01-01-2020, 01:23 PM
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लंच ब्रेक में अपर्णा अपनी एक कलीग के साथ थोड़ा बाहर टहलने आई तो आशुतोष की तो आँखे खिल गयी. पहुच गया टहलता टहलता उसके पास.
"अपर्णा जी ज़्यादा दूर मत जाना. यही आस पास ही रहना." आशुतोष ने कहा.
अपर्णा ने कोई जवाब नही दिया पर उसकी कलीग बोली, "तो ये हैं तुम्हारी सुरक्षा के लिए तुम्हारे साथ."
"हां यही है. वैसे इन्होने मूत दिया था एक बार मेरे सामने...डर के मारे. पता नही कैसी सुरक्षा करेंगे."
अपर्णा के साथ जो थी वो तो लोटपोट हो गयी
आशुतोष का चेहरा उतर गया वो समझ ही नही पाया कि क्या करे फिर भी वो बोला, "थोड़ी प्रॉब्लम है मुझे. वो अचानक डर गया था मैं उस दिन. बचपन में भी हुआ था एक दो बार ऐसा. इलाज़ भी करवाया मैने. सब ठीक हो गया था. पर उस दिन फिर से ऐसा हो गया."
"अपर्णा तुम भी कितनी खराब हो. इनकी मेडिकल प्रॉब्लम है और तुम मज़ाक बना रही हो इनका."
आशुतोष की बाते सुन कर अपर्णा भी सकपका गयी थी. उसे अहसास हुआ कि उसने क्यों अपनी कलीग के सामने ऐसा बोल दिया. उसने अपनी कलीग से कहा, "तुम जाओ मैं अभी आती हूँ."
"क्या बात है. लेट मत हो जाना वरना बॉस से डाँट पड़ेगी."
"हां मैं बस आ ही रही हूँ." अपर्णा ने कहा.
वो चली गयी तो अपर्णा बोली, सॉरी आशुतोष पता नही क्यों मैने ऐसा बोल दिया. ई आम रियली सॉरी. मैने सुना तो था इस बारे में की ऐसा होता है. पर आज यकीन हुआ कि डर के कारण ऐसा हो सकता है."
"कोई बात नही अपर्णा जी. बहुत सालो बाद हुआ था ऐसा. कोई बात नही मेरे कारण किसी के चेहरे पे हँसी आ गयी. बहुत बड़ी बात है ये. आप जाओ..... लेट हो जाओगे."
"आगे से मैं मन में सोच कर भी नही हँसूगी. आय ऍम रियली सॉरी."
"आप हँसिए ना दिक्कत क्या है. मेरे कारण आपके चेहरे पे मुस्कान आ जाए तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी."
"बस-बस अब फ्लर्ट शुरू मत करो. चलती हूँ मैं." अपर्णा कह कर ऑफीस की तरफ मूड गयी.
दोनो को ही ज़रा भी खबर नही थी कि दूर से दो खूंखार आँखे लगातार उन्हे देख रही हैं.
"देखता हूँ कब तक बचोगी तुम. तुम्हारे लिए तो ऐसा आर्टिस्टिक प्लान है मेरा कि तुम्हे फख्र होगा कि तुम मेरे हाथो मारी गयी...हे....हे...हे" साइको हँसने लगा.
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लंच ब्रेक में अपर्णा अपनी एक कलीग के साथ थोड़ा बाहर टहलने आई तो आशुतोष की तो आँखे खिल गयी. पहुच गया टहलता टहलता उसके पास.
"अपर्णा जी ज़्यादा दूर मत जाना. यही आस पास ही रहना." आशुतोष ने कहा.
अपर्णा ने कोई जवाब नही दिया पर उसकी कलीग बोली, "तो ये हैं तुम्हारी सुरक्षा के लिए तुम्हारे साथ."
"हां यही है. वैसे इन्होने मूत दिया था एक बार मेरे सामने...डर के मारे. पता नही कैसी सुरक्षा करेंगे."
अपर्णा के साथ जो थी वो तो लोटपोट हो गयी
आशुतोष का चेहरा उतर गया वो समझ ही नही पाया कि क्या करे फिर भी वो बोला, "थोड़ी प्रॉब्लम है मुझे. वो अचानक डर गया था मैं उस दिन. बचपन में भी हुआ था एक दो बार ऐसा. इलाज़ भी करवाया मैने. सब ठीक हो गया था. पर उस दिन फिर से ऐसा हो गया."
"अपर्णा तुम भी कितनी खराब हो. इनकी मेडिकल प्रॉब्लम है और तुम मज़ाक बना रही हो इनका."
आशुतोष की बाते सुन कर अपर्णा भी सकपका गयी थी. उसे अहसास हुआ कि उसने क्यों अपनी कलीग के सामने ऐसा बोल दिया. उसने अपनी कलीग से कहा, "तुम जाओ मैं अभी आती हूँ."
"क्या बात है. लेट मत हो जाना वरना बॉस से डाँट पड़ेगी."
"हां मैं बस आ ही रही हूँ." अपर्णा ने कहा.
वो चली गयी तो अपर्णा बोली, सॉरी आशुतोष पता नही क्यों मैने ऐसा बोल दिया. ई आम रियली सॉरी. मैने सुना तो था इस बारे में की ऐसा होता है. पर आज यकीन हुआ कि डर के कारण ऐसा हो सकता है."
"कोई बात नही अपर्णा जी. बहुत सालो बाद हुआ था ऐसा. कोई बात नही मेरे कारण किसी के चेहरे पे हँसी आ गयी. बहुत बड़ी बात है ये. आप जाओ..... लेट हो जाओगे."
"आगे से मैं मन में सोच कर भी नही हँसूगी. आय ऍम रियली सॉरी."
"आप हँसिए ना दिक्कत क्या है. मेरे कारण आपके चेहरे पे मुस्कान आ जाए तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी."
"बस-बस अब फ्लर्ट शुरू मत करो. चलती हूँ मैं." अपर्णा कह कर ऑफीस की तरफ मूड गयी.
दोनो को ही ज़रा भी खबर नही थी कि दूर से दो खूंखार आँखे लगातार उन्हे देख रही हैं.
"देखता हूँ कब तक बचोगी तुम. तुम्हारे लिए तो ऐसा आर्टिस्टिक प्लान है मेरा कि तुम्हे फख्र होगा कि तुम मेरे हाथो मारी गयी...हे....हे...हे" साइको हँसने लगा.
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