01-01-2020, 04:45 PM
...............................................
शाम हो चुकी है और अपर्णा ऑफीस से निकल रही है. आशुतोष एज़ यूसवल ख़ुशी से झूम उठता है. फ़ौरन आ जाता है वो अपर्णा के पास.
"हो गयी छुट्टी आपकी." आशुतोष ने पूछा.
"आशुतोष तुम अपनी ड्यूटी पर ध्यान रखो. मुझसे फालतू की बाते मत किया करो"
"आप मुझसे खफा-खफा क्यूँ रहती है. प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही" आख़िर जज़्बात में बह कर आशुतोष के मूह से निकल ही गयी दिल की बात. वो खुद पछताया बोल कर क्योंकि अपर्णा की आँखे ये सुनते ही गुस्से से लाल हो गयी. थप्पड़ जड़ दिया उसने आशुतोष के गाल पर.
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की...दफ़ा हो जाओ यहाँ से. नही चाहिए मुझे कोई प्रोटेक्शन."
"सॉरी अपर्णा जी ग़लती हो गयी. मूह से निकल गया यू ही. कहना नही चाहता था आपसे कुछ भी. पर पता नही क्यों ये सब बोल दिया मैने." आशुतोष गिड़गिडया.
"तुम्हारा मूत अपने आप निकल जाता है. मूह से भी कुछ भी निकल जाता है. तुम आख़िर हो क्या."
बेचारा आशुतोष करे भी तो क्या करे. कुछ भी नही बोल पाया अपर्णा को. बस सर झुकाए खड़ा रहा. अपर्णा को ज़रा भी अहसास नही हुआ कि वो सच में उसे प्यार करता है. वो तो अपने सपने के कारण आशुतोष से चिड़ी हुई थी और कुछ भी करके उस बद्सूरत सपने को टालना चाहती थी. इसी बोखलाहट में थप्पड़ जड़ दिया था उसने आशुतोष के मूह पर.
"चुप क्यों खड़े हो बोलते क्यों नही कुछ" अपर्णा ने कहा.
"क्या कहु आपसे. गुनहगार हू आपका. चलिए आप लेट हो रही हैं...सॉरी मैं आगे से ऐसा नही बोलूँगा."
"तुम्हारे बस में कुछ है भी. तुम्हारा तो सब कुछ अपने आप निकल जाता है." अपर्णा ने कहा और अपनी कार में बैठ गयी.
आशुतोष भी अपनी जीप में बैठ कर उसके पीछे चल दिया. घर पहुँच कर अपर्णा सीधा घर में घुस गयी. वो आशुतोष से कोई बात नही करना चाहती थी.
...........................................................
शाम हो चुकी है और अपर्णा ऑफीस से निकल रही है. आशुतोष एज़ यूसवल ख़ुशी से झूम उठता है. फ़ौरन आ जाता है वो अपर्णा के पास.
"हो गयी छुट्टी आपकी." आशुतोष ने पूछा.
"आशुतोष तुम अपनी ड्यूटी पर ध्यान रखो. मुझसे फालतू की बाते मत किया करो"
"आप मुझसे खफा-खफा क्यूँ रहती है. प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही" आख़िर जज़्बात में बह कर आशुतोष के मूह से निकल ही गयी दिल की बात. वो खुद पछताया बोल कर क्योंकि अपर्णा की आँखे ये सुनते ही गुस्से से लाल हो गयी. थप्पड़ जड़ दिया उसने आशुतोष के गाल पर.
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की...दफ़ा हो जाओ यहाँ से. नही चाहिए मुझे कोई प्रोटेक्शन."
"सॉरी अपर्णा जी ग़लती हो गयी. मूह से निकल गया यू ही. कहना नही चाहता था आपसे कुछ भी. पर पता नही क्यों ये सब बोल दिया मैने." आशुतोष गिड़गिडया.
"तुम्हारा मूत अपने आप निकल जाता है. मूह से भी कुछ भी निकल जाता है. तुम आख़िर हो क्या."
बेचारा आशुतोष करे भी तो क्या करे. कुछ भी नही बोल पाया अपर्णा को. बस सर झुकाए खड़ा रहा. अपर्णा को ज़रा भी अहसास नही हुआ कि वो सच में उसे प्यार करता है. वो तो अपने सपने के कारण आशुतोष से चिड़ी हुई थी और कुछ भी करके उस बद्सूरत सपने को टालना चाहती थी. इसी बोखलाहट में थप्पड़ जड़ दिया था उसने आशुतोष के मूह पर.
"चुप क्यों खड़े हो बोलते क्यों नही कुछ" अपर्णा ने कहा.
"क्या कहु आपसे. गुनहगार हू आपका. चलिए आप लेट हो रही हैं...सॉरी मैं आगे से ऐसा नही बोलूँगा."
"तुम्हारे बस में कुछ है भी. तुम्हारा तो सब कुछ अपने आप निकल जाता है." अपर्णा ने कहा और अपनी कार में बैठ गयी.
आशुतोष भी अपनी जीप में बैठ कर उसके पीछे चल दिया. घर पहुँच कर अपर्णा सीधा घर में घुस गयी. वो आशुतोष से कोई बात नही करना चाहती थी.
...........................................................