01-01-2020, 03:58 PM
update 78 (2)
अब तक आपने पढ़ा....
हम दोनों चूँकि कई दिनों से बात नहीं कर रहे थे और जब से मैं घर पहुँचा था तब से तो रितिका डरी-डरी सी रहती थी| अब इस पर सवाल उठना तो तय था.....
अब आगे....
"क्यों भाई मानु क्या बात है? जब से हम लोग आये हैं देख रहे हैं की रितिका और तुम बात भी नहीं करते? कहाँ तो पहले तुम उसका इतना ख्याल रखते थे, घर-परिवार की मर्जी के खिलाफ जा कर उसे पढ़ा रहे थे! और तो और उसकी शादी में भी तुम विदेश चले गए? क्या नाराजगी है, हमें भी बताओ?" मौसा जी बोले|
"मौसा जी जिस उल्लू को पढ़ाने के लिए इतने पापड़ बोले वो कमबख्त पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर इश्क़-मोहब्बत करती फ़िरे, ऐसे एहसान फरामोश इंसान से क्या बात करना? यहाँ तक की मैं तो शहर में रहता था, मुझे तक इस बात की खबर नहीं की ये इश्क़ लड़ा रही हैं! जिस इंसान को मैं हमेशा डाँट से बचाता था वही इंसान जब मुझे सबसे डाँट पड़ रही थी खामोश था, यही नहीं इसने मुझे शादी के लिए रुकने तक को नहीं बोला तो मैं क्यों रुकता? मुझे इतना अच्छा मौका मिला अमेरिका जाने का, काम सीखने का, एक बिज़नेस से जुड़ने का अपना हमसफ़र चुनने का तो ऐसा मौका मैं कैसे छोड़ देता!" मेरा जवाब सुन कर मौसा जी बस मुस्कुरा दिए और बोले; "ठीक है बेटा पर अब तो सब सही हो गया ना? अब तो माफ़ कर दे इसे?!"
"नहीं मौसा जी! इतने कम पाप नहीं किये इसने की इसे माफ़ी दे दी जाए! फिर मेरे अकेले के ना बात करने से इसे क्या फर्क पड़ेगा? आप सब तो हो ना इससे बात करने को?!"
"चलो भाई, जैसी तुम्हारी मर्जी! पर ये बताओ सारा समय ये कम्प्यूटर ले कर बैठे रहते हो, शादी तुम्हारी है थोड़ा काम-वाम देखा करो!" मौसा जी शिकायत करते हुए बोले पर इसका जवाब ताऊ जी ने ही दे दिया;
"तुम्हें पता भी है ये क्या काम करता है? अमेरिका की कंपनी का काम है ये! वहाँ हमारे देश की तरह लोग छुट्टियाँ नहीं मारते, कमाई डॉलरों में होती है! $1 मतलब 70 -75 रुपये! इस काम के इसे 1 लाख डॉलर मिल रहे हैं!!!!" ताऊ जी के मुँह से इतनी बड़ी रकम सुन कर सब के कान खड़े हो गए थे और पूरे घर में मेरी तारीफें शुरू हो गई थीं! इधर मुझे रितिका की क्लास लेनी थी पर वो किसी न किसी सदस्य के साथ चिपकी हुई थी, पर आखिर वो कब तक मुझसे भागती! रात को मैं सोने जल्दी चला गया, नेहा मेरे साथ ही चिपकी सो रही थी| मेरा कमरा सब समान से भरा था और वहाँ जाने की किसी को भी इज़ाजत नहीं दी गई थी| ताऊ जी का कहना था की जब तक नई बहु नहीं आ जाती तब तक उस सामान को कोई नहीं छुएगा! रात को ग्यारह बजे नेहा ने सुसु किया और उसके डायपर के साथ उसके कपडे भी खराब हो गए| मेरी बेटी ने मुझे उसकी माँ की क्लास लेने का मौका दे दिया था| मैंने पहले तो नेहा का माथा चूमा और किलकारियां मारते हुए अपने हाथ पाँव चलाने लगी| मानो उसे भी मजा आ रहा हो की आज उसकी माँ की क्लास लगने वाली है! फिर मैंने उसके सारे कपडे निकाले और उसे कंबल ओढ़ा दिया, कमरे में हीटर चालु किया ताकि कमरा गर्म बना रहे| मैं अपने कमरे से बाहर निकला और जा कर रितिका के कमरे का दरवाजा खटखटाया| वो घोड़े बेच कर सोइ थी, इसलिए दस मिनट तक खटखटाने के बाद उसने दरवाजा खोला| जैसे ही उसने मुझे देखा उसकी फ़ट गई और आँखें अपने आप झुक गईं| एक तो बाहर ठंड में 10 मिनट से खड़ा होना पड़ा और ऊपर से अनु की हालत देख कर जो गुस्सा आया था उससे मेरा जिस्म जलने लगा| मैंने रितिका का गला पकड़ लिया और उसे ढकेलते हुए अंदर आया और उसे उसी के बिस्तर पर गिरा दिया| रितिका छटपटा रही थी ताकि मैं उसका गाला छोड़ दूँ; "कल अगर अनु को कुछ हो जाता ना तो आज मैं तुझे जिन्दा जला देता! आज आखरी बार तुझे बताने आया हूँ, अगर तूने कोई भी लगाईं-बुझाई की ना तो अपनी खेर मना लियो फिर! मुझे मिनट नहीं लगेगा तेरी जान लेने में!" मेरी पकड़ रितिका के गले पर तेज थी और अगर दो मिनट और उसका गला नहीं छोड़ता तो वो पक्का मर जाती| मैंने जैसे ही उसका गाला छोड़ा वो साँस लेने की कोशिश करते हुए छटपटाने लगी! मैंने नेहा के कपडे लिए और वापस अपने कमरे में आ गया| नेहा अब भी जाग रही थी और कंबल के अंदर अपने हाथ-पैर मार रही थी| कुछ देर पहले जो मुझे गुस्सा आ रहा था वो रितिका को देख कर गायब हो गया था| नेहा को अच्छे से कपडे पहना कर मैं उसे अपनी छाती से चिपका कर सो गया|
अगली सुबह मोहिनी आ गई और चूँकि सब उसे सब जानते थे तो सब ने उसका बड़ा अच्छा स्वागत किया और बाकी रिश्तेदारों से मिलवाया| रितिका तो जैसे उसे देख कर वहीँ जम गई, उसकी साँस ही अटक गई! वो जानबूझ कर आगे नहीं आई और काम करने की आड़ में छिपी रही| आखिर मोहिनी को ही उसका नाम ले कर उसे बाहर बुलाना पड़ा, रितिका उसके सामने सर झुकाये खड़ी हो गई| मोहिनी ने आगे बढ़ कर उसे गले लगाया ताकि किसी को कुछ शक ना हो और उसके कान में खुसफुसाई; "तेरी जैसी गिरी हुई लड़की मैंने आज तक नहीं देखि! अगर तुझे यही खेल खेलना था तो बता देती, कम से कम मैं शादी तो ना करती और आज मैं और मानु जी एक होते! सच में तुझे मेरी भी हाय लगेगी!" इतना कहते हुए, अपने चेहरे पर जूठी मुस्कान लिए मोहिनी ऋतू से अलग हुई| "तो ताऊ जी, दूल्हे मियाँ कहाँ है?" मोहिनी ने चहकते हुए पुछा| मैं उस वक़्त छत पर नेहा को गोद में लिए कॉल पर बात कर रहा था| ताऊ जी ने जब उसे छत पर मेरे होने का इशारा किया तो मोहिनी कूदती हुई ऊपर आ गई| दरअसल मोहिनी घर के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ थी क्योंकि वो मेरी गैरहाजरी में रितिका की शादी में आई थी| मैंने कॉल disconnect किया और जैसे ही पलटा की मोहिनी मुस्कुराती हुई मुझे दिखी| फिर उसकी नजर नेहा पर गई और वो सोचने लगी शायद किसी रिश्तेदार की बेटी है इसलिए वो सीधा मेरे पास आई; "दूल्हे मियाँ! कितना काम करोगे?" मोहिनी ने हँसते हुए पुछा|
"यार वो थोड़ा काम ज्यादा है, अनु भी बहुत बिजी है!" मैंने कहा|
"चलो मैं आ गई हूँ तो मैं यहाँ काम संभाल लूँगी!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोले|
"मेरी बेटी से तो मिलो?" मैंने मोहिनी का परिचय नेहा से कराते हुए कहा पर ये सुन कर वो सन्न रह गई और आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!
"ये.....तुम्हारी बेटी......सच में?" मोहिनी हैरानी से बोल भी नहीं पा रही थी|
"हाँ जी!.... मेरी बेटी!" मैंने आत्मविश्वास से कहा| मेरा आत्मविश्वास देख उसकी हैरानी गायब हुई और मैंने उसे सब सच बता दिया| मोहिनी ने नेहा को मेरे हाथ से लेना चाहा पर नेहा ने मेरी कमीज पकड़ रखी थी| "बेटा ये मोहिनी आंटी हैं, पापा की बेस्ट फ्रेंड!" मैंने तुतलाते हुए नेहा से कहा तो वो मुस्कुराने लगी और मोहिनी की गोद में चली गई| "पापा की सारी बातें मानती है? Good girl!! वैसे इसकी नाक बिलकुल तुम्हारी जैसी है!" मोहिनी ने नेहा की नाक पकड़ते हुए कहा| मोहिनी के मन के विचार मैं पड़ग पा रहा था, उसके दिल में अब मेरे लिए प्यार था| वो बस इस प्यार को दबाये हुए थी और किसी के भी सामने उसे नहीं आने देती थी| पर आज नेहा को गोद में लेने के बाद उसके मन में एक टीस उठी! टीस मुझे ना पाने की, टीस मेरे साथ एक छोटा संसार न बसा पाने की और टीस एक बच्चे के ना होने की! मोहिनी की आँखें छलछला गईं और वो नेहा को पाने गले से चिपकाते हुए रो पड़ी| मैंने मोहिनी को गले लगा लिया और उसे के सर पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराया| मैं समझ सकता था की उसे रितिका की करनी का कितना दुख है और अभी तो वो उसके काण्ड से अपरिचित थी वर्ण वो उसकी खाट खड़ी कर देती! "Hey...Hey....Hey calm down! शायद हमारा मिलना नहीं लिखा था!" मैंने कहा और मोहिनी के आँसूँ पोछे| "लिखा तो था पर ..... रितिका नाम के ग्रहण ने मिलने नहीं दिया!" मोहिनी ने खुद को गाली देने से रोकते हुए कहा| अब मैंने बात बदलने के लिए उससे उसके और उसके पति के बारे में पुछा और ये भी की वो कब खुशखबरी दे रही है| उसने बताया की उसके पति को गल्फ में जॉब मिल गई इसलिए वो शादी के बाद वहाँ चला गया| महीने-दो महीने में उसका भी पासपोर्ट आ जायेगा और फिर वो भी चली जायेगी! मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई और हम छत पर खड़े बातें कर रहे थे की तभी वहाँ भाभी आ गई; "लगता है अनु को बोलना पड़ेगा की उसका दूल्हा यहाँ कुछ ज्यादा ही 'फ्री' हो गया है!" भाभी ने मजाक करते हुए कहा| "भाभी मैं अपनी होने वाली बीवी से कुछ नहीं छुपाता| वो तो मोहिनी से मिली भी है|" फिर मैंने भाभी को उस दिन का सारा किस्सा सुना दिया| "देखा भाभी मुझे तो शुरू से ही शक था!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोली| "तो मुझे क्यों नहीं बताया?" भाभी ने कहा और फिर हम सारे हँसने लगे|
अब चूँकि मोहिनी आ गई थी तो घर में मुझे एक दोस्त मिल गया था| जब कभी मैं काम में बिजी होता तो नेहा उसी के पास होती| मोहिनी अपनी बातों से सभी का मन लगाए हुए थी और बाकी दिन कैसे निकले पता ही नहीं चला| जो भी रस्में शादी वाले दिन से पहले निभाई जानी थीं वो सभी प्रेमपूर्वक निभाईं गईं और मोहिनी ने बहुत सारी फोटो क्लिक करीं| हमारे गाँव में शादी के एक दिन पहले पूजा होती है और उसमें दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है| जब ये समरोह शुरू हुआ तो मुझे एक सफ़ेद पजामा-कुरता पहना कर पहले पूजा में बिठाया गया और उसके बाद हल्दी लगना शुरू हुई| मैंने कुरता उतार दिया और आलथी-पालथी मार कर आंगन में बैठ गया| सबसे पहले माँ, ताई जी और भाभी ने मुझे हल्दी लगाई| भाभी को तो मेरी मस्ती लेने का मौका मिल गया और उन्होंने मेरा गाला और छाती हल्दी से लबेड दिया! उसके बाद सभी औरतों ने मेरे हल्दी लगाईं| इस समारोह की एक-एक फोटो और वीडियो मोहिनी ने ही शूट की! फोटोग्राफर वाला भाई भी कहने लगा दीदी मुझसे अच्छी फोटो तो आप खींच रही हो और उसकी इस बात पर सब ने मोहिनी की बड़ी तारीफ की|
शादी वाले दिन सुबह-सुबह ताऊ जी किसी को फ़ोन पर बहुत डाँट रहे थे, जब मैंने पुछा तो उन्होंने बात टाल दी| कुछ ही घंटों बाद घर के आगे एक चम-चमकती हुई रॉयल ब्लू फोर्ड इकोस्पोर्ट खड़ी हो गई| (दरअसल वो डिलीवरी लेट होने के लिए मैनेजर को डाँट रहे थे!)
ताऊ जी ने मुझे आवाज मार के नीचे बुलाया और गाडी देख मेरी आँखें चौंधियाँ गई! "ताऊ जी????..... ये आपने???? ....... पर क्यों???" मैंने पुछा|
"तो हमारी बहु क्या फटफटी के पीछे बैठ कर आती?" ताऊ जी ने सीना ठोक कर कहा और चाभी मुझे दी; "ये ले बेटा! तेरा शादी का तौहफा .... बड़ी मुश्किल हुई इसे ढूंढने में! बजार में इतनी गाड़ियाँ हैं की समझ ही नहीं आया की कौन सी खरीदूँ? फिर हमने मोहिनी बिटिया से पुछा तो उसने बताया की ये वाली मानु को पसंद है!" मैंने पलट के मोहिनी की तरफ देखा तो वो नेहा को गोद में लिए बहुत हँस रही थी! मैंने ताऊ जी और पिताजी के पाँव छुए और उन्होंने मुझे गले लगा लिया| घर में आया हर एक इंसान खुश था सिवाय एक के!
खेर शाम चार बजे तक सब तैयार हो गए थे और घर के बाहर एक के पीछे एक 3 बसें भी खड़ी थीं ताकि बाराती venue तक पहुँच सकें| मेरे दोस्त यानी अरुण-सिद्धार्थ डायरेक्ट हमें वहीँ मिलने वाले थे| ताऊ जी ने सब को जल्दी बैठने को कहा, अभी मैं पूरा तैयार नहीं हुआ था इसलिए जैसे ही मैंने ताऊ जी की आवाज सुनी तो मैं बनियान पहने ही नीचे आया| "ताऊ जी आप सब को भेज दीजिये बस, आप, मैं, पिताजी, माँ और ताई जी गाडी से जायेंगे| आज पहली ride मैं आप सब के साथ चाहता हूँ!" ताऊ जी को मेरी बात जच गई इसलिए उन्होंने सब को भेज दिया बस हम लोग ही रह गए| जब मैं तैयार हो कर नीचे आया तो जो लोग बच गए थे वो सब मुझे देखने लगे और उनकी आँखें नम हो गईं|
माँ ने फ़ौरन मुझे काजल का टीका लगाया| फिर एक-एक कर सब ने मुझे गले लगाया और आखिकार हम निकले! बसें पहले पहुँचीं और फिर हुई हमारी Grand Entry! गाडी ठीक Wedding Hall के सामने रुकी और हमें गाडी से उतरता देख मम्मी-डैडी समेत उनके सारे रिश्तेदार हैरान हो गए| सब की नजर बस मेरे ऊपर ही टिकी थी क्योंकि मैं शेरवानी में लग ही इतना हैंडसम रहा था की क्या कहें! मेरे दोनों दोस्त अरुण-सिद्धार्थ मेरे साथ खड़े हो गए थे और उन्हीं के साथ मोहिनी भी अपनी लेहंगा चोली में बड़े रुबाब के साथ खड़ी हो गई| "हमारा दूल्हा आ गया अपनी दुल्हन को लेने!" सिद्धार्थ जोर से बोला और सभी ने शोर मचाना शुरू कर दिया| पीछे-पीछे बैंड-बाजा शुरू हो चूका था, इधर मम्मी-डैडी जी हाथ में आरती की थाली लिए खड़े हुए थे| मेरी आरती उतारी गई और फिर सबकी मिलनी हुई| यहाँ मैं बेसब्र हो रहा था क्योंकि मुझे अनु को देखना था पर सारे मिलनी में ही लगे हुए थे| बड़ी देर बाद एंट्री हुई! (वैसे बस 15 मिनट ही लगे थे पर मुझे तो ये समय घंटों का लग रहा था!)
मुझे तो podium पर बिठा दिया गया और एक-एक कर अनु के सभी रिश्तेदारों से मिलवाया गया पर मेरी नजर तो अनु को ढूँढ रही थी| वैसे ज्यादा लोगों की gathering नहीं हुई थी करीब 100 एक आदमी आये होंगे, जिसमें ज्यादातर मेरे परिवार से ही थे! गाना बज रहा था: 'तेरे इश्क़ में जोगी होना!' और इधर मैं जोगी बने-बने ऊब गया था! कुछ देर बाद आखिर मुझे विवाह वेदी पर बैठने को कहा गया जहाँ पंडित जी मंत्र जाप कर रहे थे! मैं बार-बार गर्दन इधर-उधर घुमा कर अनु के आने का रास्ता देख रहा था| अब दोस्तों को मजे लेने थे सो वो आ गए और मेरे पीछे बैठ गए; "भाई थोड़ा सब्र रख, भाभी बस आने वाली है!" अरुण बोला| "यार ये औरतों का तैयार होना कसम से बहुत बड़ा ड्रामा है! यहाँ इंतजार कर-कर के हालत बुइ है और इन्हें कोई होश ही नहीं!" मैंने कहा| सही मायने में उस दिन मुझे एहसास हो रहा था की औरतें कितना टाइम लगाती हैं तैयार होने में! पर जब अनु की एंट्री हुई तो मैं पलकें झपकना भूल गया, मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, आँखें जितनी फ़ट कर बाहर आ सकती थी उतनी फ़ट चुकी थीं!
मैं उठ कर खड़ा हुआ और इधर अनु शर्माते हुए नजरें झुकाये आई और उसके साथ उसकी वो बेस्ट फ्रेंड भी आई| पर मेरी नजरें तो अनु पर गड़ी थीं, उसकी नजरें झुकी हुई थीं| उसने अभी तक मुझे नहीं देखा था| "क्यों भाई अब तो चैन मिल गया तुझे?" सिद्धार्थ बोला| "यार जितना भी टाइम लिया पर जो खूबसूरती दिख रही है उसके आगे ये इंतजार भी सोखा लग रहा है!" मैंने कहा जिसे सुन कर अरुण-सिद्धार्थ दोनों हँसने लगे| "जानेमन! जरा नजर उठा कर हमें भी देख लो, हम भी आपकी नजरों से घायल होना चाहते हैं|" मैंने अनु से खुसफुसाते हुए कहा| तब जा कर अनु ने अपनी नजरें उठाई और मुझे देखा, ये सब इतने स्लो मोशन में हुआ की लगा मानो ये पल यहीं रुक गया हो| "हाय! कहीं मेरी ही नजर आपको ना लग जाए!" अनु ने खुसफुसाते हुए जवाब दिया|
मैंने सिद्धार्थ से माइक माँगा और उसने मुझे माइक ला कर दिया;
"क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये|"
मैंने अनु की इबादत में जब ये शेर पढ़ा तो ये सुन सारे लोग तालियाँ बजाने लगे| ये शोर सुन अनु को बहुत गर्व हुआ और उसने मुझसे माइक माँगा और जवाब में एक शेर पढ़ा;
"जर्रूरत नहीं है मुझे घर में आइनों की अब,
उनकी निगाहों में हम अपना अक्स देख लेते हैं...."
अनु का शेर सुन तो पूरे हॉल में शोर गूँज गया| हमारे माता-पिता हम पर बहुत गर्व कर रहे थे| तभी मोहिनी मेरे पीछे खड़े होते हुए बोली; "एक शायर को उसकी कविता मिल गई!" ये सुन कर अनु की नजर मोहिनी पर पड़ी और उसके चेहरे की ख़ुशी बता रही थी की वो हम दोनों के लिए कितनी खुश है|
खेर विधि-विधान से शादी की सारी रस्में हुईं और इस पूरे दौरान हम दोनों बहुत खुश दिख रहे थे| उसके बाद खाना-पीना हुआ, फोटो खिचवाने का काम हुआ और ये सब निपटाते-निपटाते रात के 3 बज गए| घर आते-आते सुबह हो गई थी, बड़े रस्मों-रिवाज के साथ अनु का गृह प्रवेश हुआ| भाभी ने मेरा कमरा सजा दिया था और अनु को अंदर बिठा दिया गया था| मुझे अब भी नीचे रोक कर रखा हुआ था, कुछ देर बाद जब भाभी नीचे आईं तो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे कमरे तक ले गईं और बाहर चौखट पर खड़े हो कर बोलीं; "मेरी देवरानी का ख्याल रखना!" भाभी ने बड़े naughty अंदाज में ये कहा| पहले कुछ सेकंड तो मैं इसे समझने की कोशिश करने लगा और जब समझ आया तब तक भाभी का खिल-खिलाकर हँसना शुरू हो चूका था| "मेरे बुद्धू देवर! जाओ जल्दी अंदर तुम्हारी पत्नी इंतजार कर रही है!" इतना कहते हुए उन्होंने मुझे अंदर धकेला और दरवाजा बाहर से बंद कर दिया| इधर मैंने भी सेफ्टी के लिए अंदर से कुण्डी लगा दी की कहीं वो दुबारा अंदर ना आ जाएँ! हा...हा...हा...हा!!!
अब तक आपने पढ़ा....
हम दोनों चूँकि कई दिनों से बात नहीं कर रहे थे और जब से मैं घर पहुँचा था तब से तो रितिका डरी-डरी सी रहती थी| अब इस पर सवाल उठना तो तय था.....
अब आगे....
"क्यों भाई मानु क्या बात है? जब से हम लोग आये हैं देख रहे हैं की रितिका और तुम बात भी नहीं करते? कहाँ तो पहले तुम उसका इतना ख्याल रखते थे, घर-परिवार की मर्जी के खिलाफ जा कर उसे पढ़ा रहे थे! और तो और उसकी शादी में भी तुम विदेश चले गए? क्या नाराजगी है, हमें भी बताओ?" मौसा जी बोले|
"मौसा जी जिस उल्लू को पढ़ाने के लिए इतने पापड़ बोले वो कमबख्त पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर इश्क़-मोहब्बत करती फ़िरे, ऐसे एहसान फरामोश इंसान से क्या बात करना? यहाँ तक की मैं तो शहर में रहता था, मुझे तक इस बात की खबर नहीं की ये इश्क़ लड़ा रही हैं! जिस इंसान को मैं हमेशा डाँट से बचाता था वही इंसान जब मुझे सबसे डाँट पड़ रही थी खामोश था, यही नहीं इसने मुझे शादी के लिए रुकने तक को नहीं बोला तो मैं क्यों रुकता? मुझे इतना अच्छा मौका मिला अमेरिका जाने का, काम सीखने का, एक बिज़नेस से जुड़ने का अपना हमसफ़र चुनने का तो ऐसा मौका मैं कैसे छोड़ देता!" मेरा जवाब सुन कर मौसा जी बस मुस्कुरा दिए और बोले; "ठीक है बेटा पर अब तो सब सही हो गया ना? अब तो माफ़ कर दे इसे?!"
"नहीं मौसा जी! इतने कम पाप नहीं किये इसने की इसे माफ़ी दे दी जाए! फिर मेरे अकेले के ना बात करने से इसे क्या फर्क पड़ेगा? आप सब तो हो ना इससे बात करने को?!"
"चलो भाई, जैसी तुम्हारी मर्जी! पर ये बताओ सारा समय ये कम्प्यूटर ले कर बैठे रहते हो, शादी तुम्हारी है थोड़ा काम-वाम देखा करो!" मौसा जी शिकायत करते हुए बोले पर इसका जवाब ताऊ जी ने ही दे दिया;
"तुम्हें पता भी है ये क्या काम करता है? अमेरिका की कंपनी का काम है ये! वहाँ हमारे देश की तरह लोग छुट्टियाँ नहीं मारते, कमाई डॉलरों में होती है! $1 मतलब 70 -75 रुपये! इस काम के इसे 1 लाख डॉलर मिल रहे हैं!!!!" ताऊ जी के मुँह से इतनी बड़ी रकम सुन कर सब के कान खड़े हो गए थे और पूरे घर में मेरी तारीफें शुरू हो गई थीं! इधर मुझे रितिका की क्लास लेनी थी पर वो किसी न किसी सदस्य के साथ चिपकी हुई थी, पर आखिर वो कब तक मुझसे भागती! रात को मैं सोने जल्दी चला गया, नेहा मेरे साथ ही चिपकी सो रही थी| मेरा कमरा सब समान से भरा था और वहाँ जाने की किसी को भी इज़ाजत नहीं दी गई थी| ताऊ जी का कहना था की जब तक नई बहु नहीं आ जाती तब तक उस सामान को कोई नहीं छुएगा! रात को ग्यारह बजे नेहा ने सुसु किया और उसके डायपर के साथ उसके कपडे भी खराब हो गए| मेरी बेटी ने मुझे उसकी माँ की क्लास लेने का मौका दे दिया था| मैंने पहले तो नेहा का माथा चूमा और किलकारियां मारते हुए अपने हाथ पाँव चलाने लगी| मानो उसे भी मजा आ रहा हो की आज उसकी माँ की क्लास लगने वाली है! फिर मैंने उसके सारे कपडे निकाले और उसे कंबल ओढ़ा दिया, कमरे में हीटर चालु किया ताकि कमरा गर्म बना रहे| मैं अपने कमरे से बाहर निकला और जा कर रितिका के कमरे का दरवाजा खटखटाया| वो घोड़े बेच कर सोइ थी, इसलिए दस मिनट तक खटखटाने के बाद उसने दरवाजा खोला| जैसे ही उसने मुझे देखा उसकी फ़ट गई और आँखें अपने आप झुक गईं| एक तो बाहर ठंड में 10 मिनट से खड़ा होना पड़ा और ऊपर से अनु की हालत देख कर जो गुस्सा आया था उससे मेरा जिस्म जलने लगा| मैंने रितिका का गला पकड़ लिया और उसे ढकेलते हुए अंदर आया और उसे उसी के बिस्तर पर गिरा दिया| रितिका छटपटा रही थी ताकि मैं उसका गाला छोड़ दूँ; "कल अगर अनु को कुछ हो जाता ना तो आज मैं तुझे जिन्दा जला देता! आज आखरी बार तुझे बताने आया हूँ, अगर तूने कोई भी लगाईं-बुझाई की ना तो अपनी खेर मना लियो फिर! मुझे मिनट नहीं लगेगा तेरी जान लेने में!" मेरी पकड़ रितिका के गले पर तेज थी और अगर दो मिनट और उसका गला नहीं छोड़ता तो वो पक्का मर जाती| मैंने जैसे ही उसका गाला छोड़ा वो साँस लेने की कोशिश करते हुए छटपटाने लगी! मैंने नेहा के कपडे लिए और वापस अपने कमरे में आ गया| नेहा अब भी जाग रही थी और कंबल के अंदर अपने हाथ-पैर मार रही थी| कुछ देर पहले जो मुझे गुस्सा आ रहा था वो रितिका को देख कर गायब हो गया था| नेहा को अच्छे से कपडे पहना कर मैं उसे अपनी छाती से चिपका कर सो गया|
अगली सुबह मोहिनी आ गई और चूँकि सब उसे सब जानते थे तो सब ने उसका बड़ा अच्छा स्वागत किया और बाकी रिश्तेदारों से मिलवाया| रितिका तो जैसे उसे देख कर वहीँ जम गई, उसकी साँस ही अटक गई! वो जानबूझ कर आगे नहीं आई और काम करने की आड़ में छिपी रही| आखिर मोहिनी को ही उसका नाम ले कर उसे बाहर बुलाना पड़ा, रितिका उसके सामने सर झुकाये खड़ी हो गई| मोहिनी ने आगे बढ़ कर उसे गले लगाया ताकि किसी को कुछ शक ना हो और उसके कान में खुसफुसाई; "तेरी जैसी गिरी हुई लड़की मैंने आज तक नहीं देखि! अगर तुझे यही खेल खेलना था तो बता देती, कम से कम मैं शादी तो ना करती और आज मैं और मानु जी एक होते! सच में तुझे मेरी भी हाय लगेगी!" इतना कहते हुए, अपने चेहरे पर जूठी मुस्कान लिए मोहिनी ऋतू से अलग हुई| "तो ताऊ जी, दूल्हे मियाँ कहाँ है?" मोहिनी ने चहकते हुए पुछा| मैं उस वक़्त छत पर नेहा को गोद में लिए कॉल पर बात कर रहा था| ताऊ जी ने जब उसे छत पर मेरे होने का इशारा किया तो मोहिनी कूदती हुई ऊपर आ गई| दरअसल मोहिनी घर के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ थी क्योंकि वो मेरी गैरहाजरी में रितिका की शादी में आई थी| मैंने कॉल disconnect किया और जैसे ही पलटा की मोहिनी मुस्कुराती हुई मुझे दिखी| फिर उसकी नजर नेहा पर गई और वो सोचने लगी शायद किसी रिश्तेदार की बेटी है इसलिए वो सीधा मेरे पास आई; "दूल्हे मियाँ! कितना काम करोगे?" मोहिनी ने हँसते हुए पुछा|
"यार वो थोड़ा काम ज्यादा है, अनु भी बहुत बिजी है!" मैंने कहा|
"चलो मैं आ गई हूँ तो मैं यहाँ काम संभाल लूँगी!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोले|
"मेरी बेटी से तो मिलो?" मैंने मोहिनी का परिचय नेहा से कराते हुए कहा पर ये सुन कर वो सन्न रह गई और आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!
"ये.....तुम्हारी बेटी......सच में?" मोहिनी हैरानी से बोल भी नहीं पा रही थी|
"हाँ जी!.... मेरी बेटी!" मैंने आत्मविश्वास से कहा| मेरा आत्मविश्वास देख उसकी हैरानी गायब हुई और मैंने उसे सब सच बता दिया| मोहिनी ने नेहा को मेरे हाथ से लेना चाहा पर नेहा ने मेरी कमीज पकड़ रखी थी| "बेटा ये मोहिनी आंटी हैं, पापा की बेस्ट फ्रेंड!" मैंने तुतलाते हुए नेहा से कहा तो वो मुस्कुराने लगी और मोहिनी की गोद में चली गई| "पापा की सारी बातें मानती है? Good girl!! वैसे इसकी नाक बिलकुल तुम्हारी जैसी है!" मोहिनी ने नेहा की नाक पकड़ते हुए कहा| मोहिनी के मन के विचार मैं पड़ग पा रहा था, उसके दिल में अब मेरे लिए प्यार था| वो बस इस प्यार को दबाये हुए थी और किसी के भी सामने उसे नहीं आने देती थी| पर आज नेहा को गोद में लेने के बाद उसके मन में एक टीस उठी! टीस मुझे ना पाने की, टीस मेरे साथ एक छोटा संसार न बसा पाने की और टीस एक बच्चे के ना होने की! मोहिनी की आँखें छलछला गईं और वो नेहा को पाने गले से चिपकाते हुए रो पड़ी| मैंने मोहिनी को गले लगा लिया और उसे के सर पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराया| मैं समझ सकता था की उसे रितिका की करनी का कितना दुख है और अभी तो वो उसके काण्ड से अपरिचित थी वर्ण वो उसकी खाट खड़ी कर देती! "Hey...Hey....Hey calm down! शायद हमारा मिलना नहीं लिखा था!" मैंने कहा और मोहिनी के आँसूँ पोछे| "लिखा तो था पर ..... रितिका नाम के ग्रहण ने मिलने नहीं दिया!" मोहिनी ने खुद को गाली देने से रोकते हुए कहा| अब मैंने बात बदलने के लिए उससे उसके और उसके पति के बारे में पुछा और ये भी की वो कब खुशखबरी दे रही है| उसने बताया की उसके पति को गल्फ में जॉब मिल गई इसलिए वो शादी के बाद वहाँ चला गया| महीने-दो महीने में उसका भी पासपोर्ट आ जायेगा और फिर वो भी चली जायेगी! मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई और हम छत पर खड़े बातें कर रहे थे की तभी वहाँ भाभी आ गई; "लगता है अनु को बोलना पड़ेगा की उसका दूल्हा यहाँ कुछ ज्यादा ही 'फ्री' हो गया है!" भाभी ने मजाक करते हुए कहा| "भाभी मैं अपनी होने वाली बीवी से कुछ नहीं छुपाता| वो तो मोहिनी से मिली भी है|" फिर मैंने भाभी को उस दिन का सारा किस्सा सुना दिया| "देखा भाभी मुझे तो शुरू से ही शक था!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोली| "तो मुझे क्यों नहीं बताया?" भाभी ने कहा और फिर हम सारे हँसने लगे|
अब चूँकि मोहिनी आ गई थी तो घर में मुझे एक दोस्त मिल गया था| जब कभी मैं काम में बिजी होता तो नेहा उसी के पास होती| मोहिनी अपनी बातों से सभी का मन लगाए हुए थी और बाकी दिन कैसे निकले पता ही नहीं चला| जो भी रस्में शादी वाले दिन से पहले निभाई जानी थीं वो सभी प्रेमपूर्वक निभाईं गईं और मोहिनी ने बहुत सारी फोटो क्लिक करीं| हमारे गाँव में शादी के एक दिन पहले पूजा होती है और उसमें दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है| जब ये समरोह शुरू हुआ तो मुझे एक सफ़ेद पजामा-कुरता पहना कर पहले पूजा में बिठाया गया और उसके बाद हल्दी लगना शुरू हुई| मैंने कुरता उतार दिया और आलथी-पालथी मार कर आंगन में बैठ गया| सबसे पहले माँ, ताई जी और भाभी ने मुझे हल्दी लगाई| भाभी को तो मेरी मस्ती लेने का मौका मिल गया और उन्होंने मेरा गाला और छाती हल्दी से लबेड दिया! उसके बाद सभी औरतों ने मेरे हल्दी लगाईं| इस समारोह की एक-एक फोटो और वीडियो मोहिनी ने ही शूट की! फोटोग्राफर वाला भाई भी कहने लगा दीदी मुझसे अच्छी फोटो तो आप खींच रही हो और उसकी इस बात पर सब ने मोहिनी की बड़ी तारीफ की|
शादी वाले दिन सुबह-सुबह ताऊ जी किसी को फ़ोन पर बहुत डाँट रहे थे, जब मैंने पुछा तो उन्होंने बात टाल दी| कुछ ही घंटों बाद घर के आगे एक चम-चमकती हुई रॉयल ब्लू फोर्ड इकोस्पोर्ट खड़ी हो गई| (दरअसल वो डिलीवरी लेट होने के लिए मैनेजर को डाँट रहे थे!)
ताऊ जी ने मुझे आवाज मार के नीचे बुलाया और गाडी देख मेरी आँखें चौंधियाँ गई! "ताऊ जी????..... ये आपने???? ....... पर क्यों???" मैंने पुछा|
"तो हमारी बहु क्या फटफटी के पीछे बैठ कर आती?" ताऊ जी ने सीना ठोक कर कहा और चाभी मुझे दी; "ये ले बेटा! तेरा शादी का तौहफा .... बड़ी मुश्किल हुई इसे ढूंढने में! बजार में इतनी गाड़ियाँ हैं की समझ ही नहीं आया की कौन सी खरीदूँ? फिर हमने मोहिनी बिटिया से पुछा तो उसने बताया की ये वाली मानु को पसंद है!" मैंने पलट के मोहिनी की तरफ देखा तो वो नेहा को गोद में लिए बहुत हँस रही थी! मैंने ताऊ जी और पिताजी के पाँव छुए और उन्होंने मुझे गले लगा लिया| घर में आया हर एक इंसान खुश था सिवाय एक के!
खेर शाम चार बजे तक सब तैयार हो गए थे और घर के बाहर एक के पीछे एक 3 बसें भी खड़ी थीं ताकि बाराती venue तक पहुँच सकें| मेरे दोस्त यानी अरुण-सिद्धार्थ डायरेक्ट हमें वहीँ मिलने वाले थे| ताऊ जी ने सब को जल्दी बैठने को कहा, अभी मैं पूरा तैयार नहीं हुआ था इसलिए जैसे ही मैंने ताऊ जी की आवाज सुनी तो मैं बनियान पहने ही नीचे आया| "ताऊ जी आप सब को भेज दीजिये बस, आप, मैं, पिताजी, माँ और ताई जी गाडी से जायेंगे| आज पहली ride मैं आप सब के साथ चाहता हूँ!" ताऊ जी को मेरी बात जच गई इसलिए उन्होंने सब को भेज दिया बस हम लोग ही रह गए| जब मैं तैयार हो कर नीचे आया तो जो लोग बच गए थे वो सब मुझे देखने लगे और उनकी आँखें नम हो गईं|
माँ ने फ़ौरन मुझे काजल का टीका लगाया| फिर एक-एक कर सब ने मुझे गले लगाया और आखिकार हम निकले! बसें पहले पहुँचीं और फिर हुई हमारी Grand Entry! गाडी ठीक Wedding Hall के सामने रुकी और हमें गाडी से उतरता देख मम्मी-डैडी समेत उनके सारे रिश्तेदार हैरान हो गए| सब की नजर बस मेरे ऊपर ही टिकी थी क्योंकि मैं शेरवानी में लग ही इतना हैंडसम रहा था की क्या कहें! मेरे दोनों दोस्त अरुण-सिद्धार्थ मेरे साथ खड़े हो गए थे और उन्हीं के साथ मोहिनी भी अपनी लेहंगा चोली में बड़े रुबाब के साथ खड़ी हो गई| "हमारा दूल्हा आ गया अपनी दुल्हन को लेने!" सिद्धार्थ जोर से बोला और सभी ने शोर मचाना शुरू कर दिया| पीछे-पीछे बैंड-बाजा शुरू हो चूका था, इधर मम्मी-डैडी जी हाथ में आरती की थाली लिए खड़े हुए थे| मेरी आरती उतारी गई और फिर सबकी मिलनी हुई| यहाँ मैं बेसब्र हो रहा था क्योंकि मुझे अनु को देखना था पर सारे मिलनी में ही लगे हुए थे| बड़ी देर बाद एंट्री हुई! (वैसे बस 15 मिनट ही लगे थे पर मुझे तो ये समय घंटों का लग रहा था!)
मुझे तो podium पर बिठा दिया गया और एक-एक कर अनु के सभी रिश्तेदारों से मिलवाया गया पर मेरी नजर तो अनु को ढूँढ रही थी| वैसे ज्यादा लोगों की gathering नहीं हुई थी करीब 100 एक आदमी आये होंगे, जिसमें ज्यादातर मेरे परिवार से ही थे! गाना बज रहा था: 'तेरे इश्क़ में जोगी होना!' और इधर मैं जोगी बने-बने ऊब गया था! कुछ देर बाद आखिर मुझे विवाह वेदी पर बैठने को कहा गया जहाँ पंडित जी मंत्र जाप कर रहे थे! मैं बार-बार गर्दन इधर-उधर घुमा कर अनु के आने का रास्ता देख रहा था| अब दोस्तों को मजे लेने थे सो वो आ गए और मेरे पीछे बैठ गए; "भाई थोड़ा सब्र रख, भाभी बस आने वाली है!" अरुण बोला| "यार ये औरतों का तैयार होना कसम से बहुत बड़ा ड्रामा है! यहाँ इंतजार कर-कर के हालत बुइ है और इन्हें कोई होश ही नहीं!" मैंने कहा| सही मायने में उस दिन मुझे एहसास हो रहा था की औरतें कितना टाइम लगाती हैं तैयार होने में! पर जब अनु की एंट्री हुई तो मैं पलकें झपकना भूल गया, मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, आँखें जितनी फ़ट कर बाहर आ सकती थी उतनी फ़ट चुकी थीं!
मैं उठ कर खड़ा हुआ और इधर अनु शर्माते हुए नजरें झुकाये आई और उसके साथ उसकी वो बेस्ट फ्रेंड भी आई| पर मेरी नजरें तो अनु पर गड़ी थीं, उसकी नजरें झुकी हुई थीं| उसने अभी तक मुझे नहीं देखा था| "क्यों भाई अब तो चैन मिल गया तुझे?" सिद्धार्थ बोला| "यार जितना भी टाइम लिया पर जो खूबसूरती दिख रही है उसके आगे ये इंतजार भी सोखा लग रहा है!" मैंने कहा जिसे सुन कर अरुण-सिद्धार्थ दोनों हँसने लगे| "जानेमन! जरा नजर उठा कर हमें भी देख लो, हम भी आपकी नजरों से घायल होना चाहते हैं|" मैंने अनु से खुसफुसाते हुए कहा| तब जा कर अनु ने अपनी नजरें उठाई और मुझे देखा, ये सब इतने स्लो मोशन में हुआ की लगा मानो ये पल यहीं रुक गया हो| "हाय! कहीं मेरी ही नजर आपको ना लग जाए!" अनु ने खुसफुसाते हुए जवाब दिया|
मैंने सिद्धार्थ से माइक माँगा और उसने मुझे माइक ला कर दिया;
"क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये|"
मैंने अनु की इबादत में जब ये शेर पढ़ा तो ये सुन सारे लोग तालियाँ बजाने लगे| ये शोर सुन अनु को बहुत गर्व हुआ और उसने मुझसे माइक माँगा और जवाब में एक शेर पढ़ा;
"जर्रूरत नहीं है मुझे घर में आइनों की अब,
उनकी निगाहों में हम अपना अक्स देख लेते हैं...."
अनु का शेर सुन तो पूरे हॉल में शोर गूँज गया| हमारे माता-पिता हम पर बहुत गर्व कर रहे थे| तभी मोहिनी मेरे पीछे खड़े होते हुए बोली; "एक शायर को उसकी कविता मिल गई!" ये सुन कर अनु की नजर मोहिनी पर पड़ी और उसके चेहरे की ख़ुशी बता रही थी की वो हम दोनों के लिए कितनी खुश है|
खेर विधि-विधान से शादी की सारी रस्में हुईं और इस पूरे दौरान हम दोनों बहुत खुश दिख रहे थे| उसके बाद खाना-पीना हुआ, फोटो खिचवाने का काम हुआ और ये सब निपटाते-निपटाते रात के 3 बज गए| घर आते-आते सुबह हो गई थी, बड़े रस्मों-रिवाज के साथ अनु का गृह प्रवेश हुआ| भाभी ने मेरा कमरा सजा दिया था और अनु को अंदर बिठा दिया गया था| मुझे अब भी नीचे रोक कर रखा हुआ था, कुछ देर बाद जब भाभी नीचे आईं तो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे कमरे तक ले गईं और बाहर चौखट पर खड़े हो कर बोलीं; "मेरी देवरानी का ख्याल रखना!" भाभी ने बड़े naughty अंदाज में ये कहा| पहले कुछ सेकंड तो मैं इसे समझने की कोशिश करने लगा और जब समझ आया तब तक भाभी का खिल-खिलाकर हँसना शुरू हो चूका था| "मेरे बुद्धू देवर! जाओ जल्दी अंदर तुम्हारी पत्नी इंतजार कर रही है!" इतना कहते हुए उन्होंने मुझे अंदर धकेला और दरवाजा बाहर से बंद कर दिया| इधर मैंने भी सेफ्टी के लिए अंदर से कुण्डी लगा दी की कहीं वो दुबारा अंदर ना आ जाएँ! हा...हा...हा...हा!!!