02-01-2020, 11:10 AM
Update 66
रोज सुबह बायक ले कर मैं गब्बर और अपर्णा के साथ चलता था. अपनी बायक मैं गब्बर की बायक से थोड़ा पीछे रखता था जान-बुझ कर ताकि अपर्णा पर लाइन मार सकूँ. पर वो ना लाइन देती थी ना लेती थी. यही उसकी सबसे बेकार बात थी. पता नही अपना हुसन किसके लिए बचा कर रखना चाहती थी. खैर इन बातों के कारण ही मन में इज़्ज़त भी थी मेरे उसके लिए. ऐसी लड़कियाँ कम ही होती हैं दुनिया में.
खैर एक और पासा फेंका मैने. इस बार मैने गुणडो से कहा कि गब्बर को रास्ते में रोक कर खूब पीटना शुरू कर देना. मैं बीच में पड़ कर उसे बचा लूँगा और अपर्णा की आँखो में हीरो बन जाउन्गा.
पर रीमा इस बार भी पासा उल्टा ही पड़ा. वो गुंडे तो क्या पीट-ते गब्बर को. गब्बर ने इतनी रेल बनाई उनकी कि गुंडा पाना भूल गये वो दोनो. माफी माँग कर गये गब्बर से. जाते जाते गब्बर ने उन्हे कहा, “दुबारा मेरे सामने आए तो गोली मार दूँगा.”
गुंडे तो घबरा गये और सर पर पाँव रख कर भागे. मैने निक्कम्मे गुंडे चूस कर लिए थे
ये प्लान तो फैल हो गया अब कुछ नया सोचना था. दुबारा गुणडो का उसे नही कर सकता था. शक हो जाता मुझ पर. अपर्णा बिल्कुल भी नही देखती थी मेरी तरफ. समझ में नही आता था कि क्या करू.
एक दिन मैने अपर्णा को कॉलेज की लाइब्ररी में एक बुक पढ़ते देखा. बुक का टाइटल था ‘पवर ऑफ नाओ’ ईकार्ट टोल ने लिखी थी किताब ये. मैने 1-2 दिन नोट किया की अपर्णा रोज ये किताब पढ़ रही है. फिर क्या था अपर्णा को इंपरेससे करने के लिए एक कॉपी मैने भी इश्यू करवा ली. पूरी रात उल्लू की तरह जाग कर पढ़ता रहा किताब. सर के उपर से निकल गया सब कुछ. अगले दिन मैं कॉलेज नही गया. सारा दिन लगा कर पूरी किताब ख़तम कर दी मैने. कुछ कुछ समझ में आने लगा मेरे. अब मैं अपर्णा से डिस्कशन के लिए तैयार था
अगले दिन गब्बर और अपर्णा के साथ कॉलेज जाते वक्त मैं बोला, “यार क्या किताब लिखी है एकखर टोल ने. पवर ऑफ नाओ पढ़ी है क्या तुमने गब्बर भाई.”
गब्बर इरिटेट सा हो गया, “मैं वक्त बेकार नही करता अपना बेकार की बातों में.”
“नही भैया पवर ऑफ नाओ बहुत अच्छी किताब है. सभी को पढ़नी चाहिए.” अपर्णा ने कहा.
बस ऐसा ही मोका तो चाहिए था मुझे, “मैं कल कॉलेज भी नही आया क्योंकि वो किताब पूरी पढ़नी थी मुझे. मैने पूरी पढ़ ली वो एक दिन में”
“बहुत बेकार रीडर हो तुम. एकखार्त टोल ने खुद कहा है की आराम से पढ़ो हर एक पॅरग्रॅफ और तुमने एक दिन में पूरी किताब पढ़ ली. तुम्हारे तो सर के उपर से निकल गयी होगी वो.”
मैं चारो खाने चित्त. समझ में नही आया कि क्या बोलूं. खैर किताब मैने पढ़ी बहुत ध्यान से थी. कुछ बाते याद थी उसकी मैं बोला, “आज में, इस पल में जीने के लिए बोला है लेखक ने. सिंपल सी बात है. पास्ट और फ्यूचर को भुला कर आज में जीना चाहिए इंसान को. किताब सर के उपर से ज़रूर निकल गयी मगर लेखक की बात दिल की गहराई से समझ गया मैं.”
अपर्णा तो देखती ही रह गयी मुझे. पहली बार देखा उसने मुझे. उसके चेहरे पर आश्चर्या के भाव थे. मैं तो खो ही गया उन म्रिग्नय्नि सी आँखो में. मेरा ध्यान ही नही रहा सड़क पर. बस देखता रहा उसे. वैसे बस कुछ सेकेंड की ही बात थी ये. पर ध्यान भटकने से मैं एक कार से टकरा गया. बहुत बुरी तरह गिरा सड़क पर. हाथ पाँव चिल गये मेरे. सर से भी खून बहने लगा. पर मुझे कोई परवाह नही थी. मैं बस अपर्णा को देखता रहा फिर भी. वो आई गब्बर के साथ मुझे उठाने. “कहाँ देख रहे थे. ध्यान सड़क पर रखा करो.” अपर्णा ने कहा.
“आपको पता तो है कहा देख रहा था. कैसे ध्यान जाएगा सड़क पर.”
गब्बर तो सर खुजाने लगा अपना . उसे कुछ समझ नही आया. ये बात तो सिर्फ़ मैं और अपर्णा जानते थे कि मैं कहा देख रहा था. उसकी म्रिग्नय्नि आँखो में ही तो डूब गया था.
मरहम पट्टी करवाई एक क्लिनिक जा कर. गब्बर और अपर्णा भी साथ ही थे. अपर्णा के चेहरे पर मेरे लिए चिंता नज़र आ रही थी. मैं मन ही मन खुश हो रहा था.
“तुम घर जाओ गौरव अब. छुट्टी ले लो 4-5 दिन की.” गब्बर ने कहा.
“नही-नही मैं छुट्टी नही लूँगा. बहुत नाज़ुक वक्त है ये.”
“नाज़ुक वक्त…कैसा नाज़ुक वक्त.” अपर्णा ने हैरानी में पूछा.
“मैं पवर ऑफ नाओ पढ़ कर हटा हूँ. सभी को कॉलेज में उसके बारे में बताउन्गा.”
“मेरे से बात मत करना उसके बारे में. मैं सिर्फ़ गन की पवर पर विश्वास रखता हूँ.” गब्बर ने कहा.
कुछ अजीब नही लगा ये सुन के मुझे. गब्बर का दिमाग़ सच में सरका हुआ था. खैर गया मैं कॉलेज किसी तरह. कॉलेज पहुँच कर मैने अपर्णा से कहा, “अपर्णा पवर ऑफ नाओ के बारे में कुछ बात करें.”
“हां-हां बिल्कुल. मुझे वो किताब बहुत अच्छी लगी.” अपर्णा ने कहा.
“तुम लोग पवर ऑफ नाओ की बाते करो…मेरे पास फालतू वक्त नही है. मैं गिल्ली डंडा खेलने जा रहा हूँ.” गब्बर ने कहा
“गिल्ली डंडा इस उमर में. कुछ और खेलो भाई.” मैं तो हैरान ही रह गया.
“ज़्यादा मत बोलो गोली मार दूँगा तुम्हे.” गब्बर चिल्लाया
मैं किसी बहस में नही पड़ना चाहता था. वैसे भी मेरे लिए तो ये अच्छा ही था. गब्बर गिल्ली डंडा खेले और मैं अपर्णा पर लाइन मारु इस से अच्छा और क्या हो सकता था
गब्बर के जाने के बाद हम दोनो कॅंटीन में आ गये. मेरे दोस्त लोगो के सीने पर तो साँप लेट गया अपर्णा को मेरे साथ देख कर . फ.ज.बडी, जावेद, मनीस और विवेक भाई दूर खड़े जल रहे थे मुझसे. खैर मुझे क्या था. मुझे बेट भी जीतनी थी और अपर्णा का दिल भी जितना था
पवर ऑफ नाओ के बारे में खूब बाते की हमने.अपर्णा इंप्रेस्ड नज़र आ रही थी.
“तुमने इतनी जल्दी पढ़ कर ये सब समझ भी लिया. इट्स अमेज़िंग.”
“मैं जब पढ़ता हूँ तो ऐसे ही पढ़ता हूँ. बिल्कुल रवि भाई की तरह.”
“ह्म्म, अच्छी बुक है. मैने आधी पढ़ी है अभी.” अपर्णा ने कहा.
रोज सुबह बायक ले कर मैं गब्बर और अपर्णा के साथ चलता था. अपनी बायक मैं गब्बर की बायक से थोड़ा पीछे रखता था जान-बुझ कर ताकि अपर्णा पर लाइन मार सकूँ. पर वो ना लाइन देती थी ना लेती थी. यही उसकी सबसे बेकार बात थी. पता नही अपना हुसन किसके लिए बचा कर रखना चाहती थी. खैर इन बातों के कारण ही मन में इज़्ज़त भी थी मेरे उसके लिए. ऐसी लड़कियाँ कम ही होती हैं दुनिया में.
खैर एक और पासा फेंका मैने. इस बार मैने गुणडो से कहा कि गब्बर को रास्ते में रोक कर खूब पीटना शुरू कर देना. मैं बीच में पड़ कर उसे बचा लूँगा और अपर्णा की आँखो में हीरो बन जाउन्गा.
पर रीमा इस बार भी पासा उल्टा ही पड़ा. वो गुंडे तो क्या पीट-ते गब्बर को. गब्बर ने इतनी रेल बनाई उनकी कि गुंडा पाना भूल गये वो दोनो. माफी माँग कर गये गब्बर से. जाते जाते गब्बर ने उन्हे कहा, “दुबारा मेरे सामने आए तो गोली मार दूँगा.”
गुंडे तो घबरा गये और सर पर पाँव रख कर भागे. मैने निक्कम्मे गुंडे चूस कर लिए थे
ये प्लान तो फैल हो गया अब कुछ नया सोचना था. दुबारा गुणडो का उसे नही कर सकता था. शक हो जाता मुझ पर. अपर्णा बिल्कुल भी नही देखती थी मेरी तरफ. समझ में नही आता था कि क्या करू.
एक दिन मैने अपर्णा को कॉलेज की लाइब्ररी में एक बुक पढ़ते देखा. बुक का टाइटल था ‘पवर ऑफ नाओ’ ईकार्ट टोल ने लिखी थी किताब ये. मैने 1-2 दिन नोट किया की अपर्णा रोज ये किताब पढ़ रही है. फिर क्या था अपर्णा को इंपरेससे करने के लिए एक कॉपी मैने भी इश्यू करवा ली. पूरी रात उल्लू की तरह जाग कर पढ़ता रहा किताब. सर के उपर से निकल गया सब कुछ. अगले दिन मैं कॉलेज नही गया. सारा दिन लगा कर पूरी किताब ख़तम कर दी मैने. कुछ कुछ समझ में आने लगा मेरे. अब मैं अपर्णा से डिस्कशन के लिए तैयार था
अगले दिन गब्बर और अपर्णा के साथ कॉलेज जाते वक्त मैं बोला, “यार क्या किताब लिखी है एकखर टोल ने. पवर ऑफ नाओ पढ़ी है क्या तुमने गब्बर भाई.”
गब्बर इरिटेट सा हो गया, “मैं वक्त बेकार नही करता अपना बेकार की बातों में.”
“नही भैया पवर ऑफ नाओ बहुत अच्छी किताब है. सभी को पढ़नी चाहिए.” अपर्णा ने कहा.
बस ऐसा ही मोका तो चाहिए था मुझे, “मैं कल कॉलेज भी नही आया क्योंकि वो किताब पूरी पढ़नी थी मुझे. मैने पूरी पढ़ ली वो एक दिन में”
“बहुत बेकार रीडर हो तुम. एकखार्त टोल ने खुद कहा है की आराम से पढ़ो हर एक पॅरग्रॅफ और तुमने एक दिन में पूरी किताब पढ़ ली. तुम्हारे तो सर के उपर से निकल गयी होगी वो.”
मैं चारो खाने चित्त. समझ में नही आया कि क्या बोलूं. खैर किताब मैने पढ़ी बहुत ध्यान से थी. कुछ बाते याद थी उसकी मैं बोला, “आज में, इस पल में जीने के लिए बोला है लेखक ने. सिंपल सी बात है. पास्ट और फ्यूचर को भुला कर आज में जीना चाहिए इंसान को. किताब सर के उपर से ज़रूर निकल गयी मगर लेखक की बात दिल की गहराई से समझ गया मैं.”
अपर्णा तो देखती ही रह गयी मुझे. पहली बार देखा उसने मुझे. उसके चेहरे पर आश्चर्या के भाव थे. मैं तो खो ही गया उन म्रिग्नय्नि सी आँखो में. मेरा ध्यान ही नही रहा सड़क पर. बस देखता रहा उसे. वैसे बस कुछ सेकेंड की ही बात थी ये. पर ध्यान भटकने से मैं एक कार से टकरा गया. बहुत बुरी तरह गिरा सड़क पर. हाथ पाँव चिल गये मेरे. सर से भी खून बहने लगा. पर मुझे कोई परवाह नही थी. मैं बस अपर्णा को देखता रहा फिर भी. वो आई गब्बर के साथ मुझे उठाने. “कहाँ देख रहे थे. ध्यान सड़क पर रखा करो.” अपर्णा ने कहा.
“आपको पता तो है कहा देख रहा था. कैसे ध्यान जाएगा सड़क पर.”
गब्बर तो सर खुजाने लगा अपना . उसे कुछ समझ नही आया. ये बात तो सिर्फ़ मैं और अपर्णा जानते थे कि मैं कहा देख रहा था. उसकी म्रिग्नय्नि आँखो में ही तो डूब गया था.
मरहम पट्टी करवाई एक क्लिनिक जा कर. गब्बर और अपर्णा भी साथ ही थे. अपर्णा के चेहरे पर मेरे लिए चिंता नज़र आ रही थी. मैं मन ही मन खुश हो रहा था.
“तुम घर जाओ गौरव अब. छुट्टी ले लो 4-5 दिन की.” गब्बर ने कहा.
“नही-नही मैं छुट्टी नही लूँगा. बहुत नाज़ुक वक्त है ये.”
“नाज़ुक वक्त…कैसा नाज़ुक वक्त.” अपर्णा ने हैरानी में पूछा.
“मैं पवर ऑफ नाओ पढ़ कर हटा हूँ. सभी को कॉलेज में उसके बारे में बताउन्गा.”
“मेरे से बात मत करना उसके बारे में. मैं सिर्फ़ गन की पवर पर विश्वास रखता हूँ.” गब्बर ने कहा.
कुछ अजीब नही लगा ये सुन के मुझे. गब्बर का दिमाग़ सच में सरका हुआ था. खैर गया मैं कॉलेज किसी तरह. कॉलेज पहुँच कर मैने अपर्णा से कहा, “अपर्णा पवर ऑफ नाओ के बारे में कुछ बात करें.”
“हां-हां बिल्कुल. मुझे वो किताब बहुत अच्छी लगी.” अपर्णा ने कहा.
“तुम लोग पवर ऑफ नाओ की बाते करो…मेरे पास फालतू वक्त नही है. मैं गिल्ली डंडा खेलने जा रहा हूँ.” गब्बर ने कहा
“गिल्ली डंडा इस उमर में. कुछ और खेलो भाई.” मैं तो हैरान ही रह गया.
“ज़्यादा मत बोलो गोली मार दूँगा तुम्हे.” गब्बर चिल्लाया
मैं किसी बहस में नही पड़ना चाहता था. वैसे भी मेरे लिए तो ये अच्छा ही था. गब्बर गिल्ली डंडा खेले और मैं अपर्णा पर लाइन मारु इस से अच्छा और क्या हो सकता था
गब्बर के जाने के बाद हम दोनो कॅंटीन में आ गये. मेरे दोस्त लोगो के सीने पर तो साँप लेट गया अपर्णा को मेरे साथ देख कर . फ.ज.बडी, जावेद, मनीस और विवेक भाई दूर खड़े जल रहे थे मुझसे. खैर मुझे क्या था. मुझे बेट भी जीतनी थी और अपर्णा का दिल भी जितना था
पवर ऑफ नाओ के बारे में खूब बाते की हमने.अपर्णा इंप्रेस्ड नज़र आ रही थी.
“तुमने इतनी जल्दी पढ़ कर ये सब समझ भी लिया. इट्स अमेज़िंग.”
“मैं जब पढ़ता हूँ तो ऐसे ही पढ़ता हूँ. बिल्कुल रवि भाई की तरह.”
“ह्म्म, अच्छी बुक है. मैने आधी पढ़ी है अभी.” अपर्णा ने कहा.