02-01-2020, 10:39 AM
Update 63
मगर कब तक बचती वो लिंग के घर्सन से. देर से ही सही कमरे में उसकी सिसकियाँ गूंजने लगी. ये बात और थी कि उसकी शिसकियों में आनंद के साथ साथ शरम और ग्लानि भी मौजूद थी. पूजा की सिसकियाँ उसकी व्यतीत मनोस्थिति को बखूबी दर्साति थी. मगर विजय को तो लग रहा था कि वो आनंद के सागर में गोते लगा रही है.
आनंद था योनि में लिंग के घर्षण का. शरम और ग्लानि थी इस बात की, की उसकी योनि में घर्षण करने वाला उसका प्रेमी नही था बल्कि वो इंसान था जो की उसे वैश्या समझता था और वैश्या के ही नाते उस पर चढ़ा हुआ था.
"अब कुछ नही बचा...सब ख़तम हो गया...आआहह"
"क्या कहा तूने, मुझे डिस्टर्ब मत कर आराम से फक्किंग करने दे"
पूजा ने कुछ नही कहा. हां उसकी 2 अहसासो में डूबी सिसकियाँ बरकरार रही.
तीन बार सहना पड़ा उसे विजय की हवस को.
6 बजे फ्री किया विजय ने पूजा को. विजय ने पूजा को अपने घर से थोड़ी दूर एक मार्केट में छोड़ दिया. "अगले हफ्ते मेरे 2 दोस्त आ रहें हैं देल्ही से. मिल कर एंजाय करेंगे तेरे साथ."
पूजा ने कुछ नही कहा और मुरझाया चेहरा ले कर लड़खड़ाते कदमो से चल पड़ी. घर नही जाना चाहती थी वो अब. मर जाना चाहती थी कही जाकर. एक कार ने तो उसे उड़ा ही दिया होता. शूकर है वक्त पर ब्रेक लग गयी. "पागल हो गयी हो तुम. मरना है तो कही और जा कर मरो." कार वाला चिल्लाया. सड़क पार कर रही थी पूजा बिना सोचे समझे. ध्यान ही नही था उसका कार पर. वो तो बस चले जा रही थी. शायद वो कही जा कर मार ही जाती. पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
सौरभ गुजर रहा था वहाँ से. उसने पूजा को ऐसी हालत में गुमशुम भटकते देख लिया.
"पूजा कहाँ जा रही हो. देख कर भी नही चल रही. ठीक तो हो."
"ओह सौरभ...बहुत अच्छे वक्त पे आए तुम, देखो मेरा तमासा तुम भी."
"क्या बोल रही हो. चलो बैठो तुम्हे घर छोड़ देता हूँ."
"नही घर नही जाउंगी आज. तुम जाओ."
सौरभ को पूजा का ऐसा बर्ताव बहुत अजीब लग रहा था.
"बात क्या है पूजा, कुछ बदली बदली सी लग रही हो."
"हे...हे...बदली बदली और मैं. जिंदगी है चलता है सब. मैं घर नही जाउंगी."
"बैठो तो सही...जहा कहोगी वहाँ ले चलूँगा." सौरभ ने कहा.
"ओह हां एक काम करते हैं, तुम्हारे घर चलें." पूजा ने कहा.
"चलो चलने में कोई बुराई नही है...आओ." सौरभ ने कहा.
"लेकिन मैं अपने घर नही जाउंगी पहले ही बता देती हूँ."
"बैठो तो सही...फिर देखते है." सौरभ ने कहा.
"नही जाना है मुझे घर जान लो तुम." पूजा बोलते हुए बैठ गयी सौरभ की बायक पर.
पूजा कुछ नही बोली बाद में. सौरभ ने भी कुछ नही कहा. ले आया सौरभ पूजा को अपने घर.
"कुण्डी लगा दो सौरभ." पूजा ने कहा.
सौरभ तो कुछ भी नही समझ पा रहा था. कुण्डी लगा कर वो पूजा के पास आया जो की बिस्तर के पास खड़ी थी. पूजा ने सौरभ की आँखो में देखा और अपना टॉप उतार दिया.
"ये क्या कर रही हो."
"अपने आशिक़ को तोहफा देना चाहती हूँ." पूजा ने कहा और अपनी ब्रा उतार कर फेंक दी. अब उसके उभार सौरभ की नज़रो के सामने थे.
"तुम ये सब क्यों कर रही हो पूजा."
पूजा कुछ नही बोली और झट से अपनी जीन्स और पॅंटी भी उतार दी. अब वो सौरभ के सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी. सौरभ तो देखता ही रह गया उसके नागन शरीर को. इतनी सुंदर बॉडी आज तक नही देखी थी उसने.
"पूजा मेरी कुछ समझ में नही आ रहा. क्यों कर रही हो तुम ये सब. तुम बहुत अजीब बिहेव कर रही हो."
पूजा सौरभ से लिपट गयी और बोली, "जल्दी से प्यास भुजा लो अपनी. फिर कभी नही मिलूंगी तुम्हे."
सौरभ तो अजीब उलझन में फँस गया था. ना चाहते हुए भी उसका लिंग उत्तेजित हो गया था. पूजा को वो अपनी योनि पर महसूस हुआ. वो बैठ गयी सौरभ के आगे और सौरभ की ज़िप खोल कर उसके लिंग को बाहर निकाल लिया.
"ये सच में बड़ा है सौरभ. रियली इट्स आ नाइस डिक."
सौरभ तो भड़क ही उठा और पूजा को गोदी में उठाया और लेटा दिया बिस्तर पर. इतना उत्तेजित हो रहा था वो कि तुरंत समा जाना चाहता था पूजा के अंदर.
उसने अपने लिंग को पकड़ा और दो उंगलियों से पूजा की योनि की पंखुड़ियों को फैला कर उस पर लिंग टिकाने लगा. मगर तभी उसकी नज़र योनि के आस पास सफेद सी चीज़ पर गयी. उसने गौर से देखा तो उसे समझते देर नही लगी की वो वीर्य की बूंदे थी जो की शूख गयी थी.
सौरभ ने पूजा के चेहरे पे हाथ रखा और बोला, "पूजा बताओगि कि क्या हुआ है तुम्हारे साथ."
"क्या फर्क पड़ता है उस से. तुम्हारे पास टाइम कम है. अपनी प्यास बुझा लो जल्दी से. बाद में मोका नही मिलेगा तुम्हे."
"तुम यकीन करो या ना करो प्यार करता हूँ तुम्हे मैं. प्लीज़ बताओ क्या हुआ तुम्हारे साथ. कौन था वो बताओ मैं उसे जींदा नही छोड़ूँगा."
"हे...हे...हे...प्यार का नाम मत लो. प्यार ने तो मुझे रंडी बना दिया. जिसका मन होता है चढ़ जाता है मुझ पे. किसी का कसूर नही है. सब प्यार का ही दोष है. आओ ना तुम भी चढ़ जाओ भरपूर मज़ा दूँगी तुम्हे."
सुना नही गया सौरभ से ये सब और उसने थप्पड़ जड़ दिया पूजा के गाल पर, "कपड़े पहनो अपने और घर जाओ अपने. मेरा प्यार ऐसा नही है जैसा तुम समझ रही हो."
सौरभ बिस्तर से उतर गया. पूजा फूट -फूट कर रोने लगी. वो उठी और अपने कपड़े पहन लिए.
"मैं तुम्हे घर छोड़ आता हूँ"
"नही चली जाउंगी खुद ही." पूजा सूबक रही थी. सुबक्ते सुबक्ते निकल गयी घर से. सौरभ पीछे पीछे गया उसके ये देखने की वो घर ही जा रही है या कही और.
मगर कब तक बचती वो लिंग के घर्सन से. देर से ही सही कमरे में उसकी सिसकियाँ गूंजने लगी. ये बात और थी कि उसकी शिसकियों में आनंद के साथ साथ शरम और ग्लानि भी मौजूद थी. पूजा की सिसकियाँ उसकी व्यतीत मनोस्थिति को बखूबी दर्साति थी. मगर विजय को तो लग रहा था कि वो आनंद के सागर में गोते लगा रही है.
आनंद था योनि में लिंग के घर्षण का. शरम और ग्लानि थी इस बात की, की उसकी योनि में घर्षण करने वाला उसका प्रेमी नही था बल्कि वो इंसान था जो की उसे वैश्या समझता था और वैश्या के ही नाते उस पर चढ़ा हुआ था.
"अब कुछ नही बचा...सब ख़तम हो गया...आआहह"
"क्या कहा तूने, मुझे डिस्टर्ब मत कर आराम से फक्किंग करने दे"
पूजा ने कुछ नही कहा. हां उसकी 2 अहसासो में डूबी सिसकियाँ बरकरार रही.
तीन बार सहना पड़ा उसे विजय की हवस को.
6 बजे फ्री किया विजय ने पूजा को. विजय ने पूजा को अपने घर से थोड़ी दूर एक मार्केट में छोड़ दिया. "अगले हफ्ते मेरे 2 दोस्त आ रहें हैं देल्ही से. मिल कर एंजाय करेंगे तेरे साथ."
पूजा ने कुछ नही कहा और मुरझाया चेहरा ले कर लड़खड़ाते कदमो से चल पड़ी. घर नही जाना चाहती थी वो अब. मर जाना चाहती थी कही जाकर. एक कार ने तो उसे उड़ा ही दिया होता. शूकर है वक्त पर ब्रेक लग गयी. "पागल हो गयी हो तुम. मरना है तो कही और जा कर मरो." कार वाला चिल्लाया. सड़क पार कर रही थी पूजा बिना सोचे समझे. ध्यान ही नही था उसका कार पर. वो तो बस चले जा रही थी. शायद वो कही जा कर मार ही जाती. पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
सौरभ गुजर रहा था वहाँ से. उसने पूजा को ऐसी हालत में गुमशुम भटकते देख लिया.
"पूजा कहाँ जा रही हो. देख कर भी नही चल रही. ठीक तो हो."
"ओह सौरभ...बहुत अच्छे वक्त पे आए तुम, देखो मेरा तमासा तुम भी."
"क्या बोल रही हो. चलो बैठो तुम्हे घर छोड़ देता हूँ."
"नही घर नही जाउंगी आज. तुम जाओ."
सौरभ को पूजा का ऐसा बर्ताव बहुत अजीब लग रहा था.
"बात क्या है पूजा, कुछ बदली बदली सी लग रही हो."
"हे...हे...बदली बदली और मैं. जिंदगी है चलता है सब. मैं घर नही जाउंगी."
"बैठो तो सही...जहा कहोगी वहाँ ले चलूँगा." सौरभ ने कहा.
"ओह हां एक काम करते हैं, तुम्हारे घर चलें." पूजा ने कहा.
"चलो चलने में कोई बुराई नही है...आओ." सौरभ ने कहा.
"लेकिन मैं अपने घर नही जाउंगी पहले ही बता देती हूँ."
"बैठो तो सही...फिर देखते है." सौरभ ने कहा.
"नही जाना है मुझे घर जान लो तुम." पूजा बोलते हुए बैठ गयी सौरभ की बायक पर.
पूजा कुछ नही बोली बाद में. सौरभ ने भी कुछ नही कहा. ले आया सौरभ पूजा को अपने घर.
"कुण्डी लगा दो सौरभ." पूजा ने कहा.
सौरभ तो कुछ भी नही समझ पा रहा था. कुण्डी लगा कर वो पूजा के पास आया जो की बिस्तर के पास खड़ी थी. पूजा ने सौरभ की आँखो में देखा और अपना टॉप उतार दिया.
"ये क्या कर रही हो."
"अपने आशिक़ को तोहफा देना चाहती हूँ." पूजा ने कहा और अपनी ब्रा उतार कर फेंक दी. अब उसके उभार सौरभ की नज़रो के सामने थे.
"तुम ये सब क्यों कर रही हो पूजा."
पूजा कुछ नही बोली और झट से अपनी जीन्स और पॅंटी भी उतार दी. अब वो सौरभ के सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी. सौरभ तो देखता ही रह गया उसके नागन शरीर को. इतनी सुंदर बॉडी आज तक नही देखी थी उसने.
"पूजा मेरी कुछ समझ में नही आ रहा. क्यों कर रही हो तुम ये सब. तुम बहुत अजीब बिहेव कर रही हो."
पूजा सौरभ से लिपट गयी और बोली, "जल्दी से प्यास भुजा लो अपनी. फिर कभी नही मिलूंगी तुम्हे."
सौरभ तो अजीब उलझन में फँस गया था. ना चाहते हुए भी उसका लिंग उत्तेजित हो गया था. पूजा को वो अपनी योनि पर महसूस हुआ. वो बैठ गयी सौरभ के आगे और सौरभ की ज़िप खोल कर उसके लिंग को बाहर निकाल लिया.
"ये सच में बड़ा है सौरभ. रियली इट्स आ नाइस डिक."
सौरभ तो भड़क ही उठा और पूजा को गोदी में उठाया और लेटा दिया बिस्तर पर. इतना उत्तेजित हो रहा था वो कि तुरंत समा जाना चाहता था पूजा के अंदर.
उसने अपने लिंग को पकड़ा और दो उंगलियों से पूजा की योनि की पंखुड़ियों को फैला कर उस पर लिंग टिकाने लगा. मगर तभी उसकी नज़र योनि के आस पास सफेद सी चीज़ पर गयी. उसने गौर से देखा तो उसे समझते देर नही लगी की वो वीर्य की बूंदे थी जो की शूख गयी थी.
सौरभ ने पूजा के चेहरे पे हाथ रखा और बोला, "पूजा बताओगि कि क्या हुआ है तुम्हारे साथ."
"क्या फर्क पड़ता है उस से. तुम्हारे पास टाइम कम है. अपनी प्यास बुझा लो जल्दी से. बाद में मोका नही मिलेगा तुम्हे."
"तुम यकीन करो या ना करो प्यार करता हूँ तुम्हे मैं. प्लीज़ बताओ क्या हुआ तुम्हारे साथ. कौन था वो बताओ मैं उसे जींदा नही छोड़ूँगा."
"हे...हे...हे...प्यार का नाम मत लो. प्यार ने तो मुझे रंडी बना दिया. जिसका मन होता है चढ़ जाता है मुझ पे. किसी का कसूर नही है. सब प्यार का ही दोष है. आओ ना तुम भी चढ़ जाओ भरपूर मज़ा दूँगी तुम्हे."
सुना नही गया सौरभ से ये सब और उसने थप्पड़ जड़ दिया पूजा के गाल पर, "कपड़े पहनो अपने और घर जाओ अपने. मेरा प्यार ऐसा नही है जैसा तुम समझ रही हो."
सौरभ बिस्तर से उतर गया. पूजा फूट -फूट कर रोने लगी. वो उठी और अपने कपड़े पहन लिए.
"मैं तुम्हे घर छोड़ आता हूँ"
"नही चली जाउंगी खुद ही." पूजा सूबक रही थी. सुबक्ते सुबक्ते निकल गयी घर से. सौरभ पीछे पीछे गया उसके ये देखने की वो घर ही जा रही है या कही और.