01-01-2020, 04:48 PM
निशा अचानक उठती है और खुद को कमरे में अकेला पाती है. वो पाती है कि उसके शरीर पर अब एक भी कपड़ा नही है. उसे याद आता है कि साइको ने उसे कुछ खाने को दिया था. खाते ही वो गहरी नींद सो गयी थी. उसका सर घूम रहा था.वो दीवार घड़ी की और देखती है. घड़ी 2 बजा रही थी.
"ये दिन के 2 बजे हैं या रात के 2" निशा सोचती है. मगर उसके पास जान-ने का कोई चारा नही है. उस कमरे में कोई खिड़की नही है. एक दरवाजा है जो कि बंद है. वो चारो तरफ ध्यान से देखती है. उसे एक टॉयलेट दिखाई देता है. वो उठती है और काँपते हुए टॉयलेट
की तरफ बढ़ती है. टॉयलेट में कोई दरवाजा नही है. वो अंदर झाँक कर देखती है तो पाती है कि टॉयलेट में भी कोई खिड़की नही है.
"ये कैसा कमरा है. कोई खिड़की नही है इसमे. और वो साइको कहाँ है?"
निशा टॉयलेट से दरवाजे की तरफ बढ़ती है. वो दरवाजे पर कान लगा कर देखती है. उसे बस सन्नाटा सुनाई देता है.
"कोई भी आवाज़ नही आ रही कही से...आख़िर मैं कहा हूँ. क्या ये कमरा देहरादून में ही है या कही और. डेडी प्लीज़ कुछ कीजिए मैं मरना नही चाहती." निशा फूट फूट कर रोने लगती है.
तभी निशा को दरवाजे पर कुछ हलचल सुनाई देती है और वो फ़ौरन भाग कर बिस्तर पर आकर लेट जाती है और अपनी आँखे बंद कर लेती है. उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगता है.
दरवाजा खुलता है और धदाम की आवाज़ होती है. निशा उत्सुकता में आँखे खोल कर देखती है. "रामू काका!"
रामू निशा के घर का नौकर था. कोई 45-46 साल की उमर का था. निशा ने रामू को देखते ही अपने उभारो पर हाथ रख लिए. मगर उसकी योनि को छुपाने के लिए कुछ नही बचा था.
"मेमसाहब! आअहह" रामू कराहते हुए बोला. उसके सर से खून निकल रहा था.
साइको ने रामू को कमरे में पटका था. जिस से धदाम की आवाज़ हुई थी
"अब तुम क्या करना चाहते हो?" निशा रोते हुए बोली.
"जब तक अपर्णा को मुझे नही सौंपा जाता क्यों ना एक-आध गेम हो जाए." साइको ने कहा
"अब कौन सी गेम खेलना चाहते हो...प्लीज़ मुझे जाने दो" निशा रोने लगी
"वाओ क्या ख़ौफ़ है तुम्हारी आँखो में. सच में मज़ा आ गया. अब और मज़ा आएगा."
"मुझे यहाँ क्यों लाए हो भाई." रामू ने पूछा.
"डरो मत तुम. बल्कि गर्व करो कि तुम मेरी आर्ट का हिस्सा बन-ने जा रहे हो."
रामू को कुछ समझ नही आया.
"खेल बहुत सिंपल है. ये चाकू देखो" साइको ने हाथ में पकड़े चाकू को हिलाया.
रामू बड़ी हैरानी से सब सुन रहा था. उसके रोंगटे खड़े हो रखे थे.
"तुम्हारे पास तीन ऑप्शन्स है. पहली ऑप्शन ये है कि ये चाकू लो और अपना पेट चीर लो. तुम्हारी मेमसाहब को जाने दूँगा मैं अगर ऐसा करोगे तो."
रामू ने निशा की ओर देखा. उसकी रूह काँप उठी थी ये सब सुन कर.
"दूसरी ऑप्शन है कि तुम ये चाकू लो और निशा का पेट चीर डालो. उसका पेट चीरने के बाद तुम यहाँ से जा सकते हो. तुम्हे कुछ नही करूँगा."
रामू की तो आँखे फटी की फटी रह गयी.
"तीसरा ऑप्शन भी है. तुम अपनी मेमसाहब की चूत में लंड डाल दो. मगर लंड उसकी मर्ज़ी से डालना. रेप की इज़ाज़त नही है तुम्हे. आधा घंटा है तुम्हारे पास इन तीनो में से एक काम करने का. कुछ भी नही किया तो तुम्हे काट डालूँगा. लो पकड़ो ये चाकू." साइको ने चाकू रामू को दे दिया और खुद कुर्सी पर हाथ में पिस्टल ले कर बैठ गया.
"ये दिन के 2 बजे हैं या रात के 2" निशा सोचती है. मगर उसके पास जान-ने का कोई चारा नही है. उस कमरे में कोई खिड़की नही है. एक दरवाजा है जो कि बंद है. वो चारो तरफ ध्यान से देखती है. उसे एक टॉयलेट दिखाई देता है. वो उठती है और काँपते हुए टॉयलेट
की तरफ बढ़ती है. टॉयलेट में कोई दरवाजा नही है. वो अंदर झाँक कर देखती है तो पाती है कि टॉयलेट में भी कोई खिड़की नही है.
"ये कैसा कमरा है. कोई खिड़की नही है इसमे. और वो साइको कहाँ है?"
निशा टॉयलेट से दरवाजे की तरफ बढ़ती है. वो दरवाजे पर कान लगा कर देखती है. उसे बस सन्नाटा सुनाई देता है.
"कोई भी आवाज़ नही आ रही कही से...आख़िर मैं कहा हूँ. क्या ये कमरा देहरादून में ही है या कही और. डेडी प्लीज़ कुछ कीजिए मैं मरना नही चाहती." निशा फूट फूट कर रोने लगती है.
तभी निशा को दरवाजे पर कुछ हलचल सुनाई देती है और वो फ़ौरन भाग कर बिस्तर पर आकर लेट जाती है और अपनी आँखे बंद कर लेती है. उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगता है.
दरवाजा खुलता है और धदाम की आवाज़ होती है. निशा उत्सुकता में आँखे खोल कर देखती है. "रामू काका!"
रामू निशा के घर का नौकर था. कोई 45-46 साल की उमर का था. निशा ने रामू को देखते ही अपने उभारो पर हाथ रख लिए. मगर उसकी योनि को छुपाने के लिए कुछ नही बचा था.
"मेमसाहब! आअहह" रामू कराहते हुए बोला. उसके सर से खून निकल रहा था.
साइको ने रामू को कमरे में पटका था. जिस से धदाम की आवाज़ हुई थी
"अब तुम क्या करना चाहते हो?" निशा रोते हुए बोली.
"जब तक अपर्णा को मुझे नही सौंपा जाता क्यों ना एक-आध गेम हो जाए." साइको ने कहा
"अब कौन सी गेम खेलना चाहते हो...प्लीज़ मुझे जाने दो" निशा रोने लगी
"वाओ क्या ख़ौफ़ है तुम्हारी आँखो में. सच में मज़ा आ गया. अब और मज़ा आएगा."
"मुझे यहाँ क्यों लाए हो भाई." रामू ने पूछा.
"डरो मत तुम. बल्कि गर्व करो कि तुम मेरी आर्ट का हिस्सा बन-ने जा रहे हो."
रामू को कुछ समझ नही आया.
"खेल बहुत सिंपल है. ये चाकू देखो" साइको ने हाथ में पकड़े चाकू को हिलाया.
रामू बड़ी हैरानी से सब सुन रहा था. उसके रोंगटे खड़े हो रखे थे.
"तुम्हारे पास तीन ऑप्शन्स है. पहली ऑप्शन ये है कि ये चाकू लो और अपना पेट चीर लो. तुम्हारी मेमसाहब को जाने दूँगा मैं अगर ऐसा करोगे तो."
रामू ने निशा की ओर देखा. उसकी रूह काँप उठी थी ये सब सुन कर.
"दूसरी ऑप्शन है कि तुम ये चाकू लो और निशा का पेट चीर डालो. उसका पेट चीरने के बाद तुम यहाँ से जा सकते हो. तुम्हे कुछ नही करूँगा."
रामू की तो आँखे फटी की फटी रह गयी.
"तीसरा ऑप्शन भी है. तुम अपनी मेमसाहब की चूत में लंड डाल दो. मगर लंड उसकी मर्ज़ी से डालना. रेप की इज़ाज़त नही है तुम्हे. आधा घंटा है तुम्हारे पास इन तीनो में से एक काम करने का. कुछ भी नही किया तो तुम्हे काट डालूँगा. लो पकड़ो ये चाकू." साइको ने चाकू रामू को दे दिया और खुद कुर्सी पर हाथ में पिस्टल ले कर बैठ गया.