01-01-2020, 01:10 PM
अंकिता बहुत परेशान हालत में थी. उसे बार-बार फोन आ रहे थे उपर से. उसकी तो जान पर बन आई थी. बहुत ज़्यादा पोलिटिकल प्रेशर था अंकिता पर. सीनियर ऑफीसर भी खूब डाँट रहे थे. उस पर यही दबाव बनाया जा रहा था कि अपर्णा को चुपचाप उसे सौंप दिया जाए और ऍम.पि. की बेटी को बचा लिया जाए. वविप की बेटी की जिंदगी ज़्यादा कीमती थी एक आम सहरी के मुक़ाबले.
अंकिता ने आशुतोष को फोन लगाया.
"जी मेडम बोलिए."
"कैसा चल रहा है वहाँ आशुतोष."
"सब ठीक है मेडम. मैं ऑफीस के बाहर बैठा हूँ. मेरी नज़र है ऑफीस पर."
"ऑफीस पर नज़र रख कर क्या करोगे बेवकूफ़. अपर्णा के पास रहो. उस पर नज़र होनी चाहिए तुम्हारी. बात बहुत सीरीयस होती जा रही है."
"क्या बात है मेडम आप इतनी परेशान क्यों लग रही है."
"परेशानी की बात ही है." अंकिता आशुतोष को सारी बात बताती है.
"ओह गॉड. इस साइको की तो हिम्मत बढ़ती ही जा रही है."
"जब पोलीस कुछ कर ही नही पाती उसका तो यही होगा. तुम बहुत सतर्क रहो."
"मेडम क्या हम अपर्णा जी को उस बेरहम साइको को सौंप देंगे."
अंकिता कुछ नही बोली. उसके पास कोई जवाब ही नही था.
"अगर ऐसा हुआ मेडम तो मैं तो ये नौकरी छोड़ दूँगा अभी. नही चाहिए ऐसी नौकरी मुझे." आशुतोष भावुक हो गया.
"पागलो जैसी बाते मत करो. ये वक्त है ऐसी बाते करने का. अभी कुछ डिसाइड नही किया मैने. और एक बात सुन लो. इस्तीफ़ा दे दूँगी मैं भी अगर उस साइको के आगे झुकना पड़ा तो. तुम सतर्क रहो वहाँ. ये साइको बहुत ख़तरनाक खेल, खेल रहा है"
"मैं सतर्क हूँ मेडम आप चिंता ना करो."
जैसे ही आशुतोष ने फोन रखा उसे ऑफीस के गेट से अपर्णा आती दिखाई दी. आशुतोष की आँखे ही चिपक गयी उस पर. एक तक देखे जा रहा था उसको. देखते देखते उसकी आँखे छलक गयी, "मैं आपको कुछ नही होने दूँगा अपर्णा जी. कुछ नही होने दूँगा."
अपर्णा अपनी कार से कुछ लेने आई थी. कुछ ज़रूरी काग़ज़ पड़े थे कार में. वो काग़ज़ ले कर जब वापिस ऑफीस की तरफ मूडी तो उसने आशुतोष को अपनी तरफ घूरते देखा. बस फिर क्या था शोले उतर आए आँखो में. तुरंत आई आग बाबूला हो कर आशुतोष के पास. आशुतोष की तो हालत पतली हो गयी उसे अपनी ओर आते देख.
"समझते क्या हो तुम खुद को. क्यों घूर रहे थे मुझे. तुम्हे यहाँ मेरी सुरक्षा के लिया रखा गया है. मुझे घूरने के लिए नही. तुम्हारी शिकायत कर दूँगी मैं तुम्हारी मेडम से."
आशुतोष कुछ बोल ही नही पाया. वो वैसे भी भावुक हो रहा था उस वक्त अपर्णा के लिए. अपर्णा की फटकार ऐसी लग रही थी जैसे की कोई फूल बरसा रहा हो उस पर. बस देखता रहा वो अपर्णा को.
"बहुत बेशरम हो तुम तो. अभी भी देखे जा रहे हो मुझे." अपर्णा ने गुस्से में कहा.
आशुतोष को होश आया, "ओह सॉरी अपर्णा जी. आप मुझे ग़लत समझ रही हैं."
"ग़लत नही मैं तुम्हे बिल्कुल सही समझ रही हूँ. इस तरह टकटकी लगा कर मुझे घूरने का मतलब क्या है."
"ए एस पी साहिबा ने कहा था कि आप पर नज़र रखूं. सॉरी आपको बुरा लगा तो."
"आगे से ऐसा किया तो खैर नही तुम्हारी." अपर्णा ने कहा और चली गयी.
"वो डाँट रहे थे हमको हम समझ नही पाए - हमें लगा वो हमको प्यार दे रहे हैं." खुद-ब-खुद आशुतोष के होंठो पर ये बोल आ गये.
आशुतोष अपर्णा को जाते हुए देख रहा था. उसकी हिरनी जैसी चाल आशुतोष के दिल पर सितम ढा रही थी.
"काश कह पाता आपको अपने दिल की बात. पर जो बात मुमकिन नही उसे कहने से भी क्या फायदा. भगवान आपको सही सलामत रखे अपर्णा जी. मेरी उमर भी लग जाए आपको. आप सब से यूनीक हो, अलग हो. आपकी बराबरी कोई नही कर सकता. गॉड ब्लेस्स यू."
4 दिन का वक्त दिया था साइको ने अपर्णा को सौंपने के लिए. पोलीस महकमे में अफ़रा तफ़री मची हुई थी. बहुत कोशिश की गयी साइको को ट्रेस करने की लेकिन कुछ हाँसिल नही हुआ. अंकिता सबसे ज़्यादा प्रेशर में थी. प्रेशर की बात ही थी. उसे हायर अथॉरिटीज़ से तरह तरह की बाते सुन-नी पड़ रही थी.
आशुतोष अपर्णा को लेकर बहुत चिंतित था. सारा दिन वो पूरी सतर्कता से ऑफीस के बाहर बैठा रहा. शाम के वक्त वो अपर्णा के साथ उसके घर आ गया. 24 घंटे साथ जो रहना था उसे अपर्णा के.
"अपर्णा जी आप किसी बात की चिंता मत करना. मैं हूँ ना यहाँ हर वक्त."
"तुम हो तभी तो चिंता है..." अपर्णा धीरे से बड़बड़ाई.
"कुछ कहा आपने?"
"कुछ नही...." अपर्णा कह कर घर में घुस गयी. आशुतोष अपनी जीप में बाहर बैठ गया. चारो कॉन्स्टेबल्स को उसने सतर्क रहने के लिए बोल दिया.
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अंकिता ने आशुतोष को फोन लगाया.
"जी मेडम बोलिए."
"कैसा चल रहा है वहाँ आशुतोष."
"सब ठीक है मेडम. मैं ऑफीस के बाहर बैठा हूँ. मेरी नज़र है ऑफीस पर."
"ऑफीस पर नज़र रख कर क्या करोगे बेवकूफ़. अपर्णा के पास रहो. उस पर नज़र होनी चाहिए तुम्हारी. बात बहुत सीरीयस होती जा रही है."
"क्या बात है मेडम आप इतनी परेशान क्यों लग रही है."
"परेशानी की बात ही है." अंकिता आशुतोष को सारी बात बताती है.
"ओह गॉड. इस साइको की तो हिम्मत बढ़ती ही जा रही है."
"जब पोलीस कुछ कर ही नही पाती उसका तो यही होगा. तुम बहुत सतर्क रहो."
"मेडम क्या हम अपर्णा जी को उस बेरहम साइको को सौंप देंगे."
अंकिता कुछ नही बोली. उसके पास कोई जवाब ही नही था.
"अगर ऐसा हुआ मेडम तो मैं तो ये नौकरी छोड़ दूँगा अभी. नही चाहिए ऐसी नौकरी मुझे." आशुतोष भावुक हो गया.
"पागलो जैसी बाते मत करो. ये वक्त है ऐसी बाते करने का. अभी कुछ डिसाइड नही किया मैने. और एक बात सुन लो. इस्तीफ़ा दे दूँगी मैं भी अगर उस साइको के आगे झुकना पड़ा तो. तुम सतर्क रहो वहाँ. ये साइको बहुत ख़तरनाक खेल, खेल रहा है"
"मैं सतर्क हूँ मेडम आप चिंता ना करो."
जैसे ही आशुतोष ने फोन रखा उसे ऑफीस के गेट से अपर्णा आती दिखाई दी. आशुतोष की आँखे ही चिपक गयी उस पर. एक तक देखे जा रहा था उसको. देखते देखते उसकी आँखे छलक गयी, "मैं आपको कुछ नही होने दूँगा अपर्णा जी. कुछ नही होने दूँगा."
अपर्णा अपनी कार से कुछ लेने आई थी. कुछ ज़रूरी काग़ज़ पड़े थे कार में. वो काग़ज़ ले कर जब वापिस ऑफीस की तरफ मूडी तो उसने आशुतोष को अपनी तरफ घूरते देखा. बस फिर क्या था शोले उतर आए आँखो में. तुरंत आई आग बाबूला हो कर आशुतोष के पास. आशुतोष की तो हालत पतली हो गयी उसे अपनी ओर आते देख.
"समझते क्या हो तुम खुद को. क्यों घूर रहे थे मुझे. तुम्हे यहाँ मेरी सुरक्षा के लिया रखा गया है. मुझे घूरने के लिए नही. तुम्हारी शिकायत कर दूँगी मैं तुम्हारी मेडम से."
आशुतोष कुछ बोल ही नही पाया. वो वैसे भी भावुक हो रहा था उस वक्त अपर्णा के लिए. अपर्णा की फटकार ऐसी लग रही थी जैसे की कोई फूल बरसा रहा हो उस पर. बस देखता रहा वो अपर्णा को.
"बहुत बेशरम हो तुम तो. अभी भी देखे जा रहे हो मुझे." अपर्णा ने गुस्से में कहा.
आशुतोष को होश आया, "ओह सॉरी अपर्णा जी. आप मुझे ग़लत समझ रही हैं."
"ग़लत नही मैं तुम्हे बिल्कुल सही समझ रही हूँ. इस तरह टकटकी लगा कर मुझे घूरने का मतलब क्या है."
"ए एस पी साहिबा ने कहा था कि आप पर नज़र रखूं. सॉरी आपको बुरा लगा तो."
"आगे से ऐसा किया तो खैर नही तुम्हारी." अपर्णा ने कहा और चली गयी.
"वो डाँट रहे थे हमको हम समझ नही पाए - हमें लगा वो हमको प्यार दे रहे हैं." खुद-ब-खुद आशुतोष के होंठो पर ये बोल आ गये.
आशुतोष अपर्णा को जाते हुए देख रहा था. उसकी हिरनी जैसी चाल आशुतोष के दिल पर सितम ढा रही थी.
"काश कह पाता आपको अपने दिल की बात. पर जो बात मुमकिन नही उसे कहने से भी क्या फायदा. भगवान आपको सही सलामत रखे अपर्णा जी. मेरी उमर भी लग जाए आपको. आप सब से यूनीक हो, अलग हो. आपकी बराबरी कोई नही कर सकता. गॉड ब्लेस्स यू."
4 दिन का वक्त दिया था साइको ने अपर्णा को सौंपने के लिए. पोलीस महकमे में अफ़रा तफ़री मची हुई थी. बहुत कोशिश की गयी साइको को ट्रेस करने की लेकिन कुछ हाँसिल नही हुआ. अंकिता सबसे ज़्यादा प्रेशर में थी. प्रेशर की बात ही थी. उसे हायर अथॉरिटीज़ से तरह तरह की बाते सुन-नी पड़ रही थी.
आशुतोष अपर्णा को लेकर बहुत चिंतित था. सारा दिन वो पूरी सतर्कता से ऑफीस के बाहर बैठा रहा. शाम के वक्त वो अपर्णा के साथ उसके घर आ गया. 24 घंटे साथ जो रहना था उसे अपर्णा के.
"अपर्णा जी आप किसी बात की चिंता मत करना. मैं हूँ ना यहाँ हर वक्त."
"तुम हो तभी तो चिंता है..." अपर्णा धीरे से बड़बड़ाई.
"कुछ कहा आपने?"
"कुछ नही...." अपर्णा कह कर घर में घुस गयी. आशुतोष अपनी जीप में बाहर बैठ गया. चारो कॉन्स्टेबल्स को उसने सतर्क रहने के लिए बोल दिया.
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