01-01-2020, 01:02 PM
"बहुत बहुत शुक्रिया तुम्हारा श्रद्धा. वो तो पीछे ही पड़ गयी थी मेरे."
"तुम ना हटाते मुझे तो जान से मार देती कुतिया को. सारा मूड खराब कर दिया मेरा."
सौरभ ने दरवाजा बंद किया और श्रद्धा का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर ले आया. "अब शांत हो जाओ...पानी दू क्या?"
"नही मैं ठीक हूँ. कौन थी वैसे ये छिनाल."
"छोड़ो उसे ये बताओ आज मेरी याद कैसे आई तुम्हे."
"बापू घर पर नही है. तुम्हे वादा कर रखा था कभी..इसलिए आई थी...पर सारा मूड खराब कर दिया उसने."
"उसे गोली मारो तुम...आओ हम अपना काम करते हैं. वैसे आजकल मेरा दिल एक लड़की में अटका है...इसलिए मन नही होता किसी के साथ कुछ करने का. लेकिन अपनी बहुत पहले बात हुई थी इसलिए उसे पूरा करते हैं आज."
"आशुतोष का दिल भी कही अटका है, तुम्हारा भी अटका है...हो क्या रहा है. आशुतोष तो अपर्णा के जाल में फँस गया. तुम्हारा दिल कौन ले उड़ी." श्रद्धा ने पूछा.
अब सौरभ कैसे बताए पूजा का नाम. दिक्कत हो जाएगी. "छोड़ ना ये बाते मूड ही खराब होगा."
"शूकर है...मतलब कि तुम्हारा मूड है."
"और नही तो क्या?"
"मैं तो डर ही गयी थी...एक काम करने का मन है...करू"
"हां-हां करो."
"सीधे लेट जाओ फिर." श्रद्धा ने कहा.
सौरभ लेट गया और श्रद्धा उसकी टाँगो के बीच बैठ गयी. उसने सौरभ की पेण्ट की ज़िप खोली और सौरभ का लंड बाहर निकाल लिया. वो काले नाग की तरह फन-फ़ना रहा था.श्रद्धा ने लंड को मूह में ले लिया और चूसने लगी.
"कहा तो ब्लो जॉब मिलती नही थी अब लड़किया खुद मेहरबान हो रही हैं. वाओ बहुत अच्छा चूस रही हो श्रद्धा. लगी रहो."
श्रद्धा कुछ देर तक यू ही चूस्ति रही लंड और सौरभ उसके सर को सहलाता रहा. कुछ देर बाद श्रद्धा ने अपनी सलवार का नाडा खोला और लंड को सीधा पकड़ कर उस पर अपनी चूत टिका दी.
"पहली बार तुम्हारा लंड चूत में ले रही हूँ...देखते हैं कैसा लगता है."
श्रद्धा ने अपनी गान्ड को नीचे की तरफ पुश किया और सौरभ का लंड श्रद्धा की चूत में घुसता चला गया.
"अच्छी चूत है तुम्हारी...पकड़ अच्छी है लंड पर...गुड...पूरा घुसा लो अंदर आआहह." सौरभ कराह उठा. श्रद्धा ने पूरा अंदर ले लिया था.
अब वो धीरे धीरे सौरभ के लंड को चूत में फँसाए हुए अपनी गान्ड को उछालने लगी.
"आआअहह अच्छा लग रहा है ये लंड चूत में. गांद में तो बहुत दर्द दिया था इसने आअहह." श्रद्धा आँखे बंद किए हुए सौरभ के उपर उछल रही थी.
जल्दी ही सौरभ ने श्रद्धा को पकड़ा और उसे अपने नीचे ले आया. इस दौरान लंड चूत में ही फँसा रहा. श्रद्धा को नीचे लाकर सौरभ ने उसकी टाँगो को कंधे पर रखा और धक्को की बोछार शुरू कर दी श्रद्धा की चूत में.
श्रद्धा तो लगातार काई बार झड़ी. उसकी शिसकिया कमरे में गूँज रही थी. अचानक सौरभ ने स्पीड बहुत तेज बढ़ा दी. और वो कुछ देर बाद ढेर हो गया श्रद्धा के उपर.
"कैसा लगा मेरा लंड तुम्हारी चूत को."
"बहुत अच्छा लगा. एक बार फिर से करना पड़ेगा तुम्हे."
"करूँगा ज़रूर करूँगा. एक बात कहु"
"हां कहो."
"काश तुम पर ही दिल आ जाता मेरा. तुम अच्छी लड़की हो." सौरभ ने कहा.
"अगर ऐसा होता तो मैं सब कुछ छोड़ देती तुम्हारे लिए. पर प्यार कहा अपनी किस्मत में. अपनी किस्मत में तो लंड के धक्के लिखे हैं."
"शादी कब कर रही हो तुम."
"शादी और मैं, ये सवाल मत पूछो तुम."
"क्यों क्या हुआ, शादी की उमर तो है तुम्हारी. शादी नही करना चाहती क्या. या फिर यू ही मज़े लोगि तुम"
"तुम नही समझोगे रहने दो"
"क्या बात है बताओ तो" सौरभ ने उत्सुकता से पूछा.
"दहेज के लिए पैसा कहाँ है बापू के पास जो शादी होगी. वैसे भी मेरा मन नही है शादी करने का. मेरी बहन पूजा की शादी हो जाए बस कही अच्छी जगह. उसी के लिए दुवा करती हूँ. बापू हम दोनो का बोझ नही उठा सकते सौरभ. एक की ही शादी हो सकती है. और मैं चाहती हूँ कि पूजा का घर बस जाए. मेरा क्या है...मेरा चरित्र तो बीवी बन-ने लायक रहा भी नही है. क्यों किसी को धोका दू." कहते-कहते श्रद्धा की आँखे भर आई थी.
सौरभ श्रद्धा के उपर था और अभी भी उसमें समाया हुआ था. वो तो श्रद्धा को देखता ही रह गया. उसने श्रद्धा के होंठो को किस किया और बोला, "मुझे नही पता था कि श्रद्धा ऐसी बाते भी कर सकती है."
"मैं क्या इंसान नही हूँ" श्रद्धा ने सवाल किया.
"मेरा वो मतलब नही है."
"निकाल लो बाहर सौरभ. थोड़ा सा भावुक हो गयी हूँ. मन हुआ तो थोड़ी देर में करेंगे." श्रद्धा ने कहा.
"ओह हां सॉरी...." सौरभ ने लिंग बाहर खींच लिया.
"मुझे गर्व है खुद पे की मैने तुम्हारे साथ संभोग किया श्रद्धा." सौरभ ने कहा.
दोनो एक दूसरे से लिपट गये और खो गये कही अपने बीच उभरे जज्बातो में. दोनो लिपटे ही रहे कुछ कर नही पाए बाद में. शायद एक दूसरे से लिपटे रहना ज़्यादा अच्छा लग रहा था दोनो को.
"श्रद्धा मैं तो तुम्हे बहुत बुरी समझता था. लेकिन आज मेरा नज़रिया बदल गया." सौरभ ने कहा.
"बुरी तो मैं हूँ ही. तुम ठीक ही समझते थे. जानते तो हो ही मेरे बारे में सब." श्रद्धा ने कहा.
"हां जानता हूँ. पर तुम्हारा ये जज्बाती रूप नही देखा था मैने. तुम उतनी बुरी नही हो जितना मैं समझता था. तुम अच्छी लड़की हो."
"अच्छी हूँ तो क्या प्यार कर सकते हो मुझसे" श्रद्धा ने सौरभ की आँखो में झाँक कर पूछा.
"चाहने लगा हूँ किसी और को वरना कर लेता तुझे प्यार." सौरभ ने कहा.
"अच्छा छोड़ो उसका नाम तो बताओ, कौन है वो, कहा रहती है, क्या करती है. कुछ तो बताओ."
"अभी कुछ नही बता सकता...सॉरी...अच्छा ये बता तेरा बापू कहाँ चला जाता है बार-बार...काम पर ध्यान देगा वो तो अच्छा कमा लेगा."
"छोटी सी पान की दुकान है बापू की. क्या कमाएँगे. गाँव में खेत है छोटा सा उसकी देख रेख के लिए जाते रहते हैं वो."
"ह्म्म...चल चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा."
"तुम्हारे लंड में हरकत हो रही है, कुछ करने का मन है क्या?" श्रद्धा ने सौरभ से पूछा.
"मन कैसे नही होगा तू इतने पास जो पड़ी है." सौरभ ने कहा.
"आ जाओ फिर. मुझे गम भुलाने के लिए एक तूफान की ज़रूरत है. मचा दो तूफान मेरे अंदर." श्रद्धा ने कहा.
"तुम ना हटाते मुझे तो जान से मार देती कुतिया को. सारा मूड खराब कर दिया मेरा."
सौरभ ने दरवाजा बंद किया और श्रद्धा का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर ले आया. "अब शांत हो जाओ...पानी दू क्या?"
"नही मैं ठीक हूँ. कौन थी वैसे ये छिनाल."
"छोड़ो उसे ये बताओ आज मेरी याद कैसे आई तुम्हे."
"बापू घर पर नही है. तुम्हे वादा कर रखा था कभी..इसलिए आई थी...पर सारा मूड खराब कर दिया उसने."
"उसे गोली मारो तुम...आओ हम अपना काम करते हैं. वैसे आजकल मेरा दिल एक लड़की में अटका है...इसलिए मन नही होता किसी के साथ कुछ करने का. लेकिन अपनी बहुत पहले बात हुई थी इसलिए उसे पूरा करते हैं आज."
"आशुतोष का दिल भी कही अटका है, तुम्हारा भी अटका है...हो क्या रहा है. आशुतोष तो अपर्णा के जाल में फँस गया. तुम्हारा दिल कौन ले उड़ी." श्रद्धा ने पूछा.
अब सौरभ कैसे बताए पूजा का नाम. दिक्कत हो जाएगी. "छोड़ ना ये बाते मूड ही खराब होगा."
"शूकर है...मतलब कि तुम्हारा मूड है."
"और नही तो क्या?"
"मैं तो डर ही गयी थी...एक काम करने का मन है...करू"
"हां-हां करो."
"सीधे लेट जाओ फिर." श्रद्धा ने कहा.
सौरभ लेट गया और श्रद्धा उसकी टाँगो के बीच बैठ गयी. उसने सौरभ की पेण्ट की ज़िप खोली और सौरभ का लंड बाहर निकाल लिया. वो काले नाग की तरह फन-फ़ना रहा था.श्रद्धा ने लंड को मूह में ले लिया और चूसने लगी.
"कहा तो ब्लो जॉब मिलती नही थी अब लड़किया खुद मेहरबान हो रही हैं. वाओ बहुत अच्छा चूस रही हो श्रद्धा. लगी रहो."
श्रद्धा कुछ देर तक यू ही चूस्ति रही लंड और सौरभ उसके सर को सहलाता रहा. कुछ देर बाद श्रद्धा ने अपनी सलवार का नाडा खोला और लंड को सीधा पकड़ कर उस पर अपनी चूत टिका दी.
"पहली बार तुम्हारा लंड चूत में ले रही हूँ...देखते हैं कैसा लगता है."
श्रद्धा ने अपनी गान्ड को नीचे की तरफ पुश किया और सौरभ का लंड श्रद्धा की चूत में घुसता चला गया.
"अच्छी चूत है तुम्हारी...पकड़ अच्छी है लंड पर...गुड...पूरा घुसा लो अंदर आआहह." सौरभ कराह उठा. श्रद्धा ने पूरा अंदर ले लिया था.
अब वो धीरे धीरे सौरभ के लंड को चूत में फँसाए हुए अपनी गान्ड को उछालने लगी.
"आआअहह अच्छा लग रहा है ये लंड चूत में. गांद में तो बहुत दर्द दिया था इसने आअहह." श्रद्धा आँखे बंद किए हुए सौरभ के उपर उछल रही थी.
जल्दी ही सौरभ ने श्रद्धा को पकड़ा और उसे अपने नीचे ले आया. इस दौरान लंड चूत में ही फँसा रहा. श्रद्धा को नीचे लाकर सौरभ ने उसकी टाँगो को कंधे पर रखा और धक्को की बोछार शुरू कर दी श्रद्धा की चूत में.
श्रद्धा तो लगातार काई बार झड़ी. उसकी शिसकिया कमरे में गूँज रही थी. अचानक सौरभ ने स्पीड बहुत तेज बढ़ा दी. और वो कुछ देर बाद ढेर हो गया श्रद्धा के उपर.
"कैसा लगा मेरा लंड तुम्हारी चूत को."
"बहुत अच्छा लगा. एक बार फिर से करना पड़ेगा तुम्हे."
"करूँगा ज़रूर करूँगा. एक बात कहु"
"हां कहो."
"काश तुम पर ही दिल आ जाता मेरा. तुम अच्छी लड़की हो." सौरभ ने कहा.
"अगर ऐसा होता तो मैं सब कुछ छोड़ देती तुम्हारे लिए. पर प्यार कहा अपनी किस्मत में. अपनी किस्मत में तो लंड के धक्के लिखे हैं."
"शादी कब कर रही हो तुम."
"शादी और मैं, ये सवाल मत पूछो तुम."
"क्यों क्या हुआ, शादी की उमर तो है तुम्हारी. शादी नही करना चाहती क्या. या फिर यू ही मज़े लोगि तुम"
"तुम नही समझोगे रहने दो"
"क्या बात है बताओ तो" सौरभ ने उत्सुकता से पूछा.
"दहेज के लिए पैसा कहाँ है बापू के पास जो शादी होगी. वैसे भी मेरा मन नही है शादी करने का. मेरी बहन पूजा की शादी हो जाए बस कही अच्छी जगह. उसी के लिए दुवा करती हूँ. बापू हम दोनो का बोझ नही उठा सकते सौरभ. एक की ही शादी हो सकती है. और मैं चाहती हूँ कि पूजा का घर बस जाए. मेरा क्या है...मेरा चरित्र तो बीवी बन-ने लायक रहा भी नही है. क्यों किसी को धोका दू." कहते-कहते श्रद्धा की आँखे भर आई थी.
सौरभ श्रद्धा के उपर था और अभी भी उसमें समाया हुआ था. वो तो श्रद्धा को देखता ही रह गया. उसने श्रद्धा के होंठो को किस किया और बोला, "मुझे नही पता था कि श्रद्धा ऐसी बाते भी कर सकती है."
"मैं क्या इंसान नही हूँ" श्रद्धा ने सवाल किया.
"मेरा वो मतलब नही है."
"निकाल लो बाहर सौरभ. थोड़ा सा भावुक हो गयी हूँ. मन हुआ तो थोड़ी देर में करेंगे." श्रद्धा ने कहा.
"ओह हां सॉरी...." सौरभ ने लिंग बाहर खींच लिया.
"मुझे गर्व है खुद पे की मैने तुम्हारे साथ संभोग किया श्रद्धा." सौरभ ने कहा.
दोनो एक दूसरे से लिपट गये और खो गये कही अपने बीच उभरे जज्बातो में. दोनो लिपटे ही रहे कुछ कर नही पाए बाद में. शायद एक दूसरे से लिपटे रहना ज़्यादा अच्छा लग रहा था दोनो को.
"श्रद्धा मैं तो तुम्हे बहुत बुरी समझता था. लेकिन आज मेरा नज़रिया बदल गया." सौरभ ने कहा.
"बुरी तो मैं हूँ ही. तुम ठीक ही समझते थे. जानते तो हो ही मेरे बारे में सब." श्रद्धा ने कहा.
"हां जानता हूँ. पर तुम्हारा ये जज्बाती रूप नही देखा था मैने. तुम उतनी बुरी नही हो जितना मैं समझता था. तुम अच्छी लड़की हो."
"अच्छी हूँ तो क्या प्यार कर सकते हो मुझसे" श्रद्धा ने सौरभ की आँखो में झाँक कर पूछा.
"चाहने लगा हूँ किसी और को वरना कर लेता तुझे प्यार." सौरभ ने कहा.
"अच्छा छोड़ो उसका नाम तो बताओ, कौन है वो, कहा रहती है, क्या करती है. कुछ तो बताओ."
"अभी कुछ नही बता सकता...सॉरी...अच्छा ये बता तेरा बापू कहाँ चला जाता है बार-बार...काम पर ध्यान देगा वो तो अच्छा कमा लेगा."
"छोटी सी पान की दुकान है बापू की. क्या कमाएँगे. गाँव में खेत है छोटा सा उसकी देख रेख के लिए जाते रहते हैं वो."
"ह्म्म...चल चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा."
"तुम्हारे लंड में हरकत हो रही है, कुछ करने का मन है क्या?" श्रद्धा ने सौरभ से पूछा.
"मन कैसे नही होगा तू इतने पास जो पड़ी है." सौरभ ने कहा.
"आ जाओ फिर. मुझे गम भुलाने के लिए एक तूफान की ज़रूरत है. मचा दो तूफान मेरे अंदर." श्रद्धा ने कहा.