02-01-2020, 10:33 AM
पूजा अंजान थी इस बात से कि एक नयी मुसीबत उसकी ओर बढ़ रही थी जिसका उसे अंदाज़ा भी नही था.
सब इनस्पेक्टर विजय पोलीस की जीप में उधर से गुजर रहा था. उसने पूजा को पहचान लिया, "अरे ये तो वही एस्कॉर्ट है जो उस दिन उस बंदे के साथ होटेल में थी. 50,000 वाली एस्कॉर्ट. टॉप क्लास रंडी."
विजय ने जीप पूजा के आगे रोक दी. "नाम भूल गया मैं तुम्हारा पर काम नही भुला. कौन से होटेल जा रही हो. रेट अभी भी 50,000 है या बढ़ा दिया. तेरे लिए 50,000 बहुत कम है वैसे. मुझे क्या मुझे तो फ्री में लेनी है तेरी. चल बैठ जा जीप में. बहुत दिन से ड्यू है तुम्हारी ठुकाई मेरे हाथो."
पूजा के चेहरे का तो रंग उड़ गया ये सब सुन कर. उसके पाँव काँपने लगे. उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे. वो भाग जाना चाहती थी वहाँ से पर उसके कदम ही नही हीले.
"सोच क्या रही है बैठ जल्दी. चल अपने घर ले चलता हूँ तुझे. खूब अच्छे से लूँगा तेरी."
"सर वो मेरा पहली और आखरी बार था. मुझे ब्लॅकमेल करके एस्कॉर्ट बन-ने पर मजबूर किया गया था."
"हर रंडी पकड़े जाने पे ऐसी ही कहानी सुनाती है. चुपचाप बैठ जा वरना प्रॉस्टिट्यूशन के केस में जैल में डाल दूँगा"
"सर प्लीज़." पूजा गिड़गिडाई
"अगर एक मिनिट के अंदर नही बैठी तो बाल पकड़ कर घसीट कर ले जाउन्गा" विजय कठोरता से बोला
पूजा बहुत डर गयी. डर स्वाभाविक भी था. वो काँपते कदमो से जीप में बैठ गयी. उसके पास इसके अलावा कोई चारा भी नही था.
विजय पूजा को लेकर चल पड़ा अपने घर की तरफ. "बीवी मायके गयी है मेरी. शाम तक लौटेगी. तब तक तू मेरे साथ मेरे घर पर रहेगी. छुट्टी ले लूँगा मैं ड्यूटी से. खूब चोदुन्गा तुझे सारा दिन."
पूजा कुछ नही बोल पाई बस दो आँसू टपक गये उसकी आँखो से.
विजय पूजा को अपने घर ले आया.
"सारे कपड़े उतार दे जल्दी से. मैं भी तो देखूं जो माल 50,000 में बिकता है वो कैसा दीखता है."
"आप समझते क्यों नही मैं एस्कॉर्ट नही हूँ. उस दिन ज़बरदस्ती भेजा गया था मुझे होटेल में."
विजय पर तो मानो कुछ असर ही नही हुआ. उसने पूजा को बाहों में भर लिया और उसके नितंबो को मसल्ने लगा. "क्या फर्क पड़ता है. धंधा तो तूने किया ना. एक बार या सौ बार. धंधा तो धंधा है."
पूजा कुछ नही बोल पाई. खड़ी रही चुपचाप और पीसती रही विजय की बाहों में. बड़ी बेरहमी से मसल रहा था विजय पूजा के नितंबो को.
"मान-ना पड़ेगा. एक दम मखमली गान्ड है तेरी. 50,000 तो केवल इसी के दे देते होंगे लोग तुझे. क्यों सच कह रहा हूँ ना मैं."
पूजा ने कुछ भी कहना सही नही समझा. वो कुछ कह भी नही सकती थी. बस आँखे बंद किए चुपचाप अपने शरीर से खिलवाड़ होते देखती रही.
विजय ने उसके सारे कपड़े निकाल दिए और पटक दिया उसे बिस्तर पर. वो खुद भी नंगा हो कर पूजा के उपर आ गया. पूजा तो एक जींदा लाश की तरह हो गयी. विजय ने उसकी टांगे अपने कंधे पर रखी और समा गया उसके अंदर.
जब विजय पूजा के अंदर समाया तो उसकी आँखे छलक गयी और उसने मन ही मन सोचा,"प्यार किया था मैने. सच्चा प्यार. क्या ग़लती थी मेरी मेरे भगवान जो प्यार में मुझे इतना बड़ा धोका मिला. प्यार ने मुझे वेश्या बना दिया. नही जी पाउन्गि अब मैं. पहले चौहान और परवीन ने एक साथ मेरी इज़्ज़त की धज़िया उड़ाई. अब ये उड़ा रहा है. प्यार ऐसे दिन दिखाएगा सोचा नही था मैने. बस ये आखरी बार है. ये सब सहने के लिए मैं जींदा नही रहूंगी अब."
विजय तो पागलो की तरह अपने काम में लीन था. तूफान मच्चा रखा था उसने पूजा की योनि के अंदर. मगर पूजा कुछ भी महसूस नही कर रही थी. बहुत व्यथीत थी आज. चौहान और परवीन के साथ तो वो फिर भी संभोग के आनंद में खो गयी थी. जिसका उसे बाद में अफ़सोस भी रहा. मगर आज वो कुछ भी महसूस नही कर रही थी. शायद ये बात उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी कि उसकी जिंदगी कहा से कहा पहुँच गयी. चौहान और परवीन के साथ तो वो अंजाने में ही खो गयी थी, बहक गयी थी...मगर आज ऐसा कुछ नही हो रहा था. आँसू पे आँसू टपक रहे थे उसकी आँखो से.
सब इनस्पेक्टर विजय पोलीस की जीप में उधर से गुजर रहा था. उसने पूजा को पहचान लिया, "अरे ये तो वही एस्कॉर्ट है जो उस दिन उस बंदे के साथ होटेल में थी. 50,000 वाली एस्कॉर्ट. टॉप क्लास रंडी."
विजय ने जीप पूजा के आगे रोक दी. "नाम भूल गया मैं तुम्हारा पर काम नही भुला. कौन से होटेल जा रही हो. रेट अभी भी 50,000 है या बढ़ा दिया. तेरे लिए 50,000 बहुत कम है वैसे. मुझे क्या मुझे तो फ्री में लेनी है तेरी. चल बैठ जा जीप में. बहुत दिन से ड्यू है तुम्हारी ठुकाई मेरे हाथो."
पूजा के चेहरे का तो रंग उड़ गया ये सब सुन कर. उसके पाँव काँपने लगे. उसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे. वो भाग जाना चाहती थी वहाँ से पर उसके कदम ही नही हीले.
"सोच क्या रही है बैठ जल्दी. चल अपने घर ले चलता हूँ तुझे. खूब अच्छे से लूँगा तेरी."
"सर वो मेरा पहली और आखरी बार था. मुझे ब्लॅकमेल करके एस्कॉर्ट बन-ने पर मजबूर किया गया था."
"हर रंडी पकड़े जाने पे ऐसी ही कहानी सुनाती है. चुपचाप बैठ जा वरना प्रॉस्टिट्यूशन के केस में जैल में डाल दूँगा"
"सर प्लीज़." पूजा गिड़गिडाई
"अगर एक मिनिट के अंदर नही बैठी तो बाल पकड़ कर घसीट कर ले जाउन्गा" विजय कठोरता से बोला
पूजा बहुत डर गयी. डर स्वाभाविक भी था. वो काँपते कदमो से जीप में बैठ गयी. उसके पास इसके अलावा कोई चारा भी नही था.
विजय पूजा को लेकर चल पड़ा अपने घर की तरफ. "बीवी मायके गयी है मेरी. शाम तक लौटेगी. तब तक तू मेरे साथ मेरे घर पर रहेगी. छुट्टी ले लूँगा मैं ड्यूटी से. खूब चोदुन्गा तुझे सारा दिन."
पूजा कुछ नही बोल पाई बस दो आँसू टपक गये उसकी आँखो से.
विजय पूजा को अपने घर ले आया.
"सारे कपड़े उतार दे जल्दी से. मैं भी तो देखूं जो माल 50,000 में बिकता है वो कैसा दीखता है."
"आप समझते क्यों नही मैं एस्कॉर्ट नही हूँ. उस दिन ज़बरदस्ती भेजा गया था मुझे होटेल में."
विजय पर तो मानो कुछ असर ही नही हुआ. उसने पूजा को बाहों में भर लिया और उसके नितंबो को मसल्ने लगा. "क्या फर्क पड़ता है. धंधा तो तूने किया ना. एक बार या सौ बार. धंधा तो धंधा है."
पूजा कुछ नही बोल पाई. खड़ी रही चुपचाप और पीसती रही विजय की बाहों में. बड़ी बेरहमी से मसल रहा था विजय पूजा के नितंबो को.
"मान-ना पड़ेगा. एक दम मखमली गान्ड है तेरी. 50,000 तो केवल इसी के दे देते होंगे लोग तुझे. क्यों सच कह रहा हूँ ना मैं."
पूजा ने कुछ भी कहना सही नही समझा. वो कुछ कह भी नही सकती थी. बस आँखे बंद किए चुपचाप अपने शरीर से खिलवाड़ होते देखती रही.
विजय ने उसके सारे कपड़े निकाल दिए और पटक दिया उसे बिस्तर पर. वो खुद भी नंगा हो कर पूजा के उपर आ गया. पूजा तो एक जींदा लाश की तरह हो गयी. विजय ने उसकी टांगे अपने कंधे पर रखी और समा गया उसके अंदर.
जब विजय पूजा के अंदर समाया तो उसकी आँखे छलक गयी और उसने मन ही मन सोचा,"प्यार किया था मैने. सच्चा प्यार. क्या ग़लती थी मेरी मेरे भगवान जो प्यार में मुझे इतना बड़ा धोका मिला. प्यार ने मुझे वेश्या बना दिया. नही जी पाउन्गि अब मैं. पहले चौहान और परवीन ने एक साथ मेरी इज़्ज़त की धज़िया उड़ाई. अब ये उड़ा रहा है. प्यार ऐसे दिन दिखाएगा सोचा नही था मैने. बस ये आखरी बार है. ये सब सहने के लिए मैं जींदा नही रहूंगी अब."
विजय तो पागलो की तरह अपने काम में लीन था. तूफान मच्चा रखा था उसने पूजा की योनि के अंदर. मगर पूजा कुछ भी महसूस नही कर रही थी. बहुत व्यथीत थी आज. चौहान और परवीन के साथ तो वो फिर भी संभोग के आनंद में खो गयी थी. जिसका उसे बाद में अफ़सोस भी रहा. मगर आज वो कुछ भी महसूस नही कर रही थी. शायद ये बात उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी कि उसकी जिंदगी कहा से कहा पहुँच गयी. चौहान और परवीन के साथ तो वो अंजाने में ही खो गयी थी, बहक गयी थी...मगर आज ऐसा कुछ नही हो रहा था. आँसू पे आँसू टपक रहे थे उसकी आँखो से.