देव."
"देल्ही गये हैं कल से किसी काम से. अब कल ही लोटेंगे"
"ह्म्म..."
"वैसे मुझे डर लग रहा है, पर अपना क़र्ज़ मैं चुकाना चाहती हूँ. आपके सामने हूँ आप जैसा चाहें कर सकते हैं."
"आप हर क़र्ज़ से आज़ाद हैं सरिता जी. मुझे आपसे कुछ नही चाहिए. मैं तो वैसे ही मिलने आया था. बस एक बात बता दीजिए अगर हो सके तो."
"जी पूछिए." सरिता ने कहा.
"आपके पति के पेट पर निशान क्यों है, बहुत बड़ा लंबा सा."
"आप क्यों जान-ना चाहते हैं?"
"प्लीज़ हो सके तो बता दीजिए...मुझसे कारण मत पूछिए."
"उस रात आपके जाने के बाद मेरे पति घर आए थे. उन पर साइको ने हमला किया था. उनके पेट पर वार किया. किसी तरह से बच गये वो. बड़ी मुश्किल से घर पहुँचे थे."
"ह्म्म तो आप कौन से हॉस्पिटल में ले गयी थी उन्हे."
"उन्होने मना कर दिया हॉस्पिटल जाने से. कह रहे थे की सबको पता चलेगा तो पोलीस की बदनामी होगी. वैसे मैं खुद एक डॉक्टर हूँ. मैने घर पर ही जैसे तैसे ऑपरेट किया. थॅंक गॉड सब कुछ ठीक रहा."
"ह्म्म....."
"आप ये सब क्यों जान-ना चाहते थे."
"कोई ख़ास बात नही वैसे ही. अब मैं चलता हूँ. टेक केर."
सरिता को तो कुछ भी समझ नही आ रहा था
सौरभ आ गया चुपचाप बाहर और बायक पर बैठ कर घर की तरफ चल दिया.
सौरभ घर पहुँचा तो उसे अपने घर के बाहर पूजा खड़ी मिली.
"तुम यहाँ क्या कर रही हो पूजा. लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे"
"क्यों कर रहे हो ये सब. कुछ बदल नही जाएगा खून ख़राबे से."
"मैं कुछ समझा नही." सौरभ ने हैरानी भरे शब्दो में कहा.
"मैने अभी अभी देखा कल का न्यूज़ पेपर. विक्की और परवीन को किसी ने बेरहमी से मार दिया."
"अच्छा हुआ वो लोग इसी लायक थे. पर उन्हे किसी ने नही बल्कि साइको ने मारा है."
"मेरी आँखो में देख कर बोलो क्यों कर रहे हो ये सब."
"अंदर चल कर बात करते हैं, लोग देख रहे हैं." सौरभ ने कहा और कमरे का ताला खोल दिया. "आओ बैठ कर आराम से बातें करते हैं."
"कोई बात नही करूँगी जब तक ये सब बंद नही करोगे." पूजा ने कहा.
"तुम्हे कुछ ग़लत-फ़हमी हो गयी है. मैने कुछ नही किया ऐसा."
"मतलब की तुम रुकोगे नही, खून की होली खेलते रहोगे. मेरी चिंता नही तुम्हे बिल्कुल भी क्या."
"क्या मतलब.... आओ आओ अंदर आओ अब काम की बात की तुमने. पहली बार तुम्हारी आँखो में मेरे लिए प्यार दिखाई दे रहा है."
"ये प्यार नही तुम्हारे लिए चिंता है. रोक दो ये सब वरना तुमसे कभी बात नही करूँगी."
"2 लोग बाकी हैं अभी पूजा. न्याय पूरा करूँगा मैं अधूरा नही."
"मतलब तुम नही रुकोगे."
"नही."
पूजा चल पड़ी मूड कर अपने घर की तरफ. सौरभ ने उसे रोकने की कोशिश नही की.
"तुम समझ नही रही हो पूजा. अगर ये लोग जिंदा रहे तो परेशान करते रहेंगे तुम्हे. इनका मारना ज़रूरी है. तभी तुम शांति से जी पाओगि.
पूजा चल तो पड़ी थी मूह फेर कर अपने घर की ओर पर उसके कदम आगे ही नही बढ़ रहे थे. बहुत धीरे-धीरे बढ़ रही थी वो आगे. वो किसी उधेड़बुन में थी. अचानक वो रुक गयी और अपने कदम वापिस सौरभ के घर की तरफ मोड़ दिए. "मैं नही करने दूँगी सौरभ को ये सब, उसे मेरी बात मान-नी पड़ेगी." पूजा ने ध्रिद निस्चय से कहा और तेज कदमो से चल पड़ी.
2 मिनिट में ही पूजा वापिस सौरभ के घर के बाहर थी.
शाम के 6 बज रहे हैं. हल्का-हल्का अंधेरा होने लगा है.
सरिता विजय की पत्नी, बाजार से कुछ समान ले कर लौट रही है. घर पहुँच कर वो पाती है की उनके घर के बाहर कोई खड़ा है बायक ले कर. वो उसे पहचान जाती है. "ये तो सौरभ है."
सौरभ सरिता को देखते ही बोला, आपका ही इंतेज़ार कर रहा था मैं. कैसी हैं आप."
"मैं ठीक हूँ, अंदर आइए."
सरिता ने दरवाजे का ताला खोला और सौरभ को अंदर इन्वाइट किया.
"मेरे पति घर पर नही हैं. आप अच्छे वक्त पर आयें हैं. मैं बिना किसी चिंता के अपना क़र्ज़ उतार सकती हूँ."
"कहाँ हैं आपके पति देव."
"देल्ही गये हैं कल से किसी काम से. अब कल ही लोटेंगे"
"ह्म्म..."
"वैसे मुझे डर लग रहा है, पर अपना क़र्ज़ मैं चुकाना चाहती हूँ. आपके सामने हूँ आप जैसा चाहें कर सकते हैं."
"आप हर क़र्ज़ से आज़ाद हैं सरिता जी. मुझे आपसे कुछ नही चाहिए. मैं तो वैसे ही मिलने आया था. बस एक बात बता दीजिए अगर हो सके तो."
"जी पूछिए." सरिता ने कहा.
"आपके पति के पेट पर निशान क्यों है, बहुत बड़ा लंबा सा."
"आप क्यों जान-ना चाहते हैं?"
"प्लीज़ हो सके तो बता दीजिए...मुझसे कारण मत पूछिए."
"उस रात आपके जाने के बाद मेरे पति घर आए थे. उन पर साइको ने हमला किया था. उनके पेट पर वार किया. किसी तरह से बच गये वो. बड़ी मुश्किल से घर पहुँचे थे."
"ह्म्म तो आप कौन से हॉस्पिटल में ले गयी थी उन्हे."
"उन्होने मना कर दिया हॉस्पिटल जाने से. कह रहे थे की सबको पता चलेगा तो पोलीस की बदनामी होगी. वैसे मैं खुद एक डॉक्टर हूँ. मैने घर पर ही जैसे तैसे ऑपरेट किया. थॅंक गॉड सब कुछ ठीक रहा."
"ह्म्म....."
"आप ये सब क्यों जान-ना चाहते थे."
"कोई ख़ास बात नही वैसे ही. अब मैं चलता हूँ. टेक केर."
सरिता को तो कुछ भी समझ नही आ रहा था
सौरभ आ गया चुपचाप बाहर और बायक पर बैठ कर घर की तरफ चल दिया.
सौरभ घर पहुँचा तो उसे अपने घर के बाहर पूजा खड़ी मिली.
"तुम यहाँ क्या कर रही हो पूजा. लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे"
"क्यों कर रहे हो ये सब. कुछ बदल नही जाएगा खून ख़राबे से."
"मैं कुछ समझा नही." सौरभ ने हैरानी भरे शब्दो में कहा.
"मैने अभी अभी देखा कल का न्यूज़ पेपर. विक्की और परवीन को किसी ने बेरहमी से मार दिया."
"अच्छा हुआ वो लोग इसी लायक थे. पर उन्हे किसी ने नही बल्कि साइको ने मारा है."
"मेरी आँखो में देख कर बोलो क्यों कर रहे हो ये सब."
"अंदर चल कर बात करते हैं, लोग देख रहे हैं." सौरभ ने कहा और कमरे का ताला खोल दिया. "आओ बैठ कर आराम से बातें करते हैं."
"कोई बात नही करूँगी जब तक ये सब बंद नही करोगे." पूजा ने कहा.
"तुम्हे कुछ ग़लत-फ़हमी हो गयी है. मैने कुछ नही किया ऐसा."
"मतलब की तुम रुकोगे नही, खून की होली खेलते रहोगे. मेरी चिंता नही तुम्हे बिल्कुल भी क्या."
"क्या मतलब.... आओ आओ अंदर आओ अब काम की बात की तुमने. पहली बार तुम्हारी आँखो में मेरे लिए प्यार दिखाई दे रहा है."
"ये प्यार नही तुम्हारे लिए चिंता है. रोक दो ये सब वरना तुमसे कभी बात नही करूँगी."
"2 लोग बाकी हैं अभी पूजा. न्याय पूरा करूँगा मैं अधूरा नही."
"मतलब तुम नही रुकोगे."
"नही."
पूजा चल पड़ी मूड कर अपने घर की तरफ. सौरभ ने उसे रोकने की कोशिश नही की.
"तुम समझ नही रही हो पूजा. अगर ये लोग जिंदा रहे तो परेशान करते रहेंगे तुम्हे. इनका मारना ज़रूरी है. तभी तुम शांति से जी पाओगि.
पूजा चल तो पड़ी थी मूह फेर कर अपने घर की ओर पर उसके कदम आगे ही नही बढ़ रहे थे. बहुत धीरे-धीरे बढ़ रही थी वो आगे. वो किसी उधेड़बुन में थी. अचानक वो रुक गयी और अपने कदम वापिस सौरभ के घर की तरफ मोड़ दिए. "मैं नही करने दूँगी सौरभ को ये सब, उसे मेरी बात मान-नी पड़ेगी." पूजा ने ध्रिद निस्चय से कहा और तेज कदमो से चल पड़ी.
2 मिनिट में ही पूजा वापिस सौरभ के घर के बाहर थी.