02-01-2020, 11:12 AM
इस तरह बातो का शील्षिला शुरू हुआ. अपर्णा और मैं अच्छे दोस्त बन गये. मैं अपर्णा को इंप्रेस करने के लिए पहले से किताब के बारे में कोई अच्छी बात सोच कर रखता था. और वो बड़े प्यार से सुनती थी मेरी बातो को. अब उसकी नज़रे मुझे ढूँढ-ती रहती थी कॉलेज में पता नही क्यों . जब मैं उसके सामने आता था तो चेहरा खील उठ-ता था उसका. बड़े प्यार से देखती थी और बड़े प्यार से हल्का मुस्कुराती थी. बहुत प्यारा अहसास होता था वो मेरे लिए. प्यार हो गया था मुझे उस से. सच्चा प्यार. पर कहने की हिम्मत नही होती थी.
पहले मेरा प्लान उसे प्यार के झाँसे में फँसा कर किसी तरह बिस्तर तक ले जाने का था. मगर उसके चेहरे की मासूमियत और आँखो की सच्चाई देख कर कभी मन नही हुआ उसके बारे में ऐसा सोचने का. शायद प्यार नज़रिया बदल देता है इंसान का. ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ भी. एक अनकहा सा प्यार हो गया था हमें. ना मैं कुछ बोलता था और ना ही अपर्णा कुछ बोलती थी.
‘पवर ऑफ नाओ’ पढ़ ली थी अपर्णा ने. पर हम रोज डिस्कशन करते रहते थे. उस से बाते करते करते मैं उस किताब की गहराई को समझ पाया. मैने दुबारा इश्यू करवाई किताब और इस बार सच्चे मन से पढ़ी. एक हफ़्ता लगाया इस बार मैने ‘पवर ऑफ नाओ’ पर.
और फिर जो बाते हुई हमारे बीच पूछो मत. घंटो बैठे रहते थे हम साथ और खो जाते थे. ऐसा लगता था मुझे कि प्यार करने लगी है अपर्णा मुझे. बड़े प्यार से देखती थी वो मुझे बीच बीच में बाते करते हुए. यही लगता था मुझे जैसे की कह रही हो ‘आइ लव यू गौरव’.
मैं कहना चाहता था अब उसे अपने दिल की बात. पर कैसे कहु समझ नही पा रहा था. उसका रिक्षन क्या होगा यही सोच कर परेशान था. आँखो में दीखता था उसकी प्यार मुझे. लगता था प्यार करती है मुझे. पर ये मैं यकीन से नही कह सकता था.
एक दिन कॅंटीन में चाय पीते वक्त मैने कहा, “अपर्णा कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे. समझ नही आ रहा कि कैसे कहूँ.”
अपर्णा के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी. ऐसा लगा मुझे जैसे की वो समझ गयी कि मैं क्या कहना चाहता हूँ. मेरी आँखो में झाँक कर बोली, “बोल दो जो बोलना है. मैं सुन रही हूँ.”
मैने देखा बहुत प्यार से उसकी तरफ पर कुछ बोल नही पाया. पता नही क्या हो गया मुझे.
“बोलो ना गौरव. क्या बात है. वैसे तो बहुत बोलते हो तुम.” अपर्णा ने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं अब बोलने ही वाला था कि गब्बर आ गया वहाँ, “चलो अपर्णा चलते हैं.”
बहुत गुस्सा आया मुझे गब्बर पर, पर मैने कुछ नही कहा
शूकर है अपर्णा नही उठी वहाँ से. उसने गब्बर से कहा, “भैया आ रही हूँ अभी, बस थोड़ी देर रूको.”
दिल को राहत मिली मेरे. पर गब्बर नही माना. आ गया वही और बैठ गया एक चेर ले कर हमारे पास. इतना गुस्सा आया की पूछो मत. पर क्या कर सकता था मैं. अपर्णा के चेहरे पर भी गुस्सा दिखा मुझे गब्बर की इस हरकत पर. वो उठ खड़ी हुई और बोली, “चलो भैया. गौरव बाद में बताना ये बात ओके.”
“कौन सी बात बता रहा था ये. मुझे भी बता दो” गब्बर ने कहा.
“चलो भी अब. अभी तो तूफान मचा रहे थे. बाय गौरव कल मिलते हैं.”
दुखी मन से बाय की मैने अपर्णा को. कामीने गब्बर ने सारा खेल बिगाड़ दिया. बड़ी मुश्किल से तो दिल की बात होंठो तक आई थी. कमीना कहीं का .
पहले मेरा प्लान उसे प्यार के झाँसे में फँसा कर किसी तरह बिस्तर तक ले जाने का था. मगर उसके चेहरे की मासूमियत और आँखो की सच्चाई देख कर कभी मन नही हुआ उसके बारे में ऐसा सोचने का. शायद प्यार नज़रिया बदल देता है इंसान का. ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ भी. एक अनकहा सा प्यार हो गया था हमें. ना मैं कुछ बोलता था और ना ही अपर्णा कुछ बोलती थी.
‘पवर ऑफ नाओ’ पढ़ ली थी अपर्णा ने. पर हम रोज डिस्कशन करते रहते थे. उस से बाते करते करते मैं उस किताब की गहराई को समझ पाया. मैने दुबारा इश्यू करवाई किताब और इस बार सच्चे मन से पढ़ी. एक हफ़्ता लगाया इस बार मैने ‘पवर ऑफ नाओ’ पर.
और फिर जो बाते हुई हमारे बीच पूछो मत. घंटो बैठे रहते थे हम साथ और खो जाते थे. ऐसा लगता था मुझे कि प्यार करने लगी है अपर्णा मुझे. बड़े प्यार से देखती थी वो मुझे बीच बीच में बाते करते हुए. यही लगता था मुझे जैसे की कह रही हो ‘आइ लव यू गौरव’.
मैं कहना चाहता था अब उसे अपने दिल की बात. पर कैसे कहु समझ नही पा रहा था. उसका रिक्षन क्या होगा यही सोच कर परेशान था. आँखो में दीखता था उसकी प्यार मुझे. लगता था प्यार करती है मुझे. पर ये मैं यकीन से नही कह सकता था.
एक दिन कॅंटीन में चाय पीते वक्त मैने कहा, “अपर्णा कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे. समझ नही आ रहा कि कैसे कहूँ.”
अपर्णा के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी. ऐसा लगा मुझे जैसे की वो समझ गयी कि मैं क्या कहना चाहता हूँ. मेरी आँखो में झाँक कर बोली, “बोल दो जो बोलना है. मैं सुन रही हूँ.”
मैने देखा बहुत प्यार से उसकी तरफ पर कुछ बोल नही पाया. पता नही क्या हो गया मुझे.
“बोलो ना गौरव. क्या बात है. वैसे तो बहुत बोलते हो तुम.” अपर्णा ने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं अब बोलने ही वाला था कि गब्बर आ गया वहाँ, “चलो अपर्णा चलते हैं.”
बहुत गुस्सा आया मुझे गब्बर पर, पर मैने कुछ नही कहा
शूकर है अपर्णा नही उठी वहाँ से. उसने गब्बर से कहा, “भैया आ रही हूँ अभी, बस थोड़ी देर रूको.”
दिल को राहत मिली मेरे. पर गब्बर नही माना. आ गया वही और बैठ गया एक चेर ले कर हमारे पास. इतना गुस्सा आया की पूछो मत. पर क्या कर सकता था मैं. अपर्णा के चेहरे पर भी गुस्सा दिखा मुझे गब्बर की इस हरकत पर. वो उठ खड़ी हुई और बोली, “चलो भैया. गौरव बाद में बताना ये बात ओके.”
“कौन सी बात बता रहा था ये. मुझे भी बता दो” गब्बर ने कहा.
“चलो भी अब. अभी तो तूफान मचा रहे थे. बाय गौरव कल मिलते हैं.”
दुखी मन से बाय की मैने अपर्णा को. कामीने गब्बर ने सारा खेल बिगाड़ दिया. बड़ी मुश्किल से तो दिल की बात होंठो तक आई थी. कमीना कहीं का .